Skip to main content

स्वरगोष्ठी – 507: "सीमायें बुलायें तुझे, चल राही ..." : राग - देश/ देस :: SWARGOSHTHI – 507 : RAG - DES

           



स्वरगोष्ठी – 507 में आज 

देशभक्ति गीतों में शास्त्रीय राग – 11 

"सीमायें बुलायें तुझे, चल राही...", राग देश में सिपाही के नाम संदेश सीमा से




“रेडियो प्लेबैक इण्डिया” के साप्ताहिक स्तम्भ "स्वरगोष्ठी" के मंच पर मैं सुजॉय चटर्जी,  साथी सलाहकर शिलाद चटर्जी के साथ, आप सब संगीत प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ।
उन्नीसवीं सदी में देशभक्ति गीतों के लिखने-गाने का रिवाज हमारे देश में काफ़ी ज़ोर पकड़ चुका था। पराधीनता की बेड़ियों में जकड़ा देश गीतों, कविताओं, लेखों के माध्यम से जनता में राष्ट्रीयता की भावना जगाने का काम करने लगा। जहाँ एक तरफ़ कवियों और शाइरों ने देशप्रेम की भावना से ओतप्रोत रचनाएँ लिखे, वहीं उन कविताओं और गीतों को अर्थपूर्ण संगीत में ढाल कर हमारे संगीतकारों ने उन्हें और भी अधिक प्रभावशाली बनाया। ये देशभक्ति की धुनें ऐसी हैं कि जो कभी हमें जोश से भर देती हैं तो कभी इनके करुण स्वर हमारी आँखें नम कर जाते हैं। कभी ये हमारा सर गर्व से ऊँचा कर देते हैं तो कभी इन्हें सुनते हुए हमारे रोंगटे खड़े हो जाते हैं। इन देशभक्ति की रचनाओं में बहुत सी रचनाएँ ऐसी हैं जो शास्त्रीय रागों पर आधारित हैं। और इन्हीं रागाधारित देशभक्ति रचनाओं से सुसज्जित है ’स्वरगोष्ठी’ की वर्तमान श्रृंखला ’देशभक्ति गीतों में शास्त्रीय राग’। अब तक प्रकाशित इस श्रृंखला की दस कड़ियों में राग आसावरी, गुजरी तोड़ी, पहाड़ी, भैरवी, मियाँ की मल्हार, कल्याण (यमन), शुद्ध कल्याण, जोगिया, काफ़ी, भूपाली, दरबारी कान्हड़ा, देश/देस और देस मल्हार पर आधारित देशभक्ति गीतों की चर्चा की गई हैं। आज प्रस्तुत है इस श्रृंखला की ग्यारहवीं कड़ी, जिसमें राग देश की चर्चा जारी रहेगी। जावेद अख़्तर का लिखा और अनु मलिक द्वारा संगीतबद्ध फ़िल्म ’LoC Kargil' का गीत "सीमायें बुलायें तुझे, चल राही, सीमायें पुकारे सिपाही..." की चर्चा के साथ-साथ राग देश की एक रचना उस्ताद राशिद ख़ान की आवाज़ में। 


