Skip to main content

चित्रकथा - 37: इस दशक के नवोदित नायक (भाग - 6)

अंक - 37

इस दशक के नवोदित नायक (भाग - 6)


"हम हैं मुंबई के हीरो..." 




हर रोज़ देश के कोने कोने से न जाने कितने युवक युवतियाँ आँखों में सपने लिए माया नगरी मुंबई के रेल्वे स्टेशन पर उतरते हैं। फ़िल्मी दुनिया की चमक-दमक से प्रभावित होकर स्टार बनने का सपना लिए छोटे बड़े शहरों, कसबों और गाँवों से मुंबई की धरती पर क़दम रखते हैं। और फिर शुरु होता है संघर्ष। मेहनत, बुद्धि, प्रतिभा और क़िस्मत, इन सभी के सही मेल-जोल से इन लाखों युवक युवतियों में से कुछ गिने चुने लोग ही ग्लैमर की इस दुनिया में मुकाम बना पाते हैं। और कुछ फ़िल्मी घरानों से ताल्लुख रखते हैं जिनके लिए फ़िल्मों में क़दम रखना तो कुछ आसान होता है लेकिन आगे वही बढ़ता है जिसमें कुछ बात होती है। हर दशक की तरह वर्तमान दशक में भी ऐसे कई युवक फ़िल्मी दुनिया में क़दम जमाए हैं जिनमें से कुछ बेहद कामयाब हुए तो कुछ कामयाबी की दिशा में अग्रसर हो रहे हैं। कुल मिला कर फ़िल्मी दुनिया में आने के बाद भी उनका संघर्ष जारी है यहाँ टिके रहने के लिए। ’चित्रकथा’ में आज से हम शुरु कर रहे हैं इस दशक के नवोदित नायकों पर केन्द्रित एक लघु श्रॄंखला जिसमें हम बातें करेंगे वर्तमान दशक में अपना करीअर शुरु करने वाले शताधिक नायकों की। प्रस्तुत है ’इस दशक के नवोदित नायक’ श्रॄंखला की छठी कड़ी।




’इस दशक के नवोदित नायक’ सीरीज़ में अब तक की पाँच कड़ियों में हम कई जानेमाने और कुछ कमचर्चित नायकों का ज़िक्र कर चुके हैं। इसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए आज की कड़ी में भी हम कुछ ऐसे नवोदित सितारों को लेकर आए हैं जिनमें से कुछ दर्शकों के दिलों में जगह बना चुके हैं और कुछ इस प्रयास में हैं। आज सबसे पहले ज़िक्र सौरभ रॉय का। फ़ाइन आर्ट्स में स्नातक तथा ग्रासिम मिस्टर इंडिया 2006 के विजेता सौरभ रॉय फ़ैशन वर्ल्ड में एक जाना माना नाम है। वो एक क्रिकेटर भी हैं जो टीम रॉयल पटियालवी में खेल चुके हैं। टीवी सीरीज़ ’Fear Factor: Khatron Ke Khiladi (season 4)’ में भाग लेकर उन्हें प्रसिद्धी मिली। फिर उन्होंने बिल्कुल विपरीत दिशा में जाते हुए पौराणिक धारावाहिक ’महाभारत’ में द्रौपदी के पिता द्रौपद का चरित्र निभाया जिसके लिए उन्हें कड़ी मेहनत करनी पड़ी। टीवी शो ’अमीता का अमित’ में भी वो चर्चित रहे। फ़िल्मों में उनकी एन्ट्री हुई 2014 की फ़िल्म ’ब्लैक मनी’ से जिसमें उन्होंने एक ड्रग-ऐडिक्ट का किरदार निभाया। फ़ैशन इन्डस्ट्री के चमक-दमक के पीछे के अंधकार को दर्शाती यह फ़िल्म बॉक्स ऑफ़िस पर नाकामयाब रही। बदक़िस्मती से सौरभ की दूसरी फ़िल्म ’लव फिर कभी’ भी असफल रही और सौरभ का फ़िल्मों में सफलता के लिए संघर्ष जारी है। पंजाबी मूल के कनाडा में जन्में सनी गिल ने अपना बॉलीवूड का सफ़र शुरु किया 2011 की फ़िल्म ’जो हम चाहें’ से। इस फ़िल्म में उनके अभिनय की वजह से उन्हें ’टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ के "Most Promising Newcomers of 2011" में सातवाँ स्थान मिला था। वैंकोवर कनाडा में बचपन की दहलीज़ पार करने के बाद उन्होंने मुंबई का रुख़ किया जहाँ उन्हें फ़ैशन डिज़ाइनर अबु जानी और संदीप खोसला ने मॉडलिंग् के काम दिलाए। कई नामी ब्रैण्ड्स के फ़ैशन शोज़ और प्रसिद्ध फ़िल्म अवार्ड शोज़ में रैम्प वाक, और कई विज्ञापनों और म्युज़िक विडियोज़ में नज़र आने के बाद उन्हें फ़िल्मों में एन्ट्री मिली। ’जो हम चाहें’ में मिस इंडिया यूनिवर्स सिमरन मुंडी के विपरीत उन्होंने अभिनय किया। हालाँकि यह फ़िल्म नहीं चली, पर वो इंडस्ट्री की नज़र में आ गए। उनके ख़ूबसूरत कदकाठी, नायक वाला चेहरा और प्राकृतिक अभिनय से उन्होंने क्रिटिक्स के दिल जीते। 2014 में उन्होंने एक पंजाबी हास्य फ़िल्म ’मुंडया ते बचके रईं’ में नायक का रोल अदा किया जिसे दर्शकों ने सराहा। हम सनी गिल के अगले फ़िल्म की प्रतीक्षा में हैं। मथुरा निवासी कृष्णा चतुर्वेदी उस समय पूरे देश में परिचित हो गए जब नामी फ़ैशन कंपनियों के शोज़ में उन्होंने रैम्प वाक किया। मथुरा से दिल्ली और फिर दिल्ली से मुंबई तक का सफ़र संघर्षपूर्ण रहा। लेकिन फ़िल्मों में आने के लिए उन्हें बिल्कुल मेहनत नहीं करनी पड़ी। मॉडलिंग् की वजह से मुंबई में लोग उन्हें जानने लगे थे। 2013 की फ़िल्म ’दि कॉरनर टेबल’ में कृष्णा ने एक छोटा सा रोल किया था, लेकिन सही मायने डेब्यु के लिए उन्हें तीन साल की प्रतीक्षा करनी पड़ी। एक दिन उन्हें फ़िल्म निर्माता शब्बीर बॉक्सवाला का संदेश मिला फ़ेसबूक पर। उनके लिए फ़िल्म ’इश्क़ फ़ॉरेवर’ में बतौर नायक अभिनय करने का निमंत्रण था। कृष्णा ने एक साक्षात्कार में बताया कि उन्हें भी संघर्ष के दिनों से लेकर आज तक कास्टिंग् कूच का सामना करना पड़ रहा है और यही इस इंडस्ट्री की हक़ीक़त है। संगीतकार नदीम सैफ़ी (नदीम-श्रवण वाले) और गीतकार समीर के गाने होने के बावजूद 2016 की फ़िल्म ’इश्क़ फ़ॉरेवर’ फ़्लॉप सिद्ध हुई और कृष्णा की एक सफल फ़िल्म के लिए संघर्ष जारी है।

