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चित्रकथा - 58: श्रीदेवी के होठों पर कविता कृष्णमूर्ति की आवाज़

अंक - 58

श्रीदेवी के होठों पर कविता कृष्णमूर्ति की आवाज़


"तुम्हें क्या मर जाऊँ तो मर जाऊँ मैं तुम किस काम के..."




चली गईं श्रीदेवी! बॉलीवूड की पहली फ़ीमेल सुपरस्टार का दर्जा रखने वाली इस ख़ूबसूरत अभिनेत्री के अचानक इस तरह चले जाने से पूरी दुनिया स्तब्ध रह गई है। आज ’चित्रकथा’ में श्रीदेवी की ही बातें। श्रीदेवी की लोकप्रियता का अंदाज़ा केवल इस बात से लगाया जा सकता है कि उनके अंतिम संस्कार में 25,000 से भी अधिक लोग शामिल हुए। श्रीदेवी एक सशक्त अदाकारा तो थीं ही, उनकी एक ख़ास बात यह भी थी कि उन पर जो गीत फ़िल्माए जाते, उनमें से अधिकतर अपने ज़माने के सुपरहिट गीत बन जाते। यूं तो उनके लिए सबसे अधिक पार्श्वगायन आशा भोसले ने किया है, लेकिन श्रीदेवी का नाम लेते ही जिस गीत की याद सबसे पहली आती है, वह है "हवा हवाई", जिसकी गायिका हैं कविता कृष्णमूर्ति। कविता जी ने भी श्रीदेवी के लिए बहुत से गाने गायी हैं। तो क्यों ना आज के इस अंक में हम उन गीतों की चर्चा करें जो कविता कृष्णमूर्ति की आवाज़ में सजे थे श्रीदेवी के होठों पर! प्रस्तुत है यह विशेषालेख ’श्रीदेवी के होठों पर कविता कृष्णमूर्ति की आवाज़’। आजे के ’चित्रकथा’ का यह अंक समर्पित है अभिनेत्री श्रीदेवी की पुण्य स्मृति को!




नायकों पर किसी एक पार्श्वगायक की आवाज़ (स्क्रीन वॉइस) का चलन शुरु से ही रहा है। राज कपूर के लिए मुकेश, शम्मी कपूर के लिए मोहम्मद रफ़ी, राजेश खन्ना के लिए किशोर कुमार, फिर बाद के वर्षों में ॠषि कपूर के लिए पहले शैलेन्द्र सिंह और बाद में सुरेश वाडकर, सलमान ख़ान के लिए एस. पी. बालसुब्रह्मण्यम, आमिर ख़ान के लिए उदित नारायण और शाहरुख़ ख़ान के लिए अभिजीत की आवाज़ के बारे में हम सभी को पता है। लेकिन नायिकाओं के लिए ऐसी कोई बात नहीं थी, कारण चाहे जो भी हो। श्रीदेवी की बात करें तो उनकी शुरुआती फ़िल्मों में बप्पी लाहिड़ी का संगीत होता था और उन फ़िल्मों में अधिकतर गीत आशा भोसले गाया करती थीं। लेकिन फ़िल्म ’Mr India’ के "हवा हवाई" के बाद कविता कृष्णामूर्ति बन गईं श्रीदेवी की आवाज़। यह सच है कि 80 के दशक में आशा भोसले, अलका याग्ञ्निक और अनुराधा पौडवाल ने भी उनके लिए गीत गाए, लेकिन उनके लिए कविता कृष्णमूर्ति के गाए गीत भीड़ से अलग सुनाई दिए। पहली बार श्रीदेवी पर कविता की आवाज़ सुनाई पड़ी थी 1986 की फ़िल्म ’नगीना’ में। फ़िल्म के पाँच गीतों में केवल एक गीत कविता की आवाज़ में था - "बलमा आख़िर बलमा हो मेरे ख़ाली नाम के, तुम्हें क्या मर जाऊँ तो मर जाऊँ मैं तुम किस काम के"। मीठी शिकायत वाले इस गीत में जो अनजाने में मर जाने की बात कही गई थी, वह अब श्रीदेवी के जाने के बाद जैसे और भी ज़्यादा जीवित हो उठी है। फ़िल्म ’नगीना’ के ज़बरदस्त हिट होने के बाद 1989 में इस फ़िल्म का सीक्वील ’निगाहें’ बनी। हिन्दी फ़िल्म इतिहास में इसे पहला सीक्वील माना जाता है। ’निगाहें’ में भी कविता कृष्णमूर्ति का गाया एक महत्वपूर्ण गीत था। ’नगीना’ में लता मंगेशकर का गाया "मैं तेरी दुश्मन दुश्मन तू मेरा, मैं नागिन तू सपेरा" सर्वाधिक लोकप्रिय गीत था। इसलिए ’निगाहें’ में भी इसी धुन पर एक गीत रचा गया जिसे कविता ने गाया। इस गीत के बोल थे "खेल वही तू फिर आज खेला, पहले गुरु आया अब चेला, ओ पागल नादान शिकारी, जान अगर है तुझको प्यारि, तो छोड़ दे मेरी गलियों का फेरा, मैं नागन तू सपेरा..."। ’नगीना’ में लता के गाए इस एक गीत के अलावा ’नगीना’ और ’निगाहें’ के अन्य सभी गीत अनुराधा पौडवाल ने गाए थे। आनन्द बक्शी और लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल दोनों फ़िल्मों के गीतकार और संगीतकार थे।

