स्वरगोष्ठी – 248 में आज
संगीत के शिखर पर – 9 : पण्डित रघुनाथ सेठ
पण्डित रघुनाथ सेठ के जन्मदिन पर एक स्वरांजलि
रेडियो
प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी हमारी
सुरीली श्रृंखला – ‘संगीत के शिखर पर’ की नौवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन
मिश्र आप सब संगीत-रसिकों का एक बार पुनः हार्दिक स्वागत करता हूँ। इस
श्रृंखला में हम भारतीय संगीत की विभिन्न विधाओं में शिखर पर विराजमान
व्यक्तित्व और उनके कृतित्व पर चर्चा कर रहे हैं। संगीत गायन और वादन की
विविध लोकप्रिय शैलियों में किसी एक शीर्षस्थ कलासाधक का चुनाव कर हम उनके
व्यक्तित्व का उल्लेख और उनकी कृतियों के कुछ उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं।
आज श्रृंखला की नौवीं कड़ी में हम आपके साथ भारतीय संगीत वाद्य, बाँसुरी और
इस वाद्य के एक अनन्य स्वर-साधक, पण्डित रघुनाथ सेठ की सृजनात्मक साधना पर
चर्चा करेंगे। आपको हम यह भी अवगत कराना चाहते हैं कि 15 दिसम्बर को श्री
सेठ का 85वाँ जन्म-दिवस है। इस उपलक्ष्य में हम ‘स्वरगोष्ठी’ के
पाठकों-श्रोताओं की ओर से उन्हें स्वरांजलि अर्पित कर रहे हैं। आज के अंक में हम आपको पहले राग शुद्ध सारंग में एक आकर्षक रचना और फिर इसके बाद 'सूर्योदय' शीर्षक से राग नट भैरव के स्वरों में पिरोया एक प्रयोगधर्मी संगीत-संयोजन सुनवाएँगे। श्री सेठ ने कई फिल्मों का संगीत निर्देशन भी किया है। इन्हीं फिल्मों में से एक फिल्म 'ये नजदीकियाँ' का गीत भी भूपेन्द्र सिंह की आवाज़ में हम प्रस्तुत कर रहे हैं।
आज
बाँसुरी शास्त्रीय संगीत के मंच पर स्वतन्त्र वाद्य, संगति वाद्य, सुगम और
लोक-संगीत का मधुर और लोकप्रिय वाद्य बन चुका है। सामान्य तौर पर देखने
में बाँस की, खोखली, बेलनाकार आकृति होती है, किन्तु इस सुषिर वाद्य की
वादन तकनीक सरल नहीं है। बाँसुरी का अस्तित्व महाभारतकाल से पूर्व कृष्ण से
जुड़े प्रसंगों में उपलब्ध है। शास्त्रीय वाद्य के रूप में इसे उत्तर भारत
के साथ दक्षिण भारत के संगीत में समान रूप से लोकप्रियता प्राप्त है।
पण्डित रघुनाथ सेठ की छवि आधुनिक बाँसुरी वादकों में प्रयोगशील वादक के रूप
में लोकप्रिय रही है।
बाँसुरी
वादन के क्षेत्र में अनेक अभिनव प्रयोग करते हुए भारतीय संगीत को समृद्ध
करने वाले अप्रतिम कलासाधक पण्डित रघुनाथ सेठ का जन्म 15 दिसम्बर, 1931 को
ग्वालियर के एक ऐसे परिवार में हुआ था, जहाँ बहन-भाइयों को तो संगीत से
अनुराग था, किन्तु उनके पिता इसके पक्ष में नहीं थे। प्रारम्भिक शिक्षा
ग्वालियर में ग्रहण करने के बाद, रघुनाथ सेठ 13 वर्ष की आयु में अपने बड़े
भाई काशीप्रसाद जी के पास लखनऊ आ गए। काशीप्रसाद जी उन दिनों लखनऊ के
प्रतिष्ठित गायक और रंगमंच के अभिनेता थे। उन्होने अपने अनुज के लिए
विद्यालय की शिक्षा के साथ-साथ स्थानीय भातखण्डे संगीत महाविद्यालय (अब
विश्वविद्यालय) में संगीत-शिक्षा के लिए भी दाखिला करा दिया। उन दिनों
महाविद्यालय के प्राचार्य, डॉ. श्रीकृष्ण नारायण रातंजनकर थे। शीघ्र ही
रघुनाथ सेठ उनके प्रिय शिष्यों में शामिल हो गए। डॉ. रातंजनकर जी से
उन्होने पाँच वर्षों तक निरन्तर संगीत-शिक्षा ग्रहण की। इसी दौर में
उन्होने बाँसुरी को ही अपने संगीत का माध्यम चुना। लखनऊ विश्वविद्यालय से
रघुनाथ सेठ ने पुरातत्व शास्त्र विषय से स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण की और इसी
अवधि में अन्तर विश्वविद्यालय युवा महोत्सव में उन्हें बाँसुरी वादन के
लिए सर्वश्रेष्ठ वादक का राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुआ। आइए यहाँ रुक कर
पण्डित रघुनाथ सेठ की बाँसुरी पर सुनते हैं, राग शुद्ध सारंग। यह द्रुत
तीनताल की रचना है।
राग शुद्ध सारंग : बाँसुरी पर द्रुत तीनताल की रचना : पण्डित रघुनाथ सेठ
19
वर्ष की आयु में रघुनाथ सेठ, लखनऊ से बम्बई (अब मुम्बई) गए। वहाँ पण्डित
पन्नालाल घोष से मैहर घराने के संगीत की बारीकियाँ सीखी। प्रारम्भ से ही
संगीत में नये प्रयोग के हिमायती श्री सेठ ने लगभग 25 वर्ष पूर्व मेरे
द्वारा किए गए एक साक्षात्कार में अपने कुछ प्रयोगों की चर्चा की थी। आपके
लिए आज हम उक्त साक्षात्कार के कुछ अंश प्रस्तुत कर रहे हैं। एक प्रश्न के
उत्तर में उन्होने कहा था कि संगीत उनके लिए योग-साधना है। उनके अनुसार
भारतीय संगीत की प्रस्तुति में गायक-वादक का व्यक्तित्व प्रकट होता है।
सच्चे सुरॉ की सहायता से कलासाधक और श्रोता समाधि की स्थिति में पहुँचता
है। यही सार्थक परमानन्द की अनुभूति है। उनके अनुसार एक ही राग की अलग-अलग
प्रस्तुति अलग-अलग भावों की सृष्टि करने में सक्षम है। उन्होने यह भी बताया
था कि संगीत में गूँज, अनुगूँज, समस्वरता और उप-स्वरों का विशेष महत्त्व
होता है। यह सब गुण तानपूरा में होता है, इसीलिए गायन-वादन के प्रत्येक
कार्यक्रम में तानपूरा मौजूद अवश्य होता है। आगे चल कर रघुनाथ सेठ ने अपनी
बाँसुरी और अपने सगीत में अनेकानेक सफल प्रयोग किये। आइए, आपको बाँसुरी पर उनका बजाया एक प्रयोगधर्मी रचना सुनते हैं। इस रचना के आरम्भिक 45
सेकेण्ड तक बिना तानपूरे के बाँसुरी वादन हुआ है। लगभग साढ़े तीन मिनट के
बाद रचना में ताल का प्रयोग हुआ है, किन्तु पारम्परिक रूप से तबला या पखावज
के स्थान पर नल-तरंग जैसे वाद्य और पाश्चात्य लय वाद्यों का प्रयोग किया
गया है। इस रचना का शीर्षक उन्होने ‘सूर्योदय’ रखा है। आप यह रचना सुनिए और
शीर्षक की सार्थकता को प्रत्यक्ष अनुभव कीजिए।
“सूर्योदय’ : एक प्रयोगधर्मी रचना : पण्डित रघुनाथ सेठ
श्री
सेठ ने शास्त्रीय मंचों पर अपनी प्रस्तुतियों से श्रोताओं को सम्मोहित
करने के साथ-साथ भारत सरकार के फिल्म डिवीजन के लगभग दो हज़ार वृत्तचित्रों
में संगीत दिया है। वर्ष 1969 में वे फिल्म डिवीज़न के संगीतकार हुए थे।
उनके अनेक वृत्तचित्रों को राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिले।
श्री सेठ ने संगीत के मानव जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव का गहन अध्ययन किया है
और इस विषय पर अनेक संगीत रचनाएँ भी की है। बहुआयामी संगीतज्ञ पण्डित
रघुनाथ सेठ ने कई फिल्मों में भी संगीत निर्देशन किया है। उनके संगीत से
सजी फिल्में हैं- ‘फिर भी’ (1971), ‘किस्सा कुर्सी का’ (1977), ‘एक बार
फिर’ (1980), ‘ये नज़दीकियाँ’ (1982), ‘दामुल’ (1985), ‘आगे मोड़ है’ (1987),
‘सीपियाँ’ (1988) और ‘मृत्युदण्ड’ (1997)। आज हम आपको 1982 में प्रदर्शित
फिल्म ‘ये नज़दीकियाँ’ का एक मधुर गीत सुनवाते हैं। गणेश बिहारी श्रीवास्तव
के गीत को पार्श्वगायक भूपेंद्र सिंह ने स्वर दिया है। इस गीत के साथ हम आज
के अंक को यहीं विराम देते है।
फिल्म - ये नज़दीकियाँ : ‘दो घड़ी बहला गई परछाइयाँ...’ : भूपेन्द्र सिंह : संगीत - रघुनाथ सेठ
संगीत पहेली
‘स्वरगोष्ठी’
