स्वरगोष्ठी – 145 में आज
रागों में भक्तिरस – 13
‘हे नटराज गंगाधर शम्भो भोलेनाथ...’
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘रागों में भक्तिरस’ की तेरहवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीतानुरागियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। मित्रों, जारी श्रृंखला के अन्तर्गत हम आपके लिए भारतीय संगीत के कुछ भक्तिरस प्रधान राग और उनमें निबद्ध रचनाएँ प्रस्तुत कर रहे हैं। साथ ही उस राग पर आधारित फिल्म संगीत के उदाहरण भी आपको सुनवा रहे हैं। श्रृंखला की आज की कड़ी में हम आपसे राग जोगिया में उपस्थित भक्तिरस पर चर्चा करेंगे। आपके समक्ष इस राग के भक्तिरस-पक्ष को स्पष्ट करने के लिए हम तीन भक्तिरस से पगी रचनाएँ प्रस्तुत करेंगे। सबसे पहले हम 1965 में प्रदर्शित फिल्म ‘संगीत सम्राट तानसेन’ का राग जोगिया पर आधारित एक शिव-स्तुति और इसके बाद विदुषी कला रामनाथ का वायलिन पर बजाया राग जोगिया प्रस्तुत करेंगे। अन्त में इसी राग पर आधारित कन्नड के सुप्रसिद्ध संगीतज्ञ और सन्त पुरन्दर दास की भक्ति रचना नचिकेता शर्मा के स्वरों में आप सुनेगे।
महेन्द्र कपूर |
कमाल बारोट |
भारतीय संगीत में भक्तिरस की धारा का अजस्र प्रवाह वैदिककाल से ही होता आया है। ग्यारहवीं शताब्दी से लेकर सोलहवीं शताब्दी के बीच अनेक सन्त कवियों और संगीतकारों ने इस परम्परा को पुष्ट किया है। आज के इस अंक में हम आपको कन्नड के सुप्रसिद्ध सन्तकवि और संगीतकार सन्त पुरन्दर दास की एक भक्तिरचना सुनवाने के साथ उनका संक्षिप्त परिचय भी देंगे। परन्तु उससे पहले भारतीय संगीत के एक भक्तिरस प्रधान राग जोगिया की चर्चा करेंगे। भक्तिरस के वैराग्य भाव को उभारने में राग जोगिया एक आदर्श राग है। प्रथम प्रहर अर्थात सूर्योदय के समय गाया-बजाया जाने वाला यह राग भैरव थाट के अन्तर्गत माना जाता है। कर्नाटक संगीत पद्यति का राग सावेरी, इस राग के समतुल्य होता है। राग जोगिया के आरोह में गान्धार और निषाद स्वर वर्जित होता है। आरोह में ऋषभ और धैवत कोमल और मध्यम स्वर शुद्ध प्रयोग किया जाता है। अवरोह के दो रूप प्रचलित है। अवरोह के पहले रूप में गान्धार और निषाद स्पष्ट होता है। यह रूप कर्नाटक पद्यति के राग सावेरी के निकट होता है। दूसरे रूप में कोमल गान्धार स्वर केवल अवरोह में प्रयोग होता है, वह भी मात्र कण रूप में। यह रूप राग गुणकली के निकट हो जाता है। अवरोह में सात स्वर का प्रयोग होता है। इस प्रकार यह राग औड़व-सम्पूर्ण जाति का है। राग जोगिया में शुद्ध मध्यम स्वर पर न्यास अर्थात ठहराव दिया जाता है, जबकि राग भैरव में ऐसा नहीं होता। इसी प्रकार राग जोगिया में कोमल ऋषभ और कोमल धैवत स्वरों का आन्दोलन नहीं होता, जबकि राग भैरव में ऐसा होता है। इस राग का वादी स्वर षडज और संवादी स्वर मध्यम होता है।
राग जोगिया पर आधारित एक बेहद आकर्षक शिव वन्दना का उपयोग फिल्म ‘संगीत सम्राट तानसेन’ में किया गया था। 1962 में प्रदर्शित इस फिल्म के संगीतकार एस.एन. त्रिपाठी ने राग जोगिया के स्वरों का आधार लेकर यह वन्दना गीत स्वरबद्ध किया था। इसे पार्श्वगायक महेन्द्र कपूर और गायिका कमल बारोट ने स्वर दिया है। पहले प्रस्तुत है, यही शिव-वन्दना।
राग जोगिया : ‘हे नटराज गंगाधर शम्भो...’ : फिल्म संगीत सम्राट तानसेन : महेन्द्र कपूर और कमल बारोट
कला रामनाथ |
नचिकेता शर्मा |
राग जोगिया भक्तिरस के आध्यात्मिक और वैराग्य भाव की अनुभूति कराने में सक्षम है। राग के इस भाव की सार्थक अनुभूति कराने के लिए अब हम आपको दो रचनाएँ सुनवाते हैं। पहले आप सुनेगे वायलिन पर राग जोगिया में निबद्ध एक भावपूर्ण रचना, जिसे प्रस्तुत कर रही हैं, विदुषी कला रामनाथ। आज की इस कड़ी के अन्त में आप कन्नड का एक भक्तिगीत भी सुनेगे जिसे युवा गायक नचिकेता शर्मा प्रस्तुत कर रहे हैं। राग जोगिया के स्वरों पिरोया यह भजन सुप्रसिद्ध संगीतज्ञ सन्त पुरन्दर दास की रचना है। कर्नाटक संगीत पद्यति के शीर्षस्थ संगीतज्ञ सन्त पुरन्दर दास का जन्म कर्नाटक राज्य के शिवमोगा जनपद में स्थित क्षेमपुर नामक स्थान में एक सम्पन्न रत्न-व्यवसायी वरदप्पा नायक के घर 1484 ई. में हुआ था। बचपन में माता-पिता ने इनका नाम श्रीनिवास नायक रखा था। उन्होने कन्नड, संस्कृत भाषा और संगीत शास्त्र का गहन अध्ययन किया था। कर्नाटक संगीत पद्यति में उनकी असंख्य कृतियाँ और भगवान विट्ठल के प्रति समर्पित भजन भारतीय संगीत की अनमोल धरोहर हैं। इस अंक में गायक नचिकेता शर्मा के स्वरों में प्रस्तुत किये जा रहे कन्नड भाषा के इस भजन के गायन में तबला-संगति रवि गुटाला ने और हारमोनियम-संगति विवेक दातार ने की है। आप पहले वायलिन पर राग जोगिया फिर इसी राग में पिरोया सन्त पुरन्दर दास का भजन सुनिए और मुझे आज के इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए।
राग जोगिया : वायलिन वादन : विदुषी कला रामनाथ
राग जोगिया : सन्त पुरन्दर दास रचित भक्तिपद : नचिकेता शर्मा
आज की पहेली
‘स्वरगोष्ठी’ की 145वीं संगीत पहेली में हम आपको एक गीत का आरम्भिक अंश सुनवा रहे हैं। इसे सुन कर आपको निम्नलिखित दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के 150वें अंक तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस श्रृंखला का विजेता घोषित किया जाएगा।
1 – संगीत के इस अंश को सुन कर पहचानिए कि इस रचना में किस राग की झलक है?
2 – इस रचना में ताल के मात्राओं की संख्या कितनी है?
आप अपने उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर ही शनिवार मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। comments में दिये गए उत्तर मान्य नहीं होंगे। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 147वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’ की 143वीं संगीत पहेली में हमने आपको पण्डित जसराज के गायन और पण्डित हरिप्रसाद चौरसिया के बाँसुरी वादन की एक जुगलबन्दी रचना का अंश सुनवा कर आपसे दो प्रश्न पूछे थे। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग केदार और दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- तीनताल। इस अंक के दोनों प्रश्नो के सही उत्तर जौनपुर से डॉ. पी.के. त्रिपाठी और जबलपुर की क्षिति तिवारी ने दिया है। दोनों प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।
झरोखा अगले अंक का
मित्रों, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी है, लघु श्रृंखला ‘रागों में भक्तिरस’, जिसके अन्तर्गत हमने आज की कड़ी में आपसे राग जोगिया में भक्तिरस के तत्त्व विषयक चर्चा की। अगले अंक में आप एक ऐसी भक्ति-रचना का रसास्वादन करेंगे जिसे अनेक शीर्षस्थ कलासाधकों ने अलग-अलग रागों का आधार लेकर भक्तिरस को सम्प्रेषित किया है। इस श्रृंखला की आगामी कड़ियों के लिए आप अपनी पसन्द के भक्तिरस प्रधान रागों या रचनाओं की फरमाइश कर सकते हैं। हम आपके सुझावों और फरमाइशों का स्वागत करते हैं। अगले अंक में रविवार को प्रातः 9 बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के इस मंच पर आप सभी संगीत-रसिकों की हमें प्रतीक्षा रहेगी।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
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