एक गीत सौ कहानियाँ - 42
‘मेरो गाम काठा पारे...’
'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, हम रोज़ाना रेडियो पर, टीवी पर, कम्प्यूटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ से, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारे जीवन से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़ी दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कमसुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह स्तम्भ - 'एक गीत सौ कहानियाँ'। इसकी 42-वीं कड़ी में आज जानिये फ़िल्म 'मंथन' के यादगार गीत "मेरो गाम काठा पारे..." के बारे में।
80 का दशक कलात्मक फ़िल्मों का स्वर्ण-युग रहा। जिन फ़िल्मकारों ने इस जौनर को अपनी अर्थपूर्ण फ़िल्मों से समृद्ध किया, उनमें से एक नाम है श्याम बेनेगल का। उनकी 1977 की फ़िल्म 'मंथन' सफ़ेद-क्रान्ति (Operation Flood - The White Revolution) पर बनी थी। देश के कोने-कोने तक हर घर में रोज़ दूध पहुँचे, हर बच्चे को दूध नसीब हो, समूचे देश भर में दूध की नदियाँ बहने लगे, दूध की प्रचुरता हो, यही उद्देश्य था सफ़ेद-क्रान्ति का। फ़िल्म की कहानी डॉ. वर्गिस कुरिएन और श्याम बेनेगल ने संयुक्त रूप से लिखी थी। बताना ज़रूरी है कि कुरिएन भारत के सफ़ेद-क्रान्ति के जनक माने जाते हैं। फ़िल्म की पृष्ठभूमि कुछ इस तरह से थी कि गुजरात के खेड़ा ज़िले के कुछ गरीब कृषकों की सोच को सामाजिक कार्यकर्ता त्रिभुवनदास पटेल ने अंजाम दिया और स्थापित हुआ Kaira District Co-operative Milk Producers' Union और जल्दी ही यह गुजरात के अन्य ज़िलों में भी शुरू हो गया जिसने एक आन्दोलन का रूप ले लिया। इसी शुरुआत से आगे चल कर स्थापना हुई डेरी कौपरेटिव 'अमूल' की, गुजरात के आनन्द इलाके में। साल था 1946, और आगे चल कर इस कौपरेटिव में करीब 26 लाख लोगों की भागीदारी हुई। 1970 में इसने 'सफ़ेद-क्रान्ति' की शुरुआत कर दी अपना राष्ट्रव्यापी दूध-ग्रिड बनाकर, और 1973 में बनी ‘Gujarat Co-operative Milk Marketing Federation Ltd.(GCMMF)। इसी संस्था के कुल 5,00,000 सदस्यों ने 2 रुपये प्रति सदस्य योगदान देकर 'मंथन' फ़िल्म को प्रोड्यूस किया, और जब यह फ़िल्म रिलीज़ हुई तो ट्रक भर भर कर गाँव वाले आये "अपनी" इस फ़िल्म को देखने के लिए। एक कलात्मक और ग़ैर-व्यावसायिक फ़िल्म होते हुए भी इस फ़िल्म ने बॉक्स ऑफ़िस पर कामयाबी के झंडे गाड़ दिये, जो फ़िल्म इतिहास में एक मिसाल है। स्मिता पाटिल, गिरीश करनाड, नसीरुद्दीन शाह, कुलभूषण खरबन्दा, अमरीश पुरी प्रमुख अभिनीत 'मंथन' को 1978 में सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला; साथ ही सर्वश्रेष्ठ पटकथा का राष्ट्रीय पुरस्कार भी इस फ़िल्म के लिए विजय तेन्दुलकर को ही मिला। भारत की तरफ़ से ऑस्कर के लिए भी यही फ़िल्म मनोनीत हुआ। फ़िल्म के लोकप्रिय गीत "मेरो गाम काठा पारे..." के लिए गायिका प्रीति सागर को सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायिका का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार दिया गया। इस गीत को बाद में 'अमूल' कम्पनी ने अपने विज्ञापन के लिए प्रयोग किया। गुजराती लोक-धुन की छाया लिये इस गीत में एक महिला के अपने प्रेमी को देखने की आस को दर्शाया गया है। 'अमूल' के विज्ञापन में इस गीत के साथ-साथ स्मिता पाटिल भी नज़र आती हैं और साथ ही स्क्रीन पर नज़र आते हैं ये शब्द - “Every morning 17 lac women across 9,000 villages, bringing in milk worth Rs.4 crores, are now celebrating their economic independence. Thanks to the co-operative movement called Amul.”
वनराज भाटिया |
प्रीति सागर |
फिल्म - मन्थन : 'मेरो गाम काठा पारे...' : गायिका - प्रीति सागर : संगीत - वनराज भाटिया
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खोज, आलेख व प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी
प्रस्तुति सहयोग: कृष्णमोहन मिश्र
प्रस्तुति सहयोग: कृष्णमोहन मिश्र
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