स्वरगोष्ठी – 249 में आज
संगीत के शिखर पर – 10 : पण्डित रामनारायण
संगीत के सौ रंग बिखेरती पण्डित रामनारायण की सारंगी
‘रेडियो
प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी हमारी
सुरीली श्रृंखला – ‘संगीत के शिखर पर’ की दसवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन
मिश्र आप सब संगीत-रसिकों का एक बार पुनः हार्दिक स्वागत करता हूँ। इस
श्रृंखला में हम भारतीय संगीत की विभिन्न विधाओं में शिखर पर विराजमान
व्यक्तित्व और उनके कृतित्व पर चर्चा कर रहे हैं। संगीत गायन और वादन की
विविध लोकप्रिय शैलियों में किसी एक शीर्षस्थ कलासाधक का चुनाव कर हम उनके
व्यक्तित्व का उल्लेख और उनकी कृतियों के कुछ उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं।
आज श्रृंखला की दसवीं कड़ी में हम आपको मानव-कण्ठ के सर्वाधिक निकट
तंत्रवाद्य सारंगी और इस वाद्य कुशल वादक पण्डित रामनारायण के बारे में
चर्चा कर रहे हैं। आपको हम यह भी अवगत कराना चाहते हैं कि 25 दिसम्बर को
पण्डित रामनारायण जी का 89वाँ जन्मदिन है। इस अवसर पर हम ‘स्वरगोष्ठी’ के
इस अंक में पण्डित जी का सारंगी पर बजाया राग मारवा का आलाप और राग दरबारी
में एक आकर्षक गत प्रस्तुत करेंगे। पण्डित रामनारायण आरम्भिक दशकों में
फिल्म संगीत से भी जुड़े थे। आज के अंक में हम आपको 1953 की फिल्म ‘हमदर्द’
का एक गीत सुनवाएँगे, जिसमें पण्डित जी की सारंगी का वादन किया गया था। इस
फिल्मी गीत में आपको राग जोगिया और राग बहार का स्पर्श मिलेगा।
गज-तंत्र
वाद्यों में वर्तमान भारतीय वाद्य सारंगी, सर्वाधिक प्राचीन है। शास्त्रीय
मंचों पर प्रचलित सारंगी, विविध रूपों और विविध नामों से लोक संगीत से भी
जुड़ी है। प्राचीन ग्रन्थों में यह उल्लेख मिलता है कि लंका के राजा रावण का
यह सर्वप्रिय वाद्य था। ऐसी मान्यता है कि रावण ने ही इस वाद्य का
आविष्कार किया था। इसी कारण इसका एक प्राचीन नाम ‘रावण हत्था’ का उल्लेख भी
मिलता है। आज के अंक में हम सारंगी और इस वाद्य के अप्रतिम वादक पण्डित
रामनारायण के व्यक्तित्व और कृतित्व पर चर्चा कर रहे हैं। सारंगी एक ऐसा
वाद्य है जो मानव कण्ठ के सर्वाधिक निकट है। एक कुशल सारंगी वादक गले की
शत-प्रतिशत विशेषताओं को अपने वाद्य पर बजा सकता है। सम्भवतः इसीलिए इस
वाद्य को ‘सौ-रंगी’ अर्थात सारंगी कहा गया। 25 दिसम्बर, 1927 को उदयपुर,
राजस्थान के एक सांगीतिक परिवार में एक ऐसे प्रतिभावान बालक का जन्म हुआ,
जिसे आज हम सब विख्यात सारंगी वादक पण्डित रामनारायण के रूप में जानते हैं।
भारतीय संगीत जगत में इस महान संगीतज्ञ का योगदान कभी भी भुलाया नहीं जा
सकता। आज के अंक में हम उनके इस योगदान पर चर्चा करेंगे। फरवरी, 1994 में
उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी के अभिलेखागार के लिए मुझे पण्डित
रामनारायण जी से एक लम्बे साक्षात्कार का सुअवसर मिला था। उस बातचीत के कुछ
अंश हम आपके लिए इस अंक में भी प्रस्तुत करेंगे, किन्तु उससे पहले आपको
सुनवाते हैं, पण्डित रामनारायण का बजाया उनका सर्वप्रिय राग मारवा में
मनमोहक आलाप।
राग मारवा : सारंगी पर आलाप : पण्डित रामनारायण
पण्डित
रामनारायण के प्रपितामह, दानजी वियावत उदयपुर महाराणा के दरबारी गायक थे।
पितामह हरिलाल वियावत भी उच्चकोटि के गायक थे, जबकि पिता नाथूजी वियावत ने
दिलरुबा वाद्य को अपनाया। छः वर्ष की आयु में रामनारायण जी के हाथ एक
सारंगी लगी और इसी वाद्य पर पिता की देख-रेख में अभ्यास आरम्भ हो गया। 10
वर्ष की आयु में उन्होने उस्ताद अल्लाबंदे और उस्ताद जाकिरुद्दीन डागर से
ध्रुवपद की शिक्षा ग्रहण की। इसके साथ ही जयपुर के सुविख्यात सारंगी वादक
उस्ताद महबूब खाँ से भी मार्गदर्शन प्राप्त किया। 1944 में रामनारायण जी की
नियुक्ति सारंगी संगतिकार के रूप रेडियो लाहौर में हुई, जहाँ तत्कालीन
जाने-माने गायक-वादकों के साथ उन्होने सारंगी की संगति कर कम आयु में ही
ख्याति अर्जित की। 1947 में देश विभाजन के समय उन्हें लाहौर से दिल्ली
केन्द्र पर स्थानान्तरित किया गया। अब तक रामनारायण के सारंगी वादन में
इतनी परिपक्वता आ गई कि तत्कालीन सारंगी वादकों में उनकी एक अलग शैली के
रूप में पहचानी जाने लगी। इसके बावजूद उनका मन इस बात से हमेशा खिन्न रहा
करता था कि संगीत के मंच पर संगतिकारों को वह दर्जा नहीं मिलता था, जिसके
वो हकदार थे। मुख्य गायक कलाकारों के साथ, इसी बात पर प्रायः नोक-झोंक हो
जाती थी। उनका मानना था कि संगतिकारों को भी प्रदर्शन के दौरान अपनी बात
कहने का अवसर मिलना चाहिए। 1956 में पण्डित रामनारायण ने मुम्बई के एक
संगीत समारोह में एकल सारंगी वादन किया। संगीत-प्रेमियों के लिए यह एक
दुर्लभ क्षण था। किसी शास्त्रीय मंच पर पहली बार सदियों से संगति वाद्य के
रूप में प्रचलित सारंगी को स्वतंत्र वादन का सम्मान प्राप्त हुआ था। इस दिन
संगीत के सुनहरे पृष्ठों पर पण्डित रामनारायन का नाम सारंगी को प्रतिष्ठित
करने में दर्ज़ हो चुका था। आइए यहाँ थोड़ा रुक कर सुनते हैं, पण्डित
रामनारायण जी का सारंगी पर बजाया राग दरबारी में एक मनमोहक गत।
राग दरबारी : सारंगी पर गत का वादन : पण्डित रामनारायण
सारंगी
वादन की अपनी एक अलग शैली विकसित करते हुए पण्डित रामनारायण का मन
स्वतंत्र सारंगी वादन के लिए बेचैन होने लगा। रेडियो की नौकरी में रहते हुए
उनकी यह इच्छा पूरी नहीं हो पा रही थी, अतः 1949 में उन्होने रेडियो की
नौकरी छोड़ कर मुम्बई (तत्कालीन बम्बई) पहुँच गये। मुम्बई में स्वयं को
स्थापित करने की लालसा ने उन्हें फिल्म-जगत में पहुँचा दिया। उस दौर के
फिल्म संगीतकारों ने पण्डित रामनारायण को सर-आँखों पर बिठाया। सारंगी के
सुरों से सजी उनकी कुछ प्रमुख फिल्में हैं- हमदर्द 1953, अदालत 1958,
मुगल-ए-आजम 1960, गंगा जमुना 1961, कश्मीर की कली 1964, मिलन और नूरजहाँ
1967। संगीतकार ओ.पी. नैयर के तो वे सर्वप्रिय रहे। हमदर्द, अदालत, गंगा
जमुना और मिलन फिल्म में तो उन्होने कई गीतों की धुनें भी बनाई। अब हम आपको
उनके फिल्मी गीतों में से चुन कर हमने फिल्म ‘हमदर्द’ का एक राग आधारित
गीत लिया है। इस गीत के चार अन्तरे हैं। पहला अन्तरा राग गौड़ सारंग, दूसरा
अन्तरा राग गौड़ मल्हार, तीसरा अन्तरा राग जोगिया और चौथा अन्तरा राग बहार
के सुरों में निबद्ध है। अब हम आपको गीत का तीसरा और चौथा अन्तरा सुनवा रहे
हैं। फिल्म के संगीत निर्देशक हैं अनिल विश्वास और गायक हैं, मन्ना डे और
लता मंगेशकर। आइए सुनते हैं, राग जोगिया और राग बहार के स्वरो से सुसज्जित
यह गीत।
राग जोगिया और बहार : ‘पी बिन सब सूना...’ और ‘आई मधु ऋतु...’ : मन्ना डे और लता मंगेशकर
संगीत पहेली
‘स्वरगोष्ठी’
के 249वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको फिल्म में शामिल की गई एक
ठुमरी रचना का अंश सुनवा रहे हैं। इस संगीतांश को सुन कर आपको निम्नलिखित
तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। पहेली क्रमांक 250 के
