ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 569/2010/269
सी. रामचन्द्र पर केन्द्रित लघु शृंखला 'कितना हसीं है मौसम' में पिछले कुछ दिनों से हम कुछ ऐसे गीत सुन रहे हैं जिनका संगीत सी. रामचन्द्र ने तैयार किए तो हैं ही, ये गानें उन्हीं की आवाज़ में भी है जिन्हें वो चितलकर के नाम से गाया करते थे। हमने उनके कुछ एकल गीत शामिल किए, और युगल गीतों की बात करें तो लता मंगेशकर और आशा भोसले के साथ उनके गाये हुए गानें बजाये हैं। लता और आशा के बाद अगर किसी गायिका का ज़िक्र चितलकर के साथ आना चाहिए तो वो हैं शम्शाद बेगम। शम्शाद जी ने सी. रामचन्द्र के संगीत में कुल २५ फ़िल्मों में ६२ गीत गाये हैं और उनमें से सब से लोकप्रिय रहा है 'पतंगा' फ़िल्म का "मेरे पिया गये रंगून" और 'शहनाई' फ़िल्म का "आना मेरी जान सण्डे के सण्डे"। ये दोनों ही गीत हम 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर बजा चुके हैं। शम्शाद और चितलकर की आपस की केमिस्ट्री ग़ज़ब की थी और शम्शाद बेगम ही सी. रामचन्द्र की प्रिय गायिका थीं लता के आने के पहले तक। जिस तरह से आशा के आने के बाद, ओ. पी. नय्यर ने शम्शाद और गीता दत्त को भुला दिया, ठीक वैसे ही लता के आ जाने से दूसरे संगीतकारों ने भी अन्य गायिकाओं से मुंह मोड़ लिया और सी. रामचन्द्र भी उनमें से एक थे। दोस्तों, आइए आज का यह अंक शम्शाद बेगम और चितलकर के नाम करते हैं।
आज के अंक में आपको सुनवाने के लिए लाये हैं फ़िल्म 'पतंगा' से "ओ दिलवालों दिल का लगाना अच्छा है पर कभी कभी"। रोमांटिक कॊमेडी की एक और मिसाल, जिसके लिए सी. रामचन्द्र जाने जाते थे। 'पतंगा' १९४९ की फ़िल्म थी जो एच. एस. रवैल की पहली निर्देशित फ़िल्म थी। वर्मा फ़िल्म्स के बैनर तले निर्मित इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे श्याम और निगार सुल्ताना। याकूब और गोप ने इस फ़िल्म में लौरेल और हार्डी का भारतीयकरण किया और लोगों को हँसा हँसा कर लोट पोट कर दिए। फ़िल्म के गानें लिखे राजेन्द्र कुष्ण ने। आइए आज राजु भारतन के उसी किताब से एक अंश यहाँ पेश करें जिसमें उन्होंने सी. रामचन्द्र से शम्शाद बेगम के बारे में पूछा है कि क्यों उन्होंने शम्शाद बेगम को नज़रंदाज़ कर लता से रिश्ता जोड़ लिया। इसका मैं अनुवाद नहीं कर रहा हूँ ताकि आप ऒरिजिनल वार्तालाप का आनंद ले सकें।
“But what made you get so transfixed on Lata?” I asked. “After all, unlike in the case of Shanker- Jaikishan, your career hadn’t begun with Lata. Indeed, Lata had been one of your choral singers, you had attained repeated silver jubilee success, before her advent in your repertoire, with vocals of Amirbai, Zohrabai, Lalita Dewoolkar, Binapani Mukherjee, Geeta Roy, Shamshad Begum, to mention just a few. Shamshad Begum, in fact, was your swinging favorite until Lata happened in your life.”
“And Shamshad told me how exactly Lata happened to you,” I continued. “It came about when Lata had already replaced Shamshad Begum, and all other singers, in your mindset. One day you called Shamshad for recording. She failed to get a phrase absolutely right, whereupon you upbraided her right there in front of the musicians, saying: ‘Can’t you understand once you are taught how?’ Shamshad’s answer to that, she told me, was to snap her songbook shut and leave the studio without a word. ‘At other times,’ she said, ‘there would have been a call from Chitalkar to me, profusely apologizing. But no such call came this time, so I knew it was the end.’ Were you fair to Shamshad Begum?” I asked C Ramchandra.
“I was most unfair to her,” conceded Anna (C. Ramchandra). “In fact, I apologized to her, when the gesture had lost all grace, as she came to my home, forgetting all that had happened, to invite me for the Shamshad Nite years later. I was ill, very ill, running a temperature when Shamshad came. I told her I would make a special effort for her by getting well and not only coming, but coming on the stage to sing with her Meri jaan meri jaan Sunday Ke Sunday. Shamshad, remember, sang that vital, more modern second portion of the Sunday Ke Sunday ‘Shehnai’ duet with me and it was the number with which I grew an overnight sensation as a totally new-style music director in the industry. How ungrateful of me to have eased out Shamshad Begum like that! But there was no help for it, once Lata came into my life, she came into my life.”
तो लीजिए, शम्शाद बेगम और चितलकर की आवाज़ों में सुनिए फ़िल्म 'पतंगा' का यह गीत।
क्या आप जानते हैं...
कि रंगमंच पर 'भुलाए ना बने' कार्यक्रम में सी. रामचन्द्र काफ़ी अरसे तक अपनी पुरानी फ़िल्मों के गीत स्वयं पेश किया करते थे। मराठी के पुराने कवियों पर आधारित उनका कार्यक्रम 'रसयात्रा' चर्चित रहा था।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 10/शृंखला 07
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र -एक सुन्दर हास्य गीत है ये ?
सवाल १ - गीतकार बताएं - १ अंक
सवाल २ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक
सवाल ३ - फिल्म का नायक बताएं - २ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
शरद जी, अमित जी और दीपा जी को बधाई.....रोमेंद्र जी यानी कन्फुशन वैसे के वैसा ही रहा
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
सी. रामचन्द्र पर केन्द्रित लघु शृंखला 'कितना हसीं है मौसम' में पिछले कुछ दिनों से हम कुछ ऐसे गीत सुन रहे हैं जिनका संगीत सी. रामचन्द्र ने तैयार किए तो हैं ही, ये गानें उन्हीं की आवाज़ में भी है जिन्हें वो चितलकर के नाम से गाया करते थे। हमने उनके कुछ एकल गीत शामिल किए, और युगल गीतों की बात करें तो लता मंगेशकर और आशा भोसले के साथ उनके गाये हुए गानें बजाये हैं। लता और आशा के बाद अगर किसी गायिका का ज़िक्र चितलकर के साथ आना चाहिए तो वो हैं शम्शाद बेगम। शम्शाद जी ने सी. रामचन्द्र के संगीत में कुल २५ फ़िल्मों में ६२ गीत गाये हैं और उनमें से सब से लोकप्रिय रहा है 'पतंगा' फ़िल्म का "मेरे पिया गये रंगून" और 'शहनाई' फ़िल्म का "आना मेरी जान सण्डे के सण्डे"। ये दोनों ही गीत हम 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर बजा चुके हैं। शम्शाद और चितलकर की आपस की केमिस्ट्री ग़ज़ब की थी और शम्शाद बेगम ही सी. रामचन्द्र की प्रिय गायिका थीं लता के आने के पहले तक। जिस तरह से आशा के आने के बाद, ओ. पी. नय्यर ने शम्शाद और गीता दत्त को भुला दिया, ठीक वैसे ही लता के आ जाने से दूसरे संगीतकारों ने भी अन्य गायिकाओं से मुंह मोड़ लिया और सी. रामचन्द्र भी उनमें से एक थे। दोस्तों, आइए आज का यह अंक शम्शाद बेगम और चितलकर के नाम करते हैं।
आज के अंक में आपको सुनवाने के लिए लाये हैं फ़िल्म 'पतंगा' से "ओ दिलवालों दिल का लगाना अच्छा है पर कभी कभी"। रोमांटिक कॊमेडी की एक और मिसाल, जिसके लिए सी. रामचन्द्र जाने जाते थे। 'पतंगा' १९४९ की फ़िल्म थी जो एच. एस. रवैल की पहली निर्देशित फ़िल्म थी। वर्मा फ़िल्म्स के बैनर तले निर्मित इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे श्याम और निगार सुल्ताना। याकूब और गोप ने इस फ़िल्म में लौरेल और हार्डी का भारतीयकरण किया और लोगों को हँसा हँसा कर लोट पोट कर दिए। फ़िल्म के गानें लिखे राजेन्द्र कुष्ण ने। आइए आज राजु भारतन के उसी किताब से एक अंश यहाँ पेश करें जिसमें उन्होंने सी. रामचन्द्र से शम्शाद बेगम के बारे में पूछा है कि क्यों उन्होंने शम्शाद बेगम को नज़रंदाज़ कर लता से रिश्ता जोड़ लिया। इसका मैं अनुवाद नहीं कर रहा हूँ ताकि आप ऒरिजिनल वार्तालाप का आनंद ले सकें।
“But what made you get so transfixed on Lata?” I asked. “After all, unlike in the case of Shanker- Jaikishan, your career hadn’t begun with Lata. Indeed, Lata had been one of your choral singers, you had attained repeated silver jubilee success, before her advent in your repertoire, with vocals of Amirbai, Zohrabai, Lalita Dewoolkar, Binapani Mukherjee, Geeta Roy, Shamshad Begum, to mention just a few. Shamshad Begum, in fact, was your swinging favorite until Lata happened in your life.”
“And Shamshad told me how exactly Lata happened to you,” I continued. “It came about when Lata had already replaced Shamshad Begum, and all other singers, in your mindset. One day you called Shamshad for recording. She failed to get a phrase absolutely right, whereupon you upbraided her right there in front of the musicians, saying: ‘Can’t you understand once you are taught how?’ Shamshad’s answer to that, she told me, was to snap her songbook shut and leave the studio without a word. ‘At other times,’ she said, ‘there would have been a call from Chitalkar to me, profusely apologizing. But no such call came this time, so I knew it was the end.’ Were you fair to Shamshad Begum?” I asked C Ramchandra.
“I was most unfair to her,” conceded Anna (C. Ramchandra). “In fact, I apologized to her, when the gesture had lost all grace, as she came to my home, forgetting all that had happened, to invite me for the Shamshad Nite years later. I was ill, very ill, running a temperature when Shamshad came. I told her I would make a special effort for her by getting well and not only coming, but coming on the stage to sing with her Meri jaan meri jaan Sunday Ke Sunday. Shamshad, remember, sang that vital, more modern second portion of the Sunday Ke Sunday ‘Shehnai’ duet with me and it was the number with which I grew an overnight sensation as a totally new-style music director in the industry. How ungrateful of me to have eased out Shamshad Begum like that! But there was no help for it, once Lata came into my life, she came into my life.”
तो लीजिए, शम्शाद बेगम और चितलकर की आवाज़ों में सुनिए फ़िल्म 'पतंगा' का यह गीत।
क्या आप जानते हैं...
कि रंगमंच पर 'भुलाए ना बने' कार्यक्रम में सी. रामचन्द्र काफ़ी अरसे तक अपनी पुरानी फ़िल्मों के गीत स्वयं पेश किया करते थे। मराठी के पुराने कवियों पर आधारित उनका कार्यक्रम 'रसयात्रा' चर्चित रहा था।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 10/शृंखला 07
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र -एक सुन्दर हास्य गीत है ये ?
सवाल १ - गीतकार बताएं - १ अंक
सवाल २ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक
सवाल ३ - फिल्म का नायक बताएं - २ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
शरद जी, अमित जी और दीपा जी को बधाई.....रोमेंद्र जी यानी कन्फुशन वैसे के वैसा ही रहा
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
Comments
चलिए कोई बात नही कभी तो हमारा नंबर आएगा.
रही मेरे असली नाम की बात तो मैं हिन्दुस्तानी ही हूँ.क्या फर्क पड़ता है अगर मेरा नाम राम, श्याम, या अब्दुल हो?
जनाब शेकस्पिएअर की बात पर जाइये कि नाम मैं क्या रखा है.
नमस्कार
इस गाने पर बहुत ही जोर से गाया जाता था
चित्र पतंगा में अभिनेता श्याम जो देल्ही के ही थे
इंग्लैंड में पोलो खेलते समय -----
गीत सुनते ही बीता समय की दूनियाँ में चले जाते हैं क्या गीत थे