Skip to main content

चित्रकथा - 12: 'अप्रैल फ़ूल’ पर बनी देश-विदेश की दस फ़िल्में


अंक - 12

'अप्रैल फ़ूल’ पर बनी देश-विदेश की दस फ़िल्में

अप्रैल फ़ूल बनाया तो उनको ग़ुस्सा आया...



’रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। समूचे विश्व में मनोरंजन का सर्वाधिक लोकप्रिय माध्यम सिनेमा रहा है और भारत कोई व्यतिक्रम नहीं। बीसवीं सदी के चौथे दशक से सवाक् फ़िल्मों की जो परम्परा शुरु हुई थी, वह आज तक जारी है और इसकी लोकप्रियता निरन्तर बढ़ती ही चली जा रही है। और हमारे यहाँ सिनेमा के साथ-साथ सिने-संगीत भी ताल से ताल मिला कर फलती-फूलती चली आई है। सिनेमा और सिने-संगीत, दोनो ही आज हमारी ज़िन्दगी के अभिन्न अंग बन चुके हैं। ’चित्रकथा’ एक ऐसा स्तंभ है जिसमें बातें होंगी चित्रपट की और चित्रपट-संगीत की। फ़िल्म और फ़िल्म-संगीत से जुड़े विषयों से सुसज्जित इस पाठ्य स्तंभ में आपका हार्दिक स्वागत है। 



वर्ष 1392 में प्रकाशित ’The Chaucer's Canterbury Tales' के अन्तरगत ’Nun's Priest's Tale' की कहानी जिस दिन विशेष पर आधारित है उसे उस पुस्तक में "Syn March bigan thritty dayes and two" के रूप में लिखा गया है। आधुनिक विद्वानों का मानना है कि यह बाद के प्रतिलिपियों में ग़लती हुई है जबकि मूल पांडुलिपि में यह पंक्ति दरसल "Syn March was gon" थी। अर्थात् मूल कहानी में के इस अंश का अर्थ था "मार्च के बाद 32 दिन...", यानी कि 2 मई, जो कि इंगलैण्ड के किंग् रिचार्ड II की सालगिरह है। परन्तु प्रतिलिपियों में गड़बड़ी की वजह से इस पंक्ति का अर्थ बन गया "32 मार्च", यानी कि 1 अप्रैल। और इसी गड़बड़ी को ’अप्रैल फ़ूल’ कहा जाने लगा। यूं तो अप्रैल फ़ूल के इतिहास के और भी कई प्रसंग प्रचलित हैं, पर यह वाला क़िस्सा सबसे पुराना लगता है। ख़ैर, आज 1 अप्रैल का दिन है, तो क्यों ना ’चित्रकथा’ में आज देश विदेश की उन फ़िल्मों की चर्चा करें जिनमें अप्रैल फ़ूल का प्रसंग है।




प्रैल फ़ूल पर बनने वाली फ़िल्मों की परम्परा 50 के दशक में शुरु हुई थी। 1954 में एक
फ़्रांसीसी (फ़्रेन्च) फ़िल्म आई थी ’Poisson D'Avril’ (एप्रिल फ़ूल्स डे)। यह एक हास्य फ़िल्म थी जिसका निर्देशन गिल्स ग्रंगिअर ने किया था। मिशेल औडियार्ड की लिखी इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे बोर्विल, ऐनी कॉर्डी और लुइ दी फ़्युनेस। कहानी में भले एप्रिल फ़ूल का सीधा सीधा प्रसंग नहीं था, पर पूरी कहानी में छोटे-छोटे झूठ बोल कर एक दूसरे को बेवकूफ़ बनाने के कई प्रसंग मिलते हैं, शायद इसी वजह से फ़िल्म का नाम ’एप्रिल फ़ूल्स डे’ रखा गया। कहानी कुछ इस तरह की है कि एमिलि एक इमानदार गरेज मकैनिक है, एक आदर्श पति और एक अच्छा पिता भी। एक दिन बज़ार में किसी के बहकावे में आकर एमिलि अपनी पत्नी द्वारा दिए वाशिंग् मशीन ख़रीदने के पैसों से मछली पकड़ने का रॉड ख़रीद लेता है। मछली पकड़ना एमिलि का शौक है, एक वीकेन्ड पर काम में जाने का बहाना बना कर एमिलि अपने बेटे को साथ में लेकर मछली पकड़ने निकल पड़ता है। रास्ते में उन्हें एमिलि का कज़िन ऐनेट मिलती है जिसका अमीर उद्योगपति गैस्टन प्रीवोस्ट के साथ एक अफ़ेअर चल रहा है। ऐनेट एमिलि को प्रीवोस्ट के एस्टेट के तालाब में मछली पकड़ने का सुझाव देता है। एमिलि वहाँ जाता है तो पुलिसवाले उसे पकड़ लेते हैं और अवैध तरीके से किसी दूसरे के एस्टेट में घुस कर मछली पकड़ने के इलज़ाम पर उसे प्रीवोस्ट की पत्नी के पास ले जाता है। प्रीवोस्ट की पत्नी को इस बात से हैरानी होती है कि एमिलि जैसे अनजान आदमी को उसके पति ने उनके एस्टेट में घुसने की अनुमति दी है। ऐनेट के साथ अपने अवैध संबंध को छुपाने के लिए प्रीवोस्ट अपनी पत्नी से कहता है कि एमिलि ने एक बार उसकी जान बचाई थी। प्रभावित हो कर प्रीवोस्ट की पत्नी एमिलि को डिनर का निमंत्रण देती है। मामला और भी ज़्यादा उलझ जाता है। बड़ी ही मज़ेदार फ़िल्म थी!!!


1964 में आई हिन्दी फ़िल्म ’अप्रैल फ़ूल’। सुबोध मुखर्जी निर्मित व निर्देशित इस फ़िल्म में बिस्वजीत और
सायरा बानु नज़र आए मुख्य किरदारों में। यह एक रोमान्टिक कॉमेडी फ़िल्म थी। फ़िल्म के नायक अशोक एक अमीर घराने का बेटा है। पिता और उसका बड़ा भाई पारिवारिक व्यवसाय को चलाते हैं जबकि अशोक एक कामचोर लड़का है और उसका सारा समय लोगों के साथ हँसी मज़ाक में और लोगों के साथ चालाकी करने में निकलता है। दूसरे शब्दों में अशोक एक प्रैंकस्टार है और इसलिए पहली अप्रैल का दिन उसका पसंदीदा दिन है। इस दिन वो अपनी चालाक हरकतों के शिखर पर होता है। उसके चुटकुलों से मधु नाम की लड़की प्रभावित होती है और दोनों एक दूसरे से प्यार करने लगते हैं। लेकिन आगे चलकर अशोक का एक मज़ाक भारी पड़ता है और एक अन्तर्राष्ट्रीय गैंग् का निशाना बन जाते हैं अशोक और मधु। कैसे वो दोनों अपने आप को सुरक्षित निकाल पाते हैं यही है ’अप्रैल फ़ूल’ की कहानी। शंकर जयकिशन के संगीत में मोहम्मद रफ़ी का गाया फ़िल्म का शीर्षक गीत "अप्रैल फ़ूल बनाया तो उनको ग़ुस्सा आया" बेहद हिट हुआ था और हमारे देश में अप्रैल फ़ूल पर बनने वाला यह एकमात्र गीत रहा है। इसके बाद 1969 में एक अंग्रेज़ी फ़िल्म आई ’द एप्रिल फ़ूल्स’। स्टुआर्ट रोज़ेनबर्ग निर्देशित इस रोमान्टिक कॉमेडी फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे जैक लेमन और कैथरीन डेनुव। फ़िल्म की कहानी कुछ ऐसी है कि होवार्ड और फ़िलिस पति-पत्नी हैं, पर फ़िलिस होवार्ड से प्यार नहीं करती। उधर कैथरीन होवार्ड के ऐयाश बॉस टेड गुन्थर की पत्नी है जो बहुत ग्लैमरस और ख़ूबसूरत है। जिस दिन टेड होवार्ड का पदोन्नति करवाता है, उसी शाम टेड के घर पार्टी में होवार्ड तशरीफ़ लाता है। होवार्ड अकेले आने की वजह से टेड उससे कहता है कि पार्टी में मौजूद किसी भी महिला को वो पार्टी में डान्स के लिए चुन ले। झिझकते हुए होवार्ड टेड की पत्नी कैथरीन को चुनता है और कैथरीन खुशी से सहमती दे देती है। आदत से मजबूर टेड पार्टी में दूसरी लड़कियों की तरफ़ ज़्यादा ध्यान देता है और उधर होवार्ड और कैथरीन पार्टी छोड़ अपनी शाम अपने तरीके से रंगीन बनाने के लिए निकल पड़ते हैं। दोनों इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि उनकी शादियाँ प्रेम विहीन है और दोनों को एक दूसरे में अपनी परछाई नज़र आती है। दोनों यह तय करते हैं कि अगली शाम वो अपने अपने घरों से भाग निकलेंगे साथ में एक नई दुनिया बसाने। टेड को कैथरीन और होवार्ड के बारे में तब पता चलता है जब दोनों पैरिस की फ़्लाइट में बैठने ही वाले हैं। इस फ़िल्म के संगीतकार थे मार्विन हैमलिश। इस फ़िल्म के लिए ’दि एप्रिल फ़ूल्स’ शीर्षक से एक गीत बनाया गया जिसे गाया था डिओन वारविक ने। 

अब तक हमने जितनी फ़िल्मों की ज़िक्र किया, वो सभी रोमान्टिक कॉमेडी फ़िल्में थीं।  1986 में एक ऐसी
अंग्रेज़ी फ़िल्म आई जो एक मिस्ट्री हॉरर फ़िल्म थी। ’एप्रिल फ़ूल्स डे’ नामक यह फ़िल्म डेबोरा फ़ोरमैन, ऐमी स्टील और केन ओलान्त के अभिनय से सजी थी। फ़्रेड वाल्टन निर्देशित इस फ़िल्म का पार्श्व कुछ ऐसा था कि कॉलेज स्टुडेन्ट्स का एक दल स्प्रिंग् वीकेन्ड ट्रिप पर (जिसमें पहली अप्रैल का दिन भी शामिल है) एक द्वीप में जाते हैं। और वहाँ रहस्य जनक तरीके से एक के बाद एक क़त्ल होने लगता है। इस फ़िल्म को देखते हुए हमें 1965 की हिन्दी फ़िल्म ’गुमनाम’ की याद आ जाती है जो अगाथा क्रिस्टि की एक उपन्यास पर आधारित थी। वर्ष 2007 में एक और हॉरर फ़िल्म बनी ’एप्रिल फ़ूल्स’ शीर्षक से। नैन्सी नॉरमैन लिखित, निर्मित व निर्देशित इस फ़िल्म में दया वैद्य, आलिया फ़्रैन्क्स, डैरोन हेन्सन और ओबा बाबाटुन्डे ने मुख्य भूमिकाएँ  निभाई। कहानी कुछ ऐसी है कि छह सहपाठियों (मिसी, डिऐना, ईवा, डिएगो, मलिक और मार्लिन) का एक ग्रूप अपनी कक्षा के एक छात्र मेल्विन पर अप्रैल फ़ूल्स डे का एक मज़ाक करते हैं पर बदक़िस्मती से उसकी मौत हो जाती है। डर कर वो लोग मेल्विन के शरीर को जंगल में फेंक आते हैं ताकि लोगों को ऐसा लगे कि किसी गैंग् ने उस पर हमला किया होगा। ठीक एक साल बाद, अप्रैल फ़ूल्स डे के दिन डिऐना का ख़ून हो जाता है। उसे मारने के बाद, क़ातिल डिऐना के ख़ून से दीवार पर लिख जाता है "एप्रिल फ़ूल्स"। इसके बाद मिसी बाकी चार दोस्तों को बुला कर यह स्थापित करने लगता है कि हो ना हो डिऐना की मौत का मेल्विन के मौत से कुछ संबंध ज़रूर है। पर बाकी दोस्त इस बात को खारिज कर देते हैं। लेकिन क़त्लों का सिलसिला जारी रहता है। अगली भेंट चढ़ती है ईवा, और फिर से क़ातिल ख़ून से "एप्रिल फ़ूल्स" लिख जाता है। फिर इसके बाद उनके आपस में कई झड़प होते हैं, पुलिस भी शामिल हो जाती है, और किस तरह से इन क़त्लों की गुत्थियाँ सुलझती है, यही है इस फ़िल्म की कहानी। इस फ़िल्म के ठीक एक वर्ष बाद 2008 में एक फ़िल्म आई ’एप्रिल फ़ूल्स डे’। यह 1986 में बनी फ़िल्म का ही रीमेक था। इस बार इस फ़िल्म का निर्देशन किया दि बुचर ब्रदर्स ने जो मिशेल ऐल्टिएरी और फ़िल फ़्लोर्स के नाम से भी जाने जाते हैं। फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे टेलर कोल, जोश हेन्डर्सन, स्काउट टेलर कॉम्प्टन, जो एजेन्डर और जेनिफ़र सीबेल। फ़िल्म को नकारात्मक समीक्षाएँ मिली थी।

वर्तमान दशक में भी अप्रैल फ़ूल के पार्श्व पर बनने वाली फ़िल्मों की परम्परा जारी है। वर्ष 2013 में फ़िल्म
बनी ’फ़ूल्स डे’। यह एक डार्क कॉमेडी है जिसमें चौथी कक्षा के कुछ बच्चे अपनी टीचर पर अप्रैल फ़ूल का एक मज़ाक करते हैं, पर दुर्घटनावश टीचर की मृत्यु हो जाती है। घबराए हुए और निश्चित रूप से जेल के अन्दर जाने की आशंका मन में लिए वो बच्चे इस क़त्ल को छुपाने की कोशिश में जुट जाते हैं। ख़ून से लथपथ वो नन्हे बच्चे अपनी मृत टीचर के शरीर को ठिकाने लगाने लगते हैं इससे पहले कि उनका D.A.R.E. वहाँ आ पहुँचे अपने साप्ताहिक पाठ के लिए। कोडी ब्लू स्निडर लिखित व निर्देशित इस फ़िल्म में मुख्य भूमिकाएँ निभाई मिशेल जार्विस, जस्टिन ऐबसैट्ज़, फ़ाइलिस बोवेन IV, जेरेमिया बुर्च III और कोल कैनज़ानो ने। इस फ़िल्म का एक उल्लेखनीय समीक्षा बाइरोन बुबाकर ने लिखा था - "The seventh in a set of shorts that I saw at the Cleveland International Film Festival 2014. This dark comedy had the audience gasping in shock and roaring with laughter! Director Cody Blue Snider's dad, Dee Snider, makes an appearance as a janitor, but it is the ragtag bunch of 4th graders who own this picture. Adam (Liam Foley) leads the pack. It's April Fool's Day and all but one goody two-shoes student add any random ingredients they can find to their teacher, Mrs. Brandt's coffee. Little do they know that it will kill her in a most violent fashion. Now it's time to work together to cover up the crime before their D.A.R.E. officer arrives at the appointed time. It's a mission impossible. Mitchell Jarvis plays the hilarious swaggering Erik Estrada-like Officer O'Donnell, who is clueless to all the hints that something is wrong with this 4th grade class. After all, it's just a Fool's Day joke."

