स्वरगोष्ठी – 351 में आज
सभी पाठकों और श्रोताओं को नववर्ष 2018 के पहले अंक में अभिनन्दन
महाविजेताओं की प्रस्तुतियाँ – 1
चौथे महाविजेता डॉ. किरीट छाया और पाँचवीं महाविजेता विजया राजकोटिया की प्रस्तुतियाँ
महाविजेता विजया राजकोटिया |
महाविजेता डॉ. किरीट छाया |
उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ |
मंगलध्वनि : राग भैरवी : शहनाई वादन : उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ और साथी
हमारे
दल के सर्वाधिक कर्मठ साथी सुजोय चटर्जी ने ‘स्वरगोष्ठी’ स्तम्भ की नीव
रखी थी। उद्देश्य था, शास्त्रीय और उपशास्त्रीय संगीत-प्रेमियों को एक ऐसा
मंच देना जहाँ किसी कलासाधक, प्रस्तुति अथवा किसी संगीत-विधा पर हम आपसे
संवाद कायम कर सकें और आपसे विचारों का आदान-प्रदान कर सकें। आज के 351वें
अंक के माध्यम से हम कुछ पुरानी स्मृतियों को ताज़ा कर रहे हैं। जैसा कि
पहले ही उल्लेख किया गया है कि इस स्तम्भ की बुनियाद सुजॉय चटर्जी ने रखी
थी और आठवें अंक तक अपने आलेखों के माध्यम से अनेक संगीतज्ञों व्यक्तित्व
और कृतित्व से हमें रससिक्त किया था। नौवें अंक से हमारे एक नये साथी सुमित
चक्रवर्ती हमसे जुड़े और आपके अनुरोध पर उन्होने शास्त्रीय, उपशास्त्रीय
संगीत के साथ लोक संगीत को भी ‘सुर संगम’ से जोड़ा। सुमित जी ने इस स्तम्भ
के 30वें अंक तक आपके लिए बहुविध सामग्री प्रस्तुत की, जिसे आप सब
पाठकों-श्रोताओं ने सराहा। इसी बीच मुझ अकिंचन को भी कई विशेष अवसरों पर
कुछ अंक प्रस्तुत करने का अवसर मिला। सुमित जी की पारिवारिक और व्यावसायिक
व्यस्तता के कारण 31वें अंक से ‘सुर संगम’ का पूर्ण दायित्व मेरे साथियों
ने मुझे सौंपा। मुझ पर विश्वास करने के लिए अपने साथियों का मैं आभारी हूँ।
साथ ही अपने पाठकों-श्रोताओं का अनमोल प्रोत्साहन भी मुझे मिला, जो आज भी
जारी है।
बीते
वर्ष के अंकों में ‘स्वरगोष्ठी’ से असंख्य पाठक, श्रोता, समालोचक और
संगीतकार जुड़े। हमें उनका प्यार, दुलार और मार्गदर्शन मिला। उन सभी का
नामोल्लेख कर पाना सम्भव नहीं है। ‘स्वरगोष्ठी’ का सबसे रोचक भाग प्रत्येक
अंक में प्रकाशित होने वाली ‘संगीत पहेली’ है। इस पहेली में बीते वर्ष के
दौरान अनेक संगीत-प्रेमियों ने सहभागिता की। इन सभी उत्तरदाताओं को उनके
सही जवाब पर प्रति सप्ताह अंक दिये गए। वर्ष के अन्त में सभी प्राप्तांकों
की गणना की की गई। 348वें अंक तक की गणना की जा चुकी है। इनमें से सर्वाधिक
अंक प्राप्त करने वाले पाँच महाविजेताओं का चयन कर लिया गया है। आज के इस
अंक में हम आपका परिचय पहेली के चौथे और पाँचवें महाविजेता से करा रहे हैं।
पहले, दूसरे और तीसरे महाविजेताओ की घोषणा और उनकी प्रस्तुतियों का
रसास्वादन हम अगले अंक में कराएँगे।
“स्वरगोष्ठी”
के अन्तर्गत आयोजित वर्ष 2017 की पहेली प्रतियोगिता में 88 अंक प्राप्त कर
पाँचवीं महाविजेता का सम्मान प्राप्त करने वाली प्रतिभागी हैं,
पेंसिलवेनिया, अमेरिका की विजया राजकोटिया। संगीत की साधना में पूर्ण
समर्पित विजया जी ने लखनऊ स्थित भातखण्डे संगीत महाविद्यालय (वर्तमान में
विश्वविद्यालय) से संगीत विशारद की उपाधि प्राप्त की है। बचपन में ही उनकी
प्रतिभा को पहचान कर उनके पिता, विख्यात रुद्रवीणा वादक और वीणा मन्दिर के
प्राचार्य श्री पी.डी. शाह ने कई तंत्र और सुषिर वाद्यों के साथ-साथ कण्ठ
संगीत की शिक्षा भी प्रदान की। श्री शाह की संगीत परम्परा को उनकी सबसे बड़ी
सुपुत्री विजया जी ने आगे बढ़ाया। आगे चलकर विजया जी को अनेक संगीत गुरुओं
से मार्गदर्शन मिला, जिनमें आगरा घराने के उस्ताद खादिम हुसेन खाँ की
शिष्या सुश्री मिनी कापड़िया, पण्डित लक्ष्मण प्रसाद जयपुरवाले, सुश्री
मीनाक्षी मुद्बिद्री और सुविख्यात गायिका श्रीमती शोभा गुर्टू प्रमुख नाम
हैं। विजया जी संगीत साधना के साथ-साथ ‘क्रियायोग’ जैसी आध्यात्मिक साधना
में भी संलग्न रहती हैं। उन्होने अपने गायन का प्रदर्शन मुम्बई, लन्दन, सैन
फ्रांसिस्को, साउथ केरोलिना, न्यूजर्सी, और पेंसिलवानिया में किया है।
सम्प्रति विजया जी पेंसिलवानिया के अपने स्वयं के संगीत विद्यालय में हर
आयु के विद्यार्थियों को संगीत की शिक्षा प्रदान कर रही हैं। ‘स्वरगोष्ठी’
पहेली की महाविजेता के रूप में अब हम आपको विजया जी के स्वर में राग मारवा
में निबद्ध दो खयाल सुनवाते है। विलम्बित खयाल –“दीजो मोहे शरण तिहारी...” एकताल में और द्रुत खयाल –“काहू की प्रीत कोऊ करे सखी री...”
तीनताल में निबद्ध है। इस प्रस्तुति में तबला पर विक्रान्त केलकर और
हारमोनियम पर सुरेश वेनेगल ने संगति की है। लीजिए, राग मारवा में दो खयाल
सुनिए और विजया जी को महाविजेता बनने पर बधाई दीजिए।
खयाल राग मारवा : विलम्बित एकताल और द्रुत तीनताल में दो खयाल : विजया राजकोटिया
वोरहीज, न्यूजर्सी के डॉ. किरीट छाया ने वर्ष 2017 की संगीत पहेली में 90 अंक अर्जित कर चौथा स्थान प्राप्त किया है। किरीट जी पेशे से चिकित्सक हैं और 1971 से अमेरिका में निवास कर रहे हैं। मुम्बई से चिकित्सा विज्ञान से एम.डी. करने के बाद आप सपत्नीक अमेरिका चले गए। बचपन से ही किरीट जी के कानों में संगीत के स्वर स्पर्श करने लगे थे। उनकी बाल्यावस्था और शिक्षा-दीक्षा, संगीत-प्रेमी और पारखी मामा-मामी के संरक्षण में बीता। बचपन से ही सुने गए भारतीय शास्त्रीय संगीत के स्वरो के प्रभाव के कारण किरीट जी का संगीत के प्रति अनुराग निरन्तर बना रहा। किरीट जी न तो स्वयं गाते हैं और न बजाते हैं, परन्तु संगीत सुनने के दीवाने हैं। वह इसे अपना सौभाग्य मानते हैं कि उनकी पत्नी को भी संगीत के प्रति लगाव है। नब्बे के दशक के मध्य में किरीट जी ने अमेरिका में रह रहे कुछ संगीत-प्रेमी परिवारों के सहयोग से “रागिनी म्यूजिक सर्कल” नामक संगीत संस्था का गठन किया है। इस संस्था की ओर से समय-समय पर संगीत अनुष्ठानों और संगोष्ठियों का आयोजन किया जाता है। अब तक उस्ताद विलायत खाँ, उस्ताद अमजद अली खाँ, पण्डित अजय चक्रवर्ती, पण्डित मणिलाल नाग, पण्डित बुद्धादित्य मुखर्जी आदि की संगीत सभाओं का आयोजन यह संस्था कर चुकी है। विगत वर्ष विदुषी कौशिकी चक्रवर्ती की संगीत सभा का फिलेडेल्फिया नामक स्थान पर सफलतापूर्वक आयोजन किया गया था। किरीट जी गैस्ट्रोएंट्रोंलोजी चिकित्सक के रूप में विगत 40 वर्षों तक लोगों की सेवा करने के बाद जुलाई, 2014 में सेवानिवृत्त हुए हैं। सेवानिवृत्ति के बाद किरीट जी अब अपना अधिकांश समय शास्त्रीय संगीत और अपनी अन्य अभिरुचि, फोटोग्राफी और 1950 से 1970 के बीच के हिन्दी फिल्म संगीत को दे रहे हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ मंच से डॉ. किरीट छाया का सम्पर्क हमारी एक अन्य नियमित प्रतिभागी विजया राजकोटिया के माध्यम से हुआ है। किरीट जी हमारे नियमित सहभागी हैं और अपने संगीत-प्रेम और स्वरों की समझ के बल पर वर्ष 2017 की संगीत पहेली में चौथे महाविजेता बने हैं। रेडियो प्लेबैक इण्डिया परिवार उन्हें महाविजेता का सम्मान अर्पित करता है। हमारी परम्परा है कि हम जिन्हें सम्मानित करते हैं स्वयं उनके द्वारा प्रस्तुत अथवा उनकी पसन्द का संगीत सुनवाते हैं। लीजिए, अब हम डॉ. किरीट छाया की पसन्द का एक वीडियो प्रस्तुत कर रहे हैं। यू-ट्यूब के सौजन्य से प्रस्तुत इस वीडियो के माध्यम से हम आपको पण्डित भीमसेन जोशी का गाया राग पूर्वी सुनवा रहे हैं। आप पण्डित भीमसेन जोशी के दिव्य स्वर में यह रिकार्डिंग सुनिए और मुझे आज के इस विशेष अंक को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए।
राग पूर्वी : “हरि मैका सब सुख दीन्हों...” : पण्डित भीमसेन जोशी : प्रेषक – डॉ. किरीट छाया
संगीत पहेली
‘स्वरगोष्ठी’
के 351 और 352वें अंक में हम वर्ष 2017 की संगीत पहेली के महाविजेताओं को
उन्हीं की प्रस्तुतियों के माध्यम से सम्मानित कर रहे हैं, अतः इस अंक में
भी हम आपको कोई संगीत पहेली नहीं दे रहे हैं। अगले अंक में हम पुनः एक नई
पहेली के साथ उपस्थित होंगे।
इस
अंक में प्रस्तुत किये गए गीत-संगीत, राग अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप
कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम
आपका इस मंच पर स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’
के 349वें अंक की संगीत पहेली में हमने आपको 1959 में प्रदर्शित फिल्म
“मैं नशे में हूँ” से एक फिल्मी ठुमरी गीत का अंश सुनवाया था और आपसे तीन
में से किन्हीं दो प्रश्न का उत्तर पूछा था। पहले प्रश्न का सही उत्तर है-
राग – तिलंग, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- ताल – कहरवा और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है- गायिका – लता मंगेशकर।
वर्ष 2017 की इस अन्तिम पहेली का सही उत्तर देने वाले हमारे विजेता हैं, जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी, पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया, वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया, चेरीहिल न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल और हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी। उपरोक्त सभी पाँच प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।
अपनी बात
मित्रो,
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज
का यह अंक नववर्ष 2018 का पहला अंक था। इस अंक में हमने आपको संगीत पहेली
के चौथे महाविजेता डॉ. किरीट छाया और पाँचवीं महाविजेता विजया राजकोटिया से
परिचय कराया और उनकी रचनाएँ भी प्रस्तुत की। अगले अंक में हम आपका परिचय
पहेली के प्रथम, द्वितीय और तृतीय स्थान के महाविजेताओं से कराएँगे। वर्ष
2017 की प्रस्तुतियों को हमारे अनेकानेक पाठकों ने पसन्द किया है। हम उन
सबके प्रति आभार व्यक्त करते हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के विभिन्न अंकों के बारे
में हमें पाठकों, श्रोताओं और पहेली के प्रतिभागियों की अनेक प्रतिक्रियाएँ
और सुझाव मिलते हैं। प्राप्त सुझाव और फरमार्इशों के अनुसार ही हम अपनी
आगामी प्रस्तुतियों का निर्धारण करते हैं। आप भी यदि कोई सुझाव देना चाहते
हैं तो आपका स्वागत है। अगले रविवार को प्रातः 7 बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के अगले
अंक के साथ हम उपस्थित होंगे। हमें आपकी प्रतीक्षा रहेगी।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
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