रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार! स्वागत है आप सभी का ’चित्रकथा’ स्तंभ में। समूचे विश्व में मनोरंजन का सर्वाधिक लोकप्रिय माध्यम सिनेमा रहा है और भारत कोई व्यतिक्रम नहीं। सिनेमा और सिने-संगीत, दोनो ही आज हमारी ज़िन्दगी के अभिन्न अंग बन चुके हैं। ’चित्रकथा’ एक ऐसा स्तंभ है जिसमें हम लेकर आते हैं सिनेमा और सिनेमा-संगीत से जुड़े विषय। श्रद्धांजलि, साक्षात्कार, समीक्षा, तथा सिनेमा के विभिन्न पहलुओं पर शोधालेखों से सुसज्जित इस साप्ताहिक स्तंभ की आज 55-वीं कड़ी है।
26 और 27 जनवरी 2018 को फ़िल्म जगत के दो सुप्रसिद्ध गिटार वादकों का निधन हो गया। संगीतकार जोड़ी लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल के प्यारेलाल के भाई गोरख शर्मा के 26 जनवरी को और राहुल देव बर्मन टीम के भानु गुप्त के 27 जनवरी को निधन हो जाने से फ़िल्म-संगीत जगत के दो चमकते सितारे हमेशा के लिए डूब गए। भले हम इन दोनों कलाकारों को मुख्य रूप से फ़िल्मी गीतों में उनके गिटार के टुकड़ों से जानते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि इन दोनों ने गिटार के अलावा भी कई और साज़ों पर भी अपने अपने हाथ आज़माए हैं। जहाँ गोरख शर्मा ने मैन्डोलीन और कई अन्य तार वाद्यों पर अपनी जादुई उंगलियाँ चलाईं, वहीं भानु गुप्त ने हार्मोनिका (माउथ ऑर्गन) में महारथ हासिल की। आइए, आज ’चित्रकथा’ में गोरख शर्मा और भानु गुप्त को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उनके जीवन पर एक नज़र डालते हैं और याद करते हैं उन गीतों को जिन्हें उन्होंने अपनी कला से अमर बना दिया है। आज का यह अंक गोरख शर्मा और भानु गुप्त की पुण्य स्मृति को समर्पित है।
26 और 27 जनवरी 2018 को फ़िल्म जगत के दो सुप्रसिद्ध गिटार वादकों का निधन हो गया। संगीतकार जोड़ी लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल के प्यारेलाल के भाई गोरख शर्मा के 26 जनवरी को और राहुल देव बर्मन टीम के भानु गुप्त के 27 जनवरी को निधन हो जाने से फ़िल्म-संगीत जगत के दो चमकते सितारे हमेशा के लिए डूब गए। भले हम इन दोनों कलाकारों को मुख्य रूप से फ़िल्मी गीतों में उनके गिटार के टुकड़ों से जानते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि इन दोनों ने गिटार के अलावा भी कई और साज़ों पर भी अपने अपने हाथ आज़माए हैं। जहाँ गोरख शर्मा ने मैन्डोलीन और कई अन्य तार वाद्यों पर अपनी जादुई उंगलियाँ चलाईं, वहीं भानु गुप्त ने हार्मोनिका (माउथ ऑर्गन) में महारथ हासिल की। आइए, आज ’चित्रकथा’ में गोरख शर्मा और भानु गुप्त को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उनके जीवन पर एक नज़र डालते हैं और याद करते हैं उन गीतों को जिन्हें उन्होंने अपनी कला से अमर बना दिया है। आज का यह अंक गोरख शर्मा और भानु गुप्त की पुण्य स्मृति को समर्पित है।
गोरख शर्मा और भानु गुप्त |
प्यारेलाल और गोरख शर्मा |
गोरख शर्मा के संगीत के टुकड़ों से सजे कुछ और सुपरहिट गीत हैं - "मेरे महबूब क़यामय होगी" (Mr. X in Bombay, 1964), "नज़र ना लग जाए किसी की राहों में" (Night in London, 1967), "मैं शायर तो नहीं" (Bobby, 1973), "रुक जाना नहीं तू कहीं हार के" (इम्तिहान, 1974), "आओ यारों गाओ" (हवस, 1974), "My name is Anthony Gonsalves" (अमर अक्बर ऐन्थनी, 1977), "डफ़ली वाले डफ़ली बजा" (सरगम, 1979), "हम बने तुम बने एक दूजे के लिए" (एक दूजे के लिए, 1981), "सासों की ज़रूरत है जैसे" (आशिक़ी, 1990), "सनम मेरे सनम क़सम तेरी क़सम" (हम, 1991), "जाओ तुम चाहे जहाँ, याद करोगे वहाँ" (नरसिम्हा, 1991), "जादू तेरी नज़र, ख़ुशबू तेरा बदन" (डर, 1993)। BBC के एक साक्षात्कार में जब एक बार गोरख शर्मा से यह पूछा गया कि बड़े भाई की तरह उन्होंने संगीत निर्देशन में हाथ क्यों नहीं आज़माया, तो उनका जवाब था - "मैं उन दिनों मैन्डोलिन और गिटार की परफार्मेंस और उनकी रिकॉर्डिंग में इतना व्यस्त रहता था कि संगीत निर्देशन के लिए वक़्त ही नहीं मिल पता था।" बीते ज़माने को याद करते हुए गोरख जी ने आगे उस साक्षात्कार में बताया, ''उस समय अंग्रेज़ी संगीतकारों का दबदबा था, लेकिन बहुत कम लोग अंग्रेज़ी में संगीत (स्टाफ नोटेशन) पढ़ पाते थे, जिसकी वजह से उन्हें काम नहीं मिल पता था। अपने स्टॉफ़ में मैं उन चुनिंदा लोगों में से था, जो स्टॉफ़ नोटेशन पढ़ लेता था। हालांकि़, इसका श्रेय मेरे संगीतकार पिता पंडित रामप्रसाद शर्मा उर्फ़ 'बाबाजी' को जाता है।'' बीते दिनों को याद करते हुए वे आगे कहते हैं, "तब पूरा दिन रिकॉर्डिंग चलती थी और 70 से 100 संगीतकारों को एक साथ एक गाने की सही धुन निकालनी होती थी। किसी एक से भी चूक हो जाती तो सबको दोबारा फिर से बजाना पड़ता था। तब एसी (AC) तो होते नहीं थे, तो हम एक बंद कमरे में घंटों रिकॉर्डिंग करने के बाद तुरंत सारे खिड़की दरवाज़ें खोल देते थे या सब पंखे के आगे खड़े हो जाते।'' गोरख शर्मा के इस दुनिया से जाने से फ़िल्म संगीत जगत का एक चमकता सितारा हमेशा के लिए अस्त हो गया।
भानु गुप्त भी एक ऐसे साज़िन्दे थे जिनका फ़िल्म जगत में बहुत नाम था। ख़ास कर राहुल देव बर्मन की टोली में वो एक महत्वपूर्ण महारथी थे। माउथ ऑर्गन (हारमोनिका) और गिटार के वो जाने-माने वादक थे। भले उनका नाम राहुल देव बर्मन के साथ लिया जाता है, यह भी सच है कि उन्होंने कई अन्य संगीतकारों के साथ भी काम किया है। भानु गुप्त का जन्म 1932 में बर्मा (अब म्यानमार) की राजधानी रंगून में हुआ जहाँ बचपन में उन्होंने माउथ ऑरगन बजाना ब्रिटिश नाविकों से सीखा। जापानी भाषा जानने की वजह से मात्र 12 वर्ष की आयु में ही उन्हें जापानी आर्मी में अंग्रेज़ी भाषान्तरकार की नौकरी मिल गई। बचपन में उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध को बर्मा में रहते हुए बहुत करीब से देखा था भानु गुप्त ने। वो और उनका पूरा परिवार सुभाष चन्द्र बोस और उनके INA के साथ काम किया। 15 वर्ष की आयु में युवा भानु को एक प्लास्टिक हारमोनिका उपहार में मिला जिसे उन्होंने ख़ुद ही बजाना सीख लिया। पहली धुन जो उन्होंने उस पर बजाना सीखी, वो थी हमारी राष्ट्रगान की धुन। बर्मा में युद्ध गम्भीर रूप धारण करने की वजह से वो परिवार के साथ भारत आ गए और पश्चिम बंगाल के हूगली ज़िले के वैद्यबाटी नामक जगह में बस गए। ऑयल टेक्नोलोजी में पढ़ाई पूरी की और नौकरी भी करने लगे। भानु शुरु से ही एक अच्छे खिलाड़ी थे। नदियों को तैर कर पार कर जाना, बॉक्सिंग् और क्रिकेट खेलना उनके शौक थे। 18 वर्ष के होते ही भानु Calcutta League में First Division Cricket खेलने लगे। उन्होंने बापु नादकरनी, पंकज राय और वेस्ट इंडीज़ के रॉय गिलक्रिस्ट के साथ खेला हुआ है। आज भी कोलकाता के ’कालीघाट क्लब’ में उनका नाम उस क्लब के स्वर्णिम खिलाड़ियों की लिस्ट में लिखा हुआ है।
क्रिकेट खेलते हुए भानु गुप्त कोलकाता के नाइट क्लबों और कैबरे में आय दिन हारमोनिका बजाया करते थे जिससे थोड़ी बहुत आमदनी हो जाती थी। धीरे-धीरे उनके सामने यह सवाल खड़ा हो गया कि आगे क्रिकेट पर ध्यान देना है या संगीत पर। उन्होंने संगीत को चुना और एक संगीतज्ञ बनने का सपना लेकर 1959 में वो अपने परिवार के इच्छा के ख़िलाफ़ जाकर कोलकाता से बम्बई चले आए। हारमोनिका में उनके हुनर से प्रभावित हो कर संगीतकार सी. रामचन्द्र ने उन्हें पहली बार फ़िल्म ’पैग़ाम’ में बजाने का मौका दिया। जल्दी ही बिपिन दत्त (बिपिन-बाबुल जोड़ी के) के साथ वो काम करने लगे और आगे चल कर सलिल चौधरी के साथ जुड़े और वो एक ’हिन्दु हारमोनिका प्लेयर’ के नाम से पहचाने जाने लगे, क्योंकि उन दिनों लगभग सभी हारमोनिका वादक इसाई हुआ करते थे। सलिल दा के साथ किसी रेकॉर्डिंग् के दौरान भानु गुप्त की नज़र पड़ी एक पुराने एडुसोनिया गिटार पर, जिस पर "made by Braganzas of Free School Street, Kolkata" लिखा हुआ था। उपेक्षित स्थिति में पड़े इस गिटार को प्यार से उठा कर उन्होंने इसके तारों को छेड़ना शुरु किया और इसे सीखने में जुट गए। संगीत की समझ तो थी ही, इसलिए ज़्यादा समय नहीं लगा सीखने में। उन दिनों भानु गुप्त संगीतकार जोड़ी सोनिक-ओमी के पड़ोसी हुआ करते थे। सोनिक ओमी के वहाँ संगीतकार मदन मोहन का भी आना-जाना लगा रहता था। एक दिन जब भानु गुप्त गिटार बजा रहे थे, तब मदन मोहन ने उन्हें बजाते हुए सुना, प्रभावित हुए और सोनिक-ओमी के सहयोग से भानु से मुलाक़ात की। 1963 की किसी फ़िल्म में मदन मोहन ने भानु गुप्त को गिटार बजाने का मौका दिया। यह वह समय था जब राहुल देव बर्मन फ़िल्म जगत में बतौर स्वतन्त्र संगीतकार अपने पांव जमाने की कोशिश में लगे थे। उन्हें एक गिटारिस्ट की तलाश थी। ऐसे में भानु गुप्त को बुलाया गया और बाकी अब इतिहास बन चुका है। पंचम के साथ भानु गुप्त का साथ पंचम की मृत्यु तक, यानी 1994 तक रहा।
पंचम और भानु दा |
गोरख शर्मा और भानु गुप्त तो चले गए पर पीछे छोड़ गए वाद्य संगीत की एक ऐसी धरोहर जो आने वाले लम्बे समय तक इस दौर के साज़िन्दों और संगीतज्ञों को लाभान्वित करते रहेंगे और हम सुधी श्रोताओं के कानों और दिलों में अमृत घोलते रहेंगे। ’रेडियो प्लेबैक इंडिया’ की ओर से स्वर्गीय गोरख शर्मा और स्वर्गीय भानु गुप्त को विनम्र श्रद्धा-सुमन!
आख़िरी बात
’चित्रकथा’ स्तंभ का आज का अंक आपको कैसा लगा, हमें ज़रूर बताएँ नीचे टिप्पणी में या soojoi_india@yahoo.co.in के ईमेल पते पर पत्र लिख कर। इस स्तंभ में आप किस तरह के लेख पढ़ना चाहते हैं, यह हम आपसे जानना चाहेंगे। आप अपने विचार, सुझाव और शिकायतें हमें निस्संकोच लिख भेज सकते हैं। साथ ही अगर आप अपना लेख इस स्तंभ में प्रकाशित करवाना चाहें तो इसी ईमेल पते पर हमसे सम्पर्क कर सकते हैं। सिनेमा और सिनेमा-संगीत से जुड़े किसी भी विषय पर लेख हम प्रकाशित करेंगे। आज बस इतना ही, अगले सप्ताह एक नए अंक के साथ इसी मंच पर आपकी और मेरी मुलाक़ात होगी। तब तक के लिए अपने इस दोस्त सुजॉय चटर्जी को अनुमति दीजिए, नमस्कार, आपका आज का दिन और आने वाला सप्ताह शुभ हो!
शोध,आलेख व प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी
प्रस्तुति सहयोग : कृष्णमोहन मिश्र
रेडियो प्लेबैक इण्डिया
Comments