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राग भूपाली : SWARGOSHTHI – 353 : RAG BHUPALI




स्वरगोष्ठी – 353 में आज

पाँच स्वर के राग – 1

भूपाली की बन्दिश 'तू करीम करतार जगत को...' और फिल्म गीत 'ज्योतिकलश छलके...' सुनिए




उस्ताद राशिद खाँ
लता मंगेशकर
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर हमारी नई श्रृंखला – “पाँच स्वर के राग” की पहली कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के कुछ ऐसे रागों पर चर्चा करेंगे जिनमें केवल पाँच स्वरों का प्रयोग होता है। भारतीय संगीत में रागों के गायन अथवा वादन की प्राचीन परम्परा है। संगीत के सिद्धान्तों के अनुसार राग की रचना स्वरों पर आधारित होती है। विद्वानों ने बाईस श्रुतियों में से सात शुद्ध अथवा प्राकृत स्वर, चार कोमल स्वर और एक तीव्र स्वर; अर्थात कुल बारह स्वरो में से कुछ स्वरों को संयोजित कर रागों की रचना की है। सात शुद्ध स्वर हैं; षडज, ऋषभ, गान्धार, मध्यम, पंचम, धैवत और निषाद। इन स्वरों में से षडज और पंचम अचल स्वर माने जाते हैं। शेष में से ऋषभ, गान्धार, धैवत और निषाद स्वरों के शुद्ध स्वर की श्रुति से नीचे की श्रुति पर कोमल स्वर का स्थान होता है। इसी प्रकार शुद्ध मध्यम से ऊपर की श्रुति पर तीव्र मध्यम स्वर का स्थान होता है। संगीत के इन्हीं सात स्वरों के संयोजन से रागों का आकार ग्रहण होता है। किसी राग की रचना के लिए कम से कम पाँच और अधिक से अधिक सात स्वर की आवश्यकता होती है। जिन रागों में केवल पाँच स्वर का प्रयोग होता है, उन्हें औड़व जाति, जिन रागों में छः स्वर होते हैं उन्हें षाडव जाति और जिनमें सातो स्वर प्रयोग हों उन्हें सम्पूर्ण जाति का राग कहा जाता है। रागों की जातियों का वर्गीकरण राग के आरोह और अवरोह में लगने वाले स्वरों की संख्या के अनुसार कुल नौ जातियों में किया जाता है। इस श्रृंखला में हम आपसे कुछ ऐसे रागों पर चर्चा करेंगे जिनके आरोह और अवरोह में पाँच-पाँच स्वरों का प्रयोग होता है। ऐसे रागों को औड़व-औड़व जाति का राग कहा जाता है। श्रृंखला की पहली कड़ी में आज हम आपके लिए औड़व-औड़व जाति के राग भूपाली का परिचय प्रस्तुत करेंगे। इसके साथ ही राग के शास्त्रीय स्वरूप का दर्शन कराने के लिए सुप्रसिद्ध विद्वान उस्ताद राशिद खाँ के स्वर में इस राग की एक खयाल रचना प्रस्तुत कर रहे हैं। अनेक फिल्मी गीतों में राग भूपाली का प्रयोग किया गया है। इस राग पर आधारित 1961 में प्रदर्शित फिल्म “भाभी की चूड़ियाँ” से एक गीत –“ज्योतिकलश छलके...” लता मंगेशकर के स्वर में सुनवा रहे हैं।



संगीतकार सुधीर फडके
राग भूपाली, कल्याण थाट का आश्रय राग माना जाता है। संगीत के ग्रन्थों में यह राग भूप या भोपाली नाम से भी सम्बोधित किया जाता है। राग भूपाली औड़व जाति का राग है, जिसमें मध्यम और निषाद स्वर का प्रयोग नहीं किया जाता। शेष सभी स्वर शुद्ध प्रयोग किया जाता है। राग भूपाली का वादी स्वर गान्धार और संवादी स्वर धैवत होता है। रात्रि का पहला प्रहर इस राग के गायन-वादन का समय होता है। अब हम आपको राग भूपली के स्वरों में पिरोया एक मधुर फिल्मी गीत- ‘ज्योतिकलश छलके...’ सुनवाते हैं। यह गीत 1961 में प्रदर्शित फिल्म ‘भाभी की चूड़ियाँ’ से है, जिसे लता मंगेशकर ने स्वर दिया है। इसके संगीतकार सुधीर फडके और गीतकार हैं पण्डित नरेन्द्र शर्मा। जाने-माने संगीत समीक्षक और ‘संगीत’ मासिक पत्रिका के परामर्शक डॉ. मुकेश गर्ग ने इस गीत पर एक सार्थक टिप्पणी की है, जिसे आज हम इस गीत के साथ रेखांकित कर रहे हैं। “सुधीर फड़के और नरेन्द्र शर्मा की कालजयी कृति। कैसे अद्भुत कम्पोजर और गायक थे सुधीर फड़के! रचना के बीच में उनके बोल-आलाप बताते हैं कि शब्दों को वह सिर्फ़ धुन में नहीं बाँधते, शब्द की सीमा से परे जा कर उसके अर्थ का अपनी गायकी से विस्तार भी करते हैं। इसी गीत को जब लता मंगेशकर गाती हैं तो हमें दाँतों-तले उँगली दबानी पड़ती है। सुधीर जी तो इसके संगीत-निर्देशक थे। इसलिए अपनी गायकी के अनुसार उन्होंने उसे रचा और गाया भी। पर लता दूसरे की रचना को कण्ठ दे रही हैं। ऐसी स्थिति में उन्होंने सुधीर जी की रचना में सुरों के अन्दर जो बारीक़ कारीगरी की है वह समझने से ताल्लुक़ रखती है। सुरों की फेंक, ऊर्जा, कोमलता और सूक्ष्म नक़्क़ाशी के कलात्मक मेल का यह स्तर हमें सिर्फ़ लता मंगेशकर में देखने को मिलता है। अन्य सभी गायिकाएँ तो उन्हें बस छूने की कोशिश ही कर पाती हैं।“ आइए, अब आप राग भूपाली में पिरोया यह मधुर फिल्मी गीत सुनिए।

राग भूपाली : “ज्योतिकलश छलके...” : लता मंगेशकर : फिल्म – भाभी की चूड़ियाँ


थाट कल्याण म नी वर्जित, मानत ग स्वर वादी,
प्रथम प्रहर निशि गाइए, धैवत स्वर संवादी।

रात्रि के प्रथम प्रहर में गाने-बजाने के लिए उपयुक्त राग भूपाली, कल्याण थाट का राग माना जाता है। इसके आरोह और अवरोह में मध्यम और निषाद स्वर वर्जित होता है। अर्थात यह औड़व-औड़व जाति का राग है। राग भूपाली का वादी स्वर गान्धार और संवादी स्वर धैवत होता है। यह राग पूर्वांग प्रधान है, अर्थात इसका चलन अधिकतर मन्द्र और मध्य सप्तकों के पहले भाग में होता है। इन्हीं स्वरों को यदि उत्तरांग प्रधान कर दिया जाय तो यह राग देशकार का स्वरूप बन जाता है। राग भूपाली और देशकार में एक सा ही स्वर प्रयोग किया जाता है, परन्तु वादी-संवादी स्वरों के बदल जाने से राग बदल जाता है। भूपाली में वादी-संवादी क्रमशः गान्धार और धैवत होता जबकि देशकार में धैवत और गान्धार हो जाता है। राग भूपाली में गान्धार और पंचम स्वर पर न्यास होता है, किन्तु धैवत पर कभी भी न्यास नहीं होता, जबकि राग देशकार में पंचम, धैवत और तार सप्तक के षडज पर न्यास होता है, किन्तु गान्धार स्वर पर कभी भी न्यास नहीं होता। दोनों रागों में समान स्वर लगने के बावजूद पूर्वांग और उत्तरांग प्रधान होने के कारण दोनों रागों में अन्तर हो जाता है। राग भूपाली के शास्त्रीय स्वरूप का अनुभव करने के लिए आइए, अब हम इस राग की एक बन्दिश सुप्रसिद्ध संगीतज्ञ उस्ताद राशिद खाँ से सुनते हैं। तीनताल में निबद्ध इस खयाल रचना के बोल हैं, “तू करीम करतार जगत को...”। आप यह बन्दिश सुनिए और हमें आज के इस अंक को यहीं विराम लेने की अनुमति दीजिए।

