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ये रात ये चांदनी फिर कहाँ, सुन जा दिल की दास्ताँ....पुरअसर आवाज़ संगीत और शब्दों का शानदार संगम

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 247 सा हिर लुधियानवी और सचिन देव बर्मन को एक साथ समर्पित शृंखला 'जिन पर नाज़ है हिंद को' में आप सभी का एक बार फिर से हार्दिक स्वागत है। लता, गीता, तलत, किशोर और मन्ना दा के बाद आज जिस गायक की आवाज़ साहिर साहब के बोलों पर और दादा बर्मन की धुनों पर हवाओं में गूँजेंगी, उस गायक का नाम है हेमन्त कुमार। जब भी साहिर और सचिन दा की एक साथ बात चलती है, यकायक 'नवकेतन' बैनर की याद भी आ ही जाती है। और क्यों ना आए, इसी बैनर के तले ही तो इस गीतकार - संगीतकार जोड़ी ने ५० के दशक के शुरुआती सालों में एक से एक बेहतरीन नग़में हमें दिए थे। सचिन दा ने नवकेतन बैनर की पहली फ़िल्म 'अफ़सर' में संगीत दिया था १९५० में। उसके बाद १९५१ में आई सुपरहिट फ़िल्म 'बाज़ी', जिसका एक गीत आप सुन चुके हैं। १९५२ में नवकेतन ने बनाई 'आंधियाँ', लेकिन इसके संगीत के लिए चुना गया था उस्ताद अली अक़बर ख़ान साहब को। देव आनंद और कल्पना कार्तिक अभिनीत यह फ़िल्म नहीं चली, लेकिन हेमन्त दा का गाया "दिल है किसी दीवाने का" गीत मशहूर हुआ था। १९५२ में भले ही बर्मन दादा ने

ओ बेकरार दिल हो चुका है मुझको आंसुओं से प्यार....लता का गाया एक बेमिसाल गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 239 क ल हमने बात की थी हेमन्त कुमार के निजी बैनर 'गीतांजली पिक्चर्स' के तले बनी फ़िल्म 'ख़ामोशी' की। हेमन्त दा के इस बैनर तले बनी फ़िल्मों और उनके मीठे संगीत का ही शायद यह असर है कि एक गीत से दिल ही नहीं भरता इसलिए आज हम एक बार फिर सुनने जा रहे हैं उनके इसी बैनर तले निर्मित फ़िल्म 'कोहरा' से एक और गीत, इससे पहले इस फ़िल्म का हेमन्त दा का ही गाया " ये नयन डरे डरे " आप इस महफ़िल में सुन चुके हैं। आज इस फ़िल्म से सुनिए लता मंगेशकर की आवाज़ में "ओ बेक़रार दिल हो चुका है मुझको आँसुओं से प्यार"। 'बीस साल बाद' और 'कोहरा' हेमन्त दा के इस बैनर की दो उल्लेखनीय सस्पेन्स फ़िल्में रहीं। आइए आज 'कोहरा' की कहानी आपको बताई जाए। अपने पिता के मौत के बाद राजेश्वरी अनाथ हो जाती है, और बोझ बन जाती है एक विधवा पर जो माँ है एक ऐसे बेटे रमेश की जिसकी मानसिक हालत ठीक नहीं। उस औरत का यह मानना है कि अगर राजेश्वरी रमेश से शादी कर ले तो वो ठीक हो जाएगा। लेकिन राजेश्वरी को कतई मंज़ूर नहीं कि वो उस पागल से शादी करे, इसलिए वो

