पार्श्वगायिका पूर्णिमा (सुषमा श्रेष्ठ) अपने पिता व विस्मृत संगीतकार भोला श्रेष्ठ को याद करते हुए...
ओल्ड इज़ गोल्ड' के सभी दोस्तों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार, और स्वागत है आप सभी का इस 'शनिवार विशेषांक' में। दोस्तों, १९३१ से लेकर अब तक फ़िल्म-संगीत संसार में न जाने कितने संगीतकार हुए हैं, जिनमें से बहुत से संगीतकारों को अपार सफलता और शोहरत हासिल हुई, और बहुत से संगीतकार ऐसे भी हुए जिन्हें वो मंज़िल नसीब नहीं हुई जिसकी वो हक़दार थे। कभी छोटी बजट की फ़िल्मों में मौका पाने की वजह से तो कभी स्टण्ट या धार्मिक फ़िल्मों का ठप्पा लगने की वजह से, कभी व्यक्तिगत कारणों से और कभी कभी सिर्फ़ क़िस्मत के खेल की वजह से ये प्रतिभाशाली संगीतकार गुमनामी में रह कर चले गए। पर फ़िल्म-संगीत के धरोहर को अपनी सुरीली धुनों से समृद्ध कर गए। ऐसे ही एक कमचर्चित पर गुणी संगीतकार हुए भोला श्रेष्ठ। आज की पीढ़ी के अधिकतर नौजवानों को शायद यह नाम कभी न सुना हुआ लगे, पर गुज़रे ज़माने के सुरीले संगीत में दिलचस्पी रखने वालों को भोला जी का नाम ज़रूर याद होगा। बहुत कम ऐसे लोग होंगे जिन्हें यह पता होगा कि भोला श्रेष्ठ दरअसल पार्श्वगायिका पूर्णिमा (सुषमा श्रेष्ठ) के पिता हैं (थे)। पिछले दिनों हमने सम्पर्क किया पूर्णिमा जी से और उनसे जानना चाहा उनके पिता के बारे में। पूर्णिमा जी ने बहुत ही आग्रह के साथ हमें सहयोग दिया और हमसे बातचीत की। तो आइए, आज के इस विशेषांक में प्रस्तुत है पूर्णिमा जी से की हुई उसी बातचीत के सम्पादित अंश।
सुजॉय - पूर्णिमा जी, नमस्कार, और बहुत बहुत स्वागत है 'हिंद-युग्म' के 'आवाज़' मंच पर।
पूर्णिमा जी - नमस्कार!
सुजॉय - पूर्णिमा जी, आज की पीढ़ी के लोग सुषमा श्रेष्ठ और पूर्णिमा के नामों से तो भली-भाँति वाकिफ़ हैं, पर बहुत ही कम लोग ऐसे होंगे जिन्होंने भोला श्रेष्ठ जी का नाम सुना होगा। इसलिए हम चाहते हैं कि आपके पिता भोला जी के बारे में जानें और अपने पाठकों को भी जानकारी दें।
पूर्णिमा जी - ज़रूर!
सुजॉय - तो बताइए अपने पिता के बारे में। क्या उन्हें संगीत विरासत में मिली थी? कहाँ से ताल्लुख़ रखते थे वो?
पूर्णिमा जी - मेरे पिताजी श्री भोला श्रेष्ठ जी का जन्म 17 जून 1924 में कोलकाता में हुआ था। उन्होंने अपनी पढ़ाई कोलकाता से ही पूरी की। बहुत कम लोगों को यह पता होगा कि किसी संगीतमय परिवार से ताल्लुख़ न रखते हुए भी वो एक बहुत अच्छे तबला वादक थे। बनारस घराने के दिग्गज कलाकारों से उन्होंने हिंदुस्तानी परकशन की बारीक़ियों को सीखा। फिर 1949 में वो मुंबई आए फ़िल्मों में अपनी क़िस्मत आज़माने। मुंबई आकर वो जुड़े 'बॉम्बे टॉकीज़' से और सहायक बने खेमचंद प्रकाश के। बहुत कम लोगों को यह पता होगा कि फ़िल्म 'महल' के सदाबहार गीत "आयेगा आनेवाला" में उनका कितना बड़ा योगदान था।
सुजॉय - अच्छा? यह तो वाक़ई ताज्जुब की बात है! उसके बाद जब सहायक से स्वतंत्र संगीतकार बने, तो बतौर स्वतंत्र संगीतकार उन्होंने अपनी पारी कहाँ से शुरु की थी?
पूर्णिमा जी - उनके संगीत से सजी पहली फ़िल्म थी 'नज़रिया' (1952), जिसमें गीत लिखे थे राजकुमार संतोषी के पिता श्री पी. एल. संतोषी जी ने। इसके बाद आई फ़िल्म 'नौ लखा हार' (1953), 'ये बस्ती ये लोग' (1954), 'आबशार' (1954) आदि।
सुजॉय - पूर्णिमा जी, एक पिता के रूप में भोला जी को आपने कैसा पाया?
पूर्णिमा जी - एक पिता के रूप में वो बहुत ही सख़्त, अनुशासन-पसंद इंसान थे, पर साथ ही साथ फ़्लेक्सिबल भी थे। वो यह नहीं चाहते थे कि मैं या उनका कोई और संतान किसी तरह के क्रीएटिव आर्ट को अपना प्रोफ़ेशन बनाए। शायद अपनी अनुभूतिओं और दुखद परिस्थितिओं को देखने के बाद उनको ऐसा लगा होगा। पर मैं तब तक अपना करीयर शुरु कर चुकी थी। मैं स्टेज पर गाती थी, पर उन्हें इस बात का पता नहीं था क्योंकि वो हमेशा किशोर कुमार जी के साथ टूर पे रहते थे, और जिनके वो सहायक थे अपने अंतिम दिनों तक। एक दिन मेरी माँ की ज़िद की वजह से उन्होंने मुझे मुंबई के किसी स्टेज शो पर गाते हुए सुना और अपने ख़यालात के सामने वो झुके। इसके बाद मैंने उनसे संगीत सीखना शुरु किया।
सुजॉय - मैंने सुना है कि भोला जी का बहुत कम उम्र में देहान्त हो गया था। आपकी उम्र उस वक़्त क्या होगी?
पूर्णिमा जी - पिताजी अचानक एक दिन दिल का दौरा पड़ने पर चल बसे। उनकी उम्र केवल 46 वर्ष थी। वह दिन था 11 अप्रैल 1971, और मैं उस वक़्त 11 साल की थी।
सुजॉय - अपने पिता की विशेषताओं के बारे में कुछ बताइए।
पूर्णिमा जी - पिता जी का दिमाग़ बहुत ही विश्लेषणात्मक था, he had an analytical mind, और उनके sense of humour के तो क्या कहने थे। पर उन्हें ग़ुस्सा जल्दी आ जाता था, लेकिन बहुत जल्द शांत भी हो जाते थे। उनका दिमाग़ बहुत तेज़ था और हर चीज़ को बारीक़ी से observeव करते थे। हालाँकि वो अपनी औपचारिक शिक्षा पूरी नहीं कर सके, पर उन्होंने ख़ुद ही घर पर अपनी शिक्षा पूरी की। He was totally self educated. मैं यह बहुत मानती हूँ कि एक उत्कृष्ट संगीतकार और म्युज़िशियन होने के बावजूद इस फ़िल्म इंडस्ट्री ने उन्हें वो सब कुछ नहीं दिया जिसके वो हक़दार थे। उनकी प्रतिभा का इस बात से अनुमान लगाया जा सकता है कि किशोर कुमार के स्वरबद्ध कई मशहूर गीतों में उनका बहुत बड़ा योगदान था। "बेकरार दिल तू गायेजा", "पंथी हूँ मैं उस पथ का", "जीवन से ना हार जीने वाले" जैसे गीतों की धुनों में पिता जी का भी बड़ा योगदान था।
सुजॉय - जी, यह मैंने भी कहीं पढ़ा था कि "बेकरार दिल" की धुन भोला जी ने ही बनाई थी। अच्छा, भोला जी द्वारा स्वरबद्ध किन किन गीतों को आप उनकी सर्वोत्तम रचनाएँ मानती हैं?
पूर्णिमा जी - मेरी व्यक्तिगत पसंद होगी "दिल जलेगा तो ज़माने में उजाला होगा", यह 1954 की फ़िल्म 'ये बस्ती ये लोग' का गीत है। फिर "मैं हूँ हिंदुस्तानी छोरी" (नज़रिया) और "बेकरार दिल तू गायेजा" (दूर का राही), ये सब गीत मेरे दिल के बहुत करीब हैं।
सुजॉय - भोला जी को अपना कौन सा गीत सब से प्रिय था?
पूर्णिमा जी - मेरा ख़याल है "दिल जलेगा" और "बेक़रार दिल" उनके भी पसंदीदा गीत थे।
सुजॉय - भोला जी के बारे में और कोई बात हमारे पाठकों को बताना चाहेंगी?
पूर्णिमा जी - बहुत ज़्यादा लोगों को यह मालूम न होगा कि हालाँकि मेरे पिताजी का जन्म कोलकाता में हुआ और वहीं उनकी परवरिश हुई, और हर दृष्टि से वो एक बंगाली थे, पर जन्म से वे नेपाली थे।
सुजॉय - पूर्णिमा जी, बहुत बहुत शुक्रिया आपका अपने पिता के बारे में वो सब जानकारी दी जो कहीं और से प्राप्त करना मुश्किल था। अगली बार जब हम बातचीत करेंगे तो हम आपके करीयर के बारे में जानना चाहेंगे, आपके एक से एक सुपरहिट गीत की भी चर्चा करेंगे। लेकिन आज चलते चलते भोला जी का कौन सा गीत आप हमारे श्रोताओं को सुनवाना चाहेंगी जो आपकी तरफ़ से भोला जी को डेडिकेशन स्वरूप होगा?
पूर्णिमा जी - एकमात्र गीत जिसे मैं उन्हें समर्पित कर सकती हूँ, वह है "बेक़रार दिल तू गायेजा"।
गीत - बेक़रार दिल तू गायेजा (दूर का राही)
तो ये था फ़िल्म जगत की सुप्रसिद्ध पार्श्वगायिका पूर्णिमा (सुषमा श्रेष्ठ) से उनके पिता व गुज़रे दौर के संगीतकार भोला श्रेष्ठ पर एक बातचीत। अब आज की यह प्रस्तुत समाप्त होती है, नमस्कार!
और अब एक विशेष सूचना:
२८ सितंबर स्वरसाम्राज्ञी लता मंगेशकर का जनमदिवस है। पिछले दो सालों की तरह इस साल भी हम उन पर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक शृंखला समर्पित करने जा रहे हैं। और इस बार हमने सोचा है कि इसमें हम आप ही की पसंद का कोई लता नंबर प्ले करेंगे। तो फिर देर किस बात की, जल्द से जल्द अपना फ़ेवरीट लता नंबर और लता जी के लिए उदगार और शुभकामनाएँ हमें oig@hindyugm.com के पते पर लिख भेजिये। प्रथम १० ईमेल भेजने वालों की फ़रमाइश उस शृंखला में पूरी की जाएगी।
Bhola Shreshtha (PC: Minal Rajendra Misra) |
सुजॉय - पूर्णिमा जी, नमस्कार, और बहुत बहुत स्वागत है 'हिंद-युग्म' के 'आवाज़' मंच पर।
पूर्णिमा जी - नमस्कार!
सुजॉय - पूर्णिमा जी, आज की पीढ़ी के लोग सुषमा श्रेष्ठ और पूर्णिमा के नामों से तो भली-भाँति वाकिफ़ हैं, पर बहुत ही कम लोग ऐसे होंगे जिन्होंने भोला श्रेष्ठ जी का नाम सुना होगा। इसलिए हम चाहते हैं कि आपके पिता भोला जी के बारे में जानें और अपने पाठकों को भी जानकारी दें।
पूर्णिमा जी - ज़रूर!
सुजॉय - तो बताइए अपने पिता के बारे में। क्या उन्हें संगीत विरासत में मिली थी? कहाँ से ताल्लुख़ रखते थे वो?