के 248वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको वाद्य संगीत का एक अंश सुनवा
रहे हैं। इसे सुन कर आपको निम्नलिखित तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के
उत्तर देने हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के 250वें अंक की पहेली के सम्पन्न होने तक
जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस वर्ष की पाँचवीं श्रृंखला
(सेगमेंट) का विजेता घोषित किया जाएगा। ‘स्वरगोष्ठी’ के 152वें अंक में हम
वार्षिक विजेताओं के नाम की घोषणा भी करेंगे।
1 – संगीत का यह अंश सुन कर बताइए कि आपको किस राग का आभास हो रहा है?
2 – संगीत में प्रयोग किये गए ताल का नाम बताइए।
3 – क्या आप संगीत वाद्य को पहचान रहे हैं? यदि हाँ, तो हमें उस वाद्य का नाम बताइए।
आप उपरोक्त तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com
पर इस प्रकार भेजें कि हमें शनिवार, 19 दिसम्बर, 2015 की मध्यरात्रि से
पूर्व तक अवश्य प्राप्त हो जाए। COMMENTS में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते
है, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर भेजने की अन्तिम तिथि के बाद किया
जाएगा। इस पहेली के विजेताओं के नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 250वें अंक में
प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रकाशित और प्रसारित गीत-संगीत, राग, अथवा
कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच
बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ
के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’
क्रमांक 246 की संगीत पहेली में हमने आपको मोहनवीणा वाद्य के सुविख्यात
वादक पण्डित विश्वमोहन भट्ट द्वारा प्रस्तुत एक राग-रचना का एक अंश सुनवा
कर आपसे तीन प्रश्न पूछा था। आपको इनमें से किसी दो प्रश्न का उत्तर देना
था। इस पहेली के पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग हंसध्वनि, दूसरे प्रश्न
का सही उत्तर है- ताल तीनताल और तीसरे प्रश्न का उत्तर है- वाद्य –
मोहनवीणा (गिटार)। सही उत्तर देने वाले प्रतिभागी हैं- हैदराबाद से डी.
हरिणा माधवी, जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी, पेंसिलवेनिया, अमेरिका
से विजया राजकोटिया और वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया। चारो
प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।
अपनी बात
मित्रो,
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर लघु
श्रृंखला ‘संगीत के शिखर पर’ का यह आठवाँ अंक था। इस अंक में हमने
प्रयोगधर्मी बाँसुरी-वादक पण्डित रघुनाथ सेठ के व्यक्तित्व और उनके वादन पर
संक्षिप्त प्रकाश डालने का प्रयत्न किया है। अगले अंक में हम भारतीय संगीत
की किसी अन्य विधा के किसी शिखर व्यक्तित्व के कृतित्व पर आधारित
कार्यक्रम प्रस्तुत करेंगे। इस श्रृंखला के लिए यदि आप किसी राग, गीत अथवा
कलाकार को सुनना चाहते हों तो अपना आलेख या गीत हमें शीघ्र भेज दें। हम
आपकी फरमाइश पूर्ण करने का हर सम्भव प्रयास करते हैं। आपको हमारी यह
श्रृंखला कैसी लगी? हमें ई-मेल अवश्य कीजिए। अगले रविवार को एक नए अंक के
साथ प्रातः 9 बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर आप सभी संगीतानुरागियों का हम
स्वागत करेंगे।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
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