तेलुगू और हिन्दी फ़िल्मों के अभिनेता हर्षवर्धन राणे को ’तकिटा तकिटा’ (2010), ’प्रेम इश्क़ काधल’ (2013) और ’अनामिका’ (2013) जैसी तेलुगू फ़िल्मों में उनके द्वारा निभाए किरदारों की वजह से जाना जाता है। हिन्दी फ़िल्मों में उनका पदार्पण हुआ 2016 की फ़िल्म ’सनम तेरी क़सम’ में। कहा जाता है कि संजय लीला भंसाली ने शुरु शुरु में उन्हें ’गोलियों की रासलीला राम लीला’ में लेना चाहते थे, लेकिन ग्यारह महीनों का कॉनट्रैक्ट होने की वजह से हर्षवर्धन उपलब्ध नहीं थे। ’सनम तेरी क़सम’ फ़िल्म बॉक्स ऑफ़िस पर पिट गई, हाँ, अगर वो ’राम लीला’ में होते तो हो सकता है कि आज हिन्दी फ़िल्मों का एक जाना माना नाम बन जाते। आजकल हर्षवर्धन जॉन एब्रहम की फ़िल्म ’सत्रह को शादी है’ की शूटिंग् में व्यस्त हैं। देखना यह है कि क्या वो हिन्दी फ़िल्म इंडस्ट्री में टिक पाते हैं या फिर तेलुगू की तरफ़ ही रुख़ कर लेते हैं! ऐक्शन डिरेक्टर श्याम कौशल के पुत्र तथा सहयोगी निर्देशक सनी कौशल के भाई विक्की कौशल का ताल्लुख़ फ़िल्मी परिवार से ही था, लेकिन उन्होंने ईलेक्ट्रॉनिक्स ऐण्ड टेलीकम्युनिकेशन में इंजिनीयरिंग् की और नौकरी के कई प्रस्ताव उनके सामने आए। आख़िरकार उन्होंने अभिनय जगत में ही पाँव रखने का निर्णय लिया और थिएटर करने लगे। किशोर नमित कपूर के यहाँ अपने अभिनय क्षमता को तराशने के बाद कुछ एक फ़िल्मों में छोटे-मोटे रोल किए जैसे कि ’लव शव ते चिकन खुराना’, ’गीक आउट’ और ’बॉम्बे वेलवेट’। साथ ही साथ नसीरुद्दीन शाह और मानव कौल के ड्रामा ग्रूप में थिएटर भी कर रहे थे। उनके करीअर का टर्निंग् पॉइन्ट था 2015 की फ़िल्म ’मसान’ जिसमें वो नायक भी भूमिका में थे। पंजाबी मुंडा विक्की ने इस फ़िल्म में बनारस के लड़के का चरित्र निभाया और क्या ख़ूब निभाया। एक समीक्षक ने लिखा कि इस फ़िल्म में एक पल के लिए भी ऐसा नहीं लगा कि विक्की अभिनय कर रहे हैं। ’मसान’ के बाद विक्की की अगली फ़िल्म आई ’ज़ुबान’ और उसके बाद अनुराग कश्यप की ’रमन राघव 2.0’ जिसमें विक्की ने एक ड्रग ऐडिक्ट का रोल निभाया। 2017 में उनकी फ़िल्म ’मनमर्ज़ियाँ’ बस आने ही वाली है। इन दिनों विक्की कौशल संजय दत्त के बायोपिक फ़िल्म में अभिनय कर रहे हैं जिसका सभी को बेसबरी से इन्तज़ार है। जम्मु के सिद्धांत गुप्ता जम्मु कश्मीर की तरफ़ से राष्ट्रीय स्तर पर under-14 cricket, under-17 swimming और under-19 basketball खेल चुके थे। सुन्दर चेहरे और ख़ूबसूरत कदकाठी की वजह से उन्हें मॉडलिंग् में आसानी से मौका मिल गया और वो एक सुपर मॉडल बन कर उभरे। 2013 में उन्हें भले दो फ़िल्मों - ’बैंग् बैंग् बैंग्कॉक’ और ’टुटिया दिल’ - में अभिनय करने का मौका मिला, इनसे कुछ ख़ास सफलता नहीं मिली। फिर 2015 में सिद्धांत ने टीवी धारावाहिक ’टशन-ए-इश्क़’ में कुंज सरना का किरदार अदा की जिसे लोगों ने बहुत सराहा और सिद्धांत घर घर में पहुँच गए। इससे उन्हें फिर एक बार 2015 की फ़िल्म ’बदमाशियाँ’ में बतौर नायक अभिनय करने का मौका मिला। यह फ़िल्म पिचली दो फ़िल्मों से बेहतर थी, लेकिन जो सफलता उन्हें टेलीविज़न पर मिली, वह सफलता अब तक फ़िल्मों में नहीं मिल पायी है। 2017 में उनकी अगली फ़िल्म ’भूमि’ आ रही है, जो उनके फ़िल्मी भविष्य का फ़ैसला करेगी। तब तक हम इन्तज़ार करेंगे उनका।

