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Showing posts with the label taaza sur taal

लाईफ बहुत सिंपल है....वाकई अमोल गुप्ते और हितेश सोनी के रचे इन गीतों सुनकर आपको भी यकीन हो जायेगा

Taaza Sur Taal (TST) - 16/2011 - STANLEY KA DABBA दोस्तों मुझे यकीन है कि "तारे ज़मीन पर" आपकी पसंदीदा फिल्मों में से एक होगी. अगर हाँ तो आप ये भी जानते होंगें कि इस फिल्म के निर्देशक पहले अमोल गुप्ते नियुक्त हुए थे, बाद में कुछ कारणों के चलते अमोल, अमीर से अलग हो गए और अमीर ने खुद फिल्म का निर्देशन किया. पर ये भी सच है कि उस फिल्म में अमोल का योगदान एक लेखक से बहुत कुछ अधिक था, जाहिर है जब उस अमोल की खुद निर्देशित फिल्म आये और उसमें भी बच्चों की ही प्रमुख भूमिकाएं हो तो उम्मीदें बेहद बढ़ जाती है. "तारे ज़मीन पर" में संगीत था शंकर एहसान लॉय की तिकड़ी का और कुछ गीत तो फिल्म के ऐसे थे कि आने वाले कई दशकों तक श्रोताओं को याद रहेंगें. मगर अमोल ने अपनी फिल्म "स्टेनली का डब्बा" के लिए चुना संगीतकार हितेश सोनिक को, और गीतकार की भूमिका खुद उठाने की सोची. हितेश अब तक पार्श्व संगीत के लिए जाने जाते थे और अनुराग कश्यप विशाल भारद्वाज जैसे बड़े संगीतकारों के साथ काम कर चुके है. बतौर स्वतंत्र संगीतकार ये उनकी पहली फिल्म है. बहरहाल हम आते हैं इस अल्बम के गीतों पर. दरअसल

लव यू मिस्टर कलाकार है सुरीले प्रेम गीतों से सजी अल्बम

Taaza Sur Taal (TST) - 14/2011 - Love U Mr Kalakaar राजश्री प्रोडक्शन ने हमेशा ही साफ़ सुथरी संगीतमयी फिल्मों की परंपरा को निभाया है. पर मुझे लगता है कि वो अपनी फिल्मों के संगीत को सही रूप से प्रोमोट नहीं करते यही वजह है कि उनकी फिल्मों का संगीत अच्छा होने के बावजूद बहुत अधिक लोगों तक नहीं पहुँच पाता, हमेशा माउथ टू माउथ पब्लिसिटी काम नहीं करती है ये बात अब उन्हें समझनी चाहिए. तुषार कपूर और अमृता राव अभिनीत उनकी नयी फिल्म "लव यू मिस्टर कलाकार" एक और प्रेम कहानी है, जाहिर है संगीत में माधुर्य जरूरी है, संगीतकार के रूप में चुने गए हैं बेहद प्रतिभाशाली सन्देश शान्दलिया और गीत लिखे हैं नवोदित गीतकार मनोज मुन्तशिर ने. चलिए जरा सी चर्चा करें इस अल्बम में सजे गीतों की आज. अंग्रेजी शब्दों क इस्तेमाल अब राजश्री वालों को भी रास आ रहा है. "सरफिरा सा है दिल" में श्रेया की अधुर आवाज़ है, खूबसूरत बोल हैं और मधुर धुन है सन्देश की, पर मैं समझ नहीं पाता हूँ, नीरज श्रीधर से ये गीत क्यों गवाया गया. आज जब इंडस्ट्री में इतने नए पुराने गायक मौजूद हैं संगीतकार नीरज से ऐसे गीत गवाते हैं जो

