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राग भैरवी में एक और प्रार्थना गीत

  
स्वरगोष्ठी – 135 में आज

रागों में भक्तिरस – 3

‘तुम ही हो माता पिता तुम ही हो...’


‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी लघु श्रृंखला ‘रागों में भक्तिरस’ की तीसरी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, एक बार पुनः आप सब संगीत-प्रेमियों का स्वागत करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम आपके लिए संगीत के कुछ भक्तिरस प्रधान रागों और उनमें निबद्ध रचनाएँ प्रस्तुत कर रहे हैं। श्रृंखला के पहले अंक में हमने आपसे राग भैरवी में भक्तिरस पर चर्चा की थी। आज पुनः हम आपसे राग भैरवी के भक्ति-पक्ष पर चर्चा करेंगे। दरअसल भारतीय संगीत का राग भैरवी भक्तिरस की निष्पत्ति के लिए सर्वाधिक उपयुक्त राग है। आज हम आपको सातवें दशक की चर्चित फिल्म ‘मैं चुप रहूँगी’ से राग भैरवी के स्वरों पर आधारित एक लोकप्रिय प्रार्थना गीत सुनवाएँगे। इसके साथ ही हम आपको विश्वविख्यात संगीत-विदुषी एन. राजम् की वायलिन पर राग भैरवी में अवतरित पूरब अंग का आकर्षक दादरा भी सुनवाएँगे। 

श्रृंखला के पिछले अंक में हम यह चर्चा कर चुके हैं कि वैदिक काल ईसा से लगभग 2000 से 1000 पूर्व का माना जाता है। इस काल में संगीत का सर्वाधिक विकास हुआ था। इस काल में प्रचलित संगीत का ज्ञान विभिन्न संहिताओं, ब्राह्मण ग्रन्थों, प्रतिसाख्यों, व्याकरण और पुराणों के द्वारा प्राप्त होता है। संगीत को शास्त्रबद्ध करने का कार्य इसी युग में हुआ। इस युग में शास्त्रगत और लोक, दोनों प्रकार का संगीत प्रचलन में था। विभिन्न ग्रन्थों में स्पष्ट उल्लेख मिलता है कि इस युग में गायन, वादन और नर्तन, तीनों विधाओं के साधक थे। उमेश जोशी की पुस्तक ‘भारतीय संगीत का इतिहास’ में उस युग के विकसित संगीत की विस्तृत चर्चा की गई है। श्री जोशी ने लिखा है कि तब संगीतज्ञों को समाज में सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था। पुरुषों के साथ-साथ स्त्रियाँ भी संगीत के क्षेत्र में विदुषी होती थीं। इस काल में संगीत का उपयोग ईश्वर की आराधना के लिए ही किया जाता था। जॉर्ज बुलर्स ने ‘दी ऑरिजिन ऑफ यूनिवर्सल डिवोशन’ नामक पुस्तक में लिखा है- ‘संगीत के द्वारा ईश्वर की आराधना का स्वरूप वैदिक युग से ही भारत द्वारा सम्पूर्ण विश्व में फैला...’। यूनान के विद्वान ओवगीसा ने ‘दी ओल्डेस्ट म्यूजिक ऑफ दी वर्ल्ड’ नामक अपनी पुस्तक में स्पष्ट रूप से स्वीकार किया है कि इस काल के संगीत का शास्त्रीय रूप इतना पवित्र और शुद्ध था कि उसकी तुलना में विश्व के किसी भी देश के संगीत में वैसा उत्तम रूप नहीं मिलता। भक्ति संगीत की यह धारा परम्परागत रूप से वर्तमान संगीत में उपस्थित है। फिल्मों में राग भैरवी पर आधारित गीतों की सर्वाधिक संख्या है। इनमें कुछ प्रार्थना गीत तो आज आधी शताब्दी के बाद भी लोकप्रिय हैं। अब हम आपको 1962 में प्रदर्शित फिल्म ‘मैं चुप रहूँगी’ से एक प्रार्थना गीत ‘तुम ही हो माता, पिता तुम ही हो...’ सुनवाते हैं। संगीतकार चित्रगुप्त ने इस गीत को राग भैरवी के सुरों का आधार दिया था। दरअसल यह गीत मूल संस्कृत की एक पारम्परिक प्रार्थना का रूपान्तरण है, जिसे लता मंगेशकर ने अपने मधुर स्वरों से अभिसिंचित कर भक्तिभाव से भर दिया। गीत की सरलता और सहजता के कारण यह आज देश के अनेकानेक शिक्षण संस्थाओं में प्रातःकालीन प्रार्थना के रूप में प्रयोग किया जाता है। कहरवा ताल में निबद्ध और राग भैरवी पर आधारित यह प्रार्थना गीत अब आप भी सुनिए।


राग भैरवी : ‘तुम ही हो माता, पिता तुम ही हो...’ : लता मंगेशकर : फिल्म – मैं चुप रहूँगी



स्वरों के माध्यम से भक्तिरस का सृजन करने में राग भैरवी सर्वाधिक उपयुक्त राग है। कुछ संगीतज्ञ इसे सदा सुहागिन राग तो कुछ इसे सदाबहार राग के विशेषण से अलंकृत करते हैं। सम्पूर्ण जाति का यह राग भैरवी थाट का ही आश्रय राग माना जाता है। राग भैरवी में ऋषभ, गान्धार, धैवत और निषाद सभी कोमल स्वरों का प्रयोग किया जाता है। इस राग का वादी स्वर षडज और संवादी स्वर पंचम होता है। भैरवी के विभिन्न स्वरों के प्रभाव की चर्चा करते हुए सुप्रसिद्ध संगीतज्ञ पण्डित श्रीकुमार मिश्र ने एक चर्चा के दौरान बताया कि कोमल ऋषभ स्वर करुणा, दया और संवेदनशीलता का भाव सृजन करने में समर्थ है। कोमल गान्धार स्वर आशा का भाव, कोमल धैवत जागृति भाव और कोमल निषाद स्फूर्ति का सृजन करने में सक्षम होता है। भैरवी का शुद्ध मध्यम इन सभी भावों को गाम्भीर्य प्रदान करता है। धैवत की जागृति को पंचम स्वर सबल बनाता है। इस राग के गायन-वादन का सर्वाधिक उपयुक्त समय प्रातःकाल होता है। इस प्रकार एक भक्तिगीत में जितने भी गुण होने चाहिए, भैरवी के स्वर, उन सभी गुणों की अभिव्यक्ति करते हैं। भैरवी के स्वरों की सार्थक अनुभूति कराने के लिए अब हम प्रस्तुत कर रहे हैं, वायलिन पर इस राग का भावपूर्ण वादन। विश्वविख्यात वायलिन-साधिका विदुषी एन. राजम् प्रस्तुत कर रही हैं, गायकी अंग में एक भावपूर्ण दादरा। आप इस दादरा के माध्यम से भक्तिरस का अनुभव कीजिए और मुझे आज के इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए।


राग भैरवी : वायलिन पर गायकी अंग में दादरा : विदुषी डॉ. एन. राजम्




आज की पहेली


‘स्वरगोष्ठी’ की 135वीं संगीत पहेली में हम आपको एक भक्ति रचना का अंश सुनवा रहे हैं। इसे सुन कर आपको निम्नलिखित दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के 140वें अंक तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस श्रृंखला का विजेता घोषित किया जाएगा।


1 – गीत के इस अंश को सुन कर पहचानिए कि यह किस राग में निबद्ध है?

2 – यह रचना किस गायक कलासाधक की आवाज़ में प्रस्तुत की गई है? नाम बताइए।

आप अपने उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर ही शनिवार मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। comments में दिये गए उत्तर मान्य नहीं होंगे। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 137वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।


पिछली पहेली के विजेता 


‘स्वरगोष्ठी’ के 133वीं संगीत पहेली में हमने आपको विदुषी परवीन सुल्ताना के स्वरों में एक सादरा का अंश सुनवा कर आपसे दो प्रश्न पूछे थे। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग भैरवी और दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- ताल झपताल। इस अंक के दोनों प्रश्नो के उत्तर जौनपुर के डॉ. पी.के. त्रिपाठी और लखनऊ के प्रकाश गोविन्द ने दिया है। दोनों प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।


झरोखा अगले अंक का


मित्रों, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी है, लघु श्रृंखला ‘रागों में भक्तिरस’, जिसके अन्तर्गत हमने आज की कड़ी में आपको राग भैरवी की दो रचनाओं का रसास्वादन कराया। अगले अंक में हम आपको एक ऐसे राग में गूँथी रचनाएँ सुनवाएँगे जिनमें भक्ति और श्रृंगार, दोनों रसों की रचनाएँ भली लगतीं हैं। इस श्रृंखला की आगामी कड़ियों के लिए आप अपनी पसन्द के भक्तिरस प्रधान रागों या रचनाओं की फरमाइश कर सकते हैं। हम आपके सुझावों और फरमाइशों का स्वागत करते हैं। अगले अंक में रविवार को प्रातः 9 बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के इस मंच पर आप सभी संगीत-रसिकों की हमें प्रतीक्षा रहेगी। 


प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र

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