करणवीर शर्मा एक और नौजवान नायक हैं जिन्होंने अपने अभिनय से समीक्षकों और दर्शकों के दिलों पर दस्तक दी है। 2012 की हास्य फ़िल्म ’सड्डा अड्डा’ में उन्हें लौंच किया गया था। वैसे तो करण पाकिस्तान के नागरिक हैं, लेकिन हिन्दी फ़िल्मों के प्रति लगाव और एक फ़िल्म हीरो बनने का सपना उन्हें मुंबई खींच लाया। पाकिस्तान में कई विज्ञापनों में नज़र आने के अलावा वो मध्य एशिया के कई देशों में फ़ैशन शोज़ कर चुके हैं। ’सड्डा अड्डा’ में करणवीर के अभिनय को काफ़ी सराहा गया था। मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग् कर चुके करणवीर को टैप, जैज़, जिव, ऑस्कर, बोस्को सीज़र, मैम्बो, साल्सा और क्रम्पिंग् जैसे नृत्य शैलियाँ आती हैं। ’सड्डा अड्डा’ के दो साल बाद करण नज़र आए 2014 की फ़िल्म ’ज़िद’ में। यह एक थ्रिलर फ़िल्म थी जिसमें करणवीर ने एक क्राइम रिपोर्टर के किरदार में अभिनय किया। सुन्दर अभिनय, अच्छी कहानी और सुरीले गीत-संगीत के बावजूद यह फ़िल्म बॉक्स ऑफ़िस पर कुछ ख़ास कमाल नहीं दिखा पायी। करणवीर विज्ञापन क्षेत्र में एक जाना माना नाम है। अब देखना यह है कि क्या बॉलीवूड में भी वो एक ऊँचा मुकाम हासिल कर पाते हैं या नहीं! भोपाल में जन्में ज़ुबेर ख़ान ने बी.टेक की लेकिन उसके बाद एक अभिनेता बनने का फ़ैसला लिया। रैम्प शोज़ किए और उच्चस्तरीय फ़ैशन ब्रैण्ड्स के साथ मॉडलिंग् का काम किया। साल्सा, जैज़, हिप-हॉप जैसी नृत्य शैलियों में उन्हें महारथ हासिल है। मॉडलिंग् करते हुए उन्होंने मिस्टर मध्य प्रदेश का ख़िताब जीता, और 2012 में बने मिस्टर इंडिया। 2014 में उन्हें सुनहरा मौका मिला ’लेकर हम दीवाना दिल’ फ़िल्म में अभिनय करने का। फ़िल्म तो नहीं चली, पर ज़ुबेर को तीन फ़िल्में मिल गईं लीड रोल वाली। ये फ़िल्में थीं ’सोल’, ’मुन्ना भाई सल्लु भाई’, ’ड्रीम जॉब’, और ’वो कौन थे’। उनके अभिनय से सजी आख़िरी फ़िल्म आई 2016 में -’आख़िरी सौदा’। इनमें से कोई भी फ़िल्म बॉक्स ऑफ़िस पर कमाल नहीं दिखा सकी। ज़ुबेर ने ग़लत फ़िल्में चुन ली अपने लिए, ये सभी फ़िल्में बी-ग्रेड मसाला फ़िल्में थीं। अब देखना है कि क्या ज़ुबेर आने वाले समय में ए-ग्रेड की फ़िल्मों में क़दम रख पाते हैं या नहीं। राजनीति के क्षेत्र से भी कई बार कलाकारों ने जन्म लिया है। ऐसे ही एक हैं सांसद और मंत्री राम विलास पासवान के सुपुत्र चिराग पासवान जो ख़ुद भी लोक जनशक्ति पार्टी से जुड़े हुए हैं। वर्ष 2014 में 16-वीं लोक सभा के चुनाव में वो बिहार के जमुई चुनाव क्षेत्र से चुनाव जीते और उसी चुनाव में उनके पिता हाजीपुर से जीते। चिराग पासवान कम्प्युटर साइन्स में इंजिनीयरिंग् की है और बचपन से उनकी तमन्ना थी कि वो फ़िल्मी हीरो बने। इसी सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने मुंबई का रुख़ किया। वर्ष थी 2011 और फ़िल्म थी ’मिले ना मिले हम’। फ़िल्म में चिराग की नायिका बनीं कंगना रनौत और साथ में कई नामी कलाकारों ने भी अभिनय किया जिनमें कबीर बेदी, दलीप ताहिल, पूनम ढिल्लों शामिल हैं। साजिद-वाजिद के सुमधुर गीतों के बावजूद यह फ़िल्म बॉक्स ऑफ़िस पर बुरी तरह से असफल रही। शायद चिराग को ऐसा लगा कि फ़िल्म लाइन उनके लिए नहीं है। तभी उन्होंने फिर इसके बाद किसी और फ़िल्म में अभिनय नहीं किया और फिर एक बार राजनीति की तरफ़ मुड़ गए। लेकिन यह बात भी सत्य है कि ’मिले ना मिले हम’ में उनके जानदार अभिनय के लिए उन्हें 2012 स्टार डस्ट अवार्ड्स के तहत ’Superstar Of Tomorrow’ का पुरस्कार प्रदान किया गया था। अभिनय की काबलियत तो चिराग में है, अब देखना यह है कि क्या वो दोबारा इस क्षेत्र में अपनी क़िस्मत आज़माने का फ़ैसला लेते हैं या नहीं।

