मैं हूँ एक खलासी, मेरा नाम है भीमपलासी....अन्ना के इस गीत को सुनकर आपके चेहरे पर भी मुस्कान न आये तो कहियेगा
ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 570/2010/270
नमस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की ५७०-वीं कड़ी के साथ हम हाज़िर हैं और जैसा कि इन दिनों आप सुन और पढ़ रहे हैं कि सी. रामचन्द्र के संगीत और गायकी से सजी लघु शृंखला 'कितना हसीं है मौसम' जारी है 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर। आज हम आ गये हैं इस शृंखला के अंजाम पर। आज इसकी अंतिम कड़ी में आपको सुनवा रहे हैं चितलकर और साथियों का गाया एक और मशहूर गीत। सी. रामचन्द्र के संगीत के दो पहलु थे, एक जिसमें वो शास्त्रीय और लोक संगीत पर आधारित गानें बनाते थे, और दूसरी तरफ़ पाश्चात्य संगीत पर उनके बनाये हुए गानें भी गली गली गूंजा करते थे। इस शृंखला में भी हमने कोशिश की है इन दोनों पहलुओं के गानें पेश करें। आज की कड़ी में सुनिए उसी पाश्चात्य अंदाज़ में १९५० की फ़िल्म 'सरगम' से एक हास्य गीत "मैं हूँ एक खलासी, मेरा नाम है भीमपलासी"। एक गज़ब का रॊक-एन-रोल नंबर है जिससे आज ६० साल बाद भी उतनी ही ताज़गी आती है। माना जाता है कि किसी हिंदी फ़िल्म में रॊक-एन-रोल का प्रयोग होने वाला यह पहला गाना था। और वह भी उस समय जब रॊक-एन-रोल विदेश में भी उतना लोकप्रिय नहीं माना जाता था। राज कपूर, रेहाना और अन्य कलाकारों पर फ़िल्माया यह एक नृत्य गीत है। पी. एल. संतोषी ने फ़िल्म के गीत लिखे थे।
'सरगम' फ़िल्म का हर एक गीत अपने आप में एक प्रयोग था। इसी फ़िल्म का लता, चितलकर और साथियों का गाया "मौसमे बहार यार, दिल है गुलज़ार यार" में अरबी शैली को अपनाया गया था। लता, रफ़ी और चितलकर के गाये "सबसे बड़ा रुपैया" में लोक धुनों पर विदेशी रिदम का मिश्रण महसूस किया जा सकता है। इस फ़िल्म में एक और पहला प्रयोग था लता-चितलकर के गाये "मोम्बासा" गीत में, जिसमें सी. रामचन्द्र ने अफ़्रीकन संगीत का इस्तेमाल किया। १९५० में ही एक और फ़िल्म आयी थी 'संगीता', जिसमें भी उन्होंने देशी और विदेशी साज़ों के फ़्युज़न से लता-चितलकर का गाया "गिरगिट की तरह रंग बदलते फ़ैशन वाले बाबू" अपने आप में एक नया प्रयोग था। १९५१ में फ़िल्म 'ख़ज़ाना' में लता, चितलकर और साथियों ने गाया था "बाबड़ी बूबडी बम", जिसमें लैटिन अमेरिकी और कैरिबीयन बीट्स का प्रयोग था। इस तरह से बहुत सारे प्रयोग सी. रामचन्द्र ने किए हैं। ऐसे में उन्हें एक क्रांतिकारी संगीतकार के रूप में सम्मानित करना बहुत ही सटीक रहा। आज सी. रामचन्द्र के गये हुए ३० साल होने हो गये, लेकिन उनके रचे सदाबहार नग़में आज भी उनकी यादों को बिल्कुल ताज़ा रखे हुए है। दोस्तों, हमें उम्मीद है कि सी. रामचन्द्र के स्वरबद्ध और चितलकर के गाये इन गीतों का आपने पिछले दो हफ़्तों से आनंद लिया होगा। यह शृंखला आपको कैसी लगी, ज़रूर बताइएगा ईमेल के द्वारा। हमारा ईमेल आइडी है oig@hindyugm.com इसी के साथ अब सी. रामचन्द्र को समर्पित इस शृंखला को समाप्त करने की हमें इजाज़त दीजिए, और सुनिए यह मस्ती भरा गीत। 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने' के साथ हम फिर हाज़िर होंगे शनिवार की शाम, तब तक के लिए, नमस्कार!
क्या आप जानते हैं...
कि 'सरगम' के नाम पर सी. रामचन्द्र ने बांद्रा में बनवाए अपने बंगले का नामकरण किया था। वह बंगला तो बिक गया था, लेकिन बाद में पुणे के जिस बंगले में उनका परिवार रहता है, उसका नाम भी 'सरगम' है।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 11/शृंखला 08
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - लता की आवाज़ जैसे जादू है इस गीत में
सवाल १ - गीतकार बताएं - १ अंक
सवाल २ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक
सवाल ३ - संगीतकार कौन हैं - २ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
वाह..हमारी ये शृंखला बेहद शानदार रहे, अमित जी ने शरद जी का बहुत जम कर मुकाबला किया, मगर उनके ९ अंकों पर शरद जी के १० अंक भारी पड़े, तो इस कारण एक शृंखला और शरद जी के नाम हुई, पर इस शृंखला में हमें दीपा जी, विजय दुआ और हिन्दुस्तानी जी जैसे नए योधा मिले, जो अगर इसी तरह चलते रहे तो आने वाली श्रृंखलाएं जबरदस्त होंगीं ये तय है....वैसे हमारे श्याम कान्त जी अभी तक गायब ही हैं, वैसे हम आपको बताते चलें कि अब तक श्याम जी ४, शरद जी ३ और अमित जी १ शृंखला जीत चुके हैं.....नयी शृंखला के लिए सभी को शुभकामनाएँ...