Alka Yagnik, Anu Malik
देश
 पर मर मिटने वाले सिपाहियों का बलिदान जितना महान होता है, उनके परिवार जनों का त्याग भी किसी माईने में कम नहीं होता। उत्सव-त्योहारों में जब हर कोई अपने पूरे परिवार के साथ ख़ुशियाँ मना रहा होता है, तब सीमा पर तैनात सिपाही के गाँव में उसकी बीवी, उसके बच्चे, उसके माँ-बाप, के लिए वह त्योहार उसके बिना किस तरह का होता होगा, इसका अनुमान लगाया जा सकता है। जब छुट्टियों के बीच में ही एक दिन अचानक सीमा से फ़ोन आ जाए कि आज ही सिपाही को सीमा पर लौटना है, तब सिपाही के परिवार वालों पर क्या बीतती होगी! बच्चे, जो अपने पिता के कन्धों पर उछल-कूद कर रहे थे यह सोच कर कि अभी तो पापा कई दिन और रहेंगे हमारे साथ, उस फ़ोन कॉल के आते ही जैसे अचानक मायूसी छा जाती है उन कोमल दिलों पर। और सिपाही की पत्नी? वो तो ना किसी से कुछ कह पाती है, बस अन्दर ही अन्दर घुटती है। और अपने सिपाही पति के सकुशल वापस लौटने की ईश्वर से प्रार्थना करती है। कुछ ऐसे ही जज़्बात फ़िल्म ’LoC कारगिल’ के एक गीत में सुनने को मिला। अलका यागनिक और साथियों की आवाज़ों में जावेद अख़्तर का लिखा और अनु मलिक का संगीतबद्ध किया हुआ यह गीत है "सुनो जाने वाले, लौट के आना, कोई राह देखे, भूल न जाना, तुम बिन पल पल, रहूंगी मैं बेकल, बनके बिरहन, संग है तुम्हारे मेरे देश के सिपाही, मेरा मन, मेरा मन, मेरा मन..."।

वर्ष 1997 में फ़िल्म ’Border' में "संदेसे आते हैं", "ऐ जाते हुए लम्हों", "हमें जब से मोहब्बत हो गई है", और फिर वर्ष 2000 में फ़िल्म ’Refugee' में "पंछी नदिया पवन के झोंके" जैसे सिपाही के जीवन से सम्बन्धित गीत रचने के बाद जावेद अख़्तर और अनु मलिक ने जैसे इस जौनर के गीतों में महारथ हासिल कर ली थी। शायद इसीलिए जब वर्ष 2002 में ’LoC Kargil' के निर्माण की योजना बनी, तब जावेद अख़्तर और अनु मलिक ही निर्माता की पहली पसन्द बने। और इन दो कलाकारों ने फिर एक बार साबित किया कि इस तरह के गीतों के लिए उनका कोई सानी नहीं है। "एक साथी और भी था", "प्यार भरा गीत कोई, "मैं कहीं भी रहूँ", "तुम्हें क़सम है, तुम ख़ुश रहना", और "सीमायें बुलायें", हर गीत आधारित है सिपाही की ज़िन्दगी के अलग-अलग पहलू पर। अलका यागनिक की आवाज़ में राग देश आधारित "सुनो जाने वाले" कलेजा चीर कर रख देता तो है ही, गीत सुनते हुए आंखें नम हो जाती हैं, और दूसरी तरफ़ कोरस का "सीमायें बुलायें तुझे चल राही" जैसे रोंगटे खड़े कर देता है।
 



गीत : “सीमायें बुलायें तुझे, चल राही...” , फ़िल्म : LoC कारगिल, गायक: अलका यागनिक, साथी 


फ़िल्म ’LoC कारगिल’ के इस सुमधुर गीत में राग देश का स्पष्ट प्रयोग आपने अनुभव किया होगा। "सीमायें बुलाये..." पंक्ति में मार्च-पास्ट जैसा रीदम होते हुए भी राग देश है और अलका यागनिक के "सुनो जाने वाले" में भी राग देश है। दो बिलकुल अलग तरह की धुन प्रतीत होने के बावजूद दोनों में ही राग देश साफ़ सुनाई दे जाता है। इस गीत के लिए संगीतकार अनु मलिक की जितनी तारीफ़ की जाए, कम है। गीत में कहीं कहीं तिलक कामोद की हल्की छाया का आभास भी होता है, शायद खमाज थाट का राग होने की वजह से। देश अथवा देस खमाज थाट का राग माना जाता है। इस राग में दोनों निषाद का प्रयोग किया जाता है। इसके आरोह में शुद्ध निषाद और अवरोह में कोमल निषाद का प्रयोग किया जाता है। आरोह में गान्धार और धैवत स्वर वर्जित होता है और अवरोह में सभी सात स्वरों का प्रयोग होता है। राग का वादी स्वर ऋषभ और संवादी स्वर पंचम होता है। रात्रि के दूसरे प्रहर में इस राग का गायन-वादन सर्वाधिक उपयुक्त माना जाता है। राग-विवरण में यह बताया गया है कि आरोह में गान्धार और धैवत स्वर वर्जित होता है, किन्तु राग के सौन्दर्य के लिए कभी-कभी इस नियम का उल्लंघन किया जाता है, अर्थात आरोह में भी उन्हें प्रयोग किया जाता है। आरोह में गान्धार अथवा धैवत स्वर प्रयोग करते समय मींड़ और द्रुत स्वरों का प्रयोग किया जाता है। यह चंचल प्रकृति का राग है, अतः इसमें अधिकतर द्रुत खयाल और ठुमरी का गायन-वादन किया जाता है। कुछ विद्वान राग देश का वादी-संवादी स्वर क्रमशः पंचम और ऋषभ मानते हैं। किन्तु “राग परिचय” पुस्तक के लेखक हरिश्चन्द्र श्रीवास्तव इसे उचित नहीं मानते। श्री श्रीवास्तव के अनुसार राग देश पूर्वांग प्रधान राग है, अतः इसका चलन सप्तक के पूर्वांग में अधिक होता है। साथ ही इसके गायन-वादन का समय रात्रि का दूसरा प्रहर होता है, अर्थात यह समय दिन के पूर्व अंग में आता है, इसलिए इसका वादी स्वर सप्तक के पूर्वांग में और संवादी स्वर स्वर उत्तरांग में मानना राग-नियम के अनुकूल है। इस राग के अवरोह में अधिकतर ऋषभ स्वर का वक्र प्रयोग होता है। राग के शास्त्रीय स्वरूप को समझने के लिए अब हम राग देश, की एक बन्दिश और एक तराना सुविख्यात गायक उस्ताद राशिद ख़ान के स्वर में प्रस्तुत कर रहे हैं। इसके बोल हैं "करम कर दीजे ख़्वाजा मोइनुद्दीन..."



बंदिश : करम कर दीजे ख़्वाजा मोइनुद्दीन...”, राग : देश, गायक : उस्ताद राशिद ख़ान 



अपनी बात

कुछ तकनीकी समस्या के कारण हम अपने फेसबुक के मित्र समूह के साथ “स्वरगोष्ठी” का लिंक साझा नहीं कर पा रहे हैं। सभी संगीत अनुरागियों से अनुरोध है कि हमारी वेबसाइट http://radioplaybackindia.com अथवा http://radioplaybackindia.blogspot.com पर क्लिक करके हमारे सभी साप्ताहिक स्तम्भों का अवलोकन करते रहें। “स्वरगोष्ठी” के वेब पेज के दाहिनी ओर निर्धारित स्थान पर अपना ई-मेल आईडी अंकित कर आप हमारे सभी पोस्ट के लिंक को नियमित रूप से अपने ई-मेल पर प्राप्त कर सकते है। “स्वरगोष्ठी” की पिछली कड़ियों के बारे में हमें अनेक पाठकों की प्रतिक्रिया लगातार मिल रही है। हमें विश्वास है कि हमारे अन्य पाठक भी “स्वरगोष्ठी” के प्रत्येक अंक का अवलोकन करते रहेंगे और अपनी प्रतिक्रिया हमें भेजते रहेंगे। आज के इस अंक अथवा श्रृंखला के बारे में यदि आपको कुछ कहना हो तो हमें अवश्य लिखें। यदि आपका कोई सुझाव या अनुरोध हो तो हमें soojoi_india@yahoo.co.in अथवा sajeevsarathie@gmail.com पर अवश्य लिखिए। अगले अंक में रविवार को प्रातः सात बजे “स्वरगोष्ठी” के इसी मंच पर हम एक बार फिर संगीत के सभी अनुरागियों का स्वागत करेंगे। 


कृष्णमोहन मिश्र जी की पुण्य स्मृति को समर्पित
विशेष सलाहकार : शिलाद चटर्जी
प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी   

रेडियो प्लेबैक इण्डिया 
स्वरगोष्ठी – 507: "सीमायें बुलायें तुझे, चल राही ..." : राग - देश/ देस :: SWARGOSHTHI – 507 : RAG - DES



Comments

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन दस थाट