मॉडल और अभिनेता ताहा शाह 2011 की फ़िल्म ’लव का दि एन्ड’ से चर्चा में आए थे। संयुक्त अरब अमीरात के अबु धाबी में जन्में ताहा शाह के पिता शाह सिकन्दर बदुशा और माँ महनाज़ सिकन्दर बदुशा दक्षिण भारत से ताल्लुख़ रखते हैं। एक शिक्षित ्व प्रतिष्ठित परिवार से ताल्लुख़ रखने की वजह से ताहा की पढ़ाई-लिखाई भी बहुत अच्छी तरह से हुई। BBA की पढ़ाई के दौरान उनका मन पढ़ने-लिखने से ऊब गया और पढ़ाई बीच में ही छोड़ कर वो नौकरी करने लगे। बिज़नेस के तरह तरह की कंपनियों में काम किया और साथ ही साथ शौकिया तौर पर मॉडलिंग् भी करते रहे। 16 वर्ष की आयु से मॉडलिंग् की शुरुआत करते हुए ताहा शाह ने कई नामी-ग्रामी ब्रैण्ड्स के विज्ञापनों और रैम्प शोज़ में हिस्स लिया। इसी दौरान उन्होंने स्टील इम्पोत की अपनी ख़ुद की कंपनी खोली जिसके लिए उन्हें ’successful entrepreneur’ का ख़िताब भी मिला। पर दुर्भाग्यवश यह बिज़नेस ज़्यादा नहीं चल सकी और आर्थिक संकटों से वो घिर गए। तभी उन्होंने फ़िल्म जगत में अपनी किस्मत आज़माने का फ़ैसला किया। अभिनय सीखने के लिए उन्होंने अबु धाबी में New York Film Academy (NYFA) में दाख़िला लिया। छह महीने का कोर्स करने के बाद वो लॉस ऐजेलीस के लिए निकलने ही वाले थे कि उनके पिता ने उन्हें पहले मुंबई जाने की सलाह दी। पिता की सलाह को मानते हुए ताहा मुंबई चले आए और करीब नौ महीने के संघर्ष के बाद उन्हें मिल ही गई उनकी पहली फ़िल्म ’लव का दि एन्ड’। फ़िल्म के नायक होते हुए भी उनका किरदार ऐन्टि-हीरो का था जिसमें कॉमेडी भी थी, खलनायकी भी, कामुकता भी और ऐटिट्युड भी। ताहा के अभिनय को देख कर करण जोहर, रमेश तौरानी, रेन्सिल डी’सिल्वा, निखिल अडवानी और अन्य कई लोगों ने उनकी प्रशंसा की। यह 2011 की बात थी। इस फ़िल्म को मिली-जुली प्रतिक्रिया मिली, लेकिन बॉक्स ऑफ़िस पर कुछ ख़ास कमाल नहीं दिखा सकी। इसके दो साल बाद 2013 में ताहा की दूसरी फ़िल्म आई ’गिप्पी’ जिसमें उनके अभिनय की सराहना हुई। ताहा शाह के चेहरे और शारीरिक गठन के अनुरूप उन्हें कामुक फ़िल्मों के ऑफ़र मिलने लगे। 2014 में सेक्स सायरेन सनी लियोन के साथ उन्हें ’टिना ऐन्ड लोलो’ का ऑफ़र मिला, लेकिन आगे चल कर यह फ़िल्म बनी नहीं। महेश भट्ट, जो प्राप्त वयस्क मुद्दों वाली फ़िल्में बनाने के लिए जाने जाते रहे हैं, और जिनकी इस तरह की फ़िल्मों में कामुक दृश्यों का ढेर होता है, 2015 में ताहा शाह और पाकिस्तानी नायिका सारा लोरेन को लेकर बनाई फ़िल्म ’बरखा’। यह फ़िल्म तो ख़ास नहीं चली लेकिन इसके कुछ गीत हिट ज़रूर हुए। 2016 में ताहा नज़र आए थे ’बार बार देखो’ फ़िल्म में जिसमें नायक थे सिद्धार्थ मल्होत्रा। 2017 में इन दिनों ताहा जे. पी. दत्ता की नई फ़िल्म में अभिनय कर रहे हैं। अब तक का सफ़र अगर देखा जाए तो ताहा शाह को कोई बड़ी सफलता नहीं मिल पायी है। देखना यह है कि जे. पी. दत्ता की फ़िल्म उनकी क़िस्मत को बदल पाती है या नहीं।

