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मीरा का एक और पद : विविध धुनों में


स्वरगोष्ठी – 147 में आज


रागों में भक्तिरस – 15


‘श्याम मने चाकर राखो जी...’


‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘रागों में भक्तिरस’ की पन्द्रहवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीतानुरागियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। मित्रों, इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम आपके लिए भारतीय संगीत के कुछ भक्तिरस प्रधान राग और उनमें निबद्ध रचनाएँ प्रस्तुत कर रहे हैं। साथ ही उस भक्ति रचना के फिल्म में किये गए प्रयोग भी आपको सुनवा रहे हैं। श्रृंखला की पिछली कड़ी में हमने सोलहवीं शताब्दी की भक्त कवयित्री के एक पद- ‘एरी मैं तो प्रेम दीवानी मेरा दर्द न जाने कोय...’ पर आपके साथ चर्चा की थी। आज की कड़ी में हम मीराबाई के साहित्य और संगीत पर चर्चा जारी रखते हुए एक और बेहद चर्चित पद- ‘श्याम मने चाकर राखो जी...’ सुनवाएँगे। इस भजन को विख्यात गायिका एम.एस. शुभलक्ष्मी, वाणी जयराम, लता मंगेशकर और चौथे दशक की एक विस्मृत गायिका सती देवी ने गाया है। इन चारो गायिकाओं ने मीरा का एक ही पद अलग-अलग धुनों में गाया है। आप इस भक्तिगीत के चारो संस्करण सुनिए और स्वरों के परिवर्तन से गीत के भाव में होने वाले आंशिक बदलाव का प्रत्यक्ष अनुभव कीजिए। 


तिहासकारों के अनुसार भक्त कवयित्री मीराबाई का जन्म विक्रमी संवत 1561 अर्थात 1504 ई. के श्रावण मास की प्रतिपदा तिथि को हुआ था। अजमेर के लेखक श्री ओमप्रकाश ने अपनी पुस्तक ‘मेरे तो गिरधर गोपाल’ की भूमिका में मीरा की भक्ति रचनाओं का विवेचन करते हुए लिखा है- “सर्वथा प्रतिकूल परिस्थितियों में मुगल आक्रमणकारियों से भयाक्रान्त समाज को मीरा ने भक्ति का सम्बल दिया। पूरे भारतवर्ष के कोने-कोने में भक्ति आन्दोलन चल रहे थे। मीरा ने भी उसी संस्कृति के भक्ति-प्रवाह को परिपुष्ट किया। ‘नारी भोग्या नहीं, माँ है’ की जीवन-दृष्टि देकर नारी को नव प्रतिष्ठा दी। समाज की सुव्यवस्था हेतु कुरीतियों का उन्मूलन कर, चिर विद्रोहिणी की भूमिका निभाते हुए समाज-सुधार का कर्तव्य निभाया।”

आज के अंक में हमने मीरा का वह पद चुना है जिसमें वह अपने आराध्य श्रीकृष्ण से आग्रह कर रही हैं कि ‘हे श्याम मुझे अपना चाकर बना लो’। सबसे पहले आप यह भक्तिगीत सुप्रसिद्ध गायिका विदुषी एम.एस. शुभलक्ष्मी के स्वरों में सुनेगे। मीरा के व्यक्तित्व, कृतित्व और जीवन दर्शन पर 1947 में चन्द्रप्रभा मूवीटोन द्वारा निर्मित फिल्म ‘मीरा’ के गीतों में उन्होने स्वयं अपना स्वर दिया था। यह फिल्म पहले तमिल में और फिर हिन्दी में भी बनी थी। विदुषी एम.एस. शुभलक्ष्मी ने इस फिल्म में न केवल गीत गाये, बल्कि मीरा की भूमिका में अभिनय भी किया था। फिल्म के संगीत निर्देशक एस.वी. वेंकटरमन, जी. रामनाथन् और नरेश भट्टाचार्य थे। फिल्म में मीरा का यह पद एक अप्रचलित राग बिहारी के स्वरों में निबद्ध है। मीरा-भजन के इस संस्करण के बाद आप इसका दूसरा संस्करण भी सुनेगे। भजन- ‘मने चाकर राखो जी...’ का यह संस्करण चौथे दशक में सक्रिय किन्तु वर्तमान में विस्मृत गायिका सती देवी ने गाया है। गायिका सती देवी चर्चित पार्श्वगायक किशोर कुमार की पहली पत्नी रूमा गुहा ठाकुरता (गांगुली) की माँ थीं। चौथे और पाँचवें दशक में गाये गए इस मीरा-भजन के इन दोनों संस्करणों का आप रसास्वादन कीजिए।


मीरा भजन : ‘श्याम मने चाकर राखो जी...’ : एम.एस. शुभलक्ष्मी : फिल्म मीरा (1947)




