ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 707/2011/147
पावस ऋतु के रागों पर आधारित फिल्म-गीतों की श्रृंखला "उमड़ घुमड़ का आई रे घटा" की सातवीं कड़ी में सभी संगीतप्रेमी पाठकों-श्रोताओं का एक बार फिर; मैं कृष्णमोहन मिश्र सहर्ष अभिनन्दन करता हूँ| दोस्तों; इस श्रृंखला की तीसरी कड़ी में हमने आपको राग "गौड़ मल्हार" में निबद्ध एक बन्दिश का रसास्वादन कराया था| आज पुनः हम राग "गौड़ मल्हार" की विशेषताओं और प्रवृत्ति पर चर्चा करेंगे और इस राग पर आधारित एक मधुर गीत का रसास्वादन कराएँगे|
तीसरी कड़ी में हम यह चर्चा कर चुके हैं कि राग "गौड़ मल्हार" की संरचना सारंग और मल्हार अंग के मेल से हुई है| श्रावण (सावन) मास में अचानक आकाश पर बादल छा जाते हैं और मल्हार अंग के स्वाभाव के अनुरूप रिमझिम फुहारें मानव-मन को तृप्त करने में संलग्न हो जातीं हैं| कुछ ही देर में आकाश मेघ रहित हो जाता है और खुला आकाश सारंग अंग के अनुकूल अनुभूति कराने लगता है| अर्थात राग "गौड़ मल्हार" में दोनों प्रवृत्तियाँ मौजूद रहतीं हैं| इस राग के थाट के बारे में विद्वानों के बीच थोड़ा मतभेद है| कुछ विद्वान इसे खमाज थाट का, तो कुछ इसे काफी थाट के अन्तर्गत मानते हैं| इलाहाबाद के वरिष्ठ संगीतज्ञ पण्डित रामाश्रय झा राग "गौड़ मल्हार" को बिलावल थाट के अन्तर्गत मानते हैं| राग का वादी स्वर मध्यम और संवादी स्वर षडज होता है| राग में शुद्ध मध्यम के साथ कोमल निषाद का प्रयोग आनन्ददायक होता है|
इस राग की एक बड़ी प्यारी सी बन्दिश है जिसे कई सुप्रसिद्ध संगीतज्ञों ने तीनताल में निबद्ध कर प्रभावी ढंग से गाया है-
आए बदरा कारे कारे, हमरे कन्त निपट भए बारे,
ऐसे समय परदेश सिधारे |
एक तो मुरला वन में पुकारे, मोहे जरी को अधिक जरावे |
है कोई ऐसो, पियु को मिलावे; उड़जा पंछी, कौन बिसारे |
राग "गौड़ मल्हार" के इस द्रुत ख़याल में जैसा भाव व्यक्त होता है; ठीक वैसा ही भाव 1968 में प्रदर्शित फिल्म "आशीर्वाद" के हिट गीत -"झिर झिर बरसे सावनी अँखियाँ..." में भी उपस्थित है| इस फिल्म के संगीतकार बसन्त देसाई द्वारा राग "वृन्दावनी सारंग" के स्वरों में संगीतबद्ध एक गीत आप इस श्रृंखला की चौथी कड़ी में सुन चुके हैं| इस श्रृंखला के लिए गीतों का चयन करते समय मेरे लिए यह आश्चर्य का विषय रहा है कि वर्षाकालीन रागों पर आधारित फ़िल्मी गीतों में सर्वाधिक संख्या बसन्त देसाई के संगीतबद्ध किये गीतों की है| वह एक ऐसे संगीतकार थे जिन्होंने संगीत की गुणबत्ता से कभी समझौता नहीं किया| सातवाँ दशक फिल्म संगीत के परिवर्तन का दौर था| इस दशक के अन्तिम वर्षों में बसन्त देसाई द्वारा संगीतबद्ध दो फ़िल्में- "रामराज्य" (1967) और "आशीर्वाद" (1968) प्रदर्शित हुई थी| इन दोनों फिल्मों में बसन्त देसाई ने बदलते दौर के बावजूद न तो शास्त्रीय और लोक संगीत का आधार छोड़ा और न वर्षा ऋतु के रागों के प्रति अपने मोह का त्याग कर पाए| फिल्म "रामराज्य" का राग "सूर मल्हार" पर आधारित गीत -"डर लागे चमके बिजुरिया..." तथा फिल्म "आशीर्वाद" का राग "गौड़ मल्हार" पर आधारित गीत -"झिर झिर बरसे सावनी अँखियाँ..." अपने दशक में जितने लोकप्रिय थे उतनी ही ताजगी से भरे आज भी लगते हैं|
आज हम आपको फिल्म "आशीर्वाद" का राग "गौड़ मल्हार" पर आधारित गीत सुनवाएँगे| गीतकार गुलज़ार के शब्द कहरवा ताल में निबद्ध है और इस गीत को लता मंगेशकर ने स्वर दिया है| फिल्म के निर्देशक ऋषिकेश मुखर्जी और संगीतकार बसन्त देसाई ने इस गीत के फिल्मांकन में अनूठा प्रयोग किया था| फिल्म के प्रसंग के अनुसार नायिका सुमिता सान्याल बाहर हो रही बरसात में नायक संजीव कुमार की प्रतीक्षा कर रही है| वह इसी गीत का रिकार्ड सुनना आरम्भ करती है और बीच बीच में कुछ पंक्तियाँ स्वयं भी गाती है| रिकार्ड का पूरा गीत तो लता मंगेशकर की आवाज़ में है ही; नायिका द्वारा दुहराई पंक्तियाँ भी उन्हीं की आवाज़ में है; जिसे मूल गीत के साथ जोड़ा गया है| आइए सुनते हैं, श्रावण मास का यथार्थ चित्र उकेरने वाला यह गीत-
क्या आप जानते हैं...
क्या आप जानते हैं...कि फिल्म "आशीर्वाद" के एक अन्य गीत -"एक था बचपन..." को लता जी ने बसन्त देसाई की इच्छानुसार नहीं गाया| इसके बाद 1971 की फिल्म "गुड्डी" में बिलकुल नई गायिका वाणी जयराम से महत्वाकांक्षी गीत -"बोले रे पपीहरा..." गवा कर बसन्त देसाई ने अपने ढंग से उस घटना का प्रतिवाद किया| कहने की आवश्यकता नहीं कि "गुड्डी" का यह गीत मल्हार अंग के रागों पर आधारित गीतों की सूची में सर्वोच्च स्थान पर प्रतिष्ठित है|
आज के अंक से पहली लौट रही है अपने सबसे पुराने रूप में, यानी अगले गीत को पहचानने के लिए हम आपको देंगें ३ सूत्र जिनके आधार पर आपको सही जवाब देना है-
सूत्र १ - फिल्म के नायक है सुनील दत्त.
सूत्र २ - गीत फिल्म की प्रमुख अभिनेत्री और उनकी सहेलियों पर फिल्माया गया है.
सूत्र ३ - आरंभ कोरस से होता है जिसमें शब्द आता है -"अंगना"
अब बताएं -
किस राग पर आधारित है ये गीत - ३ अंक
संगीतकार बताएं - २ अंक
गीतकार कौन हैं - २ अंक
सभी जवाब आ जाने की स्तिथि में भी जो श्रोता प्रस्तुत गीत पर अपने इनपुट्स रखेंगें उन्हें १ अंक दिया जायेगा, ताकि आने वाली कड़ियों के लिए उनके पास मौके सुरक्षित रहें. आप चाहें तो प्रस्तुत गीत से जुड़ा अपना कोई संस्मरण भी पेश कर सकते हैं.