’लव का दि एन्ड’ फ़िल्म में ताहा शाह के सह-नायक थे महरज़ान माज़दा जो टेलीविज़न की दुनिया का एक जानामाना नाम है। इस फ़िल्म से महरज़ान ने भी बॉलीवूड में क़दम रखा था। मुंबई से 120 किलोमीटर की दूरी पर स्थित दहाणु नामक जगह में पले बढ़े महरज़ान ने पुणे के सिम्बायोसिस कॉलेज से कॉमर्स में स्नातक की पढ़ाई पूरी की और MTV Splitsvilla Season 2 के लिए चुने गए। इससे वो छोटे परदे पर काफ़ी लोकप्रिय हुए और इस शो के ख़त्म होते ही उन्हें ’मस्तिष्क’ धारावाहिक का ऑफ़र मिल गया। फिर इसके बाद महरज़ान ने कई और टीवी धारावाहिकों में काम किया जैसे कि ’निशा और उसके कज़िन्स’, ’ढाई किलो प्रेम’, ’खोटे सिक्के’ आदि। ’लव का दि एन्ड’ में उन्होंने एक समलैंगिक किरदार निभाया जो फ़िल्म के नायक ताहा शाह के प्रति आकृष्ट होते हैं। महरज़ान की अगली फ़िल्म है ’बस्ती है सस्ती’ जो 2018 में बन कर तैयार होगी। टेलीविज़न जगत में सफल पारी खेलने वाले महरज़ान की अगली फ़िल्म यह निर्णय करेगी कि क्या फ़िल्मों में भी वो उतने ही कामयाब हैं या नहीं। पत्रकार एकांश भारद्वाज ने फ़िल्म जगत में क़दम रखा 2015 की फ़िल्म ’मदमस्त बरखा’ से। जसपाल सिंह द्वारा निर्मित व निर्देशित इस फ़िल्म की कहानी बरखा (लीना कपूर) के इर्द-गिर्द घूमती है जो रणबीर नामक आर्मी-मैन की पत्नी है। रणबीर को एक मिशन पर जाना पड़ता है जिस वजह से बरखा अकेली रह जाती है। अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए वो अपने पति के ही दोस्त आकाश (एकांश भारद्वाज) के साथ प्रेम-संबंध शुरु कर बैठती है। यह एक बी-ग्रेड फ़िल्म थी जिसने एकांश को किसी भी तरह की मदद नहीं कर सकी। लेकिन कुछ फ़िल्म क्रिटिक्स ने एकांश के अभिनय को सराहा जिसका नतीजा यह हुआ कि 2013 के मुज़फ़्फ़र नगर के दंगों पर बनने वाली फ़िल्म ’मुज़फ़्फ़र नगर 2013’ में उन्हें अभिनय का मौका मिला। यह फ़िल्म 2017 में प्रदर्शित होने जा रही है।


आख़िरी बात

’चित्रकथा’ स्तंभ का आज का अंक आपको कैसा लगा, हमें ज़रूर बताएँ नीचे टिप्पणी में या soojoi_india@yahoo.co.in के ईमेल पते पर पत्र लिख कर। इस स्तंभ में आप किस तरह के लेख पढ़ना चाहते हैं, यह हम आपसे जानना चाहेंगे। आप अपने विचार, सुझाव और शिकायतें हमें निस्संकोच लिख भेज सकते हैं। साथ ही अगर आप अपना लेख इस स्तंभ में प्रकाशित करवाना चाहें तो इसी ईमेल पते पर हमसे सम्पर्क कर सकते हैं। सिनेमा और सिनेमा-संगीत से जुड़े किसी भी विषय पर लेख हम प्रकाशित करेंगे। आज बस इतना ही, अगले सप्ताह एक नए अंक के साथ इसी मंच पर आपकी और मेरी मुलाक़ात होगी। तब तक के लिए अपने इस दोस्त सुजॉय चटर्जी को अनुमति दीजिए, नमस्कार, आपका आज का दिन और आने वाला सप्ताह शुभ हो!




शोध,आलेख व प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी 
प्रस्तुति सहयोग : कृष्णमोहन मिश्र  



रेडियो प्लेबैक इण्डिया 

Comments

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे...

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु...

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन...