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‘का करूँ सजनी आए न बालम...’ : SWARGOSHTHI – 190 : THUMARI SINDHU BHAIRAVI




स्वरगोष्ठी – 190 में आज


फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी – 9 : ठुमरी सिन्धु भैरवी


विरहिणी नायिका की व्यथा : ‘का करूँ सजनी आए न बालम...’






‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर मैं कृष्णमोहन मिश्र अपनी साथी प्रस्तुतकर्त्ता संज्ञा टण्डन के साथ आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इन दिनों हमारी जारी श्रृंखला 'फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी’ के नौवें अंक में आज हमने एक ऐसी पारम्परिक ठुमरी का चयन किया है, जिसे कई सुविख्यात गायक-गायिकाओं ने गाया है। इसके अलावा इस ठुमरी के अन्तरों को परिवर्तित कर फिल्म संगीत के रूप में भी आकर्षक प्रयोग किया गया है। इस श्रृंखला में आप कुछ ऐसी पारम्परिक ठुमरियों का रसास्वादन भी कर रहे हैं जिन्हें फिल्मों में कभी यथावत तो कभी परिवर्तित अन्तरे के साथ इस्तेमाल किया जा चुका है। फिल्मों मे शामिल ऐसी ठुमरियाँ अधिकतर पारम्परिक ठुमरियों से प्रभावित होती हैं। आज की ठुमरी का पारम्परिक संस्करण भारतीय संगीत के शीर्षस्थ संगीतज्ञ उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ की आवाज़ में प्रस्तुत है और फिल्मी ठुमरी सुप्रसिद्ध पार्श्वगायक येशुदास की आवाज़ में है। इस श्रृंखला की अन्य कड़ियों की तरह आज के अंक को भी प्रायोगिक रूप से श्रव्य माध्यम में प्रस्तुत किया जा रहा है। ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की प्रमुख सहयोगी संज्ञा टण्डन की आवाज़ में पूरा आलेख और गीत-संगीत श्रव्य माध्यम से भी प्रस्तुत किया जा रहा है। हमारे इस प्रयोग पर आप अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दीजिएगा। 
 


स्वरगोष्ठी के आज के अक में हम आपके लिए लेकर आए हैं राग सिन्धु भैरवी की विख्यात ठुमरी- ‘का करूँ सजनी आए न बालम...’ के विविध प्रयोगों पर एक चर्चा। इस ठुमरी को सर्वाधिक प्रसिद्धि तब मिली, जब इसे उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ के स्वरों का योगदान मिला। उन्होने इस ठुमरी को अपना स्वर देकर कालजयी बना दिया। उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ का जन्म 1902 में पराधीन भारत में पंजाब के कसूर में हुआ था जो अब पाक़िस्तान में है। उनके पिता अली बक्श ख़ान तत्कालीन पश्चिम पंजाब प्रान्त के एक संगीत परिवार से सम्बन्धित थे और ख़ुद भी एक जाने-माने गायक थे। बड़े ग़ुलाम अली ने 7 वर्ष की उम्र में ही अपने चाचा काले खाँ से सारंगी वादन और गायन सीखना शुरु किया। काले ख़ाँ साहब के निधन के बाद बड़े ग़ुलाम अली अपने पिता से संगीत सीखते रहे। बड़े ग़ुलाम अली ने अपनी स्वर-यात्रा का आरम्भ सारंगी वादक के रूप में किया और कलकत्ता में आयोजित उनकी पहली संगीत-सभा में ही उन्हें लोकप्रियता मिली। ली। बाद में उन्होने अपनी गायन प्रतिभा से भी संगीत-प्रेमियों को प्रभावित किया। उनके गले की मिठास, गायकी का अंदाज़, हरकतें, आदि ने उन्हें शीर्ष स्थान पर बिठा दिया। आइए, आज सबसे पहले उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ के स्वरों में सुनते हैं आज की ठुमरी- ‘का करूँ सजनी आए न बालम...’


ठुमरी सिंधु भैरवी : ‘का करूँ सजनी आए न बालम...’ : उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ




श्रृंगार रस के विरह पक्ष को उकेरने में पूर्ण समर्थ इस ठुमरी को अनेक गायक-गायिकाओं ने अलग-अलग ढंग से गाया है। वर्तमान में भारतीय संगीत की हर शैली पर समान रूप से अधिकार रखने वाले संगीतज्ञ पण्डित अजय चक्रवर्ती और विदुषी पद्मा तलवलकर सहित अनेक संगीत साधकों ने भी गाया है और अलग-अलग रंग दिये हैं। वर्ष 1977 में वासु चटर्जी की फिल्म ‘स्वामी’ प्रदर्शित हुई थी। इस फिल्म के संगीतकार राजेश रोशन थे। उन्होने फिल्म के एक प्रसंग में सिंधु भैरवी की इस पारम्परिक ठुमरी का उपयोग किया था। परन्तु ठुमरी के इस फिल्मी स्वरूप में भैरवी के अलावा बीच-बीच में कुछ अन्य रागों- जोगिया, पीलू आदि की अनुभूति भी होती है। सुप्रसिद्ध पार्श्वगायक येसुदास ने इस ठुमरी को बड़े ही कोमल अंदाज में गाया है। राजेश रोशन के पिता, संगीतकार रोशन ने अपने समय की फिल्मों में पारम्परिक खयाल, ठुमरी आदि का खूब उपयोग किया था। फिल्म ‘स्वामी’ में इस ठुमरी को शामिल करने की प्रेरणा राजेश रोशन को सम्भवतः अपने पिता से मिली हो। ठुमरी- ‘का करूँ सजनी आए न बालम...’ के इस फिल्मी रूप का आनन्द आप भी लीजिए।


ठुमरी सिंधु भैरवी : ‘का करूँ सजनी आए न बालम...’ : येशुदास : फिल्म - स्वामी




और अब प्रस्तुत है, इस श्रृंखला 'फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी’ के नौवें अंक के आलेख और गीतों का समन्वित श्रव्य संस्करण। ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ परिवार की सक्रिय सदस्य संज्ञा टण्डन ने अपनी भावपूर्ण आवाज़ से सुसज्जित किया है। आप इस प्रस्तुति का रसास्वादन कीजिए और हमे आज के इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए।


ठुमरी सिन्धु भैरवी : ‘का करूँ सजनी आए न बालम...’ : फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी – 9 : वाचक स्वर – संज्ञा टण्डन 






आज की पहेली


‘स्वरगोष्ठी’ के 190वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको एक पारम्परिक ठुमरी गीत का अंश सुनवा रहे हैं। इसे सुन कर आपको निम्नलिखित दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के इस अंक की समाप्ति तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस श्रृंखला का विजेता घोषित किया जाएगा।


1 – गीत का यह अंश सुन कर बताइए कि इस प्रस्तुति में आपको किस राग की झलक मिलती है?

2 – इस ठुमरी की गायिका की आवाज को पहचानिए और हमें उनका नाम बताइए।

आप अपने उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर ही शनिवार मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। comments में दिये गए उत्तर मान्य नहीं होंगे। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 192वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रकाशित और प्रसारित गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।



पिछली पहेली के विजेता


‘स्वरगोष्ठी’ की 188वें अंक की संगीत पहेली में हमने आपको सुविख्यात गायिका इकबाल बानो की आवाज में प्रस्तुत पारम्परिक ठुमरी का अंश सुनवा कर आपसे दो प्रश्न पूछे थे। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग पीलू और पहेली के दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- आठ/सोलह मात्रा का ताल। पहेली में सुनवाए गए गीतांश में ताल बहुत स्पष्ट नहीं था। इसलिए जिन पाठकों ने मात्रा के अनुसार अनुमान लगा कर कहरवा, जत या अन्य तालों का उल्लेख किया है उन्हें हमने सही मान लिया है। पहेली के दोनों प्रश्नो के सही उत्तर हैदराबाद की डी. हरिणा माधवी, जबलपुर से क्षिति तिवारी और पेंसिलवानिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया ने दिया है। चंडीगढ़ के हरकीरत सिंह ने केवल एक प्रश्न का सही उत्तर दिया है, अतः उन्हें एक अंक मिलेंगे। चारो प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।



आपकी और अपनी बात


मित्रों, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी है हमारी लघु श्रृंखला ‘फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी’। इस श्रृंखला में हमने एक नया प्रयोग किया है। ‘स्वरगोष्ठी’ के परम्परागत आलेख, चित्र और गीत-संगीत के आडियो रूप के साथ-साथ सम्पूर्ण आलेख, गीतों के साथ श्रव्य माध्यम से भी प्रस्तुत किया जा रहा है। आपको हमारा यह प्रयोग कैसा लगा? हमें अवश्य लिखिएगा। हमारे अनेक पाठक हर सप्ताह अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं। आप भी इस अंक पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं। आप अपनी पसन्द के विषय और गीत-संगीत की फरमाइश अथवा अगली श्रृंखलाओं के लिए आप किसी नए विषय का सुझाव भी दे सकते हैं। अगले रविवार को इस लघु श्रृंखला के समापन अंक के साथ प्रातः 9 बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर सभी संगीतानुरागियों का स्वागत करेंगे।

वाचक स्वर : संज्ञा टण्डन
आलेख व प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र



अपना मनपसन्द स्तम्भ पढ़ने के लिए दीजिए अपनी राय



नए साल 2015 में शनिवार के नियमित स्तम्भ रूप में आप कौन सा स्तम्भ पढ़ना सबसे ज़्यादा पसन्द करेंगे?

1.  सिने पहेली (फ़िल्म सम्बन्धित पहेलियों की प्रतियोगिता)

2. एक गीत सौ कहानियाँ (फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया से जुड़े दिलचस्प क़िस्से)

3. स्मृतियों के स्वर (रेडियो (विविध भारती) साक्षात्कारों के अंश)

4. बातों बातों में (रेडियो प्लेबैक इण्डिया द्वारा लिये गए फ़िल्म व टीवी कलाकारों के साक्षात्कार)

5. बॉलीवुड विवाद (फ़िल्म जगत के मशहूर विवाद, वितर्क और मनमुटावों पर आधारित श्रृंखला)


अपनी राय नीचे टिप्पणी में अथवा cine.paheli@yahoo.com या radioplaybackindia@live.com पर अवश्य बताएँ।

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