सम्पन्न होने तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस वर्ष की
पाँचवीं श्रृंखला (सेगमेंट) के विजेता का सम्मान मिलेगा। साथ ही पहेली के
वार्षिक विजेताओं की घोषणा ‘स्वरगोष्ठी’ के 252वें अंक में की जाएगी।
1 – इस गीतांश में आपको किस राग की अनुभूति हो रही है? राग का नाम बताइए।
2 – प्रस्तुत रचना किस ताल में निबद्ध है? ताल का नाम बताइए।
3 – यह किस गायिका की आवाज़ है? उनका नाम बताइए।
आप इन तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com
पर ही शनिवार, 26 दिसम्बर, 2015 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें।
COMMENTS में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते है, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का हल भेजने की अन्तिम
तिथि के बाद किया जाएगा। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 251वें अंक में
प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत किये गए गीत-संगीत, राग अथवा कलासाधक
के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना
चाहते हैं तो हम आपका इस मंच पर स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये
गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’
के 247वें अंक की संगीत पहेली में हमने आपको पण्डित रघुनाथ सेठ की बाँसुरी
वादन का एक अंश सुनवाया था और आपसे तीन में से किन्हीं दो प्रश्न का उत्तर
पूछा था। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग – शुद्ध सारंग, दूसरे प्रश्न
का सही उत्तर है- ताल – द्रुत तीनताल और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है-
वाद्य – बाँसुरी।
इस
बार की पहेली के सही उत्तर देने वाले प्रतिभागियों में एक नये प्रतिभागी
शामिल हुए हैं। यह नये प्रतिभागी हैं, पनवेल, महाराष्ट्र के शिरीष ओक।
शिरीष जी, ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आपका हार्दिक स्वागत है। पहेली का सही
उत्तर देने वाले हमारे अन्य विजेता हैं, जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति
तिवारी, पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया, वोरहीज, न्यूजर्सी से
डॉ. किरीट छाया, चेरीहिल (एन.जे.) से प्रफुल्ल पटेल और हैदराबाद से डी.
हरिणा माधवी। उपरोक्त सभी छः प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की
ओर से हार्दिक बधाई।
अपनी बात
मित्रो,
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर
जारी हमारी लघु श्रृंखला ‘संगीत के शिखर पर’ के आज के अंक में हमने आपसे
सारंगी के अप्रतिम साधक पण्डित रामनारायन के व्यक्तित्व और कृतित्व के बारे
में कुछ चर्चा की। अगले अंक में एक अन्य विधा के शिखर पर प्रतिष्ठित
व्यक्तित्व पर चर्चा करेंगे। इस श्रृंखला को हमारे अनेक पाठकों ने पसन्द
किया है। हम उन सबके प्रति आभार व्यक्त करते हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के विभिन्न
अंकों के बारे में हमें पाठकों, श्रोताओं और पहेली के प्रतिभागियों की अनेक
प्रतिक्रियाएँ और सुझाव मिलते हैं। प्राप्त सुझाव और फरमार्इशों के अनुसार
ही हम अपनी आगामी प्रस्तुतियों का निर्धारण करते हैं। आप भी यदि कोई सुझाव
देना चाहते हैं तो आपका स्वागत है। अगले रविवार को प्रातः 9 बजे
‘स्वरगोष्ठी’ के नये अंक के साथ हम उपस्थित होंगे। हमें आपकी प्रतीक्षा
रहेगी।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
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