2013 में एक स्पैनिश फ़िल्म आई ’ब्लडी एप्रिल फ़ूल्स’ शीर्षक से जिसके एक नहीं बल्कि आठ या नौ
निर्देशक थे। फ़िल्म के मुख्य कलाकार हैं चारलोट वेगा, दिना गोमेज़, कार्मैन फ़्लोर्स, ऐलेक्स बटलोरी और एनरिक औकुर। यह भी एक हॉरर फ़िल्म है और कहानी का पार्श्व कुछ इस तरह का है कि एक जातिच्युत (outcaste) युवक को कुछ युवाओं ने मज़ाक-मज़ाक में अपने होस्टल के बॉयलर (boiler) रूम में बन्द कर देते हैं। अत्यधिक गर्मी से उस युवक की मौत हो जाती है। इसके कुछ सालों के बाद उस बहिष्कृत होस्टल में प्राप्तवयस्क युवाओं का एक दल अपनी यात्रा के दौरान आ ठहरते हैं एक रात की पार्टी के लिए। लेकिन जल्द ही एक अनजान कातिल एक एक कर उन सबको मारने लगता है। फ़िल्म का निर्देशन किया कारलोस ऐलोन्सो, डिडैक सर्वेरा, मार्ता दिआज़ दे लोप, लौरा गार्सिआ, यूगेनी गुइलेम, ऐन्डर इरिआर्ते, गेरार्ड मार्ति, मार्क मार्तिनेज़, रुबेन मोन्टेरो, आर्नो पोन्स, मार्क पुजोलार और मिगुएल सांचेज़ ने। लुइ सेगुरा डिरेक्शन सुपरवाइज़र थे। फ़िल्म के तमाम VFX कारीगरी का दायित्व जुलिया फ़्रान्सिनो पर था। इस फ़िल्म के डरावने सीन्स दिल पर गहरा दाग़ छोड़ते हैं। फ़िल्म को मिली-जुली प्रतिक्रिया मिली। स्पैनिश में इस फ़िल्म का शीर्षक था ’लौस इनोसेन्तेस’ (Los Inocentes)। वर्ष 2014 में एक रूसी फ़िल्म बनी ’फ़ूल्स डे’ शीर्षक से जो निकोलाय गोगोल की 1836 की प्रसिद्ध उपन्यास ’दि गवर्णमेण्ट इन्स्पेक्टर’ पर आधारित थी। कहानी ग़लतियों का हास्यास्पद चित्रण है जिसमें लालच का आरोप है और बेवकूफ़ियों की भरमार भी, और साथ में गहराई तक पहुँच चुकी राजनैतिक भ्रष्टाचार भी। फ़िल्म के नायक इवान कर्ज़ में डूबा हुआ एक होटल का डोरमैन है जो यह जताने की कोशिश करता है कि उसका पिता एक बेहद अमीर इंसान है जो उसके सारे कर्ज़ों को चुकाने की औकात रखता है और उसके सारे कर्ज़ों को चुका देगा। इवान उर एक ॠण कलेक्टर एक यात्रा पर निकल पड़ते हैं इवान के अपने पिता के तथाकथित फ़ार्म में पहुँचने के लिए। एक मामूली कार दुर्घटना की वजह से इवान और ऋण कलेक्टर को एक अजीब नगर में रुकना पड़ता है जहाँ के लोग उन्हें सरकारी उच्चपदस्थ अफ़सर समझ कर उनका भव्य स्वागत सत्कार करने लग जाते हैं। अलेक्ज़ैन्डर बारानोव निर्देशित इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार हैं अलेक्ज़ैन्डर लाइकोव, ऐलेक्साइ वेसिओल्किन, अलेक्ज़ैन्डर वोरोबियोव, ऐन्तोनिना दिविना, व्लादिमिर मार्किन और सर्गेय पावलोव। मूल फ़िल्म रूसी भाषा में है और लातवियन भाषा में इसे डब किया गया है।

अप्रैल फ़ूल पर बनने वाली फ़िल्में केवल पश्चिमी देशों तक ही सीमित नहीं रही। सुदूर पूर्व के जापान में भी
इस पार्श्व पर फ़िल्म बनी है। 2015 में निर्मित ’एप्रिल फ़ूल्स’ एक जापानी कॉमेडी ड्रामा सस्पेन्स फ़िल्म है जिसे जुनिचि इशिकावा ने निर्देशित किया है। फ़िल्म प्रदर्शित हुई थी 1 अप्रैल 2015 के दिन, यानी कि आज से ठीक दो साल पूर्व। मुख्य भूमिकाओं में थे एरिका तोदा, तोरी मत्सुज़ाका, युसुके सान्तामारिया, युकियोशि ओज़ावा, सायाका यामागुचि, मासानोबु ताकाशिमा, एइको कोइके और कोतारो सातोमी। फ़िल्म की कहानी में दो प्लॉट हैं। पहले प्लॉट में आयुमि (एरिका) मानवभीति (anthropophobia) से पीड़ित है। वो एक अस्पताल में चौकीदार का काम करती है। एक रात वो वातारु (तोरी) से साथ शारीरिक संबंध करती है जो अपने आप को एक बहुत बड़ा सर्जन बताता है जबकि असल में वो एक चरित्रहीन आदमी है और झूठ बोल कर लड़कियों का फ़ायदा उठाता है। आयुमि गर्भवती बन जाती है लेकिन जब वो यह बात वातारु को बताती है तो वातारु इसे एक भद्दा अप्रैल फ़ूल जोक मानता है। वातारु उसके बाद फ़्लाइट ऐटेन्डेण्ट रेइको को एक रेस्तोराँ में ले जाता है। आयुमि भी वहाँ आ पहुँचती है और अपने पेट में पल रहे उसके बच्चे का दायित्व लेने पर ज़ोर डालती है। फ़िल्म के दूसरे प्लॉट में एक छात्र की कहानी है जो समझता है कि वो किसी दूसरे ग्रह से आया हुआ है। ऐसा सोचने के पीछे कारण है उसका इन्टरनेट के माध्यम से मिला हुआ कुछ संदिग्ध संदेश। तीसरे प्लॉट में एक वृद्धा की कहानी है जिस पर पुलिस जासूस की निगरानी है क्योंकि वो एक संदिग्ध डायन है। अन्य प्लॉटों में दो दोस्तों की कहानी है जिनमें से एक समलैंगिक है। ये सभी प्लॉटों में समानता यह है कि ये सभी पहली अप्रैल को घटे हैं या फिर इन्हें अप्रैल फ़ूल प्रैंक समझा गया है। इस तरह से यह फ़िल्म कोई एक कहानी नहीं बल्कि कई कहानियों का समूह है। प्रदर्शित होने के केवल चार दिनों के अन्दर इस फ़िल्म ने 306,494 जापानी येन का कारोबार किया था और जापानी बॉक्स ऑफ़िस पर ब्लॉकबस्टर सिद्ध हुआ।

तो ये थी अप्रैल फ़ूल के पार्श्व पर बनने वाली देश विदेश की फ़िल्मों का लेखा-जोखा। इन सभी फ़िल्मों के बारे में जान कर निश्कर्ष यह निकाला जा सकता है कि अप्रैल फ़ूल में किए जाने वाले मज़ाक कभी कभी विकराल रूप धारण कर लेती है और कई बार लोगों की जान तक जा सकती है। अत: मज़ाक दाएरे में रख कर किया जाए तो ही उसका मज़ा है। 



आपकी बात

पिछले अंक में तीसरे लिंग के सकारात्मक चित्रण वाले 1997 की तीन हिन्दी फ़िल्मों पर लेख का हमें अच्छी प्रतिक्रिया मिली, और शुक्रवार देर रात तक इस अंक की रीडरशिप रही 191।  यूंही हमारे साथ बने रहिए, धन्यवाद!


आख़िरी बात

’चित्रकथा’ स्तंभ का आज का अंक आपको कैसा लगा, हमें ज़रूर बताएँ नीचे टिप्पणी में या soojoi_india@yahoo.co.in के ईमेल पते पर पत्र लिख कर। इस स्तंभ में आप किस तरह के लेख पढ़ना चाहते हैं, यह हम आपसे जानना चाहेंगे। आप अपने विचार, सुझाव और शिकायतें हमें निस्संकोच लिख भेज सकते हैं। साथ ही अगर आप अपना लेख इस स्तंभ में प्रकाशित करवाना चाहें तो इसी ईमेल पते पर हमसे सम्पर्क कर सकते हैं। सिनेमा और सिनेमा-संगीत से जुड़े किसी भी विषय पर लेख हम प्रकाशित करेंगे। आज बस इतना ही, अगले सप्ताह एक नए अंक के साथ इसी मंच पर आपकी और मेरी मुलाक़ात होगी। तब तक के लिए अपने इस दोस्त सुजॉय चटर्जी को अनुमति दीजिए, नमस्कार, आपका आज का दिन और आने वाला सप्ताह शुभ हो!





शोध,आलेख व प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी 
प्रस्तुति सहयोग : कृष्णमोहन मिश्र  



रेडियो प्लेबैक इण्डिया 

Comments

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे...

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु...

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन...