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दिन के तीसरे प्रहर के कुछ मोहक राग



 

स्वरगोष्ठी-105 में आज
राग और प्रहर – 3

कृष्ण की बाँसुरी और राग वृन्दावनी सारंग 



‘स्वरगोष्ठी’ के 105वें अंक में, मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इन दिनों आपके इस प्रिय स्तम्भ में लघु श्रृंखला ‘राग और प्रहर’ जारी है। गत सप्ताह हमने आपसे दिन के दूसरे प्रहर के कुछ रागों के बारे में चर्चा की थी। आज दिन के तीसरे प्रहर गाये-बजाये जाने वाले रागों पर चर्चा की बारी है। दिन का तीसरा प्रहर, अर्थात मध्याह्न से लेकर अपराह्न लगभग तीन बजे तक की अवधि के बीच का माना जाता है। इस अवधि में सूर्य की सर्वाधिक ऊर्जा हमे मिलती है और इसी अवधि में मानव का तन-मन अतिरिक्त ऊर्जा संचय भी करता है। आज के अंक में हम आपके लिए तीसरे प्रहर के रागों में से वृन्दावनी सारंग, शुद्ध सारंग, मधुवन्ती और भीमपलासी रागों की कुछ रचनाएँ प्रस्तुत करेंगे।


सारंग अंग के रागों में वृन्दावनी सारंग और शुद्ध सारंग राग तीसरे प्रहर के प्रमुख राग माने जाते हैं। यह मान्यता है कि श्रीकृष्ण अपनी प्रिय बाँसुरी पर वृन्दावनी सारंग और मेघ राग की अवतारणा किया करते थे। सारंग का अर्थ होता है मयूर और कृष्ण द्वारा दिन के तीसरे प्रहर वृन्दावन के कुंजों में अपने सखाओं के संग इस राग की अवतारणा की परिकल्पना के कारण ही वृन्दावनी सारंग नाम प्रचलन में आया होगा। वर्तमान में राग वृन्दावनी सारंग काफी थाट के अन्तर्गत माना जाता है। औड़व-औड़व जाति के इस राग के आरोह में शुद्ध निषाद और अवरोह में कोमल निषाद, अर्थात दोनों निषाद का प्रयोग किया जाता है। इस राग में गान्धार और धैवत स्वरों का प्रयोग नहीं होता। शेष सभी स्वर शुद्ध प्रयोग किया जाता है। इसका वादी स्वर ऋषभ और संवादी स्वर पंचम होता है। सामान्य परिवेश में इस राग का गायन-वादन दिन के तीसरे प्रहर में ही किया जाता है, परन्तु ग्रीष्म ऋतु की चरम अवस्था और वर्षा ऋतु का आहट देने वाले कजरारे मेघों के एकत्रीकरण के परिवेश का सार्थक चित्रण करने में भी राग वृन्दावनी सारंग पूर्ण समर्थ होता है। अब हम आपको राग वृन्दावनी सारंग में निबद्ध एक मध्य-द्रुत तीनताल की रचना बाँसुरी पर सुनवाते हैं। वादक हैं आश्विन श्रीनिवासन्।

राग वृन्दावनी सारंग : बाँसुरी - मध्य-द्रुत तीनताल की रचना : आश्विन श्रीनिवासन् 


दिन के तीसरे प्रहर अर्थात मध्याह्न से लेकर अपराह्न तक की अवधि का एक और राग है, शुद्ध सारंग। आरोह में पाँच और अवरोह में छह स्वरों, अर्थात औड़व-षाडव जाति के इस राग के आरोह में गान्धार और धैवत स्वर तथा अवरोह में गान्धार स्वर का प्रयोग वर्जित है। साथ ही आरोह में तीव्र मध्यम स्वर तथा अवरोह में शुद्ध मध्यम स्वर का प्रयोग किया जाता है। इस राग को कुछ संगीतकार कल्याण थाट से तो कुछ बिलावल थाट के अन्तर्गत मानते हैं। आपको राग शुद्ध सारंग का एक मनमोहक उदाहरण सुनवाने के लिए एक बार फिर हमने बाँसुरी वाद्य का ही चयन किया है। विश्वविख्यात बाँसुरी-वादक पण्डित हरिप्रसाद चौरसिया के प्रिय रागों में राग शुद्ध सारंग भी एक राग है। उन्हीं का बजाया राग शुद्ध सारंग का आकर्षक आलाप अब हम आपको सुनवाते हैं।

राग शुद्ध सारंग : बाँसुरी – आलाप : पण्डित हरिप्रसाद चौरसिया


दिन के तीसरे प्रहर में ही गाया-बजाया जाने वाला एक और मधुर राग है, मधुवन्ती। इस राग के बारे में यह तथ्य प्रचलित है कि मैहर घराने के सुप्रसिद्ध सरोद-वादक उस्ताद अली अकबर खाँ ने कर्नाटक पद्यति के 29वें मेलकर्ता राग धर्मावती के आरोह से ऋषभ और धैवत को हटा कर इस राग को स्वरूप दिया। स्वयं उस्ताद अली अकबर खाँ, पण्डित रविशंकर और इनके शिष्यों ने इस राग को प्रचारित-प्रसारित किया। औड़व-सम्पूर्ण जाति के इस राग के आरोह में ऋषभ और धैवत स्वरों का प्रयोग नहीं होता। आरोह में कोमल गान्धार और तीव्र मध्यम तथा अवरोह में इन स्वरों के साथ शुद्ध धैवत और ऋषभ स्वरों का प्रयोग किया जाता है। इस राग का वादी स्वर पंचम और संवादी स्वर षडज होता है। अब हम आपको राग मधुवन्ती की एक मध्य लय की रचना सरोद पर ही सुनवाते है। वादक हैं, उस्ताद अली अकबर खाँ।

राग मधुवन्ती : सरोद – मध्यलय की गत : उस्ताद अली अकबर खाँ


तीसरे प्रहर में अधिकाधिक प्रयोग किया जाने वाला एक राग भीमपलासी है। काफी थाट के अन्तर्गत माना जाने वाला भीमपलासी, औड़व-सम्पूर्ण जाति का राग होता है। इसमें गान्धार व निषाद कोमल तथा अन्य स्वर शुद्ध प्रयोग किये जाते हैं। इसके आरोह में ऋषभ और धैवत स्वर वर्जित होता है, किन्तु अवरोह में सभी सातों स्वरों का प्रयोग किया जाता है। इस राग का वादी स्वर पंचम और संवादी स्वर तार सप्तक का षडज होता है। कुछ विद्वान वादी स्वर के रूप में मध्यम का प्रयोग भी करते हैं। आज के इस अंक में अब हम आपको राग भीमपलासी पर आधारित एक फिल्मी गीत सुनवाते हैं। 1966 में सुनील दत्त और साधना अभिनीत एक फिल्म ‘मेरा साया’ का प्रदर्शन हुआ था। इस फिल्म के संगीत निर्देशक मदनमोहन ने राग भीमपलासी के सुरों में गीत- ‘नैनों में बदरा छाए...’ संगीतबद्ध किया था। गीतकार राजा मेंहदी अली खाँ के शब्दों को लता मंगेशकर के स्वरों का साथ मिला था। राग भीमपलासी पर आधारित इस फिल्मी गीत का आप रसास्वादन कीजिए और मुझे आज के इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए।

राग भीमपलासी : फिल्म – मेरा साया : ‘नैनों में बदरा छाए...’ : लता मंगेशकर


आज की पहेली

‘स्वरगोष्ठी’ की 105वीं संगीत पहेली में हम आपको एक राग आधारित फिल्मी गीत का अंश सुनवा रहे है। इसे सुन कर आपको दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के 110वें अंक तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस श्रृंखला का विजेता घोषित किया जाएगा।


1 - संगीत के इस अंश को सुन कर पहचानिए कि यह गीत किस राग पर आधारित है?

2 – यह गीत किस ताल में निबद्ध है?

आप अपने उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com पर ही शनिवार मध्यरात्रि तक भेजें। comments में दिये गए उत्तर मान्य नहीं होंगे। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 107वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।

पिछली पहेली के विजेता

‘स्वरगोष्ठी’ के 103वें अंक में हमने आपको 1991 में बनी फिल्म ‘लेकिन’ से राग गूजरी अथवा गूर्जरी तोड़ी पर आधारित एक गीत का अंश सुनवा कर आपसे दो प्रश्न पूछे थे। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग गूजरी या गूर्जरी तोड़ी और दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- गायक हृदयनाथ और गायिका लता मंगेशकर। दोनों प्रश्नो के सही उत्तर एकमात्र जबलपुर की क्षिति तिवारी ने ही दिया है। इन्हें पूरे दो अंक मिलते हैं। लखनऊ के प्रकाश गोविन्द ने दूसरे प्रश्न के आधे भाग का सही उत्तर दिया है, अतः इन्हें मिलते हैं .5 अंक। बैंगलुरु के पंकज मुकेश ने पहले प्रश्न का अधूरा उत्तर दिया है, अतः इन्हें मिलते हैं 1.5 अंक। जौनपुर के डॉ. पी.के. त्रिपाठी ने राग को तो सही पहचाना किन्तु गायक-गायिका को नहीं पहचान सके, अतः इन्हें एक अंक से ही सन्तोष करना होगा। चारो प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक शुभकामनाएँ।

झरोखा अगले अंक का 

मित्रों, ‘स्वरगोष्ठी’ पर इन दिनों ‘राग और प्रहर’ शीर्षक से लघु श्रृंखला जारी है। श्रृंखला के आगामी अंक में हम आपके लिए दिन के चौथे प्रहर में गाये-बजाए जाने वाले कुछ आकर्षक रागों की प्रस्तुतियाँ लेकर उपस्थित होंगे। आप हमारे आगामी अंकों के लिए आठवें प्रहर तक के प्रचलित रागों और इन रागों में निबद्ध अपनी प्रिय रचनाओं की फरमाइश भी कर सकते हैं। हम आपके सुझावों और फरमाइशों को पूरा सम्मान देंगे। अगले अंक में रविवार को प्रातः 9-30 ‘स्वरगोष्ठी’ के इस मंच पर आप सब संगीत-रसिकों की हम प्रतीक्षा करेंगे।


प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र  

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