स्वरगोष्ठी – 359 में आज
पाँच स्वर के राग – 7 : “साँझ ढले गगन तले…”
पण्डित उल्हास कशालकर से राग विभास की बन्दिश और सुरेश वाडकर से फिल्म का गीत सुनिए
सुरेश वाडकर |
पण्डित उल्हास कशालाकर |
‘रेडियो
प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी हमारी
श्रृंखला – “पाँच स्वर के राग” की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप
सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला में हम आपसे
भारतीय संगीत के कुछ ऐसे रागों पर चर्चा कर रहे हैं, जिनमें केवल पाँच
स्वरों का प्रयोग होता है। भारतीय संगीत में रागों के गायन अथवा वादन की
प्राचीन परम्परा है। संगीत के सिद्धान्तों के अनुसार राग की रचना स्वरों पर
आधारित होती है। विद्वानों ने बाईस श्रुतियों में से सात शुद्ध अथवा
प्राकृत स्वर, चार कोमल स्वर और एक तीव्र स्वर; अर्थात कुल बारह स्वरो में
से कुछ स्वरों को संयोजित कर रागों की रचना की है। सात शुद्ध स्वर हैं;
षडज, ऋषभ, गान्धार, मध्यम, पंचम, धैवत और निषाद। इन स्वरों में से षडज और
पंचम अचल स्वर माने जाते हैं। शेष में से ऋषभ, गान्धार, धैवत और निषाद
स्वरों के शुद्ध स्वर की श्रुति से नीचे की श्रुति पर कोमल स्वर का स्थान
होता है। इसी प्रकार शुद्ध मध्यम से ऊपर की श्रुति पर तीव्र मध्यम स्वर का
स्थान होता है। संगीत के इन्हीं सात स्वरों के संयोजन से रागों का आकार
ग्रहण होता है। किसी राग की रचना के लिए कम से कम पाँच और अधिक से अधिक सात
स्वर की आवश्यकता होती है। जिन रागों में केवल पाँच स्वर का प्रयोग होता
है, उन्हें औड़व जाति, जिन रागों में छः स्वर होते हैं उन्हें षाडव जाति और
जिनमें सातो स्वर प्रयोग हों उन्हें सम्पूर्ण जाति का राग कहा जाता है।
रागों की जातियों का वर्गीकरण राग के आरोह और अवरोह में लगने वाले स्वरों
की संख्या के अनुसार कुल नौ जातियों में किया जाता है। इस श्रृंखला में हम
आपसे कुछ ऐसे रागों पर चर्चा कर रहे हैं, जिनके आरोह और अवरोह में
पाँच-पाँच स्वरों का प्रयोग होता है। ऐसे रागों को औड़व-औड़व जाति का राग कहा
जाता है। श्रृंखला की सातवीं कड़ी में आज हम आपके लिए औड़व-औड़व जाति के राग
विभास का परिचय प्रस्तुत करेंगे। इसके साथ ही सुविख्यात पण्डित उल्हास
कशालाकर के स्वरों में राग विभास की एक बन्दिश के माध्यम से राग के
शास्त्रीय स्वरूप का दर्शन करा रहे हैं। राग विभास के स्वरों का फिल्मी
गीतों में बहुत कम उपयोग किया गया है। राग विभास के स्वरों पर आधारित एक
फिल्मी गीत का हमने चयन किया है। आज की कड़ी में हम आपको 1985 में प्रदर्शित
फिल्म “उत्सव” से लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल का स्वरबद्ध किया एक गीत –“साँझ
ढले गगन तले, हम कितने एकाकी…”, सुरेश वाडकर के स्वर में सुनवा रहे हैं।
पाँच स्वर
के रागों की श्रृंखला में आज का राग है, विभास। इस राग पर आधारित 1985 में
प्रदर्शित फिल्म “उत्सव” का एक गीत हम आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं। इस
फिल्म के संगीतकार लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल थे। इसी वर्ष लक्ष्मीकान्त
प्यारेलाल के ही संगीत निर्देशन में बनी एक और फिल्म, “सुर संगम” का राग
आधारित गीत हम अगले अंक में प्रस्तुत करेंगे। लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल उन
बिरले संगीतकारों में थे, जिनकी पहली फिल्म “पारसमणि” का संगीत लोकप्रियता
की कसौटी पर खरा उतरा। उनकी लोकप्रियता का आधार राग आधारित अथवा लोकसंगीत
आधारित रचनाओं की धुनें हैं। उनके संगीत में तालों का अनूठा प्रयोग
परिलक्षित होता है। फिल्म “उत्सव” एक संस्कृत नाटक के आधार पर प्राचीन
पाटलीपुत्र के परिवेश में बनी फिल्म है। इसके सभी गीत रागों का आधार लिये
हुए है। फिल्म में राग विभास पर आधारित दो गीत हैं, -“साँझ ढले गगन तले...” और –“नीलम के नभ...”। आज के अंक में हमने पार्श्वगायक सुरेश वाडकर के स्वर में गाया गया गीत –“साँझ ढले गगन तले...” का चयन हमने आपके लिए किया है। वसन्त देव की गीत रचना को लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल ने राग विभास के स्वरों में निबद्ध किया है।
राग विभास : “साँझ ढले गगन तले...” : सुरेश वाडकर : फिल्म – उत्सव
कोमल रिखबरू धैवतहि, सुर म नि बिना उदास,
वादी ध संवादी रे, औडव राग विभास।
इस
राग का सम्बन्ध भैरव थाट से माना जाता है। इसमें मध्यम और निषाद स्वर
वर्जित होता है। केवल पाँच स्वर होने से राग की जाति औड़व-औड़व होती है। ऋषभ
और धैवत स्वर कोमल इस्तेमाल होता है और शेष स्वर शुद्ध इस्तेमाल किया जाता
है। राग का वादी स्वर धैवत और संवादी स्वर ऋषभ होता है। राग विभास का
गायन-वादन दिन के पहले प्रहर में सर्वाधिक उपयुक्त माना जाता है। यह राग
उत्तरांग प्रधान है, अतः इसका चलन मध्य सप्तक के उत्तर अंग और तार सप्तक के
पूर्व अंग में अधिक होता है। राग विभास के तीन प्रकार होते हैं। भैरव थाट
के अलावा अन्य दो प्रकार पूर्वी और मारवा थाट जन्य राग होते है। तीनों
विभास राग एक दूसरे से अलग होते हैं। परन्तु भैरव थाट जन्य राग विभास का
प्रचलन अधिक है। इस राग की प्रकृति शान्त और गम्भीर होती है। इसमें धैवत
स्वर पर सावकाश आन्दोलन किया जाता है। राग विभास में ऋषभ स्वर कोमल और
गान्धार स्वर शुद्ध होता है, अतः यह प्रातःकालीन सन्धिप्रकाश राग माना जाता
है। पूर्वी थाट जन्य राग रेवा में राग विभास के ही स्वरे लगते हैं। अन्तर
यह है कि राग रेवा पूर्वांग प्रधान राग है और इसका गायन-वादन समय सायंकाल
सन्धिप्रकाश का है, जबकि विभास भैरव थाट जन्य उत्तरांग प्रधान प्रातःकालीन
सन्धिप्रकाश काल में गाया-बजाया जाने वाला राग है। राग के शास्त्रीय स्वरूप
को समझने के लिए अब हम आपको सुविख्यात संगीतज्ञ पण्डित उल्हास कशालकर के
स्वर में आपको राग विभास, तीनताल में निबद्ध एक खयाल रचना सुनवा रहे हैं।
खयाल के बोल हैं –“कहे कुम्हरवा जायल हमरा...”। आप यह रचना सुनिए और मुझे “स्वरगोष्ठी” के इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए।
राग विभास : “कहे कुम्हरवा जायल हमरा...” : पण्डित उल्हास कशालकर
संगीत पहेली
‘स्वरगोष्ठी’
के 359वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको एक राग आधारित फिल्मी गीत का
अंश सुनवा रहे हैं। गीत के इस अंश को सुन कर आपको दो अंक अर्जित करने के
लिए निम्नलिखित तीन में से कम से कम दो प्रश्नों के उत्तर देने आवश्यक हैं।
यदि आपको तीन में से केवल एक अथवा तीनों प्रश्नों का उत्तर ज्ञात हो तो भी
आप प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। 360वें अंक की ‘स्वरगोष्ठी’ तक जिस
प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें वर्ष 2018 के प्रथम सत्र का
विजेता घोषित किया जाएगा। इसके साथ ही पूरे वर्ष के प्राप्तांकों की गणना
के बाद वर्ष के अन्त में महाविजेताओं की घोषणा की जाएगी और उन्हें सम्मानित
भी किया जाएगा।
1 – इस गीतांश को सुन कर बताइए कि इसमें किस राग का आधार है?
2 – इस गीत में प्रयोग किये गए ताल को पहचानिए और उसका नाम बताइए।
3 – इस गीत में किस प्रसिद्ध गायक की आवाज़ है?
आप उपरोक्त तीन मे से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर ही शनिवार, 10 मार्च, 2018 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। आपको यदि उपरोक्त तीन में से केवल एक प्रश्न का सही उत्तर ज्ञात हो तो भी आप पहेली प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। COMMENTS
में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते हैं, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर
देने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। विजेता का नाम हम उनके शहर,
प्रदेश और देश के नाम के साथ ‘स्वरगोष्ठी’ के 361वें अंक
में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक
के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना
चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे
दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’
की 357वीं कड़ी में हमने आपको वर्ष 1961 में प्रदर्शित फिल्म “सम्पूर्ण
रामायण” के एक रागबद्ध फिल्मी गीत का अंश सुनवा कर आपसे तीन में से कम से
कम दो सही उत्तर की अपेक्षा की थी। पहेली के पहले प्रश्न का सही उत्तर है;
राग – चन्द्रकौंस, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है; ताल – दादरा और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है; स्वर – लता मंगेशकर।
“स्वरगोष्ठी” की पहेली प्रतियोगिता में तीनों अथवा तीन में से दो प्रश्नो के सही उत्तर देकर विजेता बने हैं; बीकानेर, राजस्थान के लक्ष्मीनारायण सोनी, चेरीहिल न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल, जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी और हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी।
उपरोक्त सभी चार प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से
हार्दिक बधाई। इस पहेली प्रतियोगिता में हमारे नये प्रतिभागी भी हिस्सा ले
सकते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि आपको पहेली के तीनों प्रश्नों के सही उत्तर
ज्ञात हो। यदि आपको पहेली का कोई एक उत्तर भी ज्ञात हो तो भी आप इसमें भाग
ले सकते हैं।
अपनी बात
मित्रों,
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी हमारी
श्रृंखला “पाँच स्वर के राग” की सातवीं कड़ी में आपने राग चन्द्रकौंस का
परिचय प्राप्त किया। इसके साथ ही राग के शास्त्रीय स्वरूप को समझने लिए
संगीतज्ञ पण्डित उल्हास कशालकर से राग विभास के एक द्रुत खयाल का रसास्वादन
किया था। साथ ही आपने फिल्म “उत्सव” से राग विभास के स्वरों में पिरोया एक
मधुर गीत सुरेश वाडकर के स्वर में सुना। हमें विश्वास है कि हमारे अन्य
पाठक भी “स्वरगोष्ठी” के प्रत्येक अंक का अवलोकन करते रहेंगे और अपनी
प्रतिक्रिया हमें भेजते रहेगे। आज के अंक के बारे में यदि आपको कुछ कहना हो
तो हमें अवश्य लिखें। अगले अंक में पाँच स्वर के एक अन्य राग पर आपसे
चर्चा करेंगे। इस नई श्रृंखला “पाँच स्वर के राग” अथवा आगामी श्रृंखलाओं के
लिए यदि आपका कोई सुझाव या फरमाइश हो तो हमें swargoshthi@gmail.com
पर अवश्य लिखिए। अगले अंक में रविवार को प्रातः 7 बजे हम ‘स्वरगोष्ठी’ के
इसी मंच पर एक बार फिर सभी संगीत-प्रेमियों का स्वागत करेंगे।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
राग विभास : SWARGOSHTHI – 359 : RAG VIBHAS : 4 Mar., 2018
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