Skip to main content

राही कोई भूला हुआ, तूफानों में खोया हुआ राह पे आ जाता है...राग "देस मल्हार" के सुरों में बँधा

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 705/2011/145

पावस की रिमझिम फुहारों के बीच वर्षाकालीन रागों में निबद्ध गीतों की हमारी श्रृंखला "उमड़ घुमड़ कर आई रे घटा" जारी है| आज श्रृंखला की पाँचवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र पुनः आपका स्वागत करता हूँ| दोस्तों आज का राग है- "देस मल्हार"| श्रृंखला की पहली कड़ी में हमने कुछ ऐसे रागों की चर्चा की थी जो मल्हार अंग के नहीं हैं इसके बावजूद उन रागों से हमें वर्षा ऋतु की सार्थक अनुभूति होती है| ऐसा ही एक राग है "देस", जिसके गायन-वादन से वर्षा ऋतु का सजीव चित्र हमारे सामने उपस्थित हो जाता है| और यदि इसमें मल्हार अंग का मेल हो जाए तो फिर 'सोने पर सुहागा' हो जाता है| आज हम आपको राग "देस मल्हार" का थोड़ा सा परिचय और फिर इसी राग पर आधारित एक मनमोहक गीत सुनवाएँगे|

राग "देस मल्हार" के नाम से ही स्पष्ट है कि इसमें स्वतंत्र राग "देस" में "मल्हार" अंग का मेल होता है| राग "देस" अत्यन्त प्रचलित और सार्वकालिक होते हुए भी वर्षा ऋतु के परिवेश का चित्रण करने में समर्थ है| एक तो इस राग के स्वर संयोजन ऋतु के अनुकूल है, दूसरे इस राग में वर्षा ऋतु का चित्रण करने वाली रचनाएँ बहुत अधिक संख्या में मिलते हैं| राग "देस" औडव-सम्पूर्ण जाति का राग है, जिसमे कोमल निषाद के साथ सभी शुद्ध स्वरों का प्रयोग होता है| "देस मल्हार" राग में "देस" का प्रभाव अधिक होता है| दोनों का आरोह- अवरोह एक सा होता है| मल्हार अंग के चलन और म रे प, रे म, स रे स्वरों के अनेक विविधता के साथ किये जाने वाले प्रयोग से राग विशिष्ट हो जाता है| राग "देस" की तरह "देस मल्हार" में भी कोमल गान्धार का अल्प प्रयोग किया जाता है| राग का यह स्वरुप पावस के परिवेश को जीवन्त कर देता है| परिवेश-चित्रण के साथ-साथ मानव के अन्तर्मन में मिलन की आतुरता को यह राग बढ़ा देता है| कुछ ऐसे ही मनोभावों का सजीव चित्रण पूर्वांचल के एक भोजपुरी लोकगीत में किया गया है|

हरी हरी भीजे चुनर मोरी धानी, बरस रहे पानी रे हरी |
बादर गरजे चमके बिजुरिया रामा, नहीं आए सैंया मोरा तरसे उमिरिया रामा |
हरी हरी काहे करत मनमानी, बरस रहे पानी रे हरी |
बारह बरिसवा पर अईलन बनिजरवा रामा, चनन बिरिछ तले डारलन डेरवा रामा |
हरी हरी चली मिलन को दीवानी, बरस रहे पानी रे हरी |


इस लोकगीत की नायिका अपने साजन के विरह में व्याकुल है, तभी वर्षा ऋतु का आगमन हो जाता है| गरजते बादल और चमकती बिजली उसे और अधिक व्याकुल कर देते हैं| ऐसे ही मौसम में अचानक उसका साजन बारह वर्ष बाद घर आता है| बाग़ में चन्दन के वृक्ष के नीचे उसने डेरा डाल रखा है और नायिका बरसते पानी में दीवानी की भाँति मिलाने चली है| पावस ऋतु में मानवीय मनोभावों का ऐसा मोहक चित्रण आपको लोकगीतों के अलावा अन्यत्र शायद कहीं न मिले| आज का राग "देस मल्हार" भी इसी प्रकार के भावों का सृजन करता है| राग "देस मल्हार" पर आधारित आज प्रस्तुत किया जाने वाला गीत है, जिसे हमने 1962 में प्रदर्शित फिल्म "प्रेमपत्र" से लिया है| फिल्म के संगीतकार सलिल चौधरी हैं जिनके आजादी से पहले के संगीत में ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध संघर्ष का स्वर मुखरित होता था तो आजादी के बाद सामाजिक और आर्थिक शोषण के विरुद्ध आवाज़ बुलन्द हुआ करता था| सलिल चौधरी भारतीय शास्त्रीय संगीत, बंगाल और असम के लोक संगीत के जानकार थे तो पाश्चात्य शास्त्रीय संगीत का भी उन्होंने गहन अध्ययन किया था| उनके संगीत में इन संगीत शैलियों का अत्यन्त संतुलित और प्रभावी प्रयोग मिलता है| आज प्रस्तुत किये जाने वाले गीत -"सावन की रातों में ऐसा भी होता है..." में राग "देस मल्हार" के स्वरों का प्रयोग कर उन्होंने राग के स्वरुप का सहज और सटीक चित्रण किया है| इस गीत को परदे पर अभिनेत्री साधना और नायक शशि कपूर पर फिल्माया गया है| फिल्म के निर्देशक हैं विमल रोंय, गीतकार हैं गुलज़ार तथा झपताल में निबद्ध गीत को स्वर दिया है लता मंगेशकर और तलत महमूद ने| इस गीत में सितार का अत्यन्त मोहक प्रयोग किया गया है| लीजिए आप इस गीत का आनन्द लीजिए और मुझे आज यहीं विराम लेने की अनुमति दीजिए| रविवार की शाम हम और आप यहीं मिलेंगे एक और वर्षाकालीन गीत के साथ|



क्या आप जानते हैं...
कि फिल्म "प्रेमपत्र" का यह गीत गुलज़ार के लिए सलिल चौधरी की पहली रचना थी| बाद में इस जोड़ी ने संगीत प्रेमियों को अनेक मनमोहक गीतों का उपहार दिया था|

आज के अंक से पहली लौट रही है अपने सबसे पुराने रूप में, यानी अगले गीत को पहचानने के लिए हम आपको देंगें ३ सूत्र जिनके आधार पर आपको सही जवाब देना है-

सूत्र १ - इस गीत के संगीतकार की पहली फिल्म थी "नवभारत".
सूत्र २ - प्रश्न जिस गीत के बारे में है उस फिल्म की प्रमुख अभिनेत्री थी सुलोचना.
सूत्र ३ - मुखड़े में एक पक्षी को संबोधन है जिसका वर्षा से खास सम्बन्ध है.

अब बताएं -
किस राग पर आधारित है ये गीत - ३ अंक
फिल्म का नाम बताएं - २ अंक
गायक कौन हैं - २ अंक

सभी जवाब आ जाने की स्तिथि में भी जो श्रोता प्रस्तुत गीत पर अपने इनपुट्स रखेंगें उन्हें १ अंक दिया जायेगा, ताकि आने वाली कड़ियों के लिए उनके पास मौके सुरक्षित रहें. आप चाहें तो प्रस्तुत गीत से जुड़ा अपना कोई संस्मरण भी पेश कर सकते हैं.

पिछली पहेली का परिणाम -
क्षिति जी ने कल एक बार बाज़ी मारी, शरद जी और अमित जी सेफ खेल कर २ अंक कमा गए. प्रतीक जी एक अंक आपको दे देते हैं, क्या याद करेंगे :) हिन्दुस्तानी जी और दादी को भी आभार सहित १ अंक मिलता है. नीरज जी ये रेडियो आवाज़ की ही एक नयी पहल है, प्रोमोशन के इरादे से कुछ दिनों तक इसे लाईव रखा गया है, जल्द ही इसे एच्छिक कर देंगें. वैसे इसे बहुत आसानी से बंद किया जा सकता है.

खोज व आलेख- कृष्ण मोहन मिश्र



इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Comments

Avinash Raj said…
Manna Dey
Hindustani said…
Tere Dwar Khada Bhagwaan
Kshiti said…
Rag miyan ki malhar par based gana hai. iska taal dadra hai. rag miyan ki malhar ka anveshan miyan tansen ne kiya tha. is rag par based sabse achha gana hai: bole re papihara- - -.
भारतीय नागरिक said…
ek aur madhur geet ke liye dhanyavaad

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे...

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु...

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन...