Skip to main content

तेरा ख्याल दिल से भुलाया न जायेगा....वाकई सुर्रैया को कभी भी भुला नहीं पायेगें हिंदी फिल्म संगीत के रसिक

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 582/2010/282

'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों नमस्कार! आज ३१ जनवरी है। आज के ही दिन सन् २००४ में गायिका-अभिनेत्री सुरैया इस दुनिया-ए-फ़ानी को हमेशा के लिए छोड़ कर चली गईं थीं। सुरैया ने गीत गाना ६० के दशक में ही छोड़ दिया था, लेकिन उनकी आवाज़ में कुछ ऐसी बात है कि आज इतने दशकों बाद भी उनके गाये गीतों को हमने अपने कलेजे से लगा रखा है। 'आवाज़' परिवार की तरफ़ से सुरैया जी को हम श्रद्धांजली अर्पित करते हैं और उन्हीं पर केन्द्रित लघु शृंखला 'तेरा ख़याल दिल से भुलाया ना जाएगा' को आगे बढ़ाते हैं। सच ही तो कहा है इस गीत के गीतकार शक़ील बदायूनी ने कि "तेरा ख़याल दिल से भुलाया ना जाएगा, उल्फ़त की ज़िंदगी को मिटाया ना जाएगा"। सुरैया की सुंदरता, अभिनय और गायन, इन तीनों आयामों में ही सुरैया अपने दौर में सब से उपर रहीं। और क्यों ना हो जब उनका नाम ही "सुर" से शुरु होता है! युं तो हर फ़िल्म कलाकार के अपने प्रशंसक होते हैं, 'फ़ैन फ़ॊलोविंग्' होती है, पर अगर कलाकार में रूप के साथ-साथ स्वर का भी संगम हो, बड़ी-बड़ी नशीली आँखों के साथ-साथ शहद जैसी मीठी आवाज़ हो, तो प्रशंसकों और चाहनेवालों की संख्या कई गुणा बढ़ जाती है। धड़कते दिल लिए सिने-प्रेमी भीतर के तरफ़ जैसे खींचे चले जाते हैं, ठीक उसी तरह जैसे सुरैया के ही गाये एक गीत के बोल हैं - "धड़कते दिल की तमन्ना हो, मेरा प्यार हो तुम"। ख़ैर, आज के अंक के लिए सुरैया जी को श्रद्धांजली स्वरूप हमने जो गीत चुना है, वह वही गीत है जो शीर्षक है इस लघु शृंखला का - "तेरा ख़याल दिल से भुलाया ना जाएगा"। १९४९ की फ़िल्म 'दिल्लगी' का यह गीत है, शक़ील साहब के बोल और नौशाद साहब का संगीत।

फ़िल्म 'दिल्लगी' के मशहूर गीत "तू मेरा चांद मैं तेरी चांदनी" से हमने लघु शृंखला 'प्योर गोल्ड' का समापन किया था (अंक-३५०)। इस शुंखला में हमनें ४० के दशक के १० सालों के दस सुपरहिट गीत शामिल किए थे। और १९४९ के साल को रिप्रेज़ेण्ट करने के लिए हमने इस सुरैया - श्याम डुएट को चुना था। 'दिल्लगी' ए. आर. कारदार की फ़िल्म थी और १९४९ में उनकी एक और फ़िल्म 'दुलारी' भी आई थी जिसमें भी शक़ील-नौशाद ने कुछ यादगार रंग भरे। १९४९ का यह साल सुरैया के लिए जितना सुखदायी सिद्ध हुआ, उतना ही सफल रहा नौशाद साहब के लिए भी। 'दिल्लगी' और 'दुलारी' के अलावा महबूब साहब की फ़िल्म 'अंदाज़' और ताजमहल पिक्चर्स की फ़िल्म 'चांदनी रात' के गानें भी ख़ूब चर्चा में रहे। फ़िल्म 'दिल्लगी' के शीर्षक गीत और आज के प्रस्तुत गीत के अलावा भी सुरैय्या के गाए कुछ और बेहद हिट गानें थे इस फ़िल्म में, जैसे कि "मुरलीवाले मुरली बजा सुन सुन मुरली को नाचे जिया", "चार दिन की चांदनी थी फिर अंधेरी रात है", "निराला मोहब्बत का दसतूर देखा", "लेके दिल चुपके से किया मजबूर हाए" और "दुनिया क्या जाने मेरा अफ़साना क्यों गाए दिल उल्फ़त का तराना"। हर गीत में उनका अलग अंदाज़ सुनने को मिला। सुरैया के साथ साथ नौशाद साहब को भी हम सलाम करते हैं जिन्होंने ऐसी ऐसी धुनें बनाईं कि जिनके बारे में आज इतने सालों बाद उल्लेख करते हुए भी अजीब ख़ुशी महसूस हो रही है। दोस्तों, कल हमने शृंखला की शुरुआत की थी कारदार साहब की ही फ़िल्म 'शारदा' के गीत से, जिससे सुरैया जी के फ़िल्मी गायन का शुभारंभ हुआ था, और आगे चलकर सुरैया-कारदार की जोड़ी ने 'दर्द', 'दिल्लगी', 'दास्तान' और 'दीवाना' जैसी चर्चित फ़िल्में हमें दी। तो आइए आज सुरैया की पुण्यतिथि पर उन्हें स्मरण करते हुए सुनते हैं "तेरा ख़याल दिल से भुलाया न जाएगा"। हमें पूरा यकीन है कि आप सब भी इस वक़्त यही सोच रहे होंगे कि वाक़ई सुरैया जी का ख़याल दिल से भुलाया ना जाएगा। 'आवाज़' परिवार की ओर से सुरैया की की स्मृति को श्रद्धा सुमन!



क्या आप जानते हैं...
कि गायिका-अभिनेत्रिओं में सुरैया ने सब से ज़्यादा फ़िल्में की और सब से ज़्यादा गानें गाये।

दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)

पहेली 03/शृंखला 09
गीत का ये हिस्सा सुनें-


अतिरिक्त सूत्र - ये एक युगल गीत है.

सवाल १ - गीतकार बताएं - १ अंक
सवाल २ - संगीतकार बताएं - २ अंक
सवाल ३ - सह गायक कौन हैं - १ अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
वाह मुकाबला दिलचस्प है, अंजाना जी और अमित जी को २-२ अंक मिलेंगें, अवध जी और रोमेंद्र सागर जी सही जवाब लाये हैं बधाई

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Comments

संगीतकार-लाल मोहम्मद
Anjaana said…
Lyrics : Swami Ramanand
Anjaana said…
Music Director : Lal Mohammed
Anjaana said…
Hmm.. Really competition is interesting now.. Both the answers has same time stamp .. so I would like to discard my 2nd answer,Please consider my answer for Music Director ONLY ( Can't afford to lise 2 marks ) :) ...
विजय दुआ said…
सह गायक के.एल.सहगल

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे...

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु...

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन...