स्वरगोष्ठी – 357 में आज
पाँच स्वर के राग – 5 : “सावन आए या न आए…”
अश्विनी भिड़े से राग वृन्दावनी सारंग की बन्दिश तथा रफी और आशा से श्रृंगाररस का गीत सुनिए
आशा भोसले और मुहम्मद रफी |
अश्विनी भिड़े देशपाण्डे |
फिल्म संगीत
में रागों का सर्वाधिक उपयोग यदि किसी संगीतकार ने किया है, तो वह हैं,
नौशाद अली। फिल्म संगीत के क्षेत्र में नौशाद को उनके समय तक सर्वाधिक
प्रतिष्ठा प्राप्त थी। नौशाद पहले संगीतकार थे जिन्होने अपने व्यक्तित्व और
कृतित्व के बल पर फिल्म जगत में संगीतकार का दर्जा भी नायक या निर्देशक के
समकक्ष ला खड़ा किया। नौशाद ऐसे संगीतकार थे, जिन्होने फिल्मों में अपनी
रचनाएँ भारतीय संगीत पद्धति के अन्तर्गत विकसित की। उन्होने राग आधारित
स्वरक्रम के साथ कभी तो विशुद्ध शास्त्रीय बन्दिशें सृजित की तो कभी
शास्त्रीय संगीत के आधार में लोकसंगीत के अस्तित्व को स्वीकार करते हुए
बहुत ही सरस और मीठे गीत रचे। ऐसा ही एक राग आधारित गीत आज हम आपको सुनवा
रहे हैं। 1966 में दिलीप कुमार और वहीदा रहमान अभिनीत फिल्म “दिल दिया दर्द
लिया” प्रदर्शित हुई थी। फिल्म के गीतकार शकील बदायूनी और संगीतकार नौशाद
थे। फिल्म में नौशाद के स्वरबद्ध कई राग आधारित गीत हैं। इनमें से एक गीत –“सावन आए या न आए...”
राग वृन्दावनी सारंग के स्वरों पर आधारित इतनी विराट और कसी हुई रचना है
कि फिल्मी गीतों में राग का इतना सफल रूपान्तरण बहुत कठिनाई से परिलक्षित
होता है। आइए सुनते हैं, राग वृन्दावनी सारंग पर आधारित यह फिल्मी गीत।
वृन्दावनी सारंग : “सावन आए या न आए...” : मुहम्मद रफी और आशा भोसले : फिल्म – दिल दिया दर्द लिया
वर्ज्य करे धैवत गान्धार, गावत काफी अंग,
दो निषाद रे प संवाद, है वृन्दावनी सारंग।
राग
वृन्दावनी का सम्बन्ध काफी थाट से माना जाता है। इस राग में गान्धार और
धैवत स्वर वर्जित होता है। अतः इसकी जाति औड़व-औड़व होती है। राग के आरोह में
शुद्ध निषाद और अवरोह में कोमल निषाद का प्रयोग किया जाता है। अन्य स्वर
शुद्ध प्रयोग होते हैं। कुछ विद्वान राग वृन्दावनी सारंग को खमाज ठाट का
राग मानते हैं, किन्तु इसे काफी ठाट का राग मानना उचित है। “राग परिचय”
ग्रन्थ के लेखक हरिश्चन्द्र श्रीवास्तव के अनुसार किसी भी राग का थाट
निश्चित करने के लिए स्वर से अधिक महत्वपूर्ण राग का स्वरूप होता है।
स्वरूप की दृष्टि से क्याह राग, खमाज की तुलना में काफी थाट के अधिक समीप
है। सारंग के कई प्रकार हैं, जैसे शुद्ध सारंग, मियाँ की सारंग, मध्यमादि
सारंग आदि। इस राग की रचना उत्तर प्रदेश के एक लोकगीत के आधार पर हुई है।
साधारण बोल-चाल की भाषा में राग सारंग का अर्थ वृन्दावनी सारंग ही माना
जाता है। राग के शास्त्रीय स्वरूप को समझने के लिए अब हम आपको सुविख्यात
गायिका विदुषी अश्विनी भिड़े देशपाण्डे के स्वर में इस राग की एक बन्दिश
प्रस्तुत कर रहे हैं। रचना के बोल हैं, -“सखी री मोरा जिया बेकल होत...”। यह रचना मध्यलय, मत्तताल में निबद्ध है।
वृन्दावनी सारंग : “सखी री मोरा जिया बेकल होत...” : अश्विनी भिड़े देशपाण्डे
संगीत पहेली
‘स्वरगोष्ठी’
के 357वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको एक रागबद्ध फिल्मी गीत का
अंश सुनवा रहे हैं। गीत के इस अंश को सुन कर आपको दो अंक अर्जित करने के
लिए निम्नलिखित तीन में से कम से कम दो प्रश्नों के उत्तर देने आवश्यक हैं।
यदि आपको तीन में से केवल एक अथवा तीनों प्रश्नों का उत्तर ज्ञात हो तो भी
आप प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। 360वें अंक की ‘स्वरगोष्ठी’ तक जिस
प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें वर्ष 2018 के प्रथम सत्र का
विजेता घोषित किया जाएगा। इसके साथ ही पूरे वर्ष के प्राप्तांकों की गणना
के बाद वर्ष के अन्त में महाविजेताओं की घोषणा की जाएगी और उन्हें सम्मानित
भी किया जाएगा।
1 – इस गीतांश को सुन कर बताइए कि इसमें किस राग का स्पर्श है?
2 – इस गीत में प्रयोग किये गए ताल को पहचानिए और उसका नाम बताइए।
3 – इस गीत में किस गायिका की आवाज़ है?
आप उपरोक्त तीन मे से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर ही शनिवार, 24 फरवरी, 2018 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। आपको यदि उपरोक्त तीन में से केवल एक प्रश्न का सही उत्तर ज्ञात हो तो भी आप पहेली प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। COMMENTS
में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते हैं, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर
देने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। विजेता का नाम हम उनके शहर,
प्रदेश और देश के नाम के साथ ‘स्वरगोष्ठी’ के 358वें
अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा
कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच
बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ
के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’
की 355वीं कड़ी में हमने आपको वर्ष 1960 में प्रदर्शित फिल्म “बंजारिन” के
एक रागबद्ध फिल्मी गीत का अंश सुनवा कर आपसे तीन में से कम से कम दो सही
उत्तर की अपेक्षा की थी। पहेली के पहले प्रश्न का सही उत्तर है; राग – दुर्गा, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है; ताल – तीनताल व कहरवा और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है; स्वर – मुकेश और लता मंगेशकर।
“स्वरगोष्ठी” की पहेली प्रतियोगिता में तीनों अथवा तीन में से दो प्रश्नो के सही उत्तर देकर विजेता बने हैं; वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया, चेरीहिल न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल, जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी और हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी।
उपरोक्त सभी चार प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से
हार्दिक बधाई। इस पहेली प्रतियोगिता में हमारे नये प्रतिभागी भी हिस्सा ले
सकते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि आपको पहेली के तीनों प्रश्नों के सही उत्तर
ज्ञात हो। यदि आपको पहेली का कोई एक उत्तर भी ज्ञात हो तो भी आप इसमें भाग
ले सकते हैं।
अपनी बात
चाँद परदेशी (बीच में) और लक्ष्मीनारायण सोनी (दाहिने) |
“स्वरगोष्ठी”
के इस अंक में आपने राग वृन्दावनी सारंग का परिचय प्राप्त किया और इस राग
में आपने दो रचनाएँ सुनी। आज के अंक के बारे में यदि आपको कुछ कहना हो तो
हमें अवश्य लिखें। अगले अंक में पाँच स्वर के एक अन्य राग पर आपसे चर्चा
करेंगे। इस नई श्रृंखला “पाँच स्वर के राग” अथवा आगामी श्रृंखलाओं के लिए
यदि आपका कोई सुझाव या फरमाइश हो तो हमें swargoshthi@gmail.com
पर अवश्य लिखिए। अगले अंक में रविवार को प्रातः 7 बजे हम ‘स्वरगोष्ठी’ के
इसी मंच पर एक बार फिर सभी संगीत-प्रेमियों का स्वागत करेंगे।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
राग वृन्दावनी सारंग : SWARGOSHTHI – 357 : RAG VRIDAVANI SARANG : 18 Feb., 2018
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