स्वरगोष्ठी – 219 में आज
दस थाट, दस राग और दस गीत – 6 : मारवा थाट
संगीत रचनाएँ राग मारवा और सोहनी की
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आधुनिक उत्तर भारतीय संगीत में
राग-वर्गीकरण के लिए प्रचलित दस थाट प्रणाली पर केन्द्रित इस श्रृंखला में
अब तक आप कल्याण, बिलावल, खमाज, भैरव और पूर्वी थाट का परिचय प्राप्त कर
चुके हैं। आज की कड़ी में हम ‘मारवा’ थाट पर चर्चा करेंगे। हमारा भारतीय
संगीत एक सुदृढ़ और समृद्ध आधार पर विकसित हुआ है। समय-समय पर इसका
वैज्ञानिक दृष्टि से मूल्यांकन होता रहा है। यह परिवर्द्धन वर्तमान थाट
प्रणाली पर भी लागू है। आधुनिक संगीत में प्राचीन मुर्च्छनाओं के स्थान पर
मेल अथवा थाट प्रणाली का उपयोग किया जाता है। सभी छोटे-बड़े अन्तराल, जो
रागों के लिए आवश्यक हैं, सप्तक की सीमाओं के अन्तर्गत रखे गए और मुर्च्छना
की प्राचीन प्रणाली का परित्याग किया गया। ऐसा प्रतीत होता है कि यह
परिवर्तन चार-पाँच सौ वर्ष पूर्व हुआ। आज ऋषभ, गान्धार, मध्यम, धैवत और
निषाद स्वरों के प्रत्येक स्वर की एक या दो श्रुतियों को ग्रहण कर नवीन थाट
का निर्माण करते हैं, जबकि षडज और पंचम अचल स्वर माने जाते हैं। जिस
प्रकार प्राचीन मुर्च्छनाएँ प्राचीन जातियों के लिए स्रोत रही हैं, उसी
प्रकार मेल अथवा थाट हमारे रागों के लिए स्रोत हैं।
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राग मारवा : विलम्बित- ‘पिया मोरा...’ और द्रुत खयाल- ‘गुरु बिन ज्ञान...’ : उस्ताद अमीर खाँ
‘मारवा’
थाट के अन्तर्गत आने वाले कुछ अन्य प्रमुख राग हैं- पूरिया, साजगिरी,
ललित, सोहनी, भटियार, विभास आदि। राग सोहनी इस थाट का बेहद लोकप्रिय राग
है। सुप्रसिद्ध मयूरवीणा वादक पण्डित श्रीकुमार मिश्र ने राग सोहनी के बारे
में बताया कि राग सोहनी का प्रयोग खयाल और ठुमरी, दोनों प्रकार की गायकी
में किया जाता है। ठुमरी अंग में इस राग का प्रयोग अधिक होता है। इस राग का
प्रयोग दो प्रकार से किया जाता है। पहले प्रकार, औडव-षाड़व जाति के
अन्तर्गत आरोह में ऋषभ और पंचम तथा अवरोह में पंचम का प्रयोग नहीं किया
जाता। राग के दूसरे स्वरूप के आरोह में ऋषभ और अवरोह में पंचम का प्रयोग
नहीं होता। राग सोहनी में उन्हीं स्वरों का प्रयोग होता है, जिनका राग
पूरिया और मारवा में भी किया जाता है। किन्तु इसके प्रभाव और भावाभिव्यक्ति
में पर्याप्त अन्तर हो जाता है। राग सोहनी का वादी स्वर धैवत और संवादी
स्वर गान्धार होता है। धैवत पीड़ा की अभिव्यक्ति करने में समर्थ होता है।
‘नी सां रें (कोमल) सां’ की स्वर संगति से तीव्र पुकार का वातावरण निर्मित
होता है। संवादी गान्धार कुछ देर के लिए इस उत्तेजना को शान्त कर सुकून
देता है। वास्तव में वादी और संवादी स्वर राग के प्राणतत्त्व होते हैं,
जिनसे रागों के भावों का सृजन होता है। रात्रि के तीसरे प्रहर में राग
सोहनी के भाव अधिक स्पष्ट होते हैं। इस राग में मींड़ एवं गमक को कसे हुए
ढंग से मध्यलय में प्रस्तुत करने से राग का भाव अधिक मुखरित होता है। यह
चंचल प्रवृत्ति का राग है। श्रृंगार के विरह पक्ष की सार्थक अनुभूति कराने
में यह राग समर्थ है। राग सोहनी, कर्नाटक संगीत के राग हंसनन्दी के समतुल्य
है। यदि राग हंसनन्दी में शुद्ध ऋषभ का प्रयोग किया जाए तो यह ठुमरी अंग
के राग सोहनी की अनुभूति कराता है। तंत्रवाद्य पर राग मारवा, पूरिया और
