स्वरगोष्ठी – 225 में आज
रंग मल्हार के – 2 : राग मियाँ मल्हार
‘बिजुरी चमके बरसे मेहरवा...’ और ‘बोले रे पपीहरा...’
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर हमारी नई लघु श्रृंखला ‘रंग मल्हार के’, जारी है। श्रृंखला के दूसरे अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। यह श्रृंखला, वर्षा ऋतु के रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत पर केन्द्रित है। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं पर चर्चा करेंगे। इसके साथ ही सम्बन्धित राग के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी प्रस्तुत करेंगे। भारतीय संगीत के अन्तर्गत मल्हार अंग के सभी राग पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में समर्थ हैं। आम तौर पर इन रागों का गायन-वादन वर्षा ऋतु में अधिक किया जाता है। इसके साथ ही कुछ ऐसे सार्वकालिक राग भी हैं जो स्वतंत्र रूप से अथवा मल्हार अंग के मेल से भी वर्षा ऋतु के अनुकूल परिवेश रचने में सक्षम होते हैं। इस श्रृंखला की दूसरी कड़ी में हम मल्हार अंग के ही सबसे लोकप्रिय राग मियाँ मल्हार पर चर्चा करेंगे। राग मियाँ मल्हार भी एक प्राचीन राग है। ऐसी मान्यता है कि अकबर के दरबारी संगीतज्ञ तानसेन ने इस राग को परिष्कृत कर लोकप्रिय किया था। इसीलिए वर्तमान में मल्हार अंग के इस राग का नामकरण उनके नाम से ही प्रचलित है। आज के अंक में हम आपके लिए राग मियाँ मल्हार में निबद्ध एक मोहक खयाल रचना सुविख्यात गायक उस्ताद राशिद खाँ के स्वरों में प्रस्तुत कर रहे हैं। इसके अलावा 1971 में प्रदर्शित हिन्दी फिल्म ‘गुड्डी’ से इसी राग में पिरोया एक मधुर गीत भी सुपरिचित पार्श्वगायिका वाणी जयराम की आवाज़ में सुनवा रहे हैं।
मल्हार
अंग के रागों में राग मेघ मल्हार, मेघों का आह्वान करने, मेघाच्छन्न आकाश
का चित्रण करने और वर्षा ऋतु के आगमन की आहट देने में सक्षम राग माना जाता
है। वहीं दूसरी ओर राग मियाँ मल्हार, वर्षा ऋतु की चरम अवस्था के सौन्दर्य
की अनुभूति कराने पूर्ण समर्थ है। यह राग वर्तमान में वर्षा ऋतु के रागों
में सर्वाधिक प्रचलित और लोकप्रिय है। सुप्रसिद्ध इसराज और मयूरी वीणा वादक
पण्डित श्रीकुमार मिश्र के अनुसार- राग मियाँ मल्हार की सशक्त स्वरात्मक
परमाणु शक्ति, बादलों के परमाणुओं को झकझोरने में समर्थ है। राग मियाँ
मल्हार के बारे में जानकारी देते हुए पण्डित श्रीकुमार मिश्र ने हमें बताया
कि यह राग काफी थाट के अन्तर्गत माना जाता है। आरोह और अवरोह में दोनों
निषाद का प्रयोग किया जाता है। राग मियाँ की मल्हार के स्वरों का ढाँचा कुछ
इस प्रकार बनता है कि कोमल निषाद एक श्रुति ऊपर लगने लगता है। इसी प्रकार
कोमल गान्धार, ऋषभ से लगभग ढाई श्रुति ऊपर की अनुभूति कराता है। इस राग में
गान्धार स्वर का प्रयोग अत्यन्त सावधानी से करना पड़ता है। राग मियाँ की
मल्हार को गाते-बजाते समय राग बहार से बचाना पड़ता है। परन्तु कोमल गान्धार
का सही प्रयोग किया जाए तो इस दुविधा से मुक्त हुआ जा सकता है। इन दोनों
रागों को एक के बाद दूसरे का गायन-वादन कठिन होता है, किन्तु उस्ताद
बिस्मिल्लाह खाँ ने एक बार यह प्रयोग कर श्रोताओं को चमत्कृत कर दिया था।
इस राग में गमक की तानें बहुत अच्छी लगती है। राग मियाँ की मल्हार तानसेन
के प्रिय रागों में से एक है। कुछ विद्वानों का मत है कि तानसेन ने कोमल
गान्धार तथा शुद्ध और कोमल निषाद का प्रयोग कर इस राग का सृजन किया था।