पिछली पहेली का परिणाम -
क्षिति जी अब एक अंक से ही आगे हैं मात्र, अमित जी बढ़िया खेल रहे हैं...पंकज जी क्या बात है क्या पकड़ा है आपने :)
खोज व आलेख- कृष्ण मोहन मिश्र
पावस ऋतु के रागों पर आधारित फिल्म-गीतों की श्रृंखला "उमड़ घुमड़ का आई रे घटा" की सातवीं कड़ी में सभी संगीतप्रेमी पाठकों-श्रोताओं का एक बार फिर; मैं कृष्णमोहन मिश्र सहर्ष अभिनन्दन करता हूँ| दोस्तों; इस श्रृंखला की तीसरी कड़ी में हमने आपको राग "गौड़ मल्हार" में निबद्ध एक बन्दिश का रसास्वादन कराया था| आज पुनः हम राग "गौड़ मल्हार" की विशेषताओं और प्रवृत्ति पर चर्चा करेंगे और इस राग पर आधारित एक मधुर गीत का रसास्वादन कराएँगे|
तीसरी कड़ी में हम यह चर्चा कर चुके हैं कि राग "गौड़ मल्हार" की संरचना सारंग और मल्हार अंग के मेल से हुई है| श्रावण (सावन) मास में अचानक आकाश पर बादल छा जाते हैं और मल्हार अंग के स्वाभाव के अनुरूप रिमझिम फुहारें मानव-मन को तृप्त करने में संलग्न हो जातीं हैं| कुछ ही देर में आकाश मेघ रहित हो जाता है और खुला आकाश सारंग अंग के अनुकूल अनुभूति कराने लगता है| अर्थात राग "गौड़ मल्हार" में दोनों प्रवृत्तियाँ मौजूद रहतीं हैं| इस राग के थाट के बारे में विद्वानों के बीच थोड़ा मतभेद है| कुछ विद्वान इसे खमाज थाट का, तो कुछ इसे काफी थाट के अन्तर्गत मानते हैं| इलाहाबाद के वरिष्ठ संगीतज्ञ पण्डित रामाश्रय झा राग "गौड़ मल्हार" को बिलावल थाट के अन्तर्गत मानते हैं| राग का वादी स्वर मध्यम और संवादी स्वर षडज होता है| राग में शुद्ध मध्यम के साथ कोमल निषाद का प्रयोग आनन्ददायक होता है|
इस राग की एक बड़ी प्यारी सी बन्दिश है जिसे कई सुप्रसिद्ध संगीतज्ञों ने तीनताल में निबद्ध कर प्रभावी ढंग से गाया है-
आए बदरा कारे कारे, हमरे कन्त निपट भए बारे,
ऐसे समय परदेश सिधारे |
एक तो मुरला वन में पुकारे, मोहे जरी को अधिक जरावे |
है कोई ऐसो, पियु को मिलावे; उड़जा पंछी, कौन बिसारे |
राग "गौड़ मल्हार" के इस द्रुत ख़याल में जैसा भाव व्यक्त होता है; ठीक वैसा ही भाव 1968 में प्रदर्शित फिल्म "आशीर्वाद" के हिट गीत -"झिर झिर बरसे सावनी अँखियाँ..." में भी उपस्थित है| इस फिल्म के संगीतकार बसन्त देसाई द्वारा राग "वृन्दावनी सारंग" के स्वरों में संगीतबद्ध एक गीत आप इस श्रृंखला की चौथी कड़ी में सुन चुके हैं| इस श्रृंखला के लिए गीतों का चयन करते समय मेरे लिए यह आश्चर्य का विषय रहा है कि वर्षाकालीन रागों पर आधारित फ़िल्मी गीतों में सर्वाधिक संख्या बसन्त देसाई के संगीतबद्ध किये गीतों की है| वह एक ऐसे संगीतकार थे जिन्होंने संगीत की गुणबत्ता से कभी समझौता नहीं किया| सातवाँ दशक फिल्म संगीत के परिवर्तन का दौर था| इस दशक के अन्तिम वर्षों में बसन्त देसाई द्वारा संगीतबद्ध दो फ़िल्में- "रामराज्य" (1967) और "आशीर्वाद" (1968) प्रदर्शित हुई थी| इन दोनों फिल्मों में बसन्त देसाई ने बदलते दौर के बावजूद न तो शास्त्रीय और लोक संगीत का आधार छोड़ा और न वर्षा ऋतु के रागों के प्रति अपने मोह का त्याग कर पाए| फिल्म "रामराज्य" का राग "सूर मल्हार" पर आधारित गीत -"डर लागे चमके बिजुरिया..." तथा फिल्म "आशीर्वाद" का राग "गौड़ मल्हार" पर आधारित गीत -"झिर झिर बरसे सावनी अँखियाँ..." अपने दशक में जितने लोकप्रिय थे उतनी ही ताजगी से भरे आज भी लगते हैं|
