Skip to main content

"जाँ की यह बाज़ी आख़िरी बाज़ी खेलेंगे हम..." - क्यों इस गीत की धुन चुराने पर भी अनु मलिक को दोष नहीं दिया जा सकता!


एक गीत सौ कहानियाँ - 71
 

'जाँ की यह बाज़ी आख़िरी बाज़ी खेलेंगे हम...' 




रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, हम रोज़ाना रेडियो पर, टीवी पर, कम्प्यूटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारे जीवन से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़े दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कमसुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह स्तम्भ 'एक गीत सौ कहानियाँ'। इसकी 71-वीं कड़ी में आज जानिए 1989 की फ़िल्म ’आख़िरी बाज़ी’ के शीर्षक गीत "जाँ की यह बाज़ी आख़िरी बाज़ी खेलेंगे हम..." के बारे में जिसे अमित कुमार ने गाया था। बोल इंदीवर के और संगीत अनु मलिक का।

अनु मलिक
मेरे पोलैंड का सफ़र जारी है। आज एक आश्चर्यजनक बात हुई। कार्यालय में एक पोलिश कर्मचारी के मोबाइल का रिंग् टोन बज उठते ही मैं चौंक उठा। अरे, यह तो एक हिन्दी फ़िल्मी गीत की धुन है! याद करने में बिल्कुल समय नहीं लगा कि यह 1989 की हिट फ़िल्म ’आख़िरी बाज़ी’ के शीर्षक गीत की धुन है। बचपन में यह गीत बहुत बार रेडियो पर सुना है। मुझे यक़ीन हो गया कि इस गीत की धुन ज़रूर किसी विदेशी गीत या कम्पोज़िशन से प्रेरित या ’चोरित’ होगा जो अभी-अभी उस रिंग् टोन में सुनाई दी है। कार्यालय से वापस आकर जब गूगल पर खोजने लगा तो हैरान रह गया कि कहीं पर भी इस गीत के किसी विदेशी गीत से प्रेरित होने की बात नहीं लिखी है। ऐसे बहुत से वेबसाइट हैं जिनमें लगभग सभी प्रेरित गीतों की सूची दी गई है, और कहीं कहीं तो संगीतकारों के नाम के अनुसार क्रमबद्ध सूची दी गई है। उसमें अनु मलिक के प्रेरित गीतों की सूची में इस गीत को न पाकर एक तरफ़ हताशा हुई और दूसरी तरफ़ एक रोमांच सा होने लगा यह सोच कर कि एक ऐसे गीत की खोज की है जो विदेशी धुन से प्रेरित है पर किसी को अब तक इसका पता नहीं है, कम से कम इन्टरनेट पर तो नहीं! अब मुश्किल यह थी कि कैसे पता लगाएँ, कहीं कोई सूत्र मिले भी तो कैसे मिले? ’आख़िरी बाज़ी’ के गीत की धुन को लगातार गुनगुनाते हुए अनु मलिक के प्रेरित गीतों की सूची को ध्यान से देख ही रहा था कि एक गीत पे जाकर मेरी नज़र टिक गई। गीत था 1995 की मशहूर फ़िल्म ’अकेले हम अकेले तुम’ का "राजा को रानी से प्यार हो गया..."। चौंक उठा, इस गीत की पहली पंक्ति की धुन भी तो कुछ हद तक ’आख़िरी बाज़ी’ के गीत के धुन से मिलती जुलती है। पाया कि यह गीत प्रेरित है 1972 की फ़िल्म ’The Godfather' के गीत "speak softly, love" से, जिसका एक instrumental version भी है जिसे ’The Godfather Theme' शीर्षक दिया गया है। संगीतकार हैं निनो रोटा।