अकबर के दरबार में तानसेन को सम्मान देने के लिए उन्हें ‘मियाँ तानसेन’ नाम
से सम्बोधित किया जाता था। इस राग से उनके जुड़ाव के कारण ही मल्हार के इस
प्रकार को ‘मियाँ मल्हार’ कहा जाने लगा। इस राग के बारे में चर्चा को आगे
बढ़ाने से पहले आइए सुनते हैं, राग मियाँ की मल्हार में एक भावपूर्ण रचना।
आपके लिए हम प्रस्तुत कर रहे हैं, उस्ताद राशिद खाँ के स्वर में तीनताल में
निबद्ध, मियाँ मल्हार की एक मनमोहक रचना।
राग मियाँ मल्हार : ‘बिजुरी चमके बरसे मेहरवा...’ : उस्ताद राशिद खाँ
राग मियाँ मल्हार में वर्षा ऋतु के प्राकृतिक सौन्दर्य को स्वरों के माध्यम से अभिव्यक्त करने की अनूठी क्षमता होती है। इसके साथ ही इस राग का स्वर-संयोजन, पावस के उमड़ते-घुमड़ते मेघ द्वारा विरहिणी नायिका के हृदय में मिलन की आशा जागृत होने की अनुभूति भी कराते हैं। यह काफी थाट का और सम्पूर्ण-षाड़व जाति का राग है। अर्थात; आरोह में सात और अवरोह में छः स्वर प्रयोग किये जाते हैं। आरोह में शुद्ध गान्धार का त्याग, अवरोह में कोमल गान्धार का प्रयोग तथा आरोह और अवरोह दोनों में शुद्ध और कोमल दोनों निषाद का प्रयोग किया जाता है। आरोह में शुद्ध निषाद से पहले कोमल निषाद तथा अवरोह में शुद्ध निषाद के बाद कोमल निषाद का प्रयोग होता है। राग के स्वरों में प्रकृति के मनमोहक चित्रण की और विरह की पीड़ा को हर लेने की अनूठी क्षमता होती है।
वास्तव
में पावस के उमड़ते-घुमड़ते मेघ विरह से व्याकुल नायक-नायिकाओं की विरहाग्नि
को शान्त करते हैं और मिलन की आशा जगाते हैं। कई फिल्म संगीतकारों ने इस
राग पर आधारित यादगार गीतों की रचना की है। ऐसे ही संगीतकारों में एक
अग्रणी नाम बसन्त देसाई का है। हिन्दी और मराठी फिल्मों में राग आधारित गीत
तैयार करने में इस संगीतकार का कोई विकल्प नहीं था। महाराष्ट्र के एक
कीर्तनकार परिवार में 1912 में जन्में बसन्त देसाई ने मात्र 17 वर्ष की आयु
में ही फिल्मों में प्रवेश किया था। प्रभात स्टूडिओ की फिल्म ‘खूनी खंजर’
बतौर अभिनेता और स्टूडिओ सहायक उनकी पहली फिल्म थी। सहायक संगीतकार के रूप
उनकी प्रतिभा का परिचय कई मराठी फिल्मों में मिला। स्वतंत्र संगीतकार के
रूप में 1942 में वाडिया मूवीटोन की फिल्म ‘शोभा’, 1943 में प्रदर्शित
फिल्म ‘आँख का शर्म’, 1943 में बसन्त पिक्चर्स की फिल्म ‘मौज’ के माध्यम से
अपनी पहचान बनाने में सफल रहे। 1943 में ही राजकमल कलामन्दिर की चर्चित
फिल्म ‘शकुन्तला’ ने तो उन्हें फिल्म जगत में स्थापित ही कर दिया। इस फिल्म
के गीतों में उनका रागों के प्रति अनुराग स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता
है। रागदारी संगीत के प्रति उनका लगाव उनकी अन्तिम फिल्म ‘शक’ तक निरन्तर
बना रहा। विशेष रूप से मल्हार अंग के रागों से उन्हें खूब लगाव था। 1971
में ऋषिकेश मुखर्जी के निर्देशन में बनी फिल्म ‘गुड्डी’ में राग मियाँ की
मल्हार के स्वरों की चाशनी में लिपटा गीत ‘बोले रे पपीहरा...’ तो कालजयी
गीतों की सूची में शीर्षस्थ है। आज हम आपको यही गीत सुनवाते हैं। राग मियाँ
की मल्हार की ही एक पारम्परिक बन्दिश ‘बोले रे पपीहरा अब घन गरजे...’ से
प्रेरित फिल्म ‘गुड्डी’ का यह गीत वाणी जयराम की स्वर-प्रतिभा से सुसज्जित
है। कहरवा ताल में निबद्ध, राग मियाँ की मल्हार के स्वरों से स्पंदित यह
गीत आप भी सुनिए और मुझे आज के इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए।
राग - मियाँ मल्हार : ‘बोले रे पपीहरा...’ : फिल्म – गुड्डी : स्वर - वाणी जयराम
संगीत पहेली
‘स्वरगोष्ठी’
के 225वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको एक पुरानी फिल्म में शामिल
खयाल का अंश सुनवा रहे हैं। इसे सुन कर आपको निम्नलिखित तीन में से किन्हीं
दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। पहेली क्रमांक 230 के सम्पन्न होने तक जिस
प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस वर्ष की तीसरी श्रृंखला
(सेगमेंट) का विजेता घोषित किया जाएगा।
1 – गीत के इस अंश को सुन कर किस राग का आभास हो रहा है? राग का नाम बताइए।
2 – प्रस्तुत रचना किस ताल में निबद्ध है? ताल का नाम बताइए।
3 – क्या आप गायिका की आवाज़ को पहचान सकते हैं? यदि हाँ, तो उनका नाम बताइए।
आप इन तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com
पर ही शनिवार, 4 जुलाई, 2015 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। COMMENTS
में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते है, किन्तु उसका प्रकाशन अन्तिम तिथि के
बाद किया जाएगा। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 227वें अंक में प्रकाशित
करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत किये गए गीत-संगीत, राग अथवा कलासाधक के बारे
में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते
हैं तो हम आपका इस मंच पर स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए
COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’
की 223वें अंक की संगीत पहेली में हमने आपको पुरुष कण्ठ-स्वर में खयाल अंग
की एक रचना का अंश सुनवाया था और आपसे तीन में से किसी दो प्रश्न के उत्तर
पूछा था। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग मेघ मल्हार, दूसरे प्रश्न का
सही उत्तर है- ताल झपताल और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है- गायक पण्डित अजय
चक्रवर्ती।
इस बार की पहेली के तीनों प्रश्नों के सही उत्तर पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया ने दिया है। दो सही उत्तर देने वाली संगीत-प्रेमी हैं- वोरहीज़, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया, जबलपुर से क्षिति तिवारी, और हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी। पहेली के एक प्रश्न का सही उत्तर रायपुर, छत्तीसगढ़ से राजश्री श्रीवास्तव ने दिया है। पाँचों प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।
अपनी बात
मित्रो,
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर
हमारी लघु श्रृंखला ‘रंग मल्हार के’ जारी है। अगले अंक में हम वर्षा ऋतु के
एक अन्य राग के साथ उपस्थित होंगे। इस श्रृंखला के लिए आप अपने पसंद के
गीत, संगीत और राग की फरमाइश कर सकते हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के विभिन्न अंकों
के बारे में हमें पाठकों, श्रोताओं और पहेली के प्रतिभागियों के अनेक
प्रतिक्रियाएँ और सुझाव मिलते हैं। प्राप्त सुझाव और फरमार्इशों के अनुसार
ही हम अपनी आगामी प्रस्तुतियों का निर्धारण करते हैं। आप भी यदि कोई सुझाव
देना चाहते हैं तो आपका स्वागत है। अगले रविवार को प्रातः 9 बजे
‘स्वरगोष्ठी’ के नये अंक के साथ हम उपस्थित होंगे। हमें आपकी प्रतीक्षा
रहेगी।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
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सार्थक लेखन