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स्वरगोष्ठी – 505: "जननी जन्मभूमि स्वर्ग से महान है" : राग भूपाली :: SWARGOSHTHI – 505 : RAG BHUPALI

         



स्वरगोष्ठी – 505 में आज 

देशभक्ति गीतों में शास्त्रीय राग – 9 

"जननी जन्मभूमि स्वर्ग से महान है...", राग भूपाली में  स्वर्गतुल्य जन्मभूमि की वन्दना



“रेडियो प्लेबैक इण्डिया” के साप्ताहिक स्तम्भ "स्वरगोष्ठी" के मंच पर मैं सुजॉय चटर्जी,  साथी सलाहकर शिलाद चटर्जी के साथ, आप सब संगीत प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ।उन्नीसवीं सदी में देशभक्ति गीतों के लिखने-गाने का रिवाज हमारे देश में काफ़ी ज़ोर पकड़ चुका था। पराधीनता की बेड़ियों में जकड़ा देश गीतों, कविताओं, लेखों के माध्यम से जनता में राष्ट्रीयता की भावना जगाने का काम करने लगा। जहाँ एक तरफ़ कवियों और शाइरों ने देशप्रेम की भावना से ओतप्रोत रचनाएँ लिखे, वहीं उन कविताओं और गीतों को अर्थपूर्ण संगीत में ढाल कर हमारे संगीतकारों ने उन्हें और भी अधिक प्रभावशाली बनाया। ये देशभक्ति की धुनें ऐसी हैं कि जो कभी हमें जोश से भर देती हैं तो कभी इनके करुण स्वर हमारी आँखें नम कर जाते हैं। कभी ये हमारा सर गर्व से ऊँचा कर देते हैं तो कभी इन्हें सुनते हुए हमारे रोंगटे खड़े हो जाते हैं। इन देशभक्ति की रचनाओं में बहुत सी रचनाएँ ऐसी हैं जो शास्त्रीय रागों पर आधारित हैं। और इन्हीं रागाधारित देशभक्ति रचनाओं से सुसज्जित है ’स्वरगोष्ठी’ की वर्तमान श्रृंखला ’देशभक्ति गीतों में शास्त्रीय राग’। अब तक प्रकाशित इस श्रृंखला की आठ कड़ियों में राग आसावरी, गुजरी तोड़ी, पहाड़ी, भैरवी, मियाँ की मल्हार, कल्याण (यमन), शुद्ध कल्याण, जोगिया और काफ़ी पर आधारित देशभक्ति गीतों की चर्चा की गई हैं। आज प्रस्तुत है इस श्रृंखला की नौवीं कड़ी में राग भूपाली पर आधारित एक फ़िल्मी रचना। और साथ में इसी राग में एक ख़याल रचना कुमार गंधर्व की आवाज़ में।


वसन्त देसाई, भरत व्यास (PC: hamaraphotos.com)
"जननी
 जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी",अर्थात् माता और मातृभूमि अथवा माता रूपी मातृभूमि का स्थान स्वर्ग से भी ऊपर होता है। यह वाल्मीकि रामायण के दो श्लोकों की द्वितीय पंक्ति है। पहला श्लोक है जिसमें भारद्वाज मुनि, श्री राम को सम्बोधित करते हुए कहते हैं:

मित्राणि धन धान्यानि प्रजानां सम्मतानिव ।
जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ॥
(मित्र, धन्य, धान्य आदि का संसार में बहुत अधिक सम्मान है। (किन्तु) माता और मातृभूमि का स्थान स्वर्ग से भी ऊपर है।)

दूसरे श्लोक में राम, लक्ष्मण से कहते हैं-

अपि स्वर्णमयी लङ्का न मे लक्ष्मण रोचते ।
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ॥
(लक्ष्मण! यद्यपि यह लंका सोने की बनी है, फिर भी इसमें मेरी कोई रुचि नहीं है। (क्योंकि) जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी महान हैं।)

हमारे देश की महान संस्कृति ने हमारी इस धरती को दिए हैं अनगिनत महामानव। इनमें से कुछ महात्मा हमें नेक राह पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं तो कुछ अपने शौर्य और पराक्रम की गाथा से हमें अपने देश पर अपना सर्वस्व न्योछावर करने का पाठ पढ़ाते हैं। और ऐसे ही महामानवों की अमर गाथाओं को अपने गीत संगीत से ओजस्वी बना दिया है गीतकार भरत व्यास और संगीतकार वसन्त देसाई ने। सप्त सुरों के साधक थे वसन्त देसाई और अद्भुत शब्दों के जादूगर थे भरत व्यास, जिनके सुरीले गीत-संगीत से सजे कई धार्मिक, पौराणिक और ऐतिहासिक फ़िल्में। ’सम्राट पृथ्वीराज चौहान’ ऐसी ही एक फ़िल्म है। इस फ़िल्म में मन्ना डे और साथियों का गाया देशभक्ति गीत "जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी" श्लोकांश पर आधारित है। "जननी जन्मभूमि स्वर्ग से महान है, इसके वास्ते ये तन है, मन है और प्राण है..."। अन्तिम हिन्दू सम्राट, पृथ्वीराज चौहान की वीरता और अदम्य साहस का चित्रण इस फ़िल्म में किया गया है, और इस गीत के मुखड़े से पहले शुरुआती पंक्ति भी सम्राट पृथ्वीराज चौहान के बलिदान की ओर ही इशारा करती है - "मातृभूमि के लिए जो करता अपने रक्त का दान, उसका जीवन देवतुल्य है, उसका जन्म महान"।

"जननी जन्मभूमि स्वर्ग से महान है" गीत राग भूपाली पर आधारित है। राग भूपाली, कल्याण थाट का आश्रय राग माना जाता है। संगीत के ग्रन्थों में यह राग भूप या भोपाली नाम से भी सम्बोधित किया जाता है। राग भूपाली औड़व जाति का राग है, जिसमें मध्यम और निषाद स्वर का प्रयोग नहीं किया जाता। शेष सभी स्वर शुद्ध प्रयोग किया जाता है। राग भूपाली का वादी स्वर गान्धार और संवादी स्वर धैवत होता है। रात्रि का पहला प्रहर इस राग के गायन-वादन का समय होता है। अब आप राग भूपाली में पिरोया यह मधुर फिल्मी गीत सुनिए जिसे सुनते हुए मन में देशभक्ति की लहरें उमड़ने लग जाती हैं। गीत के शुरुआती भाग में राजमहल में राजऋषि युद्ध पर जा रहे अपने राजा (सम्राट पृथ्वीराज चौहान) के मस्तक पर शुभकामनाओं और आशिर्वाद का तिलक लगाते हुए गीत को प्रार्थना के रूप में गा रहे हैं। कोरस में सम्राट (अभिनेता जयराज) और उनकी रानी (अनीता गुहा) उनकी पंक्तियों को दोहरा रहे हैं। दूसरे और तीसरे अन्तरों में सम्राट स्वयम् घोड़े पर युद्ध पर जाते हुए इस गीत को आगे बढ़ाते हैं।




गीत : “जननी जन्मभूमि स्वर्ग से महान है...” : फ़िल्म: सम्राट पृथ्वीराज चौहान , गायक: मन्ना डे, साथी


कुमार गंधर्व
रात्रि के प्रथम प्रहर में गाने-बजाने के लिए उपयुक्त राग भूपाली, कल्याण थाट का राग माना जाता है। इसके आरोह और अवरोह में मध्यम और निषाद स्वर वर्जित होता है। अर्थात यह औड़व-औड़व जाति का राग है। राग भूपाली का वादी स्वर गान्धार और संवादी स्वर धैवत होता है। यह राग पूर्वांग प्रधान है, अर्थात इसका चलन अधिकतर मन्द्र और मध्य सप्तकों के पहले भाग में होता है। इन्हीं स्वरों को यदि उत्तरांग प्रधान कर दिया जाय तो यह राग देशकार का स्वरूप बन जाता है। राग भूपाली और देशकार में एक सा ही स्वर प्रयोग किया जाता है, परन्तु वादी-संवादी स्वरों के बदल जाने से राग बदल जाता है। भूपाली में वादी-संवादी क्रमशः गान्धार और धैवत होता जबकि देशकार में धैवत और गान्धार हो जाता है। राग भूपाली में गान्धार और पंचम स्वर पर न्यास होता है, किन्तु धैवत पर कभी भी न्यास नहीं होता, जबकि राग देशकार में पंचम, धैवत और तार सप्तक के षडज पर न्यास होता है, किन्तु गान्धार स्वर पर कभी भी न्यास नहीं होता। दोनों रागों में समान स्वर लगने के बावजूद पूर्वांग और उत्तरांग प्रधान होने के कारण दोनों रागों में अन्तर हो जाता है। राग भूपाली के शास्त्रीय स्वरूप का अनुभव करने के लिए आइए, अब हम इस राग की एक बन्दिश सुप्रसिद्ध संगीतज्ञ कुमार गंधर्व से सुनते हैं। तीनताल में निबद्ध इस खयाल रचना के बोल हैं, “मोरा ध्यान मन्दिल रा ...”। आप यह बन्दिश सुनिए और हमें आज के इस अंक को यहीं विराम लेने की अनुमति दीजिए।


गीत : ख़याल- “मोरा ध्यान मन्दिल रा...” : गायक: कुमार गंधर्व 



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कृष्णमोहन मिश्र जी की पुण्य स्मृति को समर्पित
विशेष सलाहकार : शिलाद चटर्जी
प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी   

रेडियो प्लेबैक इण्डिया 
"जननी जन्मभूमि स्वर्ग से महान है": राग भूपाली : स्वरगोष्ठी – 505 : SWARGOSHTHI – 505 : RAG BHUPALI: 14 मार्च, 2021



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