दोस्त कहाँ कोई तुमसा...."सिस्टर्स" की सेवाओं को समर्पित एक अनूठा नगमा

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 238 हे मन्त कुमार के निजी बैनर 'गीतांजली पिक्चर्स' के बारे में हम आपको पहले ही बता चुके हैं जब हमने आपको फ़िल्म ' बीस साल बाद ' और ' कोहरा ' के दो गीत सुनवाए थे। इसी बैनर के तले उन्होने १९६९ में फ़िल्म बनाई 'ख़ामोशी'। यह फ़िल्म हिंदी सिनेमा का एक बड़ा ही ख़ूबसूरत और उल्लेखनीय अध्याय माना जाता है। आशुतोष मुखर्जी की कहानी पर बनी इस फ़िल्म का निर्देशन किया था असित सेन ने, संवाद और गीत लिखे गुलज़ार ने, संगीत था हेमन्त कुमार का और फ़िल्म के मुख्य चरित्रों में थे राजेश खन्ना व वहीदा रहमान। फ़िल्म जितनी सार्थक थी, उतने ही लोकप्रिय हुए इसके गानें। चाहे वह लता जी का गाया "हमने देखी है इन आँखों की महकती ख़ुशबू" हो या किशोर दा का गाया "वह शाम कुछ अजीब थी", या फिर हेमन्त दा का ही गाया "तुम पुकार लो, तुम्हारा इंतज़ार है"। इन तीन हिट गीतों के अलावा दो और गीत थे इस फ़िल्म में, एक आरती मुखर्जी का गाया हुआ और दूसरा मन्ना डे साहब का गाया हुआ, जो फ़िल्माया गया था कॊमेडियन देवेन वर्मा पर, जिन्होने फ़िल्म में एक मरीज़ की

दर्शन दो घनश्याम नाथ मोरी अँखियाँ प्यासी है....राग केदार पर आधारित था ये भजन

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 229 भा रतीय शास्त्रीय संगीत इतना पौराणिक है कि इसके विकास के साथ साथ कई देवी देवताओं के नाम भी इसके साथ जुड़ते चले गए हैं। शिवरंजनी और शंकरा की तरह राग केदार भी भगवान शिव को समर्पित है। जी हाँ, आज हम इसी राग केदार की बात करेंगे। केदार एक महत्वपूर्ण राग है। भारतीय शास्त्रीय संगीत की रागदारी में जितने भी मौलिक स्तंभ हैं, राग केदार के अलावा शायद ही कोई राग होगा जिसमें ये सारी मौलिकताएँ समा सके। राग केदार की खासियत है कि यह हर तरह के जौनर में आसानी से घुलमिल जाता है जैसे कि ध्रुपद, धमार, ख़याल, ठुमरी वगेरह। पारंपरिक तौर पर राग केदार के प्रकार हैं शुद्ध केदार, मलुहा केदार और जलधर केदार। इनके अलावा केदार के कई वेरियशन्स् हैं जैसे कि बसंती केदार, केदार बहार, दीपक केदार, तिलक केदार, श्याम केदार, आनंदी केदार, आदम्बरी केदार, और नट केदार। केदार राग केवल उत्तर भारत तक ही सीमीत नहीं रहा, बल्कि इसका प्रसार दक्षिण में भी हुआ, कर्नाटक शैली में यह जाना गया हमीर कल्याणी के नाम से। फ़िल्म संगीत में इस राग का प्रयोग बहुत सारे संगीतकारों ने किया है। १९७१ की फ़िल्म 'गुड्डी'

छुपालो यूं दिल में प्यार मेरे कि जैसे मंदिर में लौ दिए की...हर सुर पवित्र हर शब्द पाक

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 222 रा ग यमन एक ऐसा राग है जिसकी उंगली थाम हर संगीत विद्यार्थी शास्त्रीय संगीत सीखने के मैदान में उतरता है। इसके पीछे भी कारण है। राग यमन के असंख्य रूप हैं, कई नज़रिए हैं। यमन के मूल रूप को आधार बना कर बहुत से राग रागिनियाँ बनाई जा सकती है। यह राग मौका देती है संगीतज्ञों को नए नए प्रयोग करने के लिए, संगीत के नए नए आविष्कार करने के लिए। आज भी शास्त्रीय संगीत के गुरु अपने छात्रों को सब से पहले राग यमन पर दक्षता हासिल करने की सलाह दिया करते हैं क्योंकि एक बार यमन सिद्धहस्थ हो जाए तो बाक़ी के राग बड़ी आसानी से रप्त हो जाएँगे। वो कहते हैं ना कि "एक साधे सब साधे", बस वही बात है, एक बार यमन को मुट्ठी में कर लिया तो आप इस सुर संसार पर राज कर सकते हैं। जैसा कि अभी हमने आपको बताया कि राग यमन के बहुत सारे रूप हैं, तो उनमें एक महत्वपूर्ण है राग यमन कल्याण। आज 'दस राग दस रंग' में इसी राग की बारी। इस राग पर फ़िल्मों में असंख्य गीत बने हैं, जिनमें से एक बेहद सुरीला और उत्कृष्ट गीत हम चुन कर लाए हैं। यह गीत फ़िल्म 'ममता' का है, जिसे रोशन के संगीत में

चंदनिया नदिया बीच नहाए, वो शीतल जल में आग लगाए...लोक रंग में रंग ये गीत कलमबद्ध किया राजेंद्र कृष्ण ने

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 208 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल को आज हम रंग रहे हैं लोक संगीत के रंग से। यह एक ऐसा गीत है जिसे शायद बहुत दिनों से आप ने नहीं सुना होगा, और आप में से बहुत लोग इसे भूल भी गए होंगे। लेकिन कहीं न कहीं हमारी दिल की वादियों में ये भूले बिसरे गानें गूंजते ही रहते हैं और कभी कभार झट से ज़हन में आ जाते हैं, ठीक वैसे ही जैसे इस गीत की याद हमें आज अचानक आयी है। दोस्तों, हेमन्त कुमार की एकल आवाज़ में फ़िल्म 'अंजान' का यह गीत है "चंदनिया नदिया बीच नहाए, वो शीतल जल में आग लगाए, के चंदा देख देख मुस्काए, हो रामा हो"। दोस्तों, यह फ़िल्म १९५६ में आयी थी। इससे पहले कि हम इस फ़िल्म की और बातें करें, मुझे थोड़ा सा संशय है इस 'अंजान' शीर्षक पर बनी फ़िल्मों को लेकर। इस गीत के बारे में खोज बीन करते हुए मुझे एक और फ़िल्म 'अंजान' का पता चला जो उपलब्ध जानकारी के अनुसार १९५२ में प्रदर्शित हुई थी 'सनराइज़ पिक्चर्स' के बैनर तले, जिसके मुख्य कलाकार थे प्रेमनाथ और वैजयनंतीमाला, संगीतकार थे मदन मोहन तथा गीतकार थे क़मर जलालाबादी। अब संशय की बात

चल बादलों के आगे ....कहा हेमंत दा ने आशा के सुर से सुर मिलाकर

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 192 '१० गायक और एक आपकी आशा' की पहली कड़ी में कल आप ने आशा भोसले और तलत महमूद का गाया फ़िल्म 'इंसाफ़' का युगल गीत सुना था। आज भी कल जैसा ही एक नर्म-ओ-नाज़ुक रोमांटिक युगल गीत लेकर हम हाज़िर हुए हैं। आज के गायक हैं हेमंत कुमार। इससे पहले की हम आज के गीत की चर्चा करें, क्योंकि यह शृंखला केन्द्रित है आशा जी पर, तो आशा जी के बारे में पहले कुछ बातें हो जाए! आशा जी ने फ़िल्म जगत में अपना सफ़र शुरु किया था बतौर बाल कलाकार। 'बड़ी माँ' और 'आई बहार' जैसी फ़िल्मों में उन्होने अभिनय किया था। बतौर पार्श्वगायिका उन्हे पहला मौका दिया था संगीतकार हंसराज बहल ने, फ़िल्म थी 'चुनरिया' और साल था १९४८। लेकिन यह फ़िल्म नहीं चली और उनका गाना भी नज़रंदाज़ हो गया। शोहरत की ऊँचाइयों को छूने के लिए उन्हे करीब करीब १० साल संघर्ष करना पड़ा. १९५७ के कुछ फ़िल्मों से वो हिट हो गयीं और १९५८ में बनी 'हावड़ा ब्रिज' के "आइए मेहरबान" गीत से तो वो लोगों के दिलों पर राज करने लगीं। १९४८ की 'चुनरिया' से लेकर १९५८ की 'हावड़ा ब्रिज

पॉडकास्ट कवि सम्मलेन - अगस्त 2009

इंटरनेटीय कवियों की इंटरनेटीय गोष्ठी रश्मि प्रभा खुश्बू यदि आप पुराने लोगों से बात करें तो वे बतायेंगे कि भारत में एक समय कॉफी हाउसों की चहल-पहल का होता था। कविता-रसज्ञों के घरों पर हो रही कहानियों-कविताओं, गाने-बजाने, बहसों की लघु गोष्ठियों का होता था। जैसे-जैसे तकनीक ने हर किसी को उपभोक्ता बना दिया, हम ग्लोबल गाँव के ऐसे वाशिंदे हो गये जो मोबाइल से अमेरिका के अपने परिचित से तो जुड़ गया, लेकिन अपने इर्द-गिर्द से दूर हो गया। लेकिन वे ही बुजुर्ग एक और बात भी कहते हैं कि हर चीज़ के दो इस्तेमाल होते हैं। चाकू से गर्दन काटिए या सब्जी काटिए, आपके ऊपर है। हमने भी इस तकनीक का सदुपयोग करने के ही संकल्प के साथ पॉडकास्ट कवि सम्मेलन की नींव रखी थी, ताकि वक़्त की मार झेल रहे कवियों को एक सांझा मंच मिले। जब श्रोता ऑनलाइन हो गया तो कवि क्यों नहीं। इस संकल्पना को मूर्त रूप देने में डॉ॰ मृदुल कीर्ति ने हमारा बहुत सहयोग दिया। हर अंक में नये विचारों ने नये दरवाजे खोले और इस आयोजन की सुगंध चहुँओर फैलने लगी। रश्मि प्रभा के संचालन सम्हालने के बाद हर अंक में नये प्रयोग होने लगे और नये-नये कवियों का इससे जु

सूरज रे जलते रहना... सम्पूर्ण सूर्य ग्रहण के एतिहासिक अवसर पर सूर्य देव को नमन

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 149 दो स्तों, आज सुबह सुबह आप ने बहुत दिनों के बाद सम्पूर्ण सूर्य ग्रहण का नज़ारा देखा होगा। आप में से बहुत से लोग अपनी आँखों से इस अत्यंत मनोरम खगोलीय घटना को देखा होगा, और बाक़ी टीवी के परदे पर इसे देख कर ही संतुष्ट हुए होंगे! यूं तो सूर्य ग्रहण साल में कई बार आता है, लेकिन सम्पूर्ण सूर्य ग्रहण की बारी यदा कदा ही आती है। सम्पूर्ण सूर्य ग्रहण वैज्ञानिक दृष्टि से बेहद महत्व रखता है क्युंकि सूर्य से संबधित कुछ ऐसे शोध करने के अवसर मिल जाते हैं जो सूर्य की तेज़ रोशनी की वजह से आम दिनों में संभव नहीं हो पाती। दोस्तों, संगीत के इस मंच पर विज्ञान का पाठ पढ़ा कर मैं आप को और ज़्यादा बोर नहीं करूँगा, अब मैं सीधे आ जाता हूँ आज के गीत पर। हमने यह सोचा कि इस सम्पूर्ण सूर्य ग्रहण को यादगार बनाते हुए क्यों न आज का 'ओल्ड इज़ गोल्ड' भी सूर्य देव के ही नाम कर दिया जाये। तब सूर्य देव के उपर बनने वाले तमाम गीतों को ज़हन में लाते हुए हमारी नज़र जिस गीत पर जा कर रुक गयी और हमें ऐसा लगा कि इस गीत से बेहतर आज के दिन के लिए दूसरा कोई गीत हो ही नहीं सकता, वह गीत है "जगत