मीरा भजन : ‘श्याम मने चाकर राखो जी...’ : सती देवी : गैर फिल्मी भजन



भक्त कवयित्री मीरा के पद ‘श्याम मने चाकर राखो जी...’ पर हमारी यह चर्चा जारी है। मीरा के जीवन दर्शन पर एक और फिल्म ‘मीरा’ 1979 में गीतकार गुलजार के निर्देशन में बनी थी। इस फिल्म में भी मीरा के अन्य पदों के साथ-साथ ‘श्याम मने चाकर राखो जी...’ भी शामिल था, जिसे वाणी जयराम ने अपना स्वर दिया था। फिल्म के संगीत निर्देशक विश्वविख्यात संगीतज्ञ पण्डित रविशंकर थे। उन्होने इस भजन को राग भैरवी के स्वर दिये। ‘स्वरगोष्ठी’ के पिछले कई अंकों में हम राग भैरवी की चर्चा करते रहे हैं। राग भैरवी के आरोह स्वर हैं, सा, रे॒ (कोमल), ग॒ (कोमल), म, प, ध॒ (कोमल), नि॒ (कोमल), सां तथा अवरोह के स्वर, सां, नि॒ (कोमल), ध॒ (कोमल), प, म ग (कोमल), रे॒ (कोमल), सा होते हैं। इस राग का वादी स्वर मध्यम और संवादी स्वर षडज होता है। यूँ तो इसके गायन-वादन का समय प्रातःकाल, सन्धिप्रकाश बेला में है, किन्तु आम तौर पर राग ‘भैरवी’ का गायन-वादन किसी संगीत-सभा अथवा समारोह के अन्त में किये जाने की परम्परा बन गई है। राग ‘भैरवी’ को ‘सदा सुहागिन राग’ भी कहा जाता है। मीरा का यह पद पहले आप राग भैरवी के स्वरो में सुनेगे और फिर उसके बाद यही पद राग बागेश्री के स्वरो पर आधारित प्रस्तुत करेंगे। यह संस्करण हमने 1956 में प्रदर्शित फिल्म ‘तूफान और दीया’ से लिया है। भजन के स्थायी की पंक्ति में श्याम के स्थान पर गिरधारी शब्द का प्रयोग हुआ है। इसके संगीत निर्देशक बसन्त देसाई थे और इस भजन को लता मंगेशकर ने स्वर दिया था। गीत में राग बागेश्री की स्पष्ट झलक मिलती है। बेहद लोकप्रिय राग है, बागेश्री। कुछ लोग इसे बागेश्वरी नाम से भी सम्बोधित करते हैं, किन्तु वरिष्ठ गायिका विदुषी गंगूबाई हंगल के अनुसार इस राग का सही नाम बागेश्री ही होना चाहिए। काफी थाट के अन्तर्गत माना जाने वाला यह राग कर्नाटक संगीत के नटकुरंजी राग से काफी मिलता-जुलता है। राग बागेश्री में पंचम स्वर का अल्पत्व प्रयोग होता है। षाड़व-सम्पूर्ण जाति के इस राग के आरोह में ऋषभ वर्जित होता है। कुछ विद्वान आरोह में पंचम का प्रयोग न करके औड़व-सम्पूर्ण रूप में इस राग को गाते-बजाते हैं। इसमें गान्धार और निषाद स्वर कोमल प्रयोग किये जाते हैं। राग का वादी स्वर मध्यम और संवादी स्वर षडज होता है। यह राधा का सर्वप्रिय राग माना जाता है। आप मीरा के पद- ‘श्याम माने चाकर राखो जी...’ को पहले राग भैरवी और फिर राग बागेश्री के स्वरों में सुनिए और मुझे श्रृंखला ‘रागों में भक्तिरस’ की इस कड़ी को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए।


राग भैरवी : ‘श्याम माने चाकर राखो जी...’ : वाणी जयराम : फिल्म मीरा (1979)




राग बागेश्री : ‘श्याम माने चाकर राखो जी...’ : लता मंगेशकर : फिल्म तूफान और दीया




आज की पहेली

‘स्वरगोष्ठी’ की 147वीं संगीत पहेली में हम आपको एक बेहद लोकप्रिय भजन का अंश सुनवा रहे हैं। इसे सुन कर आपको निम्नलिखित दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के 150वें अंक तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस श्रृंखला का विजेता घोषित किया जाएगा।


1 – संगीत के इस अंश को सुन कर पहचानिए कि इस रचना में किस राग की झलक है?

2 – इस रचना में किस ताल का प्रयोग किया गया है?

आप अपने उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर ही शनिवार मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। comments में दिये गए उत्तर मान्य नहीं होंगे। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 149वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।


पिछली पहेली के विजेता

‘स्वरगोष्ठी’ की 145वीं संगीत पहेली में हमने आपको पण्डित रविशंकर द्वारा स्वरबद्ध और वाणी जयराम की आवाज़ में प्रस्तुत मीरा के एक भजन का अंश सुनवा कर आपसे दो प्रश्न पूछे थे। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग तोड़ी और दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- सात मात्रा का रूपक ताल। इस अंक के दोनों प्रश्नो के सही उत्तर एकमात्र प्रतिभागी जबलपुर की क्षिति तिवारी ने दिया है। क्षिति जी को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।


झरोखा अगले अंक का

मित्रों, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी है, लघु श्रृंखला ‘रागों में भक्तिरस’, जिसके अन्तर्गत हमने आज की कड़ी में आपसे एक बार फिर भक्त कवयित्री मीरा के एक और पद पर चर्चा की। अगले अंक में आप एक और भक्तकवि महात्मा कबीर की एक भक्ति-रचना का रसास्वादन करेंगे जिसे अनेक शीर्षस्थ कलासाधकों ने अलग-अलग रागों का आधार लेकर भक्तिरस को सम्प्रेषित किया है। इस श्रृंखला की आगामी कड़ियों के लिए आप अपनी पसन्द के भक्तिरस प्रधान रागों या रचनाओं की फरमाइश कर सकते हैं। हम आपके सुझावों और फरमाइशों का स्वागत करते हैं। अगले अंक में रविवार को प्रातः 9 बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के इस मंच पर आप सभी संगीत-रसिकों की हमें प्रतीक्षा रहेगी।


प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र 

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