1987 में श्रीदेवी-कविता की जोड़ी का गीत आया फ़िल्म ’वतन के रखवाले’ में। मिथुन और श्रीदेवी पर फ़िल्माया यह गीत था "तेरे मेरे बीच में कौन आएगा, आएगा तो जगह नहीं पाएगा"। कहना ज़रूरी है कि जीतेन्द्र-श्रीदेवी की सुपरहिट जोड़ी बनने के बाद मिथुन और श्रीदेवी की भी कामयाब जोड़ी बनी थी जो ख़ूब हिट रही। ’वक़्त की आवाज़’ और ’गुरु’ इस जोड़ी की सर्वाधिक हिट फ़िल्में हैं। मजरूह सुल्तानपुरी के लिखे और लक्ष्मी-प्यारे की धुन पर मोहम्मद अज़ीज़ और कविता कृष्णमूर्ति का गाया यह डुएट अपने ज़माने का मशहूर गीत रहा और रेडियो पर ख़ूब ख़ूब बजे। इसी फ़िल्म में श्रीदेवी-कविता जोड़ी का एक और गीत था "टनाटन बज गई घण्टी सजन, प्यार रुकता है कहाँ करे कोई लाख जतन"। मनहर उधास और मोहम्मद अज़ीज़ के साथ गाया यह गीत चल्ताऊ किस्म का गीत था जो हिट नहीं हुआ। फ़िरोज़ नडियाडवाला निर्मित इस फ़िल्म के अलावा 1987 में ही के. सी. बोकाडिया की फ़िल्म आई ’जवाब हम देंगे’ जिसमें श्रीदेवी के नायक बने जैकी श्रॉफ़। गीत-संगीत का भार इस बार समीर और लक्ष्मी-प्यारे पर था। फ़िल्म में दो गीत कविता ने गाए जिनमें से एक श्रीदेवी पर फ़िल्माया गया। भगवान को कोसता हुआ यह दर्द भरा गीत था "मेरे किस कुसूर पर तू मालिक मुझे रुलाए, मेरे आँसुओं में एत्रा संसार बह ना जाए"। श्रीदेवी को हम उन दिनों ग्लैमरस किरदारों और रंगीन किस्म के गीतों में देखते आए थे, ऐसे में यह गीत इस तरह का दर्द भरा शुरुआती गीत रहा उन पर फ़िल्माए जाने वाला। 1987 में ही विजय सदानाह की फ़िल्म आई ’औलाद’। इस फ़िल्म में लक्ष्मी-प्यारे के संगीत पर गाने लिखे एस. एच. बिहारी ने। यूं तो फ़िल्म के कई गीतों में कविता कृष्णमूर्ति की आवाज़ थी, लेकिन उनमें से केवल दो गीत श्रीदेवी पर फ़िल्माए गए थे। पहला गीत था शास्त्रीय संगीत आधारित भक्ति रचना "जीवन ज्योत जले"। लाल-सफ़ेद साड़ी और सिंदूर की बिंदी में श्रीदेवी बहुत ख़ूबसूरत दिखाई देती हैं इस गीत में और गीत भी बहुत ही प्यारा है - "हुआ सवेरा पंछी जागे, शीतल पवन चले, डाल डाल से किरणें छलके, जीवन ज्योत जले, भोर भये जो मन से पुकारे, प्रभु जाने उसके द्वारे, वो घर फूले फले..."। फ़िल्म का दूसरा गीत एक मस्ती भरा डुएट था किशोर कुमार के साथ - "धक धक धक धड़के किया पास नहीं आना, दिल का लगाना पिया क्या है नहीं जाना, जानू ना वो रातें ना प्यार भरी बातें, तेरी बातों से दिल मेरा घबराये, तो फिर हो जाए, हो जाए..."। जीतेन्द्र-श्रीदेवी की हिट जोड़ी पर फ़िल्माया यह गीत भी उस दौर में ख़ूब लोकप्रिय हुआ था। 1987 में राजेश खन्ना और शबाना आज़मी के साथ दूसरी नायिका के रूप में श्रीदेवी ने अभिनय किया था फ़िल्म ’नज़राना’ में। फ़िल्म में कविता का गाया एक गीत था "ए बाबा रिका..."। हालाँकि यह गीत नहीं चला, लेकिन इस गीत में श्रीदेवी का अभिनय और नृत्य देखने लायक है। माइकल जैक्सन जैसा गेट-अप लिए जिस तरह से उन्होंने डान्स किया है, कमाल है बस! और उस दौर की सफलतम अभिनेत्रियों में इस तरह का डान्स शायद ही कोई और कर पातीं। "ए बाबा रिका रिका रिका रिका, हमने जो सीखा वो दुनिया से सीखा, जीने का तरीका तरीका तरीका, दिल दो किसी को दिल लो किसी का..."।


लेकिन 1987 की जिस फ़िल्म ने सही अर्थ में श्रीदेवी और कविता कृष्णमूर्ति की जोड़ी को यादगार बना दिया, वह फ़िल्म थी ’Mr. India’। "हवा हवाई" गीत आज एक अमर गीत बन चुका है श्रीदेवी के कमाल के अभिनय और अदाओं की वजह से। इस गीत के बारे में कुछ कहने की आवश्यक्ता नहीं है सिवाय इसके कि इस गीत में कविता से एक ग़लती हो गई थी। गड़बड़ी पर आने से पहले आपको इस गीत के निर्माण से जुड़ी एक दिलचस्प जानकारी देना चाहेंगे। इस गीत के शुरुआती जो बोल हैं, जिसमें "होनोलुलु, हॊंगकॊंग, किंगकॊंग, मोमबासा" जैसे अर्थहीन शब्द बोले जाते हैं, दरसल ये शब्द डमी के तौर पर लिखे गये थे गीत को कम्पोज़ करने के लिए। लेकिन ये शब्द आपस में इस तरह से जुड़ गये और गीत में हास्य रस के भाव को देखते हुए सभी को ये शब्द इतने भा गये कि इन्हें गीत में रख लेने का तय हो गया। जावेद अख़्तर ने यह गीत लिखा और संगीतकार थे लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल। अब आते हैं इस गीत में हुई ग़लती पर। इस गीत का एक अंतरा कुछ इस तरह का है -



"समझे क्या हो नादानों, 
मुझको भोली ना जानो,
मैं  हूँ सपनों की रानी,
काटा माँगे ना पानी,
सागर से मोती छीनूँ, 
दीपक से ज्योति छीनूँ,
पत्थर से आग लगा दूँ, 
सीने से राज़ चुरा लूँ,
जीना जो तुमने बात छुपाई,
जानू जो तुमने बात छुपाई,
कहते हैं मुझको हवा हवाई"।

इस अंतरे में सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था, लेकिन "जीना जो तुमने बात छुपाई" कुछ अजीब सा नहीं लग रहा आपको? कविता कृष्णमूर्ति ने एक साक्षात्कार में बताया कि उन्होंने ग़लती से "जानू" को "जीना" गा गईं, लेकिन अगले ही अन्तरे में जब इसी पंक्ति को दोबारा गाना था, उसमें उन्होंने ग़लती को सुधारते हुए "जानू" ही गाया। सभी को लगा कि इतनी छोटी ग़लती किसी के ध्यान में नहीं आएगी, इसलिए गीत को दोबारा रिकार्ड नहीं किया गया। कविता की गायकी और श्रीदेवी के चुलबुले अंदाज़ में अभिनीत यह गीत आज सदाबहार गीत बन गया है और इस गीत के बाद श्रीदेवी "हवा हवाई गर्ल" के नाम से जानी जाती रहीं। इस गीत के कम से कम दो रीमेक बने। पहला रीमेक 2011 की फ़िल्म ’शैतान’ में था जिसे सुमन श्रीधर की आवाज़ में रिकार्ड किया गया, और दूसरी बार 2017 की फ़िल्म ’तुम्हारी सुलु’ में था जिसमें मूल गीत और कविता की आवाज़ को रखा गया था लेकिन संगीतकार तनिष्क बागची के अतिरिक्त संगीत और गायिका शाशा तिरुपति के अतिरिक्त गायकी ने इस गीत को एक नया जामा पहनाया। वापस आते हैं ’Mr. India' पर। फ़िल्म का शीर्षक गीत किशोर कुमार और कविता ने गाया - "करते हैं हम प्यार मिस्टर इण्डिया से"। रोमान्टिक डुएट होते हुए भी इस गीत में हास्य और मस्ती भरा अंदाज़ है और अनिल कपूर व श्रीदेवी के जीवन्त, चुलबुले और शरारती अभिनय ने गीत में जान डाल दी। 1989 में जब के. सी. बोकाडिया ने जया प्रदा और श्रीदेवी को लेकर ’मैं तेरा दुश्मन’ बनाने की योजना बनाई तब उनके मन में भी "हवा हवाई" जैसे एक गीत रखने की इच्छा थी। उनका यह सपना साकार हुआ जब अनजान और लक्ष्मी-प्यारे लेकर आए "जुगनी डिस्को", एक बार फिर कविता कृष्णमूर्ति की आवाज़ में। यह गीत भी हिट हुआ लेकिन "हवा हवाई" के मुक़ाबले टिक नहीं सका। गीत की ख़ास बात यह है कि जया प्रदा और श्रीदेवी, दोनों ही नज़र आती हैं इस गीत में। इस गीत में लोक-संगीत और पाश्चात्य रिदम, दोनों का फ़्युज़न है। हास्य का पुट भी है तथा पंजाबी और बांग्ला शब्दों के प्रयोग से गीत और भी ज़्यादा मज़ेदार बन पड़ा है। 


क्वांटिटी और क्वालिटी के पैमाने पर अगर एक साथ तोला जाए तो श्रीदेवी और कविता की जोड़ी की जो फ़िल्म सबसे पहले याद की जाएगी, वह है ’चालबाज़’। 1989 की इस फ़िल्म के सभी गीतों में श्रीदेवी के होठों पर कविता की ही आवाज़ सुनाई दी, फिर चाहे वह किरदार अंजु का हो या मंजु का। सीता और गीता की तरह अंजु-मंजु वाले डबल रोल में श्रीदेवी ने इस फ़िल्म में अदाकारी के वो नमूने पेश किए कि फ़िल्म उन्हीं की बन कर रह गई। फ़िल्म के दोनों नायक सनी देओल और रजनीकान्त जैसे बाजु हट गए उनके अभिनय की चमक से। आनन्द बक्शी और लक्ष्मी-प्यारे के गीतों ने भी तहल्का मचा दिया। फ़िल्म के सभी पाँच गीतों में श्रीदेवी-कविता मौजूद थीं। मोहम्मद अज़ीज़ के साथ युगल गीत "तेरा बीमार मेरा दिल, मेरा जीना हुआ मुश्किल" में श्रीदेवी और सनी देओल के बीच का रोमान्स और सेन्सुअल अंदाज़ सर चढ़ कर बोला, तो अमित कुमार के साथ "न जाने कहाँ से आई है" गीत तो बारिश और सड़क वाले गीतों की पहली श्रेणी में शुमार है। "बड़ी छोटी है मुलाक़ात, बड़े अफ़सोस की है बात, किसी के हाथ ना आएगी ये लड़की..." - ये पंक्तियाँ जैसे कानों में गूंज उठी जिस दिन श्रीदेवी के इस दुनिया से चले जाने की ख़बर मिली। कविता और साथियों की आवाज़ों में "नाम मेरा प्रेम कली... रस्ते में वो खड़ा था, कब से मेरे पीछे पड़ा था" भी एक चुल्बुली लड़की का अंदाज़-ए-बयाँ था, यह गीत उतना मशहूर नहीं हुआ पर लक्ष्मी-प्यारे के ज़बरदस्त म्युज़िकल कम्पोज़िशन का यह भी एक अच्छा उदाहरण था। फ़िल्म का चौथा गीत हास्य पैरोडी गीत है जिसमें कविता के साथ अमित कुमार और जॉली मुखर्जी की भी आवाज़ें हैं। "सोचा था क्या, क्या हो गया, गड़बड़ हो गई, सीटी बज गई" में श्रीदेवी, अनुपम खेर, रोहिणी हत्तंगड़ी, अन्नु कपूर और शक्ति कपूर के अभिनय की जितनी तारीफ़ें की जाए कम है। ये सभी चार गीत मंजु के किरदार पर फ़िल्माया गया था। बस एक आख़िरी पाँचवाँ गीत अंजु पर फ़िल्माया गया। यह भी एक हास्य रस का गीत था जिसे कविता, सूदेश भोसले, जॉनी लीवर और साथियों ने गाया - "ओ भूत राजा, जल्दी से आजा.... कोई बताए समझ में ना आए के हाय ये क्या है पहेली, अरे फँस गई मुश्किल में भूतों की महफ़िल में, मैं एक लड़की अकेली..."। हास्य गीत होते हुए भी इसमें श्रीदेवी के चमत्कृत कर देने वाले नृत्य का स्वाद चखने को मिला दर्शकों को। कुल मिलाकर ’चालबाज़’ के गीतों ने अपने ज़माने में धूम मचा दी थी और आज भी लोग इन गीतों को सुनते ही झूम उठते हैं।


90 के दशक में भी श्रीदेवी-कविता का जादू बरकरार रहा। 1991 की फ़िल्म ’पत्थर के इंसान’ में इंदीवर के गीत और बप्पी लाहिड़ी का संगीत था। नृत्य प्रधान संगीत वाले इस फ़िल्म के गीतों में महिला कंठ की अगर बात करें तो कई गायिकाओं ने फ़िल्म के गीत गाए जैसे कि अलका याज्ञ्निक, अनुराधा पौडवाल, कविता कृष्णमूर्ति, एस. जानकी, अलिशा चिनॉय और सपना मुखर्जी। इस वजह से श्रीदेवी-कविता की जोड़ी का बस एक ही गीत था "सूरज नाचे सागर नाचे, सारा जग गीतों पर नाचे, गीत बिना ज़िन्दगी क्या..."। इस गीत की ख़ास बात यह है कि इसे एक स्टेज शो के रूप में फ़िल्माया गया है। सितार हाथ में लिए पूनम ढिल्लों इस गीत को गा रही हैं और उस पर श्रीदेवी नृत्य कर रही हैं। अक्सर डिस्को और पाश्चात्य संगीत के अधिकाधिक प्रयोग की वजह से बदनाम बप्पी लाहिड़ी ने इस शास्त्रीय संगीत आधारित रचना को इतनी ख़ूबसूरती से सजाया है कि एक ही झटके में उन्होंने सभी आलोचकों के मुख पर ताले लटका दिए थे। गीत के अगले हिस्से में पूनम ढिल्लों भी नृत्य करती नज़र आती हैं और दोनों में जैसे एक जुगलबन्दी हो रही हो। इन दोनों ख़ूबसूरत अभिनेत्रियों ने इस गीत को जीवन्त कर दिया, लेकिन दुर्भाग्यवश यह गीत बहुत ज़्यादा सुना नहीं गया, और अब तो हर कोई इसे भूल चुका है। वैसे 1991 की जो उल्लेखनीय फ़िल्म थी, वह है ’ख़ुदा गवाह’ जिसमें अमिताभ बच्चन और श्रीदेवी की जोड़ी दूसरी बार नज़र आई। पहली बार यह जोड़ी नज़र आई थी फ़िल्म ’आख़िरी रास्ता’ में। ’ख़ुदा गवाह’ एक ब्लॉक बस्टर सिद्ध हुई और एक बार फिर श्रीदेवी ने अपने डबल रोल से यह सिद्ध किया कि अभिनेत्रियों में वो ही सर्वोपरि हैं। अफ़्ग़ानिस्तान की पृष्ठभूमि पर बनी इस फ़िल्म में गीत-संगीत का पक्ष आनन्द बक्शी और लक्ष्मी-प्यारे ने संभाला था। फ़िल्म के सभी गीत ख़ूब हिट हुए जिनमें तीन गीत कविता कृष्णमूर्ति और मोहम्मद अज़ीज़ के गाए युगल गीत थे। फ़िल्म का शीर्षक गीत "तू मुझे क़ुबूल, मैं तुझे क़ुबूल, इस बात का गवाह ख़ुदा, ख़ुदा गवाह" सर्वाधिक लोकप्रिय रहा। बाकी के दो गीत थे "रब को याद करूं, इक फ़रियाद करूं, बिछड़ा यार मिला दे, ओय रब्बा..." और "मैं ऐसी चीज़ नहीं जो घबरा के पलट जाऊँगी..."। इसके अगले ही साल 1992 में फिर एक बार अनिल कपूर के साथ श्रीदेवी नज़र आईं अमर प्रेम कहानी ’हीर रांझा’ में। फ़िल्म फ़्लॉप रही लेकिन आनन्द बक्शी और लक्ष्मी-प्यारे के गीतों की वजह से लोगों ने इस फ़िल्म को लम्बे समय तक याद रखा। फ़िल्म का सर्वाधिक लोकप्रिय गीत "रब ने बनाया तुझे मेरे लिए" लता मंगेशकर-अनवर की आवाज़ों में था, लेकिन कविता कृष्णमूर्ति का गाया "ओ रांझा रांझा करते करते हीर दीवानी हुई" का भी अपना अलग अंदाज़ था। मोहम्मद अज़ीज़ के साथ कविता का गाया युगल गीत "यह पेड़ है पीपल का, तू है खरा सोना, सारा जग पीतल का..." चर्चा में नहीं आई। फ़िल्म के पिट जाने की वजह से इस फ़िल्म के गीतों पर कुछ ख़ास तवज्जु किसी ने नहीं दिया।

1993 में बोनी कपूर की महत्वाकांक्षी फ़िल्म ’रूप की रानी चोरों का राजा’ बन कर प्रदर्शित हुई। इसे उस ज़माने की सबसे महंगी फ़िल्म मानी गई। ’Mr. India’ के निर्देशक शेखर कपूर ने इस फ़िल्म को निर्देशित करना शुरु तो किया लेकिन बीच में उन्होंने फ़िल्म छोड़ दी जिसके बाद सतिश कौशिक ने कमान संभाला। अनिल-श्रीदेवी के अलावा जैकी श्रॉफ़, अनुपम खेर, जॉनी लीवर अभिनीत यह फ़िल्म ’Mr India' के तुरन्त बाद 1978 में बनना शुरु होने के बावजूद किसी ना किसी वजह से देर होती गई, और 1993 में जब यह रिलीज़ हुई तो दुर्भाग्यवश पिट गई। इस फ़िल्म के अत्यधिक प्रचार की वजह से लोगों की उम्मीदें इतनी बढ़ गई कि जब लोगों ने फ़िल्म देखी तो फ़िल्म में कहानी और आत्मा, दोनों ही कमज़ोर लगी। उस पर जैकी श्रॉफ़ को कम फ़ूटेज देना भी दर्शकों को रास नहीं आया। जावेद अख़्तर - लक्ष्मी-प्यारे ने जो कमाल ’Mr. India’ के पाँच गीतों में दिखाए थे, वह कमाल वे इस फ़िल्म के दस गीतों में भी दिखा नहीं पाए। ना फ़िल्म चली ना इसे गाने कुछ ख़ास चले। इन दस गीतों में से सात गीतों में श्रीदेवी और कविता की जोड़ी दिखाई व सुनाई दी। विनोद राठौड़ के साथ सेन्सुअस "जाने वाले ज़रा रुक जा", अमित कुमार के साथ फ़िल्म का हिट शीर्षक गीत "तू रूप की रानी, तू चोरों का राजा, सुन प्रेम कहानी, तू आके सुना जा", ROFL करवाने वाला चीनी शैली में "चीनी में चाय चीनी में चाय, चनाली ची मेरी चि चि चाय", बॉलीवूड टिपिकल डुएट "मैं एक सोने की मूरत हूँ" और दुश्मन के डेरे में गाए जाने वाले गीतों के जौनर का "करले तू हौसला, परदा उठा", तथा कविता की एकल आवाज़ में "हवा हवाई" के गेट-अप जैसा "दुश्मन दिल का जो है मेरे, सुना है आज आएगा" और "यारों को जान है प्यारी, मैं हूँ रूप की रानी" कब आए कब गए पता भी नहीं चला। इसी साल 1993 में संजय दत्त के साथ श्रीदेवी नज़र आईं फ़िल्म ’गुमराह’ में। इस फ़िल्म में श्रीदेवी-कविता का एक ही गीत था - "ये ज़िन्दगी का सफ़र मुश्किल बड़ा था मगर, तुम राह में मिल गए, हम बन गए हमसफ़र"। फ़िल्म के फ़्लॉप हो जाने के बावजूद आनन्द बक्शी - लक्ष्मी-प्यारे का रचा तलत अज़ीज़ के साथ कविता का गाया यह गीत हिट हुआ था। 1993 में ही सभी को चकित कर श्रीदेवी नज़र आईं सलमान ख़ान के साथ। फ़िल्म ने साबित किया कि वक़्त का कोई असर नहीं श्रीदेवी की ख़ूबसूरती पर। गीतकार-संगीतकार की जोड़ी के रूप में अगली पीढ़ी आ गई लेकिन श्रीदेवी के माथे पर जैसे वक़्त की कोई भी शिकन नहीं। समीर के लिखे गीत और आनन्द-मिलिन्द के संगीत में श्रीदेवी पर फ़िल्माए कविता के गाए कुल तीन गीत इस फ़िल्म में शामिल हुए। ये सभी युगल गीत हैं जिनमें से दो में एस. पी. बालसुब्रह्मण्यम और एक में आनन्द की आवाज़ें हैं। कविता - एस.पी के गाए गीतों में पहला गीत है फ़िल्म का शीर्षक गीत "चन्द्रमुखी, आ पास आ तो ज़रा, तू है मेरी अपसरा"। इस गीत में समूह स्वरों में "चन्द्रमुखी चन्द्रमुखी" और अन्तराल संगीत में आलाप के अलावा इस गीत के बारे में बताने लायक कुछ नहीं है।  दूसरा गीत "तेरी ही आरज़ू है, तेरा इन्तज़ार है, कैसे बताऊँ तुझसे मुझे कितना प्यार है" भी एक बेहद साधारण 90 के दशक के स्टाइल का गीत है। आनन्द कुमार के साथ डुएट में शुरुआती संगीत को सुन कर भले ही आगे कुछ अच्छा सुन पाने का आभास होता है, लेकिन जब कविता "मेरे होठों पे एक ऐसी कहानी है..." गाने लगती हैं, तब पता चल जाता है कि यह भी अन्य दो गीतों ही की तरह औसत स्तर का गीत है। यह सच है कि श्रीदेवी और सलमान ख़ान की जोड़ी को दर्शक हज़म नहीं कर सके, कारण चाहे जो भी हो, लेकिन यह भी उतना ही सच है कि अगर इस फ़िल्म के गाने हिट हो जाते तो हो सकता है कि सलमान-श्री की जोड़ी को भी लोकप्रियता मिलती!

ॠषि कपूर और श्रीदेवी की जोड़ी एक कामयाब जोड़ी रही है। ’नगीना’, ’बंजारन’, ’गुरुदेव’ और ’चांदनी’ के बाद 1997 में ॠषि-श्रीदेवी की जोड़ी की अन्तिम फ़िल्म आई ’कौन सच्चा कौन झूठा’। राकेश रोशन निर्मित इस फ़िल्म में समीर और राजेश रोशन ने गीत-संगीत की रचना की, लेकिन फ़िल्म फ़्लॉप रही। फ़िल्म के गीतों में महिला कंठ के लिए अलका, कविता और प्रीति उत्तम को लिया गया। कविता और अभिजीत का गाया "हम दो दीवाने मिले इश्क़ में दुनिया भुलाए" में ऋषि कपूर और श्रीदेवी दुश्मनों की गोलियों से अपने आप को बचते बचाते हुए भाग रहे हैं और यह गीत पार्श्व में बज रहा है। सिचुएशन के अनुरूप गीत की अगली पंक्ति है "गोलियाँ चलाए चाहे पहरे लगाए, कोई दिलवालों को जुदा कर ना पाए। श्रीदेवी और कविता कृष्णमूर्ति की जोड़ी की आख़िरी फ़िल्म आई 2005 में - ’मेरी बीवी का जवाब नहीं’। ऐसा प्रतीत होता है कि अक्षय कुमार और श्रीदेवी अभिनीत यह फ़िल्म बनी 90 के दशक में बनी होगी, लेकिन प्रदर्शित हुई देर से। एस. एम. इक़बाल निर्मित व निर्देशित इस फ़िल्म में आनन्द बक्शी ने गीत लिखे और लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल ने संगीत दिया। फ़िल्म के तीन गीतों में कविता की आवाज़ थी जो फ़िल्माए गए श्रीदेवी पर। पहला गीत अभिजीत के साथ गाया हुआ युगल गीत है "तारों की छाँव में, फूलों के गाँव में, इक छोटा सा घर होगा..." जो फ़िल्म के पहले ही सीन में नामावली के दौरान पार्श्व में गाया जाता है। गीत में नायक-नायिका के चेहरे तो नज़र नहीं आते, कैमरा उनके पीछे ही रहता है। ना यह फ़िल्म चली और ना ही यह गीत चल पाया। दूसरा गीत कविता ने कुमार सानू के साथ गाया है जो फ़िल्म का शीर्षक गीत है "ऐसा तो कोई दूजा जनाब नहीं, ओ मेरी बीवी का जवाब नहीं"। बेहद औसत स्तर का गीत। तीसरा गीत कविता का गाया एकल गीत है "सब प्यार मोहब्बत झूठ, शूट, हर वादा जाए टूट..." जिसमें हास्य का एक अंग है। ख़ास तौर से "शूट" वाला अंदाज़ फ़िल्मी गीतों में एक नया प्रयोग था। इस तरह से यहाँ आकर पूरी होती है श्रीदेवी पर फ़िल्माए कविता कृष्णमूर्ति के गाए गीतों की बातें। इतने सारे गीतों में से श्रीदेवी और कविता की इस जोड़ी को अगर याद किया जाएगा तो मुखत: ’Mr. India' और ’चालबाज़’ के गीतों के लिए। ’रेडियो प्लेबैक इंडिया’ की ओर से श्रीदेवी की पुण्य स्मृति को नमन!



आख़िरी बात

’चित्रकथा’ स्तंभ का आज का अंक आपको कैसा लगा, हमें ज़रूर बताएँ नीचे टिप्पणी में या soojoi_india@yahoo.co.in के ईमेल पते पर पत्र लिख कर। इस स्तंभ में आप किस तरह के लेख पढ़ना चाहते हैं, यह हम आपसे जानना चाहेंगे। आप अपने विचार, सुझाव और शिकायतें हमें निस्संकोच लिख भेज सकते हैं। साथ ही अगर आप अपना लेख इस स्तंभ में प्रकाशित करवाना चाहें तो इसी ईमेल पते पर हमसे सम्पर्क कर सकते हैं। सिनेमा और सिनेमा-संगीत से जुड़े किसी भी विषय पर लेख हम प्रकाशित करेंगे। आज बस इतना ही, अगले सप्ताह एक नए अंक के साथ इसी मंच पर आपकी और मेरी मुलाक़ात होगी। तब तक के लिए अपने इस दोस्त सुजॉय चटर्जी को अनुमति दीजिए, नमस्कार, आपका आज का दिन और आने वाला सप्ताह शुभ हो!





शोध,आलेख व प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी 
प्रस्तुति सहयोग : कृष्णमोहन मिश्र  



रेडियो प्लेबैक इण्डिया 

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सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन दस थाट