Skip to main content

शौर्यगाथा : परमवीर चक्र विजेता सूवेदार जोगेन्द्र सिंह

'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' की ओर से सभी पाठकों और श्रोताओं को दीपावली पर हार्दिक मंगलकामनाएँ


आपकी आवाज़ - हमारा मंच

शौर्यगाथा : परमवीर चक्र से विभूषित अमर बलिदानी सूवेदार जोगेन्द्र सिंह




इन दिनो ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से अपने श्रोताओं और पाठकों की अभिरुचि जानने के लिए सर्वेक्षण कार्यक्रम चलाया जा रहा है। नये वर्ष में हम आपकी पसन्द के कार्यक्रमों के साथ आपके बीच आने की तैयारी कर रहे हैं। हमारे एक पाठक और श्रोता निधीश गोयल ने अपनी आवाज़ में अमर बलिदानी, परमवीर चक्र विजेता सूवेदार जोगेन्द्र सिंह की शौर्यगाथा भेजी है। श्रव्य माध्यम में प्रस्तुत इस कार्यक्रम के बारे में आप अपने सुझाव और टिप्पणियाँ भेज सकते हैं। 
 


परमवीर चक्र विजेता सूवेदार जोगेन्द्र सिंह की 
धर्मपत्नी श्रीमती गुरदयाल कौर को 
23 अक्तूबर 2006 को भारतीय सेना द्वारा 
आयोजित एक समारोह में  सम्मानित किया गया
सूवेदार जोगेन्द्र सिंह
देश की रक्षा में अनेकानेक राष्ट्रभक्तों ने अपने प्राणों की आहुतियाँ दी है। ऐसे ही बलिदानियों की सूची में एक नाम सूवेदार जोगेन्द्र सिंह का है, जिन्होने 1962 के चीनी आक्रमण के समय सीमा की रक्षा में अदम्य साहस का परिचय देते हुए अपने प्राणों का उत्सर्ग किया था। 26 सितम्बर 1921 को मोंगा, पंजाब के एक सिख परिवार में जन्में जोगेन्द्र सिंह के पिता का नाम शेर सिंह सहनान और माता का नाम कृष्णा कौर था। 28 सितम्बर 1936 को ब्रिटिश-भारतीय सेना के सिख रेजीमेंट में उनकी नियुक्ति हुई थी। 1962 के चीनी आक्रमण के समय उनकी तैनाती नेफ़ा क्षेत्र के तवांग सेक्टर में हुई थी। इसी सीमा पर दुश्मन से वीरतापूर्वक मुक़ाबला करते हुए जोगेन्द्र सिंह वीरगति को प्राप्त हुए थे। भारत सरकार ने उन्हें मरणोपरान्त परमवीर चक्र प्रदान किया था। लीजिए, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ पर श्रव्य माध्यम से सुनिए, अमर बलिदानी, परमवीर चक्र सम्मान प्राप्त सूवेदार जोगेन्द्र सिंह की शौर्यगाथा। वाचक स्वर निधीश गोयल का हैं।


शौर्यगाथा : माँ तुझे सलाम : परमवीर चक्र से विभूषित सूवेदार जोगेन्द्र सिंह : वाचक स्वर – निधीश गोयल






आपको हमारी यह प्रस्तुति कैसी लगी? अपनी प्रतिक्रिया हमे अवश्य लिखें। आप ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ पर किस प्रकार के कार्यक्रम पढ़ना या सुनना चाहते हैं, उसकी फरमाइश भी कर सकते हैं। हमारे नियमित स्तम्भों में यदि आप कोई संशोधन या परिवर्तन चाहते हों तो हमें अपने विचारों से अवगत कराएँ। हमारा ई-मेल पता है- radioplaybackindia@live.com 


वाचक स्वर : निधीश गोयल 
सम्पादक : सजीव सारथी 




Comments

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन दस थाट