निनो रोटा
यू-ट्युब पर ’The Godfather Theme' सुनने पर एक और रोचक बात पता चली। फ़िल्म ’आख़िरी बाज़ी’ का गीत हू-ब-हू इस धुन पर आधारित है, कोई प्रेरणा नहीं, सीधी चोरी है। दूसरी ओर "राजा को रानी से..." गीत में इस धुन से बेशक़ सिर्फ़ प्रेरणा ली गई है, चोरी नहीं। जो गीत हू-ब-हू नकल है (आख़िरी बाज़ी...), उसका कहीं कोई उल्लेख नहीं जबकि एक अच्छी प्रेरणा के उदाहरण (राजा को रानी से...) को लोगों ने चोरी करार दिया है। उसी सूची वाले वेब-पेज पर जब "Godfather" लिख कर खोजा तो पाया कि एक और गीत इसी धुन से प्रेरित है। और वह गीत है वर्ष 2000 की फ़िल्म ’आशिक़’ का गीत "तुम क्या जानो दिल करता तुमसे कितना प्यार...", जिसके संगीतकार हैं संजीव-दर्शन। इस तरह से ’Godfather' के उस धुन पर तीन-तीन हिन्दी फ़िल्मी गीत बन चुके हैं। एक रोचक तथ्य यह भी है कि जिस ’The Godfather Theme' की हम बात कर रहे हैं, वह धुन भी प्रेरित है (या कुछ समानता है) वर्ष 1951 के एक कम्पोज़िशन से। फ़िल्म ’High Noon' में दिमित्री तिओमकिन के संगीत निर्देशन में "Do not forsake me o my darling..." गीत की धुन को अगर ग़ौर से सुनें तो निनो रोटा के कम्पोज़िशन से हल्की समानता महसूस की जा सकती है। दिमित्री को अपने गीत के लिए ऑस्कर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। और निनो को क्या कोई पुरस्कार मिला? इसमें भी एक रोचक कहानी है। निनो रोटा ने ’The Godfather' में जो धुन बनाई थी, उस धुन को एक अलग अंदाज़ में (comedic version) उन्होंने 1958 की फ़िल्म ’Fortunella' के लिए बनाया था। ऑस्कर कमिटी ने शुरू-शुरू में 'The Godfather' की धुन को Best Original Score की श्रेणी के नामांकन में जगह दी थी, पर जैसे ही ’Fortunella' के धुन का सच्चाई सामने आई तो उसे पुरस्कार के अयोग्य ठहराया गया। इसके अगले ही साल जब ’The Godfather Part II' फ़िल्म बनी तो निनो रोटा ने यही धुन फिर एक बार प्रयोग कर एक नई कम्पोज़िशन बनाई। लेकिन इस बार ऑस्कर कमिटी ने न केवल उनकी धुन को नामांकित किया, बल्कि Best Score का पुरस्कार भी दिया।

निनो रोटा की यह धुन इतना ज़्यादा लोकप्रिय हुआ समूचे विश्व में कि बहुत से कलाकारों ने इसे अपने-अपने ऐल्बमों में शामिल किया। जहाँ एक तरफ़ कलाकारों ने मूल गीत को ही अपनी आवाज़ में रेकॉर्ड करवाया, बहुत से कलाकार ऐसे भी थे जिन्होंने अपनी-अपनी भाषाओं के बोलों को इस धुन पर फ़िट किया। अब एक नज़र ऐसे ही कुछ गीतों और भाषाओं पर डालते हैं। 

इटली - "Parla più piano..."
फ़्रांस - "Parle Plus Bas..."
यूक्रेन - "Skazhy scho lyubysh..."
यूगोस्लाविया - "Govori Tiše..."
हंगरी - "Gyöngéden ölelj át és ringass szerelem..."
कम्बोडिया - "Khum Joll Snaeha..."
स्लोवाकिया - "Býval som z tých..."
पोर्तुगल - "Fale Baixinho..."
इरान - "Booye Faryad..."

ये तो थे कुछ ऐसे उदाहरण जिनमें इस धुन पर अलग-अलग भाषाओं के गीत बने। इनके अलावा और भी असंख्य कलाकारों ने अपनी-अपनी साज़ पर इस धुन को instrumental के रूप में रेकॉर्ड करवाया। ऐसे में जहाँ दुनिया भर के कलाकारों ने इस धुन को गले लगाया, तो फिर क्या अनु मलिक या संजीव दर्शन पर इस धुन की चोरी का इलज़ाम लगाना ठीक होगा? फ़ैसला आप पर छोड़ते हैं, फ़िल्हाल सुनते हैं ’The Godfather' की धुन पर आधारित फ़िल्म ’आख़िरी बाज़ी’ का शीर्षक गीत। 


फिल्म आखिरी बाज़ी : 'जाँ की यह बाज़ी आखिरी बार...' : अमित कुमार : इन्दीवर : अनु मालिक





अब आप भी 'एक गीत सौ कहानियाँ' स्तंभ के वाहक बन सकते हैं। अगर आपके पास भी किसी गीत से जुड़ी दिलचस्प बातें हैं, उनके बनने की कहानियाँ उपलब्ध हैं, तो आप हमें भेज सकते हैं। यह ज़रूरी नहीं कि आप आलेख के रूप में ही भेजें, आप जिस रूप में चाहे उस रूप में जानकारी हम तक पहुँचा सकते हैं। हम उसे आलेख के रूप में आप ही के नाम के साथ इसी स्तम्भ में प्रकाशित करेंगे। आप हमें ईमेल भेजें soojoi_india@yahoo.co.in के पते पर। 


खोज, आलेख व प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी
प्रस्तुति सहयोग: कृष्णमोहन मिश्र 




Comments

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे...

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु...

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन...