संगीत समीक्षा - ये साली जिंदगी : मशहूर सितार वादक निशात खान साहब के सुरों से मिली स्वानंद की दार्शनिकता तो उठे कई सवाल जिंदगी के नाम
Taaza Sur Taal (TST) - 03/2011 - YE SAALI ZINDAGI
जिंदगी को कभी किसी ने नाम दिया पहेली का तो कभी इसे एक खूबसूरत सपना कहा गया. समय बदला और नयी सदी के सामने जब जिंदगी के पेचो-ख़म खुले तो इस पीढ़ी ने जिंदगी को ही कठघरे में खड़ा कर दिया और सवाल किया “तुझसे करूँ वफ़ा या खुद से करूँ....”. मगर शायद चुप ही रही होगी ये "साली" जिंदगी या फिर संभव है कि नयी सदी की जिंदगी भी अब तेवर बदल नए जवाब ढूंढ चुकी हो...पर ये तो तय है कि इस नए संबोधन से जिंदगी कुछ सकपका तो जरूर गयी होगी....बहरहाल हम बात कर रहे हैं निशात खान और स्वानंद किरकिरे के संगम से बने नए अल्बम “ये साली जिंदगी” के बारे में. अल्बम का ये पहला गीत सुनिधि और कुणाल की युगल आवाजों में है. ये फ़िल्मी गीत कम और एक सोफ्ट रौक् नंबर ज्यादा लगता है जहाँ गायकों ने फ़िल्मी परिधियों से हटकर खुल कर अपनी आवाजों का इस्तेमाल किया है. सुनिधि की एकल आवाज़ में भी है एक संस्करण जो अधिक सशक्त है. स्वानंद के बोंल शानदार हैं.
“सारा रारा...” सुनने में एक मस्ती भरा गीत लगता है, पर इसमें भी वही सब है -जिंदगी से शिकवे गिले और कुछ छेड छाड भी, स्वानंद के शब्दों से गीत में जान है, “तू कोई हूर तो नहीं थोड़ी नरमी तो ला...”. निशात खान साहब एक जाने माने सितार वादक है, और बॉलीवुड में ये उनकी पहली कोशिश है. गीत के दो संस्करण है, एक जावेद अली की आवाज़ में तो एक है सुखविंदर की आवाज़ में. जहाँ तक सुखविंदर का सवाल है ये उनका कम्फर्ट ज़ोन है, पर अब जब भी वो इस तरह का कोई गीत गाते हैं, नयेपन की कमी साफ़ झलकती है.
जावेद अली और शिल्प राव की आवाजों में तीसरा गीत “दिल दर बदर” एक एक्सपेरिमेंटल गीत है सूफी रौक् अंदाज़ का. पहले फिल्म का नाम भी यही था – दिल दर ब दर. मुझे व्यक्तिगत रूप से ये गीत पसंद आया खास कर जावेद जब ‘दर ब दर..” कहता है....एक बार फिर गाने का थीम है जिंदगी....वही सवालों में डूबे जवाब, और जवाबों से फिसले कुछ नए सवाल.
चौथा गीत है “इश्क तेरे जलवे” जो कि मेरी नज़र में अल्बम का सबसे बढ़िया गीत है. निशात साहब ने हार्ड रोक अंदाज़ जबरदस्त है, कुछ कुछ प्रीतम के “भीगी भीगी (गैंगस्टर)” से मिलता जुलता सा है, पर फिर भी स्वानंद के शब्द और शिल्पा राव की आवाज़ इस गीत को एक नया मुकाम दे देते है. शिल्पा जिस तेज़ी से कमियाबी की सीढियां चढ़ रहीं हैं, यक़ीनन कबीले तारीफ़ है. निशात साहब ने इस गीत में संगीत संयोजन भी जबरदस्त किया है.
पांचवा और अंतिम ऑरिजिनल गीत "कैसे कहें अलविदा" एक खूबसूरत ग़ज़ल नुमा गीत जिसे गाया है अभिषेक राय ने...उन्दा गायिकी, अच्छे शब्द और सुन्दर सजींदगी की बदौलत ये गीत मन को मोह जाता है. हाँ पर दर्द उतनी शिद्दत से उभर नहीं पाता कभी, पर फिर भी निशात साहब का असली फन इसी गीत में जम कर उभर पाया है.
कुल मिलाकर इस अल्बम की सबसे अच्छी बात ये है कि इसमें रोमांटिक गीतों की अधिकता से बचा गया है और कुछ सोच समझ वाली आधुनिक दार्शनिकता को तरजीह दी गयी है, जहाँ जिंदगी खुद प्रमुख किरदार के रूप में मौजूद है जिसके आस पास गीतों को बुना गया है. कह सकते हैं कि निशात खान और स्वानंद की इस नयी टीम ने अच्छी कोशिश जरूर की है पर दुभाग्य ये है कि यहाँ कोई भी गीत “बावरा मन” जैसी संवेदना वाला नहीं बन पाया है जो लंबे समय तक श्रोताओं के दिलों में बसा रह सके.
आवाज़ रेटिंग - 5/10
सुनने लायक गीत - इश्क तेरे जलवे, कैसे कहें अलविदा, ये साली जिंदगी (सुनिधि सोलो)
जिंदगी को कभी किसी ने नाम दिया पहेली का तो कभी इसे एक खूबसूरत सपना कहा गया. समय बदला और नयी सदी के सामने जब जिंदगी के पेचो-ख़म खुले तो इस पीढ़ी ने जिंदगी को ही कठघरे में खड़ा कर दिया और सवाल किया “तुझसे करूँ वफ़ा या खुद से करूँ....”. मगर शायद चुप ही रही होगी ये "साली" जिंदगी या फिर संभव है कि नयी सदी की जिंदगी भी अब तेवर बदल नए जवाब ढूंढ चुकी हो...पर ये तो तय है कि इस नए संबोधन से जिंदगी कुछ सकपका तो जरूर गयी होगी....बहरहाल हम बात कर रहे हैं निशात खान और स्वानंद किरकिरे के संगम से बने नए अल्बम “ये साली जिंदगी” के बारे में. अल्बम का ये पहला गीत सुनिधि और कुणाल की युगल आवाजों में है. ये फ़िल्मी गीत कम और एक सोफ्ट रौक् नंबर ज्यादा लगता है जहाँ गायकों ने फ़िल्मी परिधियों से हटकर खुल कर अपनी आवाजों का इस्तेमाल किया है. सुनिधि की एकल आवाज़ में भी है एक संस्करण जो अधिक सशक्त है. स्वानंद के बोंल शानदार हैं.
“सारा रारा...” सुनने में एक मस्ती भरा गीत लगता है, पर इसमें भी वही सब है -जिंदगी से शिकवे गिले और कुछ छेड छाड भी, स्वानंद के शब्दों से गीत में जान है, “तू कोई हूर तो नहीं थोड़ी नरमी तो ला...”. निशात खान साहब एक जाने माने सितार वादक है, और बॉलीवुड में ये उनकी पहली कोशिश है. गीत के दो संस्करण है, एक जावेद अली की आवाज़ में तो एक है सुखविंदर की आवाज़ में. जहाँ तक सुखविंदर का सवाल है ये उनका कम्फर्ट ज़ोन है, पर अब जब भी वो इस तरह का कोई गीत गाते हैं, नयेपन की कमी साफ़ झलकती है.
जावेद अली और शिल्प राव की आवाजों में तीसरा गीत “दिल दर बदर” एक एक्सपेरिमेंटल गीत है सूफी रौक् अंदाज़ का. पहले फिल्म का नाम भी यही था – दिल दर ब दर. मुझे व्यक्तिगत रूप से ये गीत पसंद आया खास कर जावेद जब ‘दर ब दर..” कहता है....एक बार फिर गाने का थीम है जिंदगी....वही सवालों में डूबे जवाब, और जवाबों से फिसले कुछ नए सवाल.
चौथा गीत है “इश्क तेरे जलवे” जो कि मेरी नज़र में अल्बम का सबसे बढ़िया गीत है. निशात साहब ने हार्ड रोक अंदाज़ जबरदस्त है, कुछ कुछ प्रीतम के “भीगी भीगी (गैंगस्टर)” से मिलता जुलता सा है, पर फिर भी स्वानंद के शब्द और शिल्पा राव की आवाज़ इस गीत को एक नया मुकाम दे देते है. शिल्पा जिस तेज़ी से कमियाबी की सीढियां चढ़ रहीं हैं, यक़ीनन कबीले तारीफ़ है. निशात साहब ने इस गीत में संगीत संयोजन भी जबरदस्त किया है.
पांचवा और अंतिम ऑरिजिनल गीत "कैसे कहें अलविदा" एक खूबसूरत ग़ज़ल नुमा गीत जिसे गाया है अभिषेक राय ने...उन्दा गायिकी, अच्छे शब्द और सुन्दर सजींदगी की बदौलत ये गीत मन को मोह जाता है. हाँ पर दर्द उतनी शिद्दत से उभर नहीं पाता कभी, पर फिर भी निशात साहब का असली फन इसी गीत में जम कर उभर पाया है.
कुल मिलाकर इस अल्बम की सबसे अच्छी बात ये है कि इसमें रोमांटिक गीतों की अधिकता से बचा गया है और कुछ सोच समझ वाली आधुनिक दार्शनिकता को तरजीह दी गयी है, जहाँ जिंदगी खुद प्रमुख किरदार के रूप में मौजूद है जिसके आस पास गीतों को बुना गया है. कह सकते हैं कि निशात खान और स्वानंद की इस नयी टीम ने अच्छी कोशिश जरूर की है पर दुभाग्य ये है कि यहाँ कोई भी गीत “बावरा मन” जैसी संवेदना वाला नहीं बन पाया है जो लंबे समय तक श्रोताओं के दिलों में बसा रह सके.
आवाज़ रेटिंग - 5/10
सुनने लायक गीत - इश्क तेरे जलवे, कैसे कहें अलविदा, ये साली जिंदगी (सुनिधि सोलो)
अक्सर हम लोगों को कहते हुए सुनते हैं कि आजकल के गीतों में वो बात नहीं। "ताजा सुर ताल" शृंखला का उद्देश्य इसी भ्रम को तोड़ना है। आज भी बहुत बढ़िया और सार्थक संगीत बन रहा है, और ढेरों युवा संगीत योद्धा तमाम दबाबों में रहकर भी अच्छा संगीत रच रहे हैं, बस ज़रूरत है उन्हें ज़रा खंगालने की। हमारा दावा है कि हमारी इस शृंखला में प्रस्तुत गीतों को सुनकर पुराने संगीत के दीवाने श्रोता भी हमसे सहमत अवश्य होंगें, क्योंकि पुराना अगर "गोल्ड" है तो नए भी किसी कोहिनूर से कम नहीं।
Comments
इनके गुणों का पता तो अब रेडियो पर या सिनेमा के परदे पर देख सुन कर ही लगेगा.
अवध लाल