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चैत्र की चैती : SWARGOSHTHI – 313 : CHAITRA KI CHAITI




स्वरगोष्ठी – 313 में आज

फागुन के रंग – 5 : चैती गीतों का लालित्य

विदुषी गिरिजा देवी के स्वरों में सुनिए – “चैत मासे चुनरी रंगइबे हो रामा, पिया घर लइहें...”




‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के मंच पर ‘स्वरगोष्ठी’ की श्रृंखला “फागुन के रंग” की पाँचवीं और समापन कड़ी के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। मित्रों, इस श्रृंखला में हम आपसे फाल्गुनी संगीत पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय पंचांग के अनुसार बसन्त ऋतु की आहट माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को ही मिल जाती है। बसन्त ऋतु के आगमन के साथ ऋतु के अनुकूल गायन-वादन का सिलसिला आरम्भ हो जाता है। इस ऋतु में राग बसन्त और राग बहार आदि का गायन-वादन किया जाता है। होलिका दहन के साथ ही रंग-रँगीले फाल्गुन मास का आगमन होता है। पिछले दिनों हमने हर्षोल्लास से होलिका दहन और उसके अगले दिन रंगों का पर्व मनाया था। इस परिवेश का एक प्रमुख राग काफी होता है। स्वरों के माध्यम से फाल्गुनी परिवेश, विशेष रूप से श्रृंगार रस की अभिव्यक्ति के लिए राग काफी सबसे उपयुक्त राग है। अब तो चैत्र, शुक्ल प्रतिपदा अर्थात भारतीय नववर्ष और नवरात्रि का पर्व भी हम माना चुके हैं। इस परिवेश में लोक और उप-शास्त्रीय शैली में चैती गीतों का गायन किया जाता है। पिछले अंक में हमने धमार गीतों में होली की चर्चा की थी। आज के अंक में हम चैती गीतों की चर्चा करेंगे। आज हम विदुषी गिरिजा देवी और विदुषी निर्मला देवी के स्वरों में उपशास्त्रीय चैती और पार्श्वगायक मुकेश की आवाज़ में एक फिल्मी चैती प्रस्तुत कर रहे हैं।



ज हम आपसे संगीत की एक ऐसी शैली पर चर्चा करेंगे जो मूलतः ऋतु प्रधान लोक संगीत की शैली है, किन्तु अपनी सांगीतिक गुणबत्ता के कारण इस शैली को उपशास्त्रीय मंचों पर भी अपार लोकप्रियता प्राप्त है। भारतीय संगीत की कई ऐसी लोक-शैलियाँ हैं, जिनका प्रयोग उपशास्त्रीय संगीत के रूप में भी किया जाता है। होली पर्व के बाद, आरम्भ होने वाले चैत्र मास से ग्रीष्म ऋतु का आगमन हो जाता है। इस परिवेश में चैती गीतों का गायन आरम्भ हो जाता है। गाँव की चौपालों से लेकर मेलों में, मन्दिरों में चैती के स्वर गूँजने लगते हैं। उत्तर भारत में इस गीत के प्रकारों को चैती, चैता और घाटो के नाम से जाना जाता है। चैती गीतों की प्रकृति-प्रेरित धुनें, इनका श्रृंगार रस से ओतप्रोत साहित्य और चाँचर ताल के स्पन्दन में निबद्ध होने के कारण यह लोक गायकों के साथ-साथ उपशास्त्रीय गायक-वादकों के बीच समान रूप से लोकप्रिय है।

गिरिजा देवी
चैती गीतों का मूल स्रोत लोक संगीत ही है, किन्तु स्वर, लय और ताल की कुछ विशेषताओं के कारण उपशास्त्रीय संगीत के मंचों पर भी बेहद लोकप्रिय है। इन गीतों के वर्ण्य विषय में श्रृंगार रस के संयोग और वियोग, दोनों पक्ष प्रमुख होते हैं। अनेक चैती गीतों में भक्ति रस की प्रधानता होती है। चैत्र मास की नौमी तिथि को राम-जन्म का पर्व मनाया जाता है। इसके साथ ही बासन्ती नवरात्र के पहले दिन अर्थात चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को भारतीय पंचांग के नए वर्ष का आरम्भ भी होता है। इसलिए चैती गीतों में रामजन्म, राम की बाल लीला, शक्ति-स्वरूपा देवी दुर्गा तथा नए संवत् के आरम्भ का उल्लास भी होता है। इन गीतों को जब महिला या पुरुष एकल रूप में गाते हैं तो इसे 'चैती' कहा जाता है, परन्तु जब समूह या दल बना कर गाया जाता है तो इसे 'चैता' कहा जाता है। इस गायकी का एक और प्रकार है जिसे 'घाटो' कहते हैं। 'घाटो' की धुन 'चैती' से थोड़ी भिन्न हो जाती है। इसकी उठान बहुत ऊँची होती है और केवल पुरुष वर्ग ही इसे समूह में गाते हैं। कभी-कभी गायकों को दो दलों में बाँट कर सवाल-जवाब या प्रतियोगिता के रूप में भी इन गीतों को प्रस्तुत किया जाता है, जिसे ‘चैता दंगल' कहा जाता है। आइए, सबसे पहले चैती गीतों के उपशास्त्रीय स्वरूप पर एक दृष्टिपात करते है। सुप्रसिद्ध गायिका विदुषी गिरिजा देवी की गायी एक चर्चित चैती से हम आज की इस संगीत सभा का शुभारम्भ करते हैं। यह श्रृंगार रस प्रधान चैती है जिसमें नायिका परदेश गए नायक के वापस घर लौटने की प्रतीक्षा करती है। इस चैती की भाव-भूमि तो लोक जीवन से प्रेरित है, किन्तु प्रस्तुति ठुमरी अंग से की गई है।

चैती गीत : ‘चैत मासे चुनरी रंगइबे हो रामा...’ : विदुषी गिरिजा देवी और साथी



निर्मला  देवी
यह मान्यता है की प्रकृतिजनित, नैसर्गिक रूप से लोक कलाएँ पहले उपजीं, परम्परागत रूप में उनका क्रमिक विकास हुआ और अपनी उच्चतम गुणवत्ता के कारण ये शास्त्रीय रूप में ढल गईं। प्रदर्शनकारी कलाओं पर भरतमुनि प्रवर्तित ग्रन्थ 'नाट्यशास्त्र' को पंचमवेद माना जाता है। नाट्यशास्त्र के प्रथम भाग, पंचम अध्याय के श्लोक संख्या 57 में ग्रन्थकार ने स्वीकार किया है कि ‘लोक जीवन में उपस्थित तत्वों को नियमों में बाँध कर ही शास्त्र प्रवर्तित होता है।‘ श्लोक का अर्थ है कि ‘इस चर-अचर की दृश्य-अदृश्य विधाएँ, शिल्प, गतियाँ और चेष्टाएँ हैं, वह सब शास्त्र रचना के मूल तत्त्व हैं।‘ चैती गीतों के लोक-रंजक-स्वरुप तथा स्वर और ताल पक्ष के चुम्बकीय गुण के कारण ही उपशास्त्रीय संगीत में यह स्थान पा सका। लोक परम्परा में चैती 14 मात्रा के चाँचर ताल में गायी जाती है, जिसके बीच-बीच में कहरवा ताल का प्रयोग होता है। पूरब अंग के बोल-बनाव की ठुमरी भी 14 मात्रा के दीपचन्दी ताल में निबद्ध होती है और गीत के अन्तिम हिस्से में कहरवा की लग्गी का प्रयोग होता है। सम्भवतः चैती के इन्हीं गुणों ने ही उपशास्त्रीय गायक-वादकों को इसके प्रति आकर्षित किया होगा| आइए अब हम आपको एक ऐसी चैती सुनवाते हैं, जिसे अपने समय की सुप्रसिद्ध उपशास्त्रीय गायिका निर्मला देवी ने स्वर दिया है। निर्मला देवी ने उपशास्त्रीय मंचों पर ही नहीं बल्कि फिल्मी पार्श्वगायन के क्षेत्र में भी खूब यश प्राप्त किया था। आज के विख्यात फिल्म अभिनेता गोविन्दा, गायिका निर्मला देवी आहूजा के सुपुत्र हैं। उनकी गायी इस चैती में आपको लोक और शास्त्रीय, दोनों रंग की अनुभूति होगी।

