पंडित नरेन्द्र शर्मा की सुपुत्री लावण्या शाह से लम्बी बातचीत
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भाग ०१
भाग ०२
भाग ०३
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'ओल्ड इज़ गोल्ड' के सभी दोस्तों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार, और स्वागत है आप सभी का इस 'शनिवार विशेषांक' में। इस साप्ताहिक स्तंभ में पिछले तीन सप्ताह से हम सुप्रसिद्ध कवि, साहित्यकार, दार्शनिक व फ़िल्मी व ग़ैर-फ़िल्मी गीतकार पंडित नरेन्द्र शर्मा की सुपुत्री श्रीमती लावण्या शाह से बातचीत कर रहे हैं। पिछली कड़ी में आपनें जाना कि स्वर-साम्राज्ञी लता मंगेशकर के साथ पंडित जी का किस तरह का पिता-पुत्री जैसा सम्बंध था और उनके परिवार के साथ किस तरह लता जी जुड़ी हुई थीं। आइए बातचीत को आगे बढ़ाते हैं। प्रस्तुत है लघु शृंखला 'मेरे पास मेरा प्रेम है' की चौथी व अंतिम कड़ी।
सुजॉय - लावण्या जी, पिछले तीन सप्ताह से हम आपसे बातचीत कर रहे हैं, आज फिर एक बार आपका बहुत बहुत स्वागत है 'हिंद-युग्म आवाज़' के इस मंच पर, नमस्कार!
लावण्या जी - नमस्ते!
सुजॉय - लावण्या जी, एक पिता के रूप में आपनें अपने जीवन के अलग अलग पड़ावों में अपने पिताजी को कैसा कैसा पाया? यानी कि बचपन में, यौवन में, आपने उन्हें कैसा महसूस किया? क्या एक आदर्श पिता के रूप में आप उनका परिचय करवाना चाहेंगी?
लावण्या जी - पापा जी को जब भारत सरकार ने अमरीका भेजा था तब पापा ने सूट पहना था, पर हमेशा भारत मे और घर या बाहर जाते वे बहुत सादा लिबास पहनते धोती - कुर्ता और जाकेट, गर्मियों मे खादी और सर्दीयों मे सिल्क का कुर्ता! बचपन मे, हम हमेशा रात को अगर तबीयत ठीक न हो तो पापा जी को ही उठाया करते थे पापा जी ने मुझे 'सजयति सिंदुर वदनो देवो' ये गणेश पूजा सीखलायी थी जब मैं ३ साल की थी। वे हमे बहुत सुन्दर कहानियां सुनाते, गुजराती कविता भी भावार्थ के साथ सिखलाते। आगे आप इस लिंक में जाकर विस्तृत पढ़ सकते हैं।
http://antarman-antarman.blogspot.com/2007/03/blog-post_16.html
सुजॉय - पंडित जी से सम्बंधित कुछ यादगार घटनाओं के बारे में बताइए। वो घटनाएँ या संस्मरण जो भुलाये नहीं भूलते।
लावण्या जी - ( अ ) हम बच्चे दोपहरी मेँ जब सारे बड़े सो रहे थे, पड़ोस के माणिक दादा के घर से कच्चे पक्के आम तोड कर किलकारियाँ भर रहे थे कि अचानक, पापाजी वहाँ आ पहुँचे, गरज कर कहा, "अरे! यह आम पूछे बिना क्योँ तोड़े? जाओ, जाकर माफी माँगो और फल लौटा दो"। एक तो चोरी करते पकड़े गए और उपर से माफी माँगनी पडी!!! पर अपने और पराये का भेद आज तक भूल नही पाए, यही उनकी शिक्षा थी।
( ब ) मेरी उम्र होगी कोई ८ या ९ साल की। पापाजी ने, कवि शिरोमणि कवि कालिदास की कृति " मेघदूत " से पढ़ने को कहा। संस्कृत कठिन थी परँतु, जहीँ कहीँ , मैँ लड़खड़ाती, वे मेरा उच्चारण शुद्ध कर देते। आज, पूजा करते समय, हर श्लोक के साथ ये पल याद आते हैँ।
( स ) मेरी बिटिया, सिंदूर के जन्म के बाद जब भी रात को उठती, पापा, मेरे पास सहारा देते, मिल जाते, मुझसे कहते, "बेटा, मैँ हूँ , यहाँ"। आज मेरी बिटिया की प्रसूति के बाद, यही वात्सल्य उड़ेलते समय, पापाजी की निश्छल, प्रेम-मय वाणी और स्पर्श का अनुभव हो जाता है। जीवन अतित के गर्भ से उदित होकर, भविष्य को संजोता आगे बढ रहा है।
सुजॉय - वाह, बहुत सुंदर! पंडित जी का 'आकाशवाणी' और 'विविध भारती' में ख़ासा योगदान है। किस तरह से उनके कंधों पर 'विविध भारती' के निर्माण का दायित्व सौंपा गया था, किस तरह से यह कारगर हुआ, इस बारे में कुछ बतायें।
लावण्या जी - ये कुछ लिंक अवश्य देखिएगा...
http://www.lavanyashah.com/2008/10/blog-post_03.html
http://www.lavanyashah.com/2009/04/blog-post_25.html
http://antarman-antarman.blogspot.com/2006/09/prasaargeet-from-aakashvani-
सुजॉय - पंडित जी नें जहाँ एक तरफ़ कविताएँ, साहित्य, और फ़िल्मी गीत लिखे हैं, वहीं दूसरी तरफ़ ग़ैर फ़िल्मी भक्ति रचनाएं, ख़ास कर माता को समर्पित बहुत से गीत लिखे हैं, जिन्हें हमनें पिछले साल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर 'नवरात्रि' में शामिल भी किया था। उनके लेखनी के इस पक्ष के बारे में भी बताइए। क्या वो अंदर से भी उतने ही धार्मिक थे? आध्यात्मिक थे? कैसी शख्सियत थी उनकी?
लावण्या जी - पापा जी दार्शनिक, विचारशील, तरुण व्यक्ति और प्रखर बुद्धिजीवी रहे। धार्मिक तो वे थे ही पर भारतीय वांग्मय, पुराण, वेद, धर्म ग्रन्थ के अध्येता थे। कईयों का अनुभव है और लोग कहते थे 'नरेंद्र शर्मा चलता फिरता विश्व कोष है'। 'राम चरित मानस' को पढ़ते और आंसू बहाते भी देखा है। उनका धर्म , सच्ची मानवता थी। सभी को एक समान आदर दिया करते चाहे वो आनेवाला महाराणा मेवाड़ हो या हमारे घर कपड़े लेने आनेवाला हमारा इस्त्रीवाला हो। हमारी बाई को चिट्ठी बांच कर सुनाते और घंटों existansilism इस गूढ़ विषय पे वे बोलते। बी.बी.सी सुनते और मारग्रेट थेचर को चुनाव लड़ने की शुभ तारीख भी उन्होंने बतलाई थी, हाँ सच! और मैडम जीती थीं! वे पूरी बंबई, पैदल या लोकल ट्रेन से या बस से घूम आते। दूरदर्शन पे संगीत का प्रोग्राम रेकॉर्ड करवा के सहजता से घर पर बतियाते। कभी कोई पर्चा या नोट नहीं रखते। किसी भी विषय पे साधिकार, सुन्दर बोलते। पंडित नेहरू के निधन पर भी 'रनिंग् कमेंट्री' की थी। भारत माता के प्रति अगाध प्रेम व श्रद्धा थी जो उनकी कविताओं मे स्पष्ट है। उन्होँने "कदली वन " काव्य -सँग्रह की "देश मेरे " शीर्षक कविता मे कहा है - "दीर्घ जीवी देश मेरे, तू, विषद वट वृक्ष है"। देखें लिंक :
"नरेन्द्र शर्मा के काव्योँ मेँ राष्ट्रीय चेतना :डा. अमरनाथ दुबे- -- भाग -- १"
पापा जी का धर्म आडम्बरहीन और मानवतावादी था सर्वोदय और ' सर्वे भवन्तु सुखिन ' का उद्घोष लिये था।
सुजॉय - अपने पापाजी के लिखे फ़िल्मी रचनाओं में अगर पाँच गीत हम चुनने के लिए कहें, तो आप कौन कौन से गीतों को चुनेंगी?
लावण्या जी - यूं तो मुझे उनके लिखे सभी गीत बहुत पसंद हैं, पर आपने ५ के लिये कहा है तो मैं इन्हें चुनती हूँ
१ ) ' ज्योति कलश छलके ' -
गायिका लतादीदी , संगीत सुधीर फडके जी , शब्द पं. नरेंद्र शर्मा
२ ) ' सत्यम शिवम् सुंदरम ' -
गायिका लतादीदी , लक्ष्मीकांत प्यारे लाल जी का संगीत , शब्द पापा के
३ ) ' नाच रे मयूरा ' -
विविध भारती का सर्व प्रथम प्रसार - गीत
स्वर श्री मन्ना डे , संगीत अनिल बिस्वास जी और शब्द - पंडित नरेंद्र शर्मा के ये गीत नॉन फिल्म केटेगरी मे आएगा
http://www.lavanyashah.com/2009/04/blog-post_25.html
लिंक : http://antarman-antarman.blogspot.com/2006/09/prasaargeet-from-aakashvani-air.html
४ ) "स्वागतम शुभ स्वागतम" - स्वागत गान एशियाड खेलों के उदघाटन पर संगीत पंडित रवि शंकर जी , शब्द - पापा जी पंडित नरेंद्र शर्मा के
http://www.lavanyashah.com/2009/05/blog-post_22.html
५ ) नैना दीवाने, एक नहीं माने, करे मन मानी माने ना -
गायिका सुरैया जी और संगीत श्री एस डी बर्मन तथा शब्द नरेंद्र शर्मा फिल्म "अफसर" जो देवानन्द जी के " नवकेतन बेनर " की प्रथम पेशकश थी ..लिंक :
http://www.lavanyashah.com/2008/04/blog-post_28.html
सुजॉय - और अब अंतिम सवाल, पंडित नरेन्द्र शर्मा एक ऐसी शख्सियत का नाम है जिनके व्यक्तित्व और उपलब्धियों का मूल्यांकन शब्दों में संभव नहीं। लेकिन फिर भी हम आपसे जानना चाहेंगे कि अगर केवल एक वाक्य में आपको अपने पापाजी के बारे में कुछ कहना हो तो आप किस तरह से उनकी शख़्सीयत का व्याख्यान करेंगी?
लावण्या जी - मैं मानती हूँ कि हर एक इंसान ईश्वर की अप्रतिम कृति है। हम ईश्वर के अंश हैं शायद , ईश्वर को कविता, गीत व संगीत बेहद प्रिय हैं! सबसे अलग, सबसे विशिष्ट हैं हम सभी। जैसे हमारे फिंगर प्रिंट सब से अलग होते हैं। पर पापा जी, पंडित नरेंद्र शर्मा के लिये एक वाक्य मे कहूं तो यही कहूंगी - ' न भूतो न भविष्यति ' ! एक अद्वितीय व्यक्तित्व के धनी, जो आजीवन सर्वथा साधारण और सहज बने रहे शायद यही उनकी तपस्या का फल था और उनकी आत्मा का अंतिम चरण ...अंतिम सोपान ...
सुजॉय - बहुत बहुत धन्यवाद लावण्या जी आपका, 'हिंद-युग्म' की तरफ़ से मैं आपको धन्यवाद देता हूँ, अपनी व्यस्त जीवन से समय निकालकर आपनें हमें समय दिया, और पंडित जी के बारे में न केवल इतनी जानकारी दी, अपने तमाम ब्लॉग्स में उनसे सम्बंधित लेखों के लिंक्स भी दिये, जिन्हें हम समय निकालकर ज़रूर पढ़ेंगे। बहुत बहुत धन्यवाद, नमस्कार!
लावण्या जी - सुजॉय भाई, आपके अनेक इंटरव्यू पढ़ कर खुश हुई हूँ और 'हिन्द-युग्म' हिन्दी भाषा के प्रति समर्पित होकर महत्वपूर्ण कार्य कर रहा है। समग्र सम्पादक मंडल व पूरी टीम को मेरे सस्नेह आशिष। आपको मेरे सच्चे मन से कहे धन्यवाद, बड़ी लम्बी बातचीत हो गयी। आप सब को समय देने के लिये भी शुक्रिया, फिर मिलेंगें, नमस्ते!
गीत - ईश्वर सत्य है, सत्य ही शिव है, शिव ही सुंदर है (सत्यम् शिवम् सुंदरम्)
तो प्रिय श्रोता-पाठकों, ये था सुप्रसिद्ध कवि, साहित्यकार, दार्शनिक व फ़िल्मी व ग़ैर-फ़िल्मी गीतकार पंडित नरेन्द्र शर्मा की सुपुत्री श्रीमती लावण्या शाह से की गई लम्बी बातचीत का चौथा व अंतिम भाग। आशा आपको यह शृंखला पसंद आई होगी। अपने विचार और सुझाव टिप्पणी के अलावा आप oig@hindyugm.com के ईमेल आइडी पर लिख भेज सकते हैं। अब आज बस इतना ही, फिर मुलाक़ात होगी। हाँ दोस्तों, क्या बात है, 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने' को तो आप सब भुला ही बैठे हैं? अपने जीवन की कोई स्मरणीय घटना को हमें आप लिख भेज सकते हैं उसी ईमेल आइडी पर, जिसे हम इसी साप्ताहिक स्तंभ में शामिल करेंगे। इसी उम्मीद के साथ कि आपके ईमेल हमें जल्द ही प्राप्त होंगे, अब मुझे अनुमति दीजिये, कल सुबह सुमित के साथ 'सुर-संगम' में और शाम को कृष्णमोहन जी के साथ 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की नियमित कड़ी में पधारना न भूलियेगा, नमस्कार!
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'ओल्ड इज़ गोल्ड' के सभी दोस्तों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार, और स्वागत है आप सभी का इस 'शनिवार विशेषांक' में। इस साप्ताहिक स्तंभ में पिछले तीन सप्ताह से हम सुप्रसिद्ध कवि, साहित्यकार, दार्शनिक व फ़िल्मी व ग़ैर-फ़िल्मी गीतकार पंडित नरेन्द्र शर्मा की सुपुत्री श्रीमती लावण्या शाह से बातचीत कर रहे हैं। पिछली कड़ी में आपनें जाना कि स्वर-साम्राज्ञी लता मंगेशकर के साथ पंडित जी का किस तरह का पिता-पुत्री जैसा सम्बंध था और उनके परिवार के साथ किस तरह लता जी जुड़ी हुई थीं। आइए बातचीत को आगे बढ़ाते हैं। प्रस्तुत है लघु शृंखला 'मेरे पास मेरा प्रेम है' की चौथी व अंतिम कड़ी।
सुजॉय - लावण्या जी, पिछले तीन सप्ताह से हम आपसे बातचीत कर रहे हैं, आज फिर एक बार आपका बहुत बहुत स्वागत है 'हिंद-युग्म आवाज़' के इस मंच पर, नमस्कार!
लावण्या जी - नमस्ते!
सुजॉय - लावण्या जी, एक पिता के रूप में आपनें अपने जीवन के अलग अलग पड़ावों में अपने पिताजी को कैसा कैसा पाया? यानी कि बचपन में, यौवन में, आपने उन्हें कैसा महसूस किया? क्या एक आदर्श पिता के रूप में आप उनका परिचय करवाना चाहेंगी?
लावण्या जी - पापा जी को जब भारत सरकार ने अमरीका भेजा था तब पापा ने सूट पहना था, पर हमेशा भारत मे और घर या बाहर जाते वे बहुत सादा लिबास पहनते धोती - कुर्ता और जाकेट, गर्मियों मे खादी और सर्दीयों मे सिल्क का कुर्ता! बचपन मे, हम हमेशा रात को अगर तबीयत ठीक न हो तो पापा जी को ही उठाया करते थे पापा जी ने मुझे 'सजयति सिंदुर वदनो देवो' ये गणेश पूजा सीखलायी थी जब मैं ३ साल की थी। वे हमे बहुत सुन्दर कहानियां सुनाते, गुजराती कविता भी भावार्थ के साथ सिखलाते। आगे आप इस लिंक में जाकर विस्तृत पढ़ सकते हैं।
http://antarman-antarman.blogspot.com/2007/03/blog-post_16.html
सुजॉय - पंडित जी से सम्बंधित कुछ यादगार घटनाओं के बारे में बताइए। वो घटनाएँ या संस्मरण जो भुलाये नहीं भूलते।
लावण्या जी - ( अ ) हम बच्चे दोपहरी मेँ जब सारे बड़े सो रहे थे, पड़ोस के माणिक दादा के घर से कच्चे पक्के आम तोड कर किलकारियाँ भर रहे थे कि अचानक, पापाजी वहाँ आ पहुँचे, गरज कर कहा, "अरे! यह आम पूछे बिना क्योँ तोड़े? जाओ, जाकर माफी माँगो और फल लौटा दो"। एक तो चोरी करते पकड़े गए और उपर से माफी माँगनी पडी!!! पर अपने और पराये का भेद आज तक भूल नही पाए, यही उनकी शिक्षा थी।
( ब ) मेरी उम्र होगी कोई ८ या ९ साल की। पापाजी ने, कवि शिरोमणि कवि कालिदास की कृति " मेघदूत " से पढ़ने को कहा। संस्कृत कठिन थी परँतु, जहीँ कहीँ , मैँ लड़खड़ाती, वे मेरा उच्चारण शुद्ध कर देते। आज, पूजा करते समय, हर श्लोक के साथ ये पल याद आते हैँ।
( स ) मेरी बिटिया, सिंदूर के जन्म के बाद जब भी रात को उठती, पापा, मेरे पास सहारा देते, मिल जाते, मुझसे कहते, "बेटा, मैँ हूँ , यहाँ"। आज मेरी बिटिया की प्रसूति के बाद, यही वात्सल्य उड़ेलते समय, पापाजी की निश्छल, प्रेम-मय वाणी और स्पर्श का अनुभव हो जाता है। जीवन अतित के गर्भ से उदित होकर, भविष्य को संजोता आगे बढ रहा है।
सुजॉय - वाह, बहुत सुंदर! पंडित जी का 'आकाशवाणी' और 'विविध भारती' में ख़ासा योगदान है। किस तरह से उनके कंधों पर 'विविध भारती' के निर्माण का दायित्व सौंपा गया था, किस तरह से यह कारगर हुआ, इस बारे में कुछ बतायें।
लावण्या जी - ये कुछ लिंक अवश्य देखिएगा...
http://www.lavanyashah.com/2008/10/blog-post_03.html
http://www.lavanyashah.com/2009/04/blog-post_25.html
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सुजॉय - पंडित जी नें जहाँ एक तरफ़ कविताएँ, साहित्य, और फ़िल्मी गीत लिखे हैं, वहीं दूसरी तरफ़ ग़ैर फ़िल्मी भक्ति रचनाएं, ख़ास कर माता को समर्पित बहुत से गीत लिखे हैं, जिन्हें हमनें पिछले साल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर 'नवरात्रि' में शामिल भी किया था। उनके लेखनी के इस पक्ष के बारे में भी बताइए। क्या वो अंदर से भी उतने ही धार्मिक थे? आध्यात्मिक थे? कैसी शख्सियत थी उनकी?
लावण्या जी - पापा जी दार्शनिक, विचारशील, तरुण व्यक्ति और प्रखर बुद्धिजीवी रहे। धार्मिक तो वे थे ही पर भारतीय वांग्मय, पुराण, वेद, धर्म ग्रन्थ के अध्येता थे। कईयों का अनुभव है और लोग कहते थे 'नरेंद्र शर्मा चलता फिरता विश्व कोष है'। 'राम चरित मानस' को पढ़ते और आंसू बहाते भी देखा है। उनका धर्म , सच्ची मानवता थी। सभी को एक समान आदर दिया करते चाहे वो आनेवाला महाराणा मेवाड़ हो या हमारे घर कपड़े लेने आनेवाला हमारा इस्त्रीवाला हो। हमारी बाई को चिट्ठी बांच कर सुनाते और घंटों existansilism इस गूढ़ विषय पे वे बोलते। बी.बी.सी सुनते और मारग्रेट थेचर को चुनाव लड़ने की शुभ तारीख भी उन्होंने बतलाई थी, हाँ सच! और मैडम जीती थीं! वे पूरी बंबई, पैदल या लोकल ट्रेन से या बस से घूम आते। दूरदर्शन पे संगीत का प्रोग्राम रेकॉर्ड करवा के सहजता से घर पर बतियाते। कभी कोई पर्चा या नोट नहीं रखते। किसी भी विषय पे साधिकार, सुन्दर बोलते। पंडित नेहरू के निधन पर भी 'रनिंग् कमेंट्री' की थी। भारत माता के प्रति अगाध प्रेम व श्रद्धा थी जो उनकी कविताओं मे स्पष्ट है। उन्होँने "कदली वन " काव्य -सँग्रह की "देश मेरे " शीर्षक कविता मे कहा है - "दीर्घ जीवी देश मेरे, तू, विषद वट वृक्ष है"। देखें लिंक :
"नरेन्द्र शर्मा के काव्योँ मेँ राष्ट्रीय चेतना :डा. अमरनाथ दुबे- -- भाग -- १"
पापा जी का धर्म आडम्बरहीन और मानवतावादी था सर्वोदय और ' सर्वे भवन्तु सुखिन ' का उद्घोष लिये था।
सुजॉय - अपने पापाजी के लिखे फ़िल्मी रचनाओं में अगर पाँच गीत हम चुनने के लिए कहें, तो आप कौन कौन से गीतों को चुनेंगी?
लावण्या जी - यूं तो मुझे उनके लिखे सभी गीत बहुत पसंद हैं, पर आपने ५ के लिये कहा है तो मैं इन्हें चुनती हूँ
१ ) ' ज्योति कलश छलके ' -
गायिका लतादीदी , संगीत सुधीर फडके जी , शब्द पं. नरेंद्र शर्मा
२ ) ' सत्यम शिवम् सुंदरम ' -
गायिका लतादीदी , लक्ष्मीकांत प्यारे लाल जी का संगीत , शब्द पापा के
३ ) ' नाच रे मयूरा ' -
विविध भारती का सर्व प्रथम प्रसार - गीत
स्वर श्री मन्ना डे , संगीत अनिल बिस्वास जी और शब्द - पंडित नरेंद्र शर्मा के ये गीत नॉन फिल्म केटेगरी मे आएगा
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लिंक : http://antarman-antarman.blogspot.com/2006/09/prasaargeet-from-aakashvani-air.html
४ ) "स्वागतम शुभ स्वागतम" - स्वागत गान एशियाड खेलों के उदघाटन पर संगीत पंडित रवि शंकर जी , शब्द - पापा जी पंडित नरेंद्र शर्मा के
http://www.lavanyashah.com/2009/05/blog-post_22.html
५ ) नैना दीवाने, एक नहीं माने, करे मन मानी माने ना -
गायिका सुरैया जी और संगीत श्री एस डी बर्मन तथा शब्द नरेंद्र शर्मा फिल्म "अफसर" जो देवानन्द जी के " नवकेतन बेनर " की प्रथम पेशकश थी ..लिंक :
http://www.lavanyashah.com/2008/04/blog-post_28.html
सुजॉय - और अब अंतिम सवाल, पंडित नरेन्द्र शर्मा एक ऐसी शख्सियत का नाम है जिनके व्यक्तित्व और उपलब्धियों का मूल्यांकन शब्दों में संभव नहीं। लेकिन फिर भी हम आपसे जानना चाहेंगे कि अगर केवल एक वाक्य में आपको अपने पापाजी के बारे में कुछ कहना हो तो आप किस तरह से उनकी शख़्सीयत का व्याख्यान करेंगी?
लावण्या जी - मैं मानती हूँ कि हर एक इंसान ईश्वर की अप्रतिम कृति है। हम ईश्वर के अंश हैं शायद , ईश्वर को कविता, गीत व संगीत बेहद प्रिय हैं! सबसे अलग, सबसे विशिष्ट हैं हम सभी। जैसे हमारे फिंगर प्रिंट सब से अलग होते हैं। पर पापा जी, पंडित नरेंद्र शर्मा के लिये एक वाक्य मे कहूं तो यही कहूंगी - ' न भूतो न भविष्यति ' ! एक अद्वितीय व्यक्तित्व के धनी, जो आजीवन सर्वथा साधारण और सहज बने रहे शायद यही उनकी तपस्या का फल था और उनकी आत्मा का अंतिम चरण ...अंतिम सोपान ...
सुजॉय - बहुत बहुत धन्यवाद लावण्या जी आपका, 'हिंद-युग्म' की तरफ़ से मैं आपको धन्यवाद देता हूँ, अपनी व्यस्त जीवन से समय निकालकर आपनें हमें समय दिया, और पंडित जी के बारे में न केवल इतनी जानकारी दी, अपने तमाम ब्लॉग्स में उनसे सम्बंधित लेखों के लिंक्स भी दिये, जिन्हें हम समय निकालकर ज़रूर पढ़ेंगे। बहुत बहुत धन्यवाद, नमस्कार!
लावण्या जी - सुजॉय भाई, आपके अनेक इंटरव्यू पढ़ कर खुश हुई हूँ और 'हिन्द-युग्म' हिन्दी भाषा के प्रति समर्पित होकर महत्वपूर्ण कार्य कर रहा है। समग्र सम्पादक मंडल व पूरी टीम को मेरे सस्नेह आशिष। आपको मेरे सच्चे मन से कहे धन्यवाद, बड़ी लम्बी बातचीत हो गयी। आप सब को समय देने के लिये भी शुक्रिया, फिर मिलेंगें, नमस्ते!
गीत - ईश्वर सत्य है, सत्य ही शिव है, शिव ही सुंदर है (सत्यम् शिवम् सुंदरम्)
तो प्रिय श्रोता-पाठकों, ये था सुप्रसिद्ध कवि, साहित्यकार, दार्शनिक व फ़िल्मी व ग़ैर-फ़िल्मी गीतकार पंडित नरेन्द्र शर्मा की सुपुत्री श्रीमती लावण्या शाह से की गई लम्बी बातचीत का चौथा व अंतिम भाग। आशा आपको यह शृंखला पसंद आई होगी। अपने विचार और सुझाव टिप्पणी के अलावा आप oig@hindyugm.com के ईमेल आइडी पर लिख भेज सकते हैं। अब आज बस इतना ही, फिर मुलाक़ात होगी। हाँ दोस्तों, क्या बात है, 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने' को तो आप सब भुला ही बैठे हैं? अपने जीवन की कोई स्मरणीय घटना को हमें आप लिख भेज सकते हैं उसी ईमेल आइडी पर, जिसे हम इसी साप्ताहिक स्तंभ में शामिल करेंगे। इसी उम्मीद के साथ कि आपके ईमेल हमें जल्द ही प्राप्त होंगे, अब मुझे अनुमति दीजिये, कल सुबह सुमित के साथ 'सुर-संगम' में और शाम को कृष्णमोहन जी के साथ 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की नियमित कड़ी में पधारना न भूलियेगा, नमस्कार!
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