दबंग सलमान खान "रेड्डी" हैं प्रीतम के साथ एक और संगीत धमाके के लिए

Taaza Sur Taal (TST) - 13/2011 - REDDY दोस्तों एक बार फिर से मैं हाज़िर हूँ एक और नयी फिल्म के संगीत पर अपनी राय लेकर. आज हम बात करेंगें "दबंग" सलमान खान की आने वाली फिल्म – रेड्डी की. टी सिर्रिस के भूषण कुमार ने इस फिल्म के लिए विश्वास जताया है अपने दोस्त प्रीतम पर. और जाहिर प्रीतम ने उन्हें निराश नहीं किया है एक बार फिर, बल्कि अपने पेट्ट गायकों को लेकर शायद इस साल की सबसे बड़ी हिट अल्बम देने में भी कामियाब हुए हैं. चलिए बात करते हैं इस अल्बम के गीतों की. कैरक्टर ढीला अल्बम का पहला गीत है, नीरज श्रीधर और अमृता काक की आवाजों में. अभी हाल ही में अनु मालिक ने इस फूट टेप्पिंग गीत के अंतरे की धुन अपने एक पुराने गीत से मिलता जुलता बताया था. खैर वो ९० का दशक था अनु मालिक का और अब जब प्रीतम की तूती बोल रही हो तो अनु की आवाज़ कौन सुने. खैर गीत का फिल्माकन देख कर लगता है कि सलमान इस गीत के माध्यम से राज कपूर, दिलीप कुमार और धमेन्द्र को टारगेट कर रहे हैं. पर यही तीन कलाकार ही क्यों कोई समझे तो कृपया बताएं. अमिताभ भट्टाचार्य के शब्द कुछ बहत प्रभावी नहीं लगे मुझे पर संगीत बीट्स और संयोजन

आ बदल डाले रस्में सभी इसी बात पे.....कुछ तो बात है अमित त्रिवेदी के "आई एम्" में

Taaza Sur Taal (TST) - 12/2011 - I AM आज सोमवार की इस सुबह मुझे यानी सजीव सारथी को यहाँ देख कर हैरान न होईये, दरअसल कई कारणों से पिछले कुछ दिनों से हम ताज़ा सुर ताल नहीं पेश कर पाए और इस बीच बहुत सा संगीत ऐसा आ गया जिस पर चर्चा जरूरी थी, तो कुछ बैक लोग निकालने के इरादे से मैं आज यहाँ हूँ, आज हम बात करेंगें ओनिर की नयी फिल्म "आई ऍम" के संगीत की. दरअसल फिल्म संगीत में एक जबरदस्त बदलाव आया है. अब फिल्मों में अधिक वास्तविकता आ गयी है, तो संगीत का इस्तेमाल आम तौर पर पार्श्व संगीत के रूप में हो रहा है. यानी लिपसिंग अब लगभग खतम सी हो गयी है. और एक ट्रेंड चल पड़ा है रोक् शैली का. व्यक्तिगत तौर पर मुझे रोक् जेनर बेहद पसंद है पर अति सबकी बुरी है. खैर आई ऍम का संगीत भी यही उपरोक्त दोनों गुण मौजूद हैं. पहला गाना "बांगुर", बेहद सुन्दर विचार, समाज के बदलते आयामों का चित्रण है, एक तुलनात्मक अध्ययन है बोलों में इस गीत के और इस कारुण अवस्था से बाहर आने की दुआ भी है. आवाजें है मामे खान और कविता सेठ की. अमित त्रिवेदी के चिर परिचित अंदाज़ का है गीत जिसे सुनते हुए भीड़ भाड भरे शहर उलझनो

यश राज की "लव का द एंड" है ठंडी संगीत के मामले में

Taaza Sur Taal (TST) - 11/2011 - LOVE KA THE END नमस्कार! 'ताज़ा सुर ताल' मे आप सभी का स्वागत है। युवा पीढ़ी को नज़र में रख कर फ़िल्म बनाने वाले फ़िल्म निर्माण कंपनियों में एक महत्वपूर्ण नाम है 'यश राज फ़िल्म्स'। इसी 'यश राज फ़िल्म्स' की एक सबसिडियरी बैनर का गठन हुआ है 'Y-Films' के नाम से, जिसका शायद मूल उद्देश्य है युवा पीढ़ी को पसंद आने वाली फ़िल्में बनाया, यानी कि Y for Youth। इस बैनर तले पहली फ़िल्म का निर्माण हुआ है जो आज देश भर में प्रदर्शित हो रही है। जी हाँ, 'लव का दि एण्ड'। फ़िल्म प्रेरीत है २००५ की अमरीकी फ़िल्म 'जॉन टकर मस्ट डाइ' से। १९ अप्रैल को फ़िल्म का संगीत रिलीज़ हुआ था। फ़िल्म में पर्दे पर नज़र आयेंगे नवोदित जोड़ी ताहा शाह और श्रद्धा कपूर। किसी अमरीकी फ़िल्म को लेकर उसका भारतीयकरण करने में यश राज फ़िल्म्स नें पहले भी कोशिश की थी। पिचले साल ही 'लव इम्पॉसिबल' में यह नीति अपनाई गई थी, और उसके संगीत में भी वही यंग् शैली नज़र आयी थी, हालाँकि न फ़िल्म चली न ही उसका संगीत। देखते हैं 'लव का दि एण्ड' का क्या हाल

बेहद प्रयोगधर्मी है शोर इन द सिटी का संगीत

Taaza Sur Taal (TST) - 10/2011 - Shor In The City 'ताज़ा सुर ताल' के सभी पाठकों को सुजॉय चटर्जी का नमस्कार! पिछले कई हफ़्तों से 'टी.एस.टी' में हम ऐसी फ़िल्मों की संगीत समीक्षा प्रस्तुत कर रहे हैं जो लीक से हटके हैं। आज भी एक ऐसी ही फ़िल्म को लेकर हाज़िर हुए हैं, जो २०१० में पुसान अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव और दुबई अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव के लिए मनोनीत हुई थी। इस फ़िल्म के लिये निर्देशक राज निदिमोरु और कृष्णा डी.के को सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार भी मिला न्यु यॉर्क के MIAAC में। वैसे भारत के सिनेमाघरों में यह फ़िल्म २८ अप्रैल को प्रदर्शित हो रही है। शोभा कपूर व एकता कपूर निर्मित इस फ़िल्म का शीर्षक है 'शोर इन द सिटी'। 'शोर इन द सिटी' तुषार कपूर, सेन्धिल रामामूर्ती, निखिल द्विवेदी, पितोबश त्रिपाठी, संदीप किशन, गिरिजा ओक, प्रीति देसाई, राधिका आप्टे और अमित मिस्त्री के अभिनय से सजी है। फ़िल्म का पार्श्वसंगीत तैयार किया है रोशन मचाडो नें। फ़िल्म के गीतों का संगीत सचिन-जिगर और हरप्रीत नें तैयार किया हैं। हरप्रीत के दो गीत उनकी सूफ़ी संकलन 'तेरी जुस्तजू

हर घर के कोने में एक पोस्ट बॉक्स होता है... रितुपर्णा घोष लाये हैं संगीत की एक अजीब दावत "मेमोरीस इन मार्च" में

Taaza Sur Taal (TST) - 09/2011 - Memories In March 'ताज़ा सुर ताल' के आज के अंक में मैं, सुजॉय चटर्जी, आप सभी का स्वागत करता हूँ। दोस्तों, जिस तरह से समाज का नज़रिया बद्लता रहा है, उसी तरह से हमारी फ़िल्मों की कहानियों में, किरदारों में भी बदलाव आते रहे हैं। "फ़िल्म समाज का आइना है" वाक़ई सही बात है। एक विषय जो हमेशा से ही समाजिक विरोध और घृणा का पात्र रहा है, वह है समलैंगिक्ता। भले ही सुप्रीम कोर्ट नें समलैंगिक संबंध को स्वीकृति दे दी है, लेकिन देखना यह है कि हमारा समाज कब इसे खुले दिल से स्वीकार करता है। फ़िल्मों की बात करें तो पिछ्ले कई सालों से समलैंगिक चरित्र फ़िल्मों में दिखाये जाते रहे हैं, लेकिन उन पर हास्य-व्यंग के तीर ही चलाये गये हैं। जब अंग्रेज़ी फ़िल्म 'ब्रोकबैक माउण्टेन' नें समलैंगिक संबंध को रुचिकर रूप में प्रस्तुत किया तो हमारे यहाँ भी फ़िल्मकारों ने साहस किया, और सब से पहले निर्देशक ओनिर 'माइ ब्रदर निखिल' में इस राह पर चलकर दिखाया। अभी हाल ही में 'डोन्नो व्हाई न जाने क्यों' में भी समलैंगिक संबंध को दर्शाया गया लेकिन फ़िल्म के न

पोर-पोर गुलमोहर खिल गए..जब गुलज़ार, विशाल और सुरेश वाडकर की तिकड़ी के साथ "मेघा बरसे, साजन बरसे"

Taaza Sur Taal (TST) - 08/2011 - BARSE BARSE कुछ चीजें जितनी पुरानी हो जाएँ, उतनी ज्यादा असर करती हैं, जैसे कि पुरानी शराब। ज्यों-ज्यों दिन बीतता जाए, त्यों-त्यों इसका नशा बढता जाता है। यह बात अगर बस शराब के लिए सही होती, तो मैं यह ज़िक्र यहाँ छेड़ता हीं नहीं। यहाँ मैं बात उन शख्स की कर रहा हूँ, जिनकी लेखनी का नशा शराब से भी ज्यादा है और जिनके शब्द अल्कोहल से भी ज्यादा मारक होते हैं। पिछले आधे दशक से इस शख्स के शब्दों का जादू बरकरार है... दर-असल बरकरार कहना गलत होगा, बल्कि कहना चाहिए कि बढता जा रहा है। हमने इनके गानों की बात ज्यादातर तब की है, जब ये किसी फिल्म का हिस्सा रहे हैं, लेकिन "ताज़ा सुर ताल" के अंतर्गत पहली बार हम एक एलबम के गानों को इनसे जोड़कर लाए हैं। हमने "महफ़िल-ए-ग़ज़ल" में इनके कई सारे गैर-फिल्मी गाने सुनें हैं और सुनते रहेंगे। हम अगर चाहते तो इस एलबम को भी महफ़िल-ए-ग़ज़ल का हिस्सा बनाया जा सकता था, लेकिन चुकी यह "ताज़ा एलबम" है, तो "ताज़ा सुर ताल" हीं सही उम्मीदवार साबित होता है। अभी तक की हमारी बातों से आपने उन शख्स को पहचान तो

संगीत समीक्षा - जोक्कोमोन - बच्चों के लिए कुछ गीत लेकर आई शंकर-एहसान-लॉय की तिकड़ी जावेद साहब के शब्दों में

Taaza Sur Taal (TST) - 07/2011 - ZOKKOMON नये फ़िल्म संगीत में दिलचस्पी रखने वाले पाठकों का मैं, सुजॉय चटर्जी, 'ताज़ा सुर ताल' के आज के अंक में स्वागत करता हूँ। पिछली बार इस स्तंभ में जब आपकी और हमारी मुलाक़ात हुई थी, उस अंक में हमनें बच्चों पर केन्द्रित फ़िल्म 'सतरंगी पैराशूट' की चर्चा की थी। उसी अंक में हमनें कहा था कि आजकल बच्चों की फ़िल्में न के बराबर हो गई हैं। लेकिन लगता है कि हालात फिर से बदलने वाले हैं और बच्चों की फ़िल्में एक बार फिर सर चढ़ के बोलने वाली हैं। आइए आज के अंक में एक और आनेवाली बाल-फ़िल्म के संगीत की समीक्षा करें। यह है सत्यजीत भाटकल निर्देशित 'ज़ोक्कोमोन'। ज़ोक्कोमोन भारत का पहला बाल-सुपरहीरो, जिसे पर्दे पर निभाया है 'तारे ज़मीन पर' से रातों रात चर्चा में आने वाले दर्शील सफ़ारी। साथ में हैं अनुपम खेर (डबल रोल में), मंजरी फ़ादनिस और अखिल मिश्रा। 'तारे ज़मीन पर' और 'ज़ोक्कोमोन' में कई समानताएँ हैं। बाल-फ़िल्म और दर्शील सफ़ारी के अलावा गीतकार और संगीतकार भी दोनों फ़िल्मों में एक ही हैं, यानी कि जावेद अख़्तर साहब और शंक

संगीत समीक्षा - सतरंगी पैराशूट - बच्चों की इस फिल्म के संगीत के लिए एकजुट हुए चार दौर के फनकार, देने एक सुरीला सरप्रायिस

Taaza Sur Taal (TST) - 06/2011 - SATRANGEE PARACHUTE 'आवाज़' के दोस्तों नमस्कार! मैं, सुजॊय चटर्जी, साप्ताहिक स्तंभ 'ताज़ा सुर ताल' के साथ हाज़िर हूँ। साल २०११ के फ़िल्मों की अगर हम बात करें तो 'ताज़ा सुर ताल' में इस साल हमनें जिन फ़िल्मों की चर्चा की है, वो हैं 'नो वन किल्ड जेसिका', 'यमला पगला दीवाना', 'धोबी घाट', 'दिल तो बच्चा है जी', 'ये साली ज़िंदगी', 'सात ख़ून माफ़' और 'तनु वेड्स मनु'। एक और महत्वपूर्ण फ़िल्म प्रदर्शित हुई थी वर्ल्ड कप क्रिकेट शुरु होने से ठीक पहले, पटियाला हाउस, जिसका केन्द्रबिंदु भी क्रिकेट ही था। अक्षय कुमार, ऋषी कपूर, डिम्पल कपाडिया अभिनीत यह फ़िल्म अच्छी बनी, लेकिन इसके संगीत नें कोई छाप नहीं छोड़ी। और २०११ की अब तक की कुछ और प्रदर्शित फ़िल्में जो कब आईं और कब गईं पता भी नहीं चला, और न ही पता चला उनके संगीत का, ऐसी फ़िल्मों में कुछ नाम हैं - 'विकल्प', 'मुंबई मस्त कलंदर', 'होस्टल', 'यूनाइटेड सिक्स', 'ऐंजेल', 'तुम ही तो हो' वगेरह। क्रि

पिया न रहे मन-बसिया..रंगरेज से दर्द-ए-दिल बयां कर रहे हैं "तनु वेड्स मनु" के संगीतकार कृष्णा ,गीतकार राजशेखर

Taaza Sur Taal (TST) - 05/2011 - TANU WEDS MANU "तनु वेड्स मनु".. यह नाम सुनकर आपके मन में कोई भी उत्सुकता उतरती नहीं होगी, इसका मुझे पक्का यकीन है। मेरा भी यही हाल था। एक बेनाम-सी फिल्म, अजीबो-गरीब नाम और अजीबो-गरीब जोड़ी मुख्य-पात्रों की। "माधवन" और "कंगना".. मैं अपने सपने में भी इस जोड़ी की कल्पना नहीं कर सकता था..। लेकिन एक दिन अचानक इस फिल्म की कुछ झलकियाँ यू-ट्युब पर देखने को मिलीं. हल्की-सी उत्सुकता जागी और जैसे-जैसे दृश्य बढते गए, मैं इस "बेढब"-सी अजबनी दुनिया से जुड़ता चला गया। झलकियाँ का ओझल होना था और मैं यह जान चुका था कि यह फिल्म बिन देखे हीं नकार देने लायक नहीं है। कुछ तो अलग है इसमें और इन्हीं दृश्यों के बीच जब "कदी साडी गली पुल (भुल) के भी आया करो" के बीट्स ढोलक पर कूदने लगे तो जैसे मेरे कानों ने पायल बाँध लिये और ये दो नटखट उचकने लगे अपनी-अपनी जगहों पर। फिर तो मुझे समझ आ चुका था कि ऐंड़ी पर खड़े होकर मुझे इस फिल्म के गानों की बाट जोहनी होगी। फिर भी मन में एक संशय तो ज़रूर था कि "कदी साडी गली".. ये गाना तो पुरा

तेरे लिए किशमिश चुनें, पिस्ते चुनें: ऐसे मासूम बोल पर सात क्या सत्तर खून माफ़! गुलज़ार और विशाल का कमाल!

Taaza Sur Taal (TST) - 04/2011 - SAAT KHOON MAAF एक गीतकार जो सीधे-सीधे यीशु से सवाल पूछता है कि तुम अपने चाहने वालों को कैसे चुनते हो, एक गीतकार जो अपनी प्रेमिका के लिए परिंदों से बागों का सौदा कर लेता है ताकि उसके लिए किशमिश और पिस्ते चुन सके, एक गीतकार जो प्रेमिका की तारीफ़ के लिए "म्याउ-सी लड़की" जैसे संबोधन और उपमाओं की पोटली उड़ेल देता है, एक गीतकार जो आँखों से आँखें चार करने की जिद्द तो करता है, लेकिन मुआफ़ी भी माँगता है कि "सॉरी तुझे संडे के दिन ज़हमत हुई", एक गीतकार जो ओठों से ओठों की छुअन को "ऒठ तले चोट चलने" की संज्ञा देता है, एक गीतकार जो सूखे पत्तों को आवारा बताकर ज़िंदगी की ऐसी सच्चाई बयां करता है कि सीधी-सादी बात भी सूफ़ियाना लगने लाती है .. यह एक ऐसे गीतकार की कहानी है जो शब्दों से ज्यादा भाव को अहमियत देता है और इसलिए शब्दों के गुलेल लेकर भावों के बगीचे में नहीं घुमता, बल्कि भावों के खेत में खड़े होकर शब्दों की चिड़ियों को प्यार से अपने दिल के मटर मुहैया कराता है और फिर उन चिड़ियों को छोड़ देता है खुले आसमान में परवाज़ भरने के लिए, फिर जो

संगीत समीक्षा - ये साली जिंदगी : मशहूर सितार वादक निशात खान साहब के सुरों से मिली स्वानंद की दार्शनिकता तो उठे कई सवाल जिंदगी के नाम

Taaza Sur Taal (TST) - 03/2011 - YE SAALI ZINDAGI जिंदगी को कभी किसी ने नाम दिया पहेली का तो कभी इसे एक खूबसूरत सपना कहा गया. समय बदला और नयी सदी के सामने जब जिंदगी के पेचो-ख़म खुले तो इस पीढ़ी ने जिंदगी को ही कठघरे में खड़ा कर दिया और सवाल किया “तुझसे करूँ वफ़ा या खुद से करूँ....”. मगर शायद चुप ही रही होगी ये "साली" जिंदगी या फिर संभव है कि नयी सदी की जिंदगी भी अब तेवर बदल नए जवाब ढूंढ चुकी हो...पर ये तो तय है कि इस नए संबोधन से जिंदगी कुछ सकपका तो जरूर गयी होगी....बहरहाल हम बात कर रहे हैं निशात खान और स्वानंद किरकिरे के संगम से बने नए अल्बम “ये साली जिंदगी” के बारे में. अल्बम का ये पहला गीत सुनिधि और कुणाल की युगल आवाजों में है. ये फ़िल्मी गीत कम और एक सोफ्ट रौक् नंबर ज्यादा लगता है जहाँ गायकों ने फ़िल्मी परिधियों से हटकर खुल कर अपनी आवाजों का इस्तेमाल किया है. सुनिधि की एकल आवाज़ में भी है एक संस्करण जो अधिक सशक्त है. स्वानंद के बोंल शानदार हैं. “सारा रारा...” सुनने में एक मस्ती भरा गीत लगता है, पर इसमें भी वही सब है -जिंदगी से शिकवे गिले और कुछ छेड छाड भी, स्वानंद के शब्द

"यमला पगला दीवाना" का रंग चढाने में कामयाब हुए "चढा दे रंग" वाले अली परवेज़ मेहदी.. साथ है "टिंकू जिया" भी

Taaza Sur Taal 02/2011 - Yamla Pagla Deewana "अपने तो अपने होते हैं" शायद यही सोच लेकर अपना चिर-परिचित देवल परिवार "अपने" के बाद अपनी तिकड़ी लेकर हम सब के सामने फिर से हाजिर हुआ है और इस बार उनका नारा है "यमला पगला दीवाना"। फिल्म पिछले शुक्रवार को रीलिज हो चुकी है और जनता को खूब पसंद भी आ रही है। यह तो होना हीं था, जबकि तीनों देवल अपना-अपना जान-पहचाना अंदाज़ लेकर परदे पर नज़र आ रहे हों। "गरम-धरम" , "जट सन्नी" और "सोल्ज़र बॉबी"... दर्शकों को इतना कुछ एक हीं पैकेट में मिले तो और किस चीज़ की चाह बची रहेगी... हाँ एक चीज़ तो है और वो है संगीत.. अगर संगीत मन का नहीं हुआ तो मज़े में थोड़ी-सी खलल पड़ सकती है। चूँकि यह एक पंजाबी फिल्म है, इसलिए इससे पंजाबी फ़्लेवर की उम्मीद तो की हीं जा सकती है। अब यह देखना रह जाता है कि फ़िल्म इस "फ़्रंट" पर कितनी सफ़ल हुई है। तो चलिए आज की "संगीत-समीक्षा" की शुरूआत करते हैं। "यमला पगला दीवाना" में गीतकारों-संगीतकारों और गायक-गायिकाओं की एक भीड़-सी जमा है। पहले संगीतकारों

दिल तो बच्चा है जी.....मधुर भण्डारकर की रोमांटिक कोमेडी में प्रीतम ने भरे चाहत के रंग

Taaza Sur Taal 01/2011 - Dil Toh Bachha Hai ji 'दिल तो बच्चा है जी'...जी हाँ साल २०१० के इस सुपर हिट गीत की पहली पंक्ति है मधुर भंडारकर की नयी फिल्म का शीर्षक भी. मधुर हार्ड कोर संजीदा और वास्तविक विषयों के सशक्त चित्रिकरण के लिए जाने जाते हैं. चांदनी बार, पेज ३, ट्राफिक सिग्नल, फैशन, कोपरेट, और जेल जैसी फ़िल्में बनाने के बाद पहली बार उन्होंने कुछ हल्की फुल्की रोमांटिक कोमेडी पर काम किया है, चूँकि इस फिल्म में संगीत की गुंजाईश उनकी अब तक की फिल्मों से अधिक थी तो उन्होंने संगीतकार चुना प्रीतम को. आईये सुनें कि कैसा है उनके और प्रीतम के मेल से बने इस अल्बम का ज़ायका. नीलेश मिश्रा के लिखे पहले गीत “अभी कुछ दिनों से” में आपको प्रीतम का चिर परिचित अंदाज़ सुनाई देगा. मोहित चौहान की आवाज़ में ये गीत कुछ नया तो नहीं देता पर अपनी मधुरता और अच्छे शब्दों के चलते आपको पसंद न आये इसके भी आसार कम है. “है दिल पे शक मेरा...” और प्रॉब्लम के लिए “प्रोब” शब्द का प्रयोग ध्यान आकर्षित करता है. दरअसल ये एक सामान्य सी सिचुएशन है हमारी फिल्मों की जहाँ नायक अपने पहली बार प्यार में पड़ने की अनुभूति व्यक