ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 577/2010/277
हालाँकि हमने या आपने कभी भूत नहीं देखा है न महसूस किया है, लेकिन आये दिन अख़बारों में या किसी और सूत्र से सुनाई दे जाती है लोगों के भूत देखने की कहानियाँ। भूत-प्रेत की कहानियाँ सैंकड़ों सालों से चली आ रही है, लेकिन विज्ञान अभी तक इसके अस्तित्व की व्याख्या नहीं कर सका है। कई लोग अपने कैमरों में कुछ ऐसी तस्वीरें क़ैद कर ले आते हैं जिनमें कुछ अजीब बात होती है। वो लाख कोशिश करे उन तस्वीरों को भूत-प्रेत के साथ जोडने की, लेकिन हर बार यह साबित हुआ है कि उन तस्वीरों के साथ छेड़-छाड़ हुई है। अभिषेक अगरवाल एक ऐसे शोधकर्ता हैं जिन्होंने भूत-प्रेत के अस्तित्व संबंधी विषयों पर ना केवल शोध किया है, बल्कि एक पुस्तक भी प्रकाशित की है 'Astral Projection Underground' के शीर्षक से। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार, और स्वागत है आप सभी का इस अजीब-ओ-ग़रीब लघु शृंखला में जिसका नाम है 'मानो या ना मानो'। आज के अंक में हम अभिषेक अगरवाल के उसी शोध में से छाँट कर कुछ बातें आपके सम्मुख रखना चाहते हैं। अभिषेक के अनुसार अगर हम 'Law of Thermodynamics' को एक अन्य नज़रिये से देखें, तो शायद कुछ हद तक इस निश्कर्ष तक पहूँच सकें कि आत्मा का अस्तित्व संभव है। अगर पूरी तरह से निश्कर्ष ना भी निकाल सके, लेकिन कुछ नये प्रश्न ज़रूर सामने आ सकते हैं। और इन प्रश्नों के जवाबों को ढ़ूंढते हुए शायद हम यह साबित कर सकें कि आत्मा का अस्तित्व असंभव नहीं। अब पहला सवाल तो यही है कि आख़िर यह 'Law of Thermodynamics' है क्या चीज़? मध्याकर्षण के नियमों में यह सब से महत्वपूर्ण नियम है, और इस नियम को ध्यानपूर्वक अध्ययन किया जाये तो यह साबित हो जाता है कि आदमी के मरने के बाद उसकी आत्मा नहीं मरती। यह नियम कहती है कि ऊर्जा को ना तो पैदा की जा सकती है, और ना ही नष्ट किया जा सकता है, उसे बस एक स्थिति से दूसरी स्थिति में परिवर्तित किया जा सकता है (Energy can neither be created nor destroyed; it can only change form.) तो हमारी जो सांसें चलती हैं, हमारी जो आत्मा है, वह भी तो एक तरह का ऊर्जा ही है; तो फिर वो कैसे नष्ट हो सकती है! जीव-विज्ञान कहती है कि मृत्यु के बाद जीव देह सड़ जाती है क्योंकि अलग अलग तरह के जीवाणु उस देह को अपना भोजन बनाते है। और इस तरह से जीव-ऊर्जा एक स्थिति से दूसरी स्थिति में आ पहुँचता है। लेकिन उस मस्तिष्क की बुद्धि का क्या जो हमें हमारा परिचय देती है? क्या हर जीव के अंदर शारीरिक शक्ति के अलावा भी एक और शक्ति नहीं है? हमारी बुद्धि, हमारी आत्मा? क्या ये भी जीवाणुओं के पेट में चली जाती है या इनका कुछ और हश्र होता है? इस पैरनॊर्मल जगत को हम तभी गले लगा सकते हैं जब हम खुले दिमाग और मन से इस बारे में सोच विचार और मंथन करेंगे। दोस्तों, अभिषेक पिछले १५ सालों से पैरनॊर्मल गतिविधियों पर शोध कर रहे हैं। कुछ अन्य शोधकर्ताओं का यह कहना है कि वो लोग जो भूत देखने का दावा करते हैं, वो दरअसल मानसिक रूप से कमज़ोर होते हैं। वो बहुत ज़्यादा उस बारे में सोचते हैं जिसकी वजह से उन्हें कई बार भ्रम हो जाता है और उन्हें उनकी सोच हक़ीक़त में दिखाई देने लगती है। यानी कि भूत दिखाई देना एक तरह की मानसिक विकृति है। एक और दृष्टिकोण के अनुसार इस बिमारी को 'Sleep Paralysis' कहते हैं जिसमें आदमी नींद से जग तो जाता है लेकिन हिल नहीं सकता। तब उन्हें ऐसा लगता है कि उन्हें कोई ज़ोर से पकड़े हुए है या नीचे की तरफ़ खींच रहे हैं। और अगले दिन यह अफ़वाह उड़ाते हैं कि उसके घर में भूत है। ऐसे में हम इसी निश्कर्ष पर पहुँचते हैं कि अगर भूत-प्रेत संबंधी कहानियों का वैज्ञानिक वर्णन कोई दे सकता है, तो वह है चिकित्सा विज्ञान।
और दोस्तों, आज की ससपेन्स फ़िल्म जिसका सस्पेन्स भरा गीत हम सुनने जा रहे हैं, वह है मशहूर फ़िल्म 'वो कौन थी'। १९६४ में प्रदर्शित इस फ़िल्म ने काफ़ी लोकप्रियता हासिल की थी। इस फ़िल्म में लता जी ने वह हौन्टिंग नंबर गाया था "नैना बरसे रिमझिम रिमझिम, पिया तोरे आवन की आस"। मदन मोहन का संगीत और राजा मेहंदी अली ख़ान के बोल। लता जी के सुपरहिट हौंटिंग्मेलोडीज़ में इस गीत का शुमार होता है। दिलचस्प बात यह है कि लता जी इस गाने की रेकॊर्डिंग पर पहुँच नहीं पायी थीं और यह गाना अगले ही दिन फ़िल्माया जाना था। ऐसे में मदन मोहन ने ख़ुद इस गीत को अपनी आवाज़ में रेकॊर्ड करवाया और उसी पर साधना ने अपने होंठ हिलाकर फ़िल्मांकन पूरा किया। बाद में लता ने गीत को रेकॊर्ड किया। मदन मोहन का गाया वर्ज़न एच. एम. वी की सी.डी 'Legends' में शामिल किया गया है। और अब आपको बतायी जाये 'वो कौन थी' की रहस्यमय कहानी। एक तूफ़ानी रात में डॊ. आनंद (मनोज कुमार) घर लौट रहे होते हैं जब उन्हें सड़क पर सफ़ेद साड़ी पहने एक लड़की (साधना) दिखायी देता है, जो बहुत परेशानी में लग रही है। आनंद उसे अपनी गाड़ी में लिफ़्ट देने का न्योता देता है और वो गाड़ी में बैठ जाती है और अपना नाम संध्या बताती है। जैसे ही वो गाड़ी में बैठती है, सामने शीशे के वाइपर्स चलने बंद हो जाते हैं, और आनंद को आगे रास्ता दिखाई नहीं देता। आनंद कुछ डर सा जाता है यह देख कर कि संध्या उसे रास्ता बता रही है उस अंधेरे में भी। वो उसे एक कब्रिस्तान की तरफ़ ले जाती है। आनंद देखता है कि संध्या की एक हाथ से ख़ून बह रहा है। पूछने पर संध्या मुस्कुराती है और कहती है कि उसे ख़ून अच्छा लगता है। जल्द ही संध्या गायब हो जाती है। कुछ ही समय बाद एक परेशान पिता आनंद की गाड़ी को रोकता है और उसकी बेटी की ज़िंदगी को बचा लेने की प्रार्थना करता है। आनंद उस आदमी के पीछे जाता है और एक पुराने घर में प्रवेश करता है, लेकिन बदक़िस्मती से जिस लड़की को बचाने की बात हो रही थी, वह मर चुकी होती है। आनंद चौंक उठता है यह देख कर कि जिस लड़की का शव वहाँ पड़ा हुआ है, वह वही लड़की संध्या है जिसे उसने अभी थोड़ी देर पहले लिफ़्ट दी थी। वापस लौटते वक्त आनंद को कुछ पुलिसमेन मिलते हैं जो उन्हें बताते हैं कि उस जगह पर बहुत दिनों से कोई नहीं रहता। आनंद डर तो जाता है लेकिन इस रहस्य की तह तक जाने का साहस भी जुटा ही लेता है। जैसे जैसे वो रहस्य के करीब पहूँचने लगता है, उसे पता चलता है कि वो झूठ और फ़रेब के जालों में उलझता चला जा रहा है। हालात ऐसी हो जाती है कि आनंद की माँ उसकी शादी जिस लड़की से तय करती है, वह और कोई नहीं संध्या है। क्या है संध्या की सच्चाई? क्या है इस कहानी का अंजाम? यह तो आप ख़ुद ही कभी मौका मिले तो देख लीजिएगा अगर आपने यह फ़िल्म अभी तक नहीं देखी है तो! इस फ़िल्म का हर गीत सुपरडुपर हिट हुआ था। तो चलिए सुनते हैं लता जी की आवाज़ में यह हौंटिंग्नंबर, जिसमें रहस्य के साथ साथ जुदाई का दर्द भी समाया हुआ है।
क्या आप जानते हैं...
'वो कौन थी' फ़िल्म का १९६६ में तमिल में रेमेक हुआ था 'यार नी' शीर्षक से जिसका निर्माण किया था सत्यम ने। जयशंकर और जयललिता (जो बाद में तमिल नाडु की मुख्यमंत्री बनीं) ने इसमें मुख्य भूमिकाएँ निभाईं। तेलुगु फ़िल्म 'आमे एवरु' भी 'वो कौन थी' का ही रीमेक था।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 08/शृंखला 08
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - बेहद आसान है.
सवाल १ - गीतकार बताएं - 2 अंक
सवाल २ - फिल्म का नाम बताएं - 1 अंक
सवाल ३ - संगीतकार बताएं - 1 अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
अमित जी की बढ़त जारी है, शरद जी आपको बहुत हम मिस करेंगें पर आपकी यात्रा सफल हो, यही कामना रहेगी...अंजना जी कब तक अनजान रहेंगें....वैसे अमित जी इस गीत से जुडी एक और खास बात आप यहाँ पढ़ा सकते है http://podcast.hindyugm.com/2008/07/blog-post_14.html
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
हालाँकि हमने या आपने कभी भूत नहीं देखा है न महसूस किया है, लेकिन आये दिन अख़बारों में या किसी और सूत्र से सुनाई दे जाती है लोगों के भूत देखने की कहानियाँ। भूत-प्रेत की कहानियाँ सैंकड़ों सालों से चली आ रही है, लेकिन विज्ञान अभी तक इसके अस्तित्व की व्याख्या नहीं कर सका है। कई लोग अपने कैमरों में कुछ ऐसी तस्वीरें क़ैद कर ले आते हैं जिनमें कुछ अजीब बात होती है। वो लाख कोशिश करे उन तस्वीरों को भूत-प्रेत के साथ जोडने की, लेकिन हर बार यह साबित हुआ है कि उन तस्वीरों के साथ छेड़-छाड़ हुई है। अभिषेक अगरवाल एक ऐसे शोधकर्ता हैं जिन्होंने भूत-प्रेत के अस्तित्व संबंधी विषयों पर ना केवल शोध किया है, बल्कि एक पुस्तक भी प्रकाशित की है 'Astral Projection Underground' के शीर्षक से। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार, और स्वागत है आप सभी का इस अजीब-ओ-ग़रीब लघु शृंखला में जिसका नाम है 'मानो या ना मानो'। आज के अंक में हम अभिषेक अगरवाल के उसी शोध में से छाँट कर कुछ बातें आपके सम्मुख रखना चाहते हैं। अभिषेक के अनुसार अगर हम 'Law of Thermodynamics' को एक अन्य नज़रिये से देखें, तो शायद कुछ हद तक इस निश्कर्ष तक पहूँच सकें कि आत्मा का अस्तित्व संभव है। अगर पूरी तरह से निश्कर्ष ना भी निकाल सके, लेकिन कुछ नये प्रश्न ज़रूर सामने आ सकते हैं। और इन प्रश्नों के जवाबों को ढ़ूंढते हुए शायद हम यह साबित कर सकें कि आत्मा का अस्तित्व असंभव नहीं। अब पहला सवाल तो यही है कि आख़िर यह 'Law of Thermodynamics' है क्या चीज़? मध्याकर्षण के नियमों में यह सब से महत्वपूर्ण नियम है, और इस नियम को ध्यानपूर्वक अध्ययन किया जाये तो यह साबित हो जाता है कि आदमी के मरने के बाद उसकी आत्मा नहीं मरती। यह नियम कहती है कि ऊर्जा को ना तो पैदा की जा सकती है, और ना ही नष्ट किया जा सकता है, उसे बस एक स्थिति से दूसरी स्थिति में परिवर्तित किया जा