राग भूपाली : “तू करीम करतार जगत को...” : उस्ताद राशिद खाँ




संगीत पहेली

‘स्वरगोष्ठी’ के 353वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको एक रागबद्ध फिल्मी गीत का अंश सुनवा रहे हैं। गीत के इस अंश को सुन कर आपको निम्नलिखित तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। यदि आपको तीन में से केवल एक अथवा दो प्रश्न का उत्तर भी ज्ञात हो तो भी आप प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। 360वें अंक की ‘स्वरगोष्ठी’ तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें वर्ष 2018 के प्रथम सत्र का विजेता घोषित किया जाएगा। इसके साथ ही पूरे वर्ष के प्राप्तांकों की गणना के बाद वर्ष के अन्त में महाविजेताओं की घोषणा के साथ ही उन्हें सम्मानित भी किया जाएगा।






1 – इस गीतांश को सुन कर बताइए कि इसमें किस राग की छाया है?

2 – इस गीत में प्रयोग किये गए ताल का नाम बताइए।

3 – इस गीत में किस सुपरिचित पार्श्वगायिका की आवाज़ है?

आप उपरोक्त तीन मे से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर ही शनिवार, 27 जनवरी, 2018 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। आपको यदि उपरोक्त तीन में से केवल एक प्रश्न का सही उत्तर ज्ञात हो तो भी आप पहेली प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। COMMENTS में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते हैं, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर देने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। विजेता का नाम हम उनके शहर, प्रदेश और देश के नाम के साथ ‘स्वरगोष्ठी’ के 355वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।


पिछली पहेली के विजेता

‘स्वरगोष्ठी’ की 351वीं कड़ी में हमने आपके लिए कोई भी पहेली नहीं दी थी। इस अंक में पहेली न पूछे जाने के कारण हम पहेली का सही हल और विजेताओं के नाम की घोषणा नहीं कर रहे हैं। 354वें अंक से हम पिछली पहेली का हल और विजेताओं के नाम पूर्ववत प्रकाशित करेंगे।


अपनी बात

मित्रों, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर आज से आरम्भ हो चुकी नई श्रृंखला “पाँच स्वर के राग” के इस अंक में आपने राग भूपाली का परिचय प्राप्त किया। इसके साथ ही राग के शास्त्रीय स्वरूप को समझने लिए उस्ताद राशिद खाँ के स्वर में इस राग की एक बन्दिश का रसास्वादन किया। राग भूपाली के स्वरों का उपयोग करते हुए अनेक फिल्मी गीत भी रचे गए हैं। आज आपने फिल्म “भाभी की चूड़ियाँ” से राग भूपली पर आधारित गीत भी सुना। अगले अंक में पाँच स्वर के किसी अन्य राग पर आपसे चर्चा करेंगे। इस नई श्रृंखला “पाँच स्वर के राग” अथवा आगामी श्रृंखलाओं के लिए यदि आपका कोई सुझाव या फरमाइश हो तो हमें swargoshthi@gmail.com पर अवश्य लिखिए। अगले अंक में रविवार को प्रातः 7 बजे हम ‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर सभी संगीत-प्रेमियों का स्वागत करेंगे।


प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र  

रेडियो प्लेबैक इण्डिया 

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