सोहनी का वादन अपेक्षाकृत कम किया जाता है।
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राग सोहनी : ‘प्रेम जोगन बन के...’ : उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ : फिल्म – मुगल-ए-आजम
संगीत पहेली
‘स्वरगोष्ठी’ के 219वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको पचपन साल पुरानी एक भारतीय फिल्म के गीत का अंश एक उस्ताद गायक की आवाज में सुनवा रहे हैं। इसे सुन कर आपको निम्नलिखित तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। पहेली क्रमांक 220 के सम्पन्न होने तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस वर्ष की दूसरी श्रृंखला (सेगमेंट) का विजेता घोषित किया जाएगा।
1 – गीत के इस अंश में किस राग का आभास हो रहा है? राग का नाम बताइए।
2 – प्रस्तुत रचना किस ताल में निबद्ध है? ताल का नाम बताइए।
3 - क्या आप गायक की आवाज़ को पहचान रहे है? यदि हाँ, तो उनका नाम बताइए।
आप इन प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर ही शनिवार, 23 मई, 2015 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। COMMENTS में दिये गए उत्तर मान्य नहीं होंगे। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 221वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत किये गए गीत-संगीत, राग अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस मंच पर स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’
की 217वें अंक की संगीत पहेली में हमने आपको 1952 में प्रदर्शित फिल्म
‘बैजू बावरा’ के एक गीत का अंश सुनवा कर आपसे तीन में से किसी दो प्रश्न के
उत्तर पूछा था। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग पूरिया धनाश्री, दूसरे
प्रश्न का सही उत्तर है- एकताल और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है- गायक
उस्ताद अमीर खाँ। इस बार की पहेली में हमारी एक नई श्रोता/पाठक रायपुर,
छत्तीसगढ़ से राजश्री श्रीवास्तव ने भाग लिया और पहले और दूसरे प्रश्न का
सही उत्तर देकर पूरे दो अंक अर्जित कर लिया। इसके साथ ही जबलपुर से क्षिति तिवारी, पेंसिलवेनिया,
अमेरिका की विजया राजकोटिया और हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी ने सही उत्तर दिया है। चारो प्रतिभागियों को
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।
अपनी बात
मित्रो,
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर इन
दिनों हमारी लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ जारी है। श्रृंखला के
आज के अंक में हमने आपसे मारवा थाट और और उसके रागों पर सोदाहरण चर्चा की।
अगले अंक से हम एक और थाट के साथ उपस्थित होंगे। ‘स्वरगोष्ठी’ के विभिन्न
अंकों के बारे में हमें पाठकों, श्रोताओं और पहेली के प्रतिभागियों के अनेक
प्रतिक्रियाएँ और सुझाव मिलते हैं। प्राप्त सुझाव और फर्माइशों के अनुसार
ही हम अपनी आगामी प्रस्तुतियों का निर्धारण करते हैं। आप भी यदि कोई सुझाव
देना चाहते हैं तो आपका स्वागत है। अगले रविवार को प्रातः 9 बजे
‘स्वरगोष्ठी’ के नये अंक के साथ हम उपस्थित होंगे। हमें आपकी प्रतीक्षा
रहेगी।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
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