आज हम आपको फिल्म "आशीर्वाद" का राग "गौड़ मल्हार" पर आधारित गीत सुनवाएँगे| गीतकार गुलज़ार के शब्द कहरवा ताल में निबद्ध है और इस गीत को लता मंगेशकर ने स्वर दिया है| फिल्म के निर्देशक ऋषिकेश मुखर्जी और संगीतकार बसन्त देसाई ने इस गीत के फिल्मांकन में अनूठा प्रयोग किया था| फिल्म के प्रसंग के अनुसार नायिका सुमिता सान्याल बाहर हो रही बरसात में नायक संजीव कुमार की प्रतीक्षा कर रही है| वह इसी गीत का रिकार्ड सुनना आरम्भ करती है और बीच बीच में कुछ पंक्तियाँ स्वयं भी गाती है| रिकार्ड का पूरा गीत तो लता मंगेशकर की आवाज़ में है ही; नायिका द्वारा दुहराई पंक्तियाँ भी उन्हीं की आवाज़ में है; जिसे मूल गीत के साथ जोड़ा गया है| आइए सुनते हैं, श्रावण मास का यथार्थ चित्र उकेरने वाला यह गीत-
क्या आप जानते हैं...
क्या आप जानते हैं...कि फिल्म "आशीर्वाद" के एक अन्य गीत -"एक था बचपन..." को लता जी ने बसन्त देसाई की इच्छानुसार नहीं गाया| इसके बाद 1971 की फिल्म "गुड्डी" में बिलकुल नई गायिका वाणी जयराम से महत्वाकांक्षी गीत -"बोले रे पपीहरा..." गवा कर बसन्त देसाई ने अपने ढंग से उस घटना का प्रतिवाद किया| कहने की आवश्यकता नहीं कि "गुड्डी" का यह गीत मल्हार अंग के रागों पर आधारित गीतों की सूची में सर्वोच्च स्थान पर प्रतिष्ठित है|
आज के अंक से पहली लौट रही है अपने सबसे पुराने रूप में, यानी अगले गीत को पहचानने के लिए हम आपको देंगें ३ सूत्र जिनके आधार पर आपको सही जवाब देना है-
सूत्र १ - फिल्म के नायक है सुनील दत्त.
सूत्र २ - गीत फिल्म की प्रमुख अभिनेत्री और उनकी सहेलियों पर फिल्माया गया है.
सूत्र ३ - आरंभ कोरस से होता है जिसमें शब्द आता है -"अंगना"
अब बताएं -
किस राग पर आधारित है ये गीत - ३ अंक
संगीतकार बताएं - २ अंक
गीतकार कौन हैं - २ अंक
सभी जवाब आ जाने की स्तिथि में भी जो श्रोता प्रस्तुत गीत पर अपने इनपुट्स रखेंगें उन्हें १ अंक दिया जायेगा, ताकि आने वाली कड़ियों के लिए उनके पास मौके सुरक्षित रहें. आप चाहें तो प्रस्तुत गीत से जुड़ा अपना कोई संस्मरण भी पेश कर सकते हैं.
पिछली पहेली का परिणाम -
क्षिति जी अब एक अंक से ही आगे हैं मात्र, अमित जी बढ़िया खेल रहे हैं...पंकज जी क्या बात है क्या पकड़ा है आपने :)
खोज व आलेख- कृष्ण मोहन मिश्र
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
Comments
e - Ma - Re - Sa - Ma - Re - Pa - Ni - Dha - Ni - Sa’
Jabki avaroh ‘Sa - Ni - Pa - Ma - Pa - Ga - Ma - Re - Sa’
Aab dekhiye. Pichlee aur is shrinkhla main 3 no ka Sawal Raag pa hota hai jiska uttar kewal Amit Ji ya Kshiti ji ko pata hota hai jo ki lagta hai raag ki acchee samajh rakhte hain.
Iska matlab yah hua ki baaki log chaah kar bhi 3 no ka sawal attempt nahi kar paate.