पूर्णिमा जी - मेरे पिताजी श्री भोला श्रेष्ठ जी का जन्म 17 जून 1924 में कोलकाता में हुआ था। उन्होंने अपनी पढ़ाई कोलकाता से ही पूरी की। बहुत कम लोगों को यह पता होगा कि किसी संगीतमय परिवार से ताल्लुख़ न रखते हुए भी वो एक बहुत अच्छे तबला वादक थे। बनारस घराने के दिग्गज कलाकारों से उन्होंने हिंदुस्तानी परकशन की बारीक़ियों को सीखा। फिर 1949 में वो मुंबई आए फ़िल्मों में अपनी क़िस्मत आज़माने। मुंबई आकर वो जुड़े 'बॉम्बे टॉकीज़' से और सहायक बने खेमचंद प्रकाश के। बहुत कम लोगों को यह पता होगा कि फ़िल्म 'महल' के सदाबहार गीत "आयेगा आनेवाला" में उनका कितना बड़ा योगदान था।
सुजॉय - अच्छा? यह तो वाक़ई ताज्जुब की बात है! उसके बाद जब सहायक से स्वतंत्र संगीतकार बने, तो बतौर स्वतंत्र संगीतकार उन्होंने अपनी पारी कहाँ से शुरु की थी?
पूर्णिमा जी - उनके संगीत से सजी पहली फ़िल्म थी 'नज़रिया' (1952), जिसमें गीत लिखे थे राजकुमार संतोषी के पिता श्री पी. एल. संतोषी जी ने। इसके बाद आई फ़िल्म 'नौ लखा हार' (1953), 'ये बस्ती ये लोग' (1954), 'आबशार' (1954) आदि।
सुजॉय - पूर्णिमा जी, एक पिता के रूप में भोला जी को आपने कैसा पाया?
पूर्णिमा जी - एक पिता के रूप में वो बहुत ही सख़्त, अनुशासन-पसंद इंसान थे, पर साथ ही साथ फ़्लेक्सिबल भी थे। वो यह नहीं चाहते थे कि मैं या उनका कोई और संतान किसी तरह के क्रीएटिव आर्ट को अपना प्रोफ़ेशन बनाए। शायद अपनी अनुभूतिओं और दुखद परिस्थितिओं को देखने के बाद उनको ऐसा लगा होगा। पर मैं तब तक अपना करीयर शुरु कर चुकी थी। मैं स्टेज पर गाती थी, पर उन्हें इस बात का पता नहीं था क्योंकि वो हमेशा किशोर कुमार जी के साथ टूर पे रहते थे, और जिनके वो सहायक थे अपने अंतिम दिनों तक। एक दिन मेरी माँ की ज़िद की वजह से उन्होंने मुझे मुंबई के किसी स्टेज शो पर गाते हुए सुना और अपने ख़यालात के सामने वो झुके। इसके बाद मैंने उनसे संगीत सीखना शुरु किया।
सुजॉय - मैंने सुना है कि भोला जी का बहुत कम उम्र में देहान्त हो गया था। आपकी उम्र उस वक़्त क्या होगी?
पूर्णिमा जी - पिताजी अचानक एक दिन दिल का दौरा पड़ने पर चल बसे। उनकी उम्र केवल 46 वर्ष थी। वह दिन था 11 अप्रैल 1971, और मैं उस वक़्त 11 साल की थी।
सुजॉय - अपने पिता की विशेषताओं के बारे में कुछ बताइए।
पूर्णिमा जी - पिता जी का दिमाग़ बहुत ही विश्लेषणात्मक था, he had an analytical mind, और उनके sense of humour के तो क्या कहने थे। पर उन्हें ग़ुस्सा जल्दी आ जाता था, लेकिन बहुत जल्द शांत भी हो जाते थे। उनका दिमाग़ बहुत तेज़ था और हर चीज़ को बारीक़ी से observeव करते थे। हालाँकि वो अपनी औपचारिक शिक्षा पूरी नहीं कर सके, पर उन्होंने ख़ुद ही घर पर अपनी शिक्षा पूरी की। He was totally self educated. मैं यह बहुत मानती हूँ कि एक उत्कृष्ट संगीतकार और म्युज़िशियन होने के बावजूद इस फ़िल्म इंडस्ट्री ने उन्हें वो सब कुछ नहीं दिया जिसके वो हक़दार थे। उनकी प्रतिभा का इस बात से अनुमान लगाया जा सकता है कि किशोर कुमार के स्वरबद्ध कई मशहूर गीतों में उनका बहुत बड़ा योगदान था। "बेकरार दिल तू गायेजा", "पंथी हूँ मैं उस पथ का", "जीवन से ना हार जीने वाले" जैसे गीतों की धुनों में पिता जी का भी बड़ा योगदान था।
सुजॉय - जी, यह मैंने भी कहीं पढ़ा था कि "बेकरार दिल" की धुन भोला जी ने ही बनाई थी। अच्छा, भोला जी द्वारा स्वरबद्ध किन किन गीतों को आप उनकी सर्वोत्तम रचनाएँ मानती हैं?
पूर्णिमा जी - मेरी व्यक्तिगत पसंद होगी "दिल जलेगा तो ज़माने में उजाला होगा", यह 1954 की फ़िल्म 'ये बस्ती ये लोग' का गीत है। फिर "मैं हूँ हिंदुस्तानी छोरी" (नज़रिया) और "बेकरार दिल तू गायेजा" (दूर का राही), ये सब गीत मेरे दिल के बहुत करीब हैं।
सुजॉय - भोला जी को अपना कौन सा गीत सब से प्रिय था?
पूर्णिमा जी - मेरा ख़याल है "दिल जलेगा" और "बेक़रार दिल" उनके भी पसंदीदा गीत थे।
सुजॉय - भोला जी के बारे में और कोई बात हमारे पाठकों को बताना चाहेंगी?
पूर्णिमा जी - बहुत ज़्यादा लोगों को यह मालूम न होगा कि हालाँकि मेरे पिताजी का जन्म कोलकाता में हुआ और वहीं उनकी परवरिश हुई, और हर दृष्टि से वो एक बंगाली थे, पर जन्म से वे नेपाली थे।
सुजॉय - पूर्णिमा जी, बहुत बहुत शुक्रिया आपका अपने पिता के बारे में वो सब जानकारी दी जो कहीं और से प्राप्त करना मुश्किल था। अगली बार जब हम बातचीत करेंगे तो हम आपके करीयर के बारे में जानना चाहेंगे, आपके एक से एक सुपरहिट गीत की भी चर्चा करेंगे। लेकिन आज चलते चलते भोला जी का कौन सा गीत आप हमारे श्रोताओं को सुनवाना चाहेंगी जो आपकी तरफ़ से भोला जी को डेडिकेशन स्वरूप होगा?
पूर्णिमा जी - एकमात्र गीत जिसे मैं उन्हें समर्पित कर सकती हूँ, वह है "बेक़रार दिल तू गायेजा"।
गीत - बेक़रार दिल तू गायेजा (दूर का राही)
तो ये था फ़िल्म जगत की सुप्रसिद्ध पार्श्वगायिका पूर्णिमा (सुषमा श्रेष्ठ) से उनके पिता व गुज़रे दौर के संगीतकार भोला श्रेष्ठ पर एक बातचीत। अब आज की यह प्रस्तुत समाप्त होती है, नमस्कार!
और अब एक विशेष सूचना:
२८ सितंबर स्वरसाम्राज्ञी लता मंगेशकर का जनमदिवस है। पिछले दो सालों की तरह इस साल भी हम उन पर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक शृंखला समर्पित करने जा रहे हैं। और इस बार हमने सोचा है कि इसमें हम आप ही की पसंद का कोई लता नंबर प्ले करेंगे। तो फिर देर किस बात की, जल्द से जल्द अपना फ़ेवरीट लता नंबर और लता जी के लिए उदगार और शुभकामनाएँ हमें oig@hindyugm.com के पते पर लिख भेजिये। प्रथम १० ईमेल भेजने वालों की फ़रमाइश उस शृंखला में पूरी की जाएगी।
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