सकता है (Energy can neither be created nor destroyed; it can only change form.) तो हमारी जो सांसें चलती हैं, हमारी जो आत्मा है, वह भी तो एक तरह का ऊर्जा ही है; तो फिर वो कैसे नष्ट हो सकती है! जीव-विज्ञान कहती है कि मृत्यु के बाद जीव देह सड़ जाती है क्योंकि अलग अलग तरह के जीवाणु उस देह को अपना भोजन बनाते है। और इस तरह से जीव-ऊर्जा एक स्थिति से दूसरी स्थिति में आ पहुँचता है। लेकिन उस मस्तिष्क की बुद्धि का क्या जो हमें हमारा परिचय देती है? क्या हर जीव के अंदर शारीरिक शक्ति के अलावा भी एक और शक्ति नहीं है? हमारी बुद्धि, हमारी आत्मा? क्या ये भी जीवाणुओं के पेट में चली जाती है या इनका कुछ और हश्र होता है? इस पैरनॊर्मल जगत को हम तभी गले लगा सकते हैं जब हम खुले दिमाग और मन से इस बारे में सोच विचार और मंथन करेंगे। दोस्तों, अभिषेक पिछले १५ सालों से पैरनॊर्मल गतिविधियों पर शोध कर रहे हैं। कुछ अन्य शोधकर्ताओं का यह कहना है कि वो लोग जो भूत देखने का दावा करते हैं, वो दरअसल मानसिक रूप से कमज़ोर होते हैं। वो बहुत ज़्यादा उस बारे में सोचते हैं जिसकी वजह से उन्हें कई बार भ्रम हो जाता है और उन्हें उनकी सोच हक़ीक़त में दिखाई देने लगती है। यानी कि भूत दिखाई देना एक तरह की मानसिक विकृति है। एक और दृष्टिकोण के अनुसार इस बिमारी को 'Sleep Paralysis' कहते हैं जिसमें आदमी नींद से जग तो जाता है लेकिन हिल नहीं सकता। तब उन्हें ऐसा लगता है कि उन्हें कोई ज़ोर से पकड़े हुए है या नीचे की तरफ़ खींच रहे हैं। और अगले दिन यह अफ़वाह उड़ाते हैं कि उसके घर में भूत है। ऐसे में हम इसी निश्कर्ष पर पहुँचते हैं कि अगर भूत-प्रेत संबंधी कहानियों का वैज्ञानिक वर्णन कोई दे सकता है, तो वह है चिकित्सा विज्ञान।
और दोस्तों, आज की ससपेन्स फ़िल्म जिसका सस्पेन्स भरा गीत हम सुनने जा रहे हैं, वह है मशहूर फ़िल्म 'वो कौन थी'। १९६४ में प्रदर्शित इस फ़िल्म ने काफ़ी लोकप्रियता हासिल की थी। इस फ़िल्म में लता जी ने वह हौन्टिंग नंबर गाया था "नैना बरसे रिमझिम रिमझिम, पिया तोरे आवन की आस"। मदन मोहन का संगीत और राजा मेहंदी अली ख़ान के बोल। लता जी के सुपरहिट हौंटिंग्मेलोडीज़ में इस गीत का शुमार होता है। दिलचस्प बात यह है कि लता जी इस गाने की रेकॊर्डिंग पर पहुँच नहीं पायी थीं और यह गाना अगले ही दिन फ़िल्माया जाना था। ऐसे में मदन मोहन ने ख़ुद इस गीत को अपनी आवाज़ में रेकॊर्ड करवाया और उसी पर साधना ने अपने होंठ हिलाकर फ़िल्मांकन पूरा किया। बाद में लता ने गीत को रेकॊर्ड किया। मदन मोहन का गाया वर्ज़न एच. एम. वी की सी.डी 'Legends' में शामिल किया गया है। और अब आपको बतायी जाये 'वो कौन थी' की रहस्यमय कहानी। एक तूफ़ानी रात में डॊ. आनंद (मनोज कुमार) घर लौट रहे होते हैं जब उन्हें सड़क पर सफ़ेद साड़ी पहने एक लड़की (साधना) दिखायी देता है, जो बहुत परेशानी में लग रही है। आनंद उसे अपनी गाड़ी में लिफ़्ट देने का न्योता देता है और वो गाड़ी में बैठ जाती है और अपना नाम संध्या बताती है। जैसे ही वो गाड़ी में बैठती है, सामने शीशे के वाइपर्स चलने बंद हो जाते हैं, और आनंद को आगे रास्ता दिखाई नहीं देता। आनंद कुछ डर सा जाता है यह देख कर कि संध्या उसे रास्ता बता रही है उस अंधेरे में भी। वो उसे एक कब्रिस्तान की तरफ़ ले जाती है। आनंद देखता है कि संध्या की एक हाथ से ख़ून बह रहा है। पूछने पर संध्या मुस्कुराती है और कहती है कि उसे ख़ून अच्छा लगता है। जल्द ही संध्या गायब हो जाती है। कुछ ही समय बाद एक परेशान पिता आनंद की गाड़ी को रोकता है और उसकी बेटी की ज़िंदगी को बचा लेने की प्रार्थना करता है। आनंद उस आदमी के पीछे जाता है और एक पुराने घर में प्रवेश करता है, लेकिन बदक़िस्मती से जिस लड़की को बचाने की बात हो रही थी, वह मर चुकी होती है। आनंद चौंक उठता है यह देख कर कि जिस लड़की का शव वहाँ पड़ा हुआ है, वह वही लड़की संध्या है जिसे उसने अभी थोड़ी देर पहले लिफ़्ट दी थी। वापस लौटते वक्त आनंद को कुछ पुलिसमेन मिलते हैं जो उन्हें बताते हैं कि उस जगह पर बहुत दिनों से कोई नहीं रहता। आनंद डर तो जाता है लेकिन इस रहस्य की तह तक जाने का साहस भी जुटा ही लेता है। जैसे जैसे वो रहस्य के करीब पहूँचने लगता है, उसे पता चलता है कि वो झूठ और फ़रेब के जालों में उलझता चला जा रहा है। हालात ऐसी हो जाती है कि आनंद की माँ उसकी शादी जिस लड़की से तय करती है, वह और कोई नहीं संध्या है। क्या है संध्या की सच्चाई? क्या है इस कहानी का अंजाम? यह तो आप ख़ुद ही कभी मौका मिले तो देख लीजिएगा अगर आपने यह फ़िल्म अभी तक नहीं देखी है तो! इस फ़िल्म का हर गीत सुपरडुपर हिट हुआ था। तो चलिए सुनते हैं लता जी की आवाज़ में यह हौंटिंग्नंबर, जिसमें रहस्य के साथ साथ जुदाई का दर्द भी समाया हुआ है।
क्या आप जानते हैं...
'वो कौन थी' फ़िल्म का १९६६ में तमिल में रेमेक हुआ था 'यार नी' शीर्षक से जिसका निर्माण किया था सत्यम ने। जयशंकर और जयललिता (जो बाद में तमिल नाडु की मुख्यमंत्री बनीं) ने इसमें मुख्य भूमिकाएँ निभाईं। तेलुगु फ़िल्म 'आमे एवरु' भी 'वो कौन थी' का ही रीमेक था।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 08/शृंखला 08
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - बेहद आसान है.
सवाल १ - गीतकार बताएं - 2 अंक
सवाल २ - फिल्म का नाम बताएं - 1 अंक
सवाल ३ - संगीतकार बताएं - 1 अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
अमित जी की बढ़त जारी है, शरद जी आपको बहुत हम मिस करेंगें पर आपकी यात्रा सफल हो, यही कामना रहेगी...अंजना जी कब तक अनजान रहेंगें....वैसे अमित जी इस गीत से जुडी एक और खास बात आप यहाँ पढ़ा सकते है http://podcast.hindyugm.com/2008/07/blog-post_14.html
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
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