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
नमस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की ५७०-वीं कड़ी के साथ हम हाज़िर हैं और जैसा कि इन दिनों आप सुन और पढ़ रहे हैं कि सी. रामचन्द्र के संगीत और गायकी से सजी लघु शृंखला 'कितना हसीं है मौसम' जारी है 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर। आज हम आ गये हैं इस शृंखला के अंजाम पर। आज इसकी अंतिम कड़ी में आपको सुनवा रहे हैं चितलकर और साथियों का गाया एक और मशहूर गीत। सी. रामचन्द्र के संगीत के दो पहलु थे, एक जिसमें वो शास्त्रीय और लोक संगीत पर आधारित गानें बनाते थे, और दूसरी तरफ़ पाश्चात्य संगीत पर उनके बनाये हुए गानें भी गली गली गूंजा करते थे। इस शृंखला में भी हमने कोशिश की है इन दोनों पहलुओं के गानें पेश करें। आज की कड़ी में सुनिए उसी पाश्चात्य अंदाज़ में १९५० की फ़िल्म 'सरगम' से एक हास्य गीत "मैं हूँ एक खलासी, मेरा नाम है भीमपलासी"। एक गज़ब का रॊक-एन-रोल नंबर है जिससे आज ६० साल बाद भी उतनी ही ताज़गी आती है। माना जाता है कि किसी हिंदी फ़िल्म में रॊक-एन-रोल का प्रयोग होने वाला यह पहला गाना था। और वह भी उस समय जब रॊक-एन-रोल विदेश में भी उतना लोकप्रिय नहीं माना जाता था। राज कपूर, रेहाना और अन्य कलाकारों पर फ़िल्माया यह एक नृत्य गीत है। पी. एल. संतोषी ने फ़िल्म के गीत लिखे थे।
'सरगम' फ़िल्म का हर एक गीत अपने आप में एक प्रयोग था। इसी फ़िल्म का लता, चितलकर और साथियों का गाया "मौसमे बहार यार, दिल है गुलज़ार यार" में अरबी शैली को अपनाया गया था। लता, रफ़ी और चितलकर के गाये "सबसे बड़ा रुपैया" में लोक धुनों पर विदेशी रिदम का मिश्रण महसूस किया जा सकता है। इस फ़िल्म में एक और पहला प्रयोग था लता-चितलकर के गाये "मोम्बासा" गीत में, जिसमें सी. रामचन्द्र ने अफ़्रीकन संगीत का इस्तेमाल किया। १९५० में ही एक और फ़िल्म आयी थी 'संगीता', जिसमें भी उन्होंने देशी और विदेशी साज़ों के फ़्युज़न से लता-चितलकर का गाया "गिरगिट की तरह रंग बदलते फ़ैशन वाले बाबू" अपने आप में एक नया प्रयोग था। १९५१ में फ़िल्म 'ख़ज़ाना' में लता, चितलकर और साथियों ने गाया था "बाबड़ी बूबडी बम", जिसमें लैटिन अमेरिकी और कैरिबीयन बीट्स का प्रयोग था। इस तरह से बहुत सारे प्रयोग सी. रामचन्द्र ने किए हैं। ऐसे में उन्हें एक क्रांतिकारी संगीतकार के रूप में सम्मानित करना बहुत ही सटीक रहा। आज सी. रामचन्द्र के गये हुए ३० साल होने हो गये, लेकिन उनके रचे सदाबहार नग़में आज भी उनकी यादों को बिल्कुल ताज़ा रखे हुए है। दोस्तों, हमें उम्मीद है कि सी. रामचन्द्र के स्वरबद्ध और चितलकर के गाये इन गीतों का आपने पिछले दो हफ़्तों से आनंद लिया होगा। यह शृंखला आपको कैसी लगी, ज़रूर बताइएगा ईमेल के द्वारा। हमारा ईमेल आइडी है oig@hindyugm.com इसी के साथ अब सी. रामचन्द्र को समर्पित इस शृंखला को समाप्त करने की हमें इजाज़त दीजिए, और सुनिए यह मस्ती भरा गीत। 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने' के साथ हम फिर हाज़िर होंगे शनिवार की शाम, तब तक के लिए, नमस्कार!
क्या आप जानते हैं...
कि 'सरगम' के नाम पर सी. रामचन्द्र ने बांद्रा में बनवाए अपने बंगले का नामकरण किया था। वह बंगला तो बिक गया था, लेकिन बाद में पुणे के जिस बंगले में उनका परिवार रहता है, उसका नाम भी 'सरगम' है।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 11/शृंखला 08
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - लता की आवाज़ जैसे जादू है इस गीत में
सवाल १ - गीतकार बताएं - १ अंक
सवाल २ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक
सवाल ३ - संगीतकार कौन हैं - २ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
वाह..हमारी ये शृंखला बेहद शानदार रहे, अमित जी ने शरद जी का बहुत जम कर मुकाबला किया, मगर उनके ९ अंकों पर शरद जी के १० अंक भारी पड़े, तो इस कारण एक शृंखला और शरद जी के नाम हुई, पर इस शृंखला में हमें दीपा जी, विजय दुआ और हिन्दुस्तानी जी जैसे नए योधा मिले, जो अगर इसी तरह चलते रहे तो आने वाली श्रृंखलाएं जबरदस्त होंगीं ये तय है....वैसे हमारे श्याम कान्त जी अभी तक गायब ही हैं, वैसे हम आपको बताते चलें कि अब तक श्याम जी ४, शरद जी ३ और अमित जी १ शृंखला जीत चुके हैं.....नयी शृंखला के लिए सभी को शुभकामनाएँ...
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
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Pratibha Kaushal-Sampat
Ottawa, Canada