चैती गीत : ‘यही ठइयाँ मोतिया हेरा गइल रामा...’ : गायिका निर्मला देवी



मुकेश
चैती गीतों की प्रचलित धुनों का जब सांगीतिक विश्लेषण किया जाता है तो हमे स्पष्ट अनुभव होता है कि प्राचीन चैती की धुन और राग बिलावल के स्वरों में पर्याप्त समानता है। आजकल गायी जाने वाली चैती में तीव्र मध्यम के प्रयोग की अधिकता के कारण यह राग यमनी बिलावल की अनुभूति कराता है। उपशास्त्रीय स्वरूप में चैती का गायन प्रायः राग तिलक कामोद के स्वरों में भी किया जाता है। परम्परागत लोक-संगीत के रूप में चैती गीतों का गायन चाँचर ताल में होता है, जबकि पूरब अंग की अधिकतर ठुमरियाँ 14 मात्रा के दीपचन्दी ताल में निबद्ध होती हैं। दोनों तालों की मात्राओं में समानता के कारण भी चैती गीत लोक और उपशास्त्रीय, दोनों स्वरूपों में लोकप्रिय है। भारतीय फिल्मों में चैती धुन का प्रयोग तो कई गीतों में किया गया है, किन्तु धुन के साथ-साथ ऋतु के अनुकूल साहित्य का प्रयोग कुछ गिनीचुनी फिल्मी गीतों में मिलता है। 1963 में कथा सम्राट मुंशी प्रेमचन्द के बहुचर्चित उपन्यास ‘गोदान’ पर इसी नाम से फिल्म बनी थी। इस फिल्म के संगीतकार विश्वविख्यात सितार वादक पण्डित रविशंकर थे, जिन्होंने फिल्म के गीतों को पूर्वी भारत की लोकधुनों में निबद्ध किया था। लोकगीतों के विशेषज्ञ गीतकार अनजान ने फिल्म के कथानक, परिवेश और चरित्रों के अनुरूप गीतों की रचना की थी। इन्हीं गीतों में एक चैती गीत भी था, जिसे मुकेश के स्वर में रिकार्ड किया गया था। गीत के बोल हैं- ‘हिया जरत रहत दिन रैन हो रामा…’। इस गीत में आपको चैती गीतों के समस्त लक्षण परिलक्षित होंगे। इस गीत में राग तिलक कामोद का आधार और दीपचन्दी ताल का स्पन्दन भी मिलेगा। आप इस गीत का आनन्द लीजिए और मुझे इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए। अगले अंक में हम एक नई श्रृंखला के साथ उपस्थित होंगे।

चैती गीत : ‘हिया जरत रहत दिन रैन हो रामा...’ : मुकेश : फिल्म – गोदान



संगीत पहेली

‘स्वरगोष्ठी’ के 313वें अंक की पहेली में आज हम आपको छः दशक से भी अधिक पुरानी फिल्म के एक राग आधारित गीत का अंश सुनवा रहे है। इसे सुन कर आपको तीन में से कम से कम दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। 320वें अंक की पहेली के सम्पन्न होने तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस वर्ष के दूसरे सत्र का विजेता घोषित किया जाएगा।





1 – गीत में किस राग का आधार है? हमें राग का नाम लिख भेजिए।

2 – रचना में किस ताल का प्रयोग किया गया है? ताल का नाम लिखिए।

3 – यह किस पार्श्वगायिका की आवाज़ है?

आप उपरोक्त तीन मे से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर ही शनिवार 22 अप्रैल, 2017 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। COMMENTS में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते हैं, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर देने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। विजेता का नाम हम उनके शहर, प्रदेश और देश के नाम के साथ ‘स्वरगोष्ठी’ के 315वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।


पिछली पहेली के विजेता

‘‘स्वरगोष्ठी’ की 311वीं कड़ी की पहेली में हमने आपको ध्रुपद गायक पण्डित आशीष सांकृत्यायन के स्वर में धमार गायकी का एक अंश प्रस्तुत कर आपसे तीन में से दो प्रश्नों का उत्तर पूछा था। पहले प्रश्न का सही उत्तर है, राग – मिश्र खमाज, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है, ताल – धमार (14 मात्रा) और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है, शैली – धमार

इस अंक की पहेली में हमारे नियमित प्रतिभागी, चेरीहिल न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल, पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया, जबलपुर से क्षिति तिवारी, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया और हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी ने प्रश्नों के सही उत्तर देकर इस सप्ताह विजयी हुए हैं। उपरोक्त सभी पाँच प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।


अपनी बात

मित्रों, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर हमारी श्रृंखला ‘फागुन के रंग’ का यह समापन अंक था। इस अंक में हमने आपके लिए चैती गीतों का एक खूबसूरत गुलदस्ता प्रस्तुत किया। श्रृंखला में हमने आपसे बसन्त ऋतु के फाल्गुनी परिवेश में गाये-बजाए वाले रागों पर चर्चा की। आगामी अंक में हम संगीत जगत की एक महान विदुषी श्रीमती किशोरी अमोनकर को श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे। इसके उपरान्त आगामी 30 अप्रैल,2017 से हम एक नई श्रृंखला आरम्भ करेंगे। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम फिल्म जगत के गुणी संगीतकार रोशन के राग आधारित गीतो पर चर्चा करेंगे। हमारी आगामी श्रृंखलाओं के विषय, राग, रचना और कलाकार के बारे में यदि आपकी कोई फरमाइश हो तो हमें अवश्य लिखिए। अगले अंक में रविवार को प्रातः 8 बजे हम ‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर सभी संगीत-प्रेमियों का स्वागत करेंगे।


प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र  


रेडियो प्लेबैक इण्डिया 

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