गंगा आये कहाँ से, गंगा जाए कहाँ रे...जीवन का फलसफा दिया था कभी गुलज़ार साहब ने इस गीत में

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 146 क वि गुरु रबीन्द्रनाथ ठाकुर की कहानियों और उपन्यासों पर बनी फ़िल्मों की जब बात आती है तब 'काबुलीवाला' का ज़िक्र करना बड़ा ही ज़रूरी हो जाता है। उनकी मर्मस्पर्शी कहानियों में से एक थी 'काबुलीवाला'। और फ़िल्म के परदे पर इस कहानी को बड़े ही ख़ूबसूरती के साथ पेश किये जाने की वजह से कहानी बिल्कुल जीवंत हो उठी है। यह कहानी थी एक अफ़ग़ान पठान अब्दुल रहमान ख़ान की और उनके साथ एक छोटी सी बच्ची मिनि के रिश्ते की। बंगाल के बाहर इस कहानी को जन जन तक पहुँचाने में इस फ़िल्म का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। आज दशकों बाद यह फ़िल्म सिनेमाघरों के परदों पर या टीवी के परदे पर दिखाई तो नहीं देता लेकिन रेडियो पर इस फ़िल्म के सदाबहार गानें आप ज़रूर सुन सकते हैं। दूसरे शब्दों में आज यह फ़िल्म जीवित है अपने गीत संगीत की वजह से। इस फ़िल्म का एक गीत "ऐ मेरे प्यारे वतन... तुझपे दिल क़ुर्बान" बेहद प्रचलित देशभक्ती रचना है जिसे प्रेम धवन के बोलों पर मन्ना डे ने गाया था। इसी फ़िल्म का एक दूसरा गीत है हेमन्त कुमार की आवाज़ में जो आज हम आप के लिए लेकर आये हैं 'ओल्

है अपना दिल तो आवारा, न जाने किस पे आएगा....हेमंत दा ने ऐसी मस्ती भरी है इस गीत कि क्या कहने

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 142 ऐ से बहुत से गानें हैं जिनमें किसी एक ख़ास साज़ का बहुत प्रौमिनेंट इस्तेमाल हुआ है, यानी कि पूरा का पूरा गीत एक विशेष साज़ पर आधारित है। 'माउथ ऒर्गन' की बात करें तो सब से पहले जो गीत ज़हन में आता है वह है हेमन्त कुमार का गाया 'सोलवां साल' फ़िल्म का "है अपना दिल तो आवारा, न जाने किस पे आयेगा"। अभी कुछ ही दिन पहले हम ने आप को फ़िल्म 'दोस्ती' के दो गीत सुनवाये थे, " गुड़िया हम से रूठी रहोगी " और " चाहूँगा मैं तुझे साँझ सवेरे "। फ़िल्म 'दोस्ती' में संगीतकार थे लक्ष्मीकांत प्यरेलाल और ख़ास बात यह थी कि इस फ़िल्म के कई गीतों व पार्श्व संगीत में राहुल देव बर्मन ने 'माउथ ओर्गन' बजाया था। इनमें से एक गीत है "राही मनवा दुख की चिंता क्यों सताती है". 'दोस्ती' १९६४ की फ़िल्म थी। इस फ़िल्म से ६ साल पहले, यानी कि १९५८ में एक फ़िल्म आयी थी 'सोलवां साल', और इस फ़िल्म में भी राहुल देव बर्मन ने 'माउथ ओर्गन' के कुछ ऐसे जलवे दिखाये कि हेमन्त दा का गाया यह गाना तो मशहूर हुआ ही

तुम ही मेरे मीत हो, तुम ही मेरी प्रीत हो - हेमंत कुमार और सुमन कल्याणपुर का बेहद रूमानी गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 130 दो स्तो, कल ही हम बात कर रहे थे दो गीतों में शाब्दिक और सांगीतिक समानता की। इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए आज जो गीत हम लेकर आये हैं उस गीत में आप को फ़िल्म 'ख़ानदान' के गीत " तुम ही मेरे मंदिर तुम ही मेरी पूजा " से कुछ निकटता नज़र आयेगी। 'ख़ानदान' फ़िल्म 1965 में आयी थी जिसके संगीतकार थे रवि। और आज जिस गीत को हम लेकर आये हैं वह है फ़िल्म 'प्यासे पंछी' का, जो आयी थी सन् 1961 में। इसका अर्थ यह है कि 'प्यासे पंछी' फ़िल्म का यह गीत 'ख़ानदान' के गीत से पहले बना था, लेकिन लोकप्रियता की दृष्टि से फ़िल्म 'ख़ानदान' के गीत को ज़्यादा सफलता मिली। संगीतकार जोड़ी कल्याणजी-आनंदजी ने 'प्यासे पंछी' में संगीत दिया था और लक्ष्मीकांत इस फ़िल्म में उनके सहायक थे। सुमन कल्याणपुर और हेमन्त कुमार की आवाज़ों में यह गीत है "तुम ही मेरे मीत हो, तुम ही मेरी प्रीत हो, तुम ही मेरी आरज़ू का पहला पहला गीत हो"। उन दिनों सुमन जी की आवाज़ लता जी की आवाज़ से इस क़दर मिलती थी कि कई बार तो बड़े-बड़े दिग्गज और फ़िल्म संगी

आ नीले गगन तले प्यार हम करें....प्रेम में मगन दो प्रेमियों के दिल की जुबाँ

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 115 फ़ि ल्मकार अमीय चक्रवर्ती और संगीतकार शंकर जयकिशन का बहुत सारी फ़िल्मों में साथ रहा। यह सिलसिला शुरु हुई थी सन् १९५१ में फ़िल्म 'बादल' से। इसके बाद १९५२ में 'दाग़', १९५३ में 'पतिता' और १९५४ में 'बादशाह' जैसी सफल फ़िल्मों में यह सिलसिला जारी रहा। आज 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में इसी फ़िल्म 'बादशाह' का एक बेहद ख़ूबसूरत युगल गीत पेश है लता मंगेशकर और हेमन्त कुमार की आवाज़ों में। 'अनारकली' और 'नागिन' जैसी हिट फ़िल्मों के बाद हेमन्त दा की आवाज़ प्रदीप कुमार का 'स्क्रीन वायस' बन चुका था। इसलिए शंकर जयकिशन ने भी इन्ही से प्रदीप कुमार का पार्श्वगायन करवाया। प्रस्तुत गीत "आ नीले गगन तले प्यार हम करें, हिलमिल के प्यार का इक़रार हम करें" एक बेहद नर्मोनाज़ुक रुमानीयत से भरा नग़मा है जिसे सुनते हुए हम जैसे कहीं बह से जाते हैं। रात का सन्नाटा, खोया खोया सा चाँद, धीमी धीमी बहती बयार, नीले आसमान पर चमकते झिलमिलाते सितारे, ऐसे में दो दिल अपने प्यार का इज़हार कर रहे हैं एक दूसरे के बाहों के सहारे। रोम

न ये चाँद होगा न तारे रहेंगें...एस एच बिहारी का लिखा ये अनमोल नग्मा गीता दत्त की आवाज़ में.

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 93 आ ज के 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में प्यार के इज़हार का एक बड़ा ही ख़ूबसूरत अंदाज़ पेश-ए-ख़िदमत है गीता दत्त की आवाज़ में। दोस्तों, आपने ऐसा कई कई गीतों में सुना होगा कि प्रेमी अपनी प्रेमिका से कहता है कि जब तक यह दुनिया रहेगी, तब तक मेरा प्यार रहेगा; और जब तक चाँद सितारे चमकते रहेंगे, तब तक हमारे प्यार के दीये जलते रहेंगे, वगैरह वगैरह । लेकिन आज का जो यह गीत है वह एक क़दम आगे निकल जाता है और कहता है कि भले ही चाँद तारे चमकना छोड़ दें, लेकिन उनका प्यार हमेशा एक दूसरे के साथ बना रहेगा। आप समझ गये होंगे कि हमारा इशारा किस गीत की तरफ़ है। जी हाँ, फ़िल्म 'शर्त' का सदाबहार गीत "न ये चाँद होगा न तारे रहेंगे, मगर हम हमेशा तुम्हारे रहेंगे"। इस गीत को हेमंत कुमार ने भी गाया था लेकिन आज हम गीताजी का गाया गीत आपको सुनवा रहे हैं। गीत का एक एक शब्द दिल को छू लेनेवाला है, जिनसे सच्चे प्यार की कोमलता झलकती है। 'चाँद' से याद आया कि इसी फ़िल्म में 'चाँद' से जुड़े कुछ और गानें भी थे, जैसे कि लता और हेमन्तदा का गाया "देखो वो चाँद छुपके कर

मेरा दिल ये पुकारे आजा.....तड़पती नागिन की पुकार लता के स्वर में...

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 82 क ल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में आप ने सुना हेमन्त कुमार के संगीत और आवाज़ से सजी फ़िल्म 'बीस साल बाद' का एक गीत। आज भी 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में हेमन्तदा छाये रहेंगे क्यूंकि आज भी हम उन्ही का स्वरबद्ध गीत सुनवाने जा रहे हैं आपको। लेकिन यह बात ज़रूर है कि आज का गीत उनकी आवाज़ में नहीं बल्कि सुर कोकीला लता मंगेशकर की आवाज़ में है। जहाँ हेमन्तदा का मधुर संगीत और लताजी की मधुर आवाज़ एक साथ घुलमिल जाये तो इस संगम से कैसा मीठा रस उत्पन्न होगा इसका शायद आप ख़ुद ही अंदाज़ा लगा सकते हैं। आज हम आपको सुनवाने के लिए लाये हैं १९५४ की फ़िल्म 'नागिन' का एक गीत। यूँ तो फ़िल्म 'नागिन' का नाम आते ही लताजी का गाया "मन डोले मेरा तन डोले" गीत याद आता है और साथ ही याद आती है रवि और कल्याणजी द्वारा बजाये गये हारमोनियम और क्लेवियोलिन पर बीन की ध्वनि। लेकिन इसी फ़िल्म में लताजी ने बहुत सारे एक से एक मधुर एकल गीत गाये हैं जिनकी चर्चा इस गीत से थोडी कम होती है। तो इसलिए हमने सोचा कि क्यों ना इन्ही में से एक गीत आज चुना जाए। अब देखना यह है कि क्या

बेकरार करके हमें यूँ न जाइये....हेमंत दा का नशीला अंदाज़

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 81 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' की कड़ी नम्बर ८१ में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। दोस्तों, कुछ रोज़ पहले हमने आपको हेमन्त कुमार की आवाज़ में फ़िल्म कोहरा का एक गीत सुनवाया था "ये नयन डरे डरे"। इस गीत को सुनकर कुछ श्रोताओं ने हमसे हेमन्त कुमार के गाए कुछ और गीत सुनवाने का अनुरोध किया था। तो आज उन सभी श्रोताओं की फ़रमाइश पूरी हो रही है क्यूंकि आज हम आप तक पहुँचा रहे हैं हेमन्तदा का गाया फ़िल्म 'बीस साल बाद' का एक बड़ा ही चुलबुला सा गाना। दोस्तों, जब हमने फ़िल्म 'कोहरा' का गीत सुनवाया था तो हमने आपको यह भी बताया था कि हेमन्तदा ने अपने बैनर 'गीतांजली पिक्चर्स' के तले कुछ 'सस्पेन्स थ्रिलर' फ़िल्मों का निर्माण किया था और इस सिलसिले की पहली फ़िल्म थी 'बीस साल बाद' जो बनी थी सन् १९६२ में। बिरेन नाग निर्देशित इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे विश्वजीत और वहीदा रहमान। विश्वजीत पर हेमन्तदा की आवाज़ कुछ ऐसी जमी कि आगे चलकर प्रदीप कुमार की तरह विश्वजीत के लिए भी दादा ने एक से बढ़कर एक पार्श्वगायन किया। यहाँ कुछ गीतों के नाम गिनाएँ

गुमसुम सा ये जहाँ....ये रात ये समां...गीतकार राजेंद्र कृष्ण ने रचा था ये प्रेम गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 74 फ़ि ल्म जगत के इतिहास में बहुत सारी फ़िल्में ऐसी हैं जो अगर आज याद की जाती हैं तो सिर्फ़ और सिर्फ़ उनके गीत संगीत की वजह से। और इनमें से कुछ फ़िल्में तो ऐसी भी हैं कि जिनका केवल एक गीत ही काफ़ी था फ़िल्म को यादगार बनाने के लिए। एक ऐसी ही फ़िल्म थी 'दुनिया झुकती है' जिसके केवल एक मशहूर गीत की वजह से इस फ़िल्म को आज भी सुमधुर संगीत के सुधी श्रोता बड़े प्यार से याद करते हैं। हेमन्त कुमार और गीता दत्त की युगल आवाज़ों में यह गीत है "गुमसुम सा ये जहाँ, ये रात ये हवा, एक साथ आज दो दिल धड़केंगे दिलरुबा"। रात का समा, चाँद और चाँदनी, ठंडी हवायें, सुहाना मौसम, प्रेमी-प्रेमिका का साथ, इन सब को लेकर फ़िल्मों में गाने तो बेशुमार बने हैं। लेकिन प्रस्तुत गीत अपनी नाज़ुकी अंदाज़, ग़ज़ब की 'मेलडी', रुमानीयत से भरपूर बोल, और गायक गायिका की बेहतरीन अदायिगी की वजह से भीड़ से जैसे कुछ अलग से लगते है। तभी तो आज तक यह गीत अपनी एक अलग पहचान बनाये हुए है। चाँद का बदली की ओट में छुपना, नील गगन का प्यार के आगे झुकना, दो प्रेमियों का दुनिया से दूर होकर अपनी प्य

"ये नयन डरे डरे..."-हेमंत दा की कांपती आवाज़ में इस गीत के क्या कहने.

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 51 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड की ५१ वीं कड़ी मे आपका स्वागत है। इन सुरीली लहरों के साथ बहते बहते हम पूरे ५० दिन गुज़ार चुके हैं। हम यही उम्मीद करते हैं कि जिस तरह से हमने इस शृंखला को प्रस्तुत करते हुए ख़ूशी मह्सूस की है, आप ने भी उतना ही आनंद उठाया होगा। अगर आपका इसी तरह साथ बना रहा तो हम भी इसी तरह एक से एक ख़ूबसूरत सुरीली मोती आप पर लुटाते रहेंगे, यह हमारा आप से वादा है। चलिए अब हम आते हैं आज के गीत पर। आज का ओल्ड इज़ गोल्ड, गायक एवं संगीतकार हेमन्त कुमार के नाम। बंगाल में हेमन्त मुखर्जी का वही दर्जा है जो हिन्दी में किशोर कुमार या महम्मद रफ़ी का है। भले ही बहुत ज़्यादा हिन्दी फ़िल्मों में उन्होने गाने नहीं गाये लेकिन जितने भी गाये उत्कृष्ट गाये। उनके संगीत से सजी फ़िल्मों के गीतों के भी क्या कहने। आज सुनिए उन्ही का गाया और स्वरबद्ध किया हुआ फ़िल्म "कोहरा" का एक बहुत ही चर्चित गाना। नायिका के नयनों की ख़ूबसूरती की तुलना मदिरा के छलकते प्यालों के साथ की है गीतकार कैफ़ी आज़मी ने। इस गीत में मादकता भी है, शरारत भी, मासूमीयत भी है और साथ ही है शायराना अंदाज़