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Showing posts from September, 2013

‘मन तड़पत हरिदर्शन को आज...’

      स्वरगोष्ठी – 139 में आज रागों में भक्तिरस – 7 राग मालकौंस का रंग : पण्डित ओंकारनाथ ठाकुर के संग ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर इन दिनों जारी लघु श्रृंखला ‘रागों में भक्तिरस’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, एक बार पुनः आप सब संगीत-रसिकों का स्वागत करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम आपके लिए भारतीय संगीत के कुछ भक्तिरस प्रधान राग और उनमें निबद्ध रचनाएँ प्रस्तुत कर रहे हैं। साथ ही उस राग पर आधारित फिल्म संगीत के उदाहरण भी आपको सुनवा रहे हैं। आज माह का पाँचवाँ रविवार है और इस दिन ‘स्वरगोष्ठी’ का अंक हमारे अतिथि संगीतज्ञ द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। आज का यह अंक प्रस्तुत कर रहे हैं, मयूर वीणा और इसराज के सुप्रसिद्ध वादक पण्डित श्रीकुमार मिश्र। श्रृंखला के आज के अंक में श्रीकुमार जी आपसे अत्यन्त लोकप्रिय राग मालकौंस पर चर्चा करेंगे। आज हम आपको राग मालकौंस के भक्तिरस के पक्ष को स्पष्ट करने के लिए तीन रचनाएँ प्रस्तुत करेंगे। सबसे पहले हम आपको सुनवाएँगे, 1952 में प्रदर्शित फिल्म ‘बैजू बावरा’ का भक्तिरस से

आज की 'सिने पहेली' लता जी के नाम...

सिने पहेली – 82     "मुझसे चलता है सर-ए-बज़्म सुखन का जादू चाँद ज़ुल्फ़ों के निकलते है मेरे सीने से, मैं दिखाता हूँ ख़यालात के चेहरे सब को सूरतें आती हैं बाहर मेरे आईने से। हाँ मगर आज मेरे तर्ज़-ए-बयां का यह हाल अजनबी कोई किसी बज़्म-ए-सुखन में जैसे, वो ख़यालों के सनम और वो अल्फ़ाज़ के चाँद बेवतन हो गए हों अपने ही वतन में जैसे। फिर भी क्या कम है, जहाँ रंग न ख़ुशबू है कोई तेरे होंठों से महक जाते हैं अफ़कार मेरे, मेरे लफ़्ज़ों को जो छू लेती है आवाज़ तेरी सरहदें तोड़ के उड़ जाते हैं अशार मेरे। तुझको मालूम नहीं, या तुझे मालूम भी हो वो सियाह बख़्त जिन्हें ग़म ने सताया बरसों, एक लम्हे को जो सुन लेते हैं तेरा नग़मा फिर उन्हें रहती है जीने की तमन्ना बरसों। जिस घड़ी डूब के आहंग में तू गाती है आयतें पढ़ती है साज़ों की सदा तेरे लिए, दम बदम ख़ैर मनाते हैं तेरी चंग-ओ-रबाब सीने नये से निकलती है दुआ तेरे लिए। नग़मा-ओ-साज़ के ज़ेवर से रहे तेरा सिंगार हो तेरी माँग में तेरी ही सुरों की अफ़शां, तेरी तानों से तेरी आँख में काजल की लकीर हाथ म

पूरी रात पार्टी का इंतजाम लेकर आया है 'बॉस'

अ क्षय कुमार अपने खिलाड़ी रूप में फिर से लौट रहे हैं फिल्म बॉस के साथ. लगता है उन्हें हनी सिंह का साथ खूब रास आ रहा है. तभी तो पूरी एल्बम का जिम्मा उन्होंने हनी सिंह के साथ मीत ब्रोस अनजान को सौंपा है. फिल्म हिट मलयालम फिल्म पोखिरी राजा का रिमेक है, यहाँ अक्षय हरियाणा के पोखिरी यानी टपोरी बने हैं. आईये देखें इस बॉस को कैसे कैसे गीत दिए हैं हनी सिंह ने. शीर्षक गीत बॉस को बखूबी परिभाषित करता है. हनी सिंह का हरियाणवी तडका अच्छा जमा है. गीत में पर्याप्त ऊर्जा और जोश है. शब्द एवें ही है पर शायद जानकार ऐसा रखा गया है. दक्षिण के जाने माने संगीतकार पी ए दीपक के मूल गीत अपदी पोडे पोडे का हिंदी संस्करण है अगला गीत हम न छोड़े तोड़े , जिसे पूरे दम ख़म से गाया है विशाल ददलानी ने. शब्द अच्छे बिठाए गए है, पर मूल गीत इतनी बार सुना जा चुका है कि गीत कुछ नया सुनने का एहसास नहीं देता. दूसरे अंतरे से पहले अक्षय से बुलवाए गए संवाद बढ़िया लगते हैं. सोनू निगम इन दिनों बेहद कम गीत गा रहे हैं ऐसे में किसी अच्छे गीत में उन्हें सुनना वाकई सुखद लगता है. एल्बम के तीसरे गीत पिता से है नाम तेरा

मुंशी प्रेमचंद कृत शिकारी राजकुमार

इस लोकप्रिय स्तम्भ "बोलती कहानियाँ" के अंतर्गत हम हर सप्ताह आपको सुनवाते रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने माधवी चारुदत्ता के स्वर में मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित व्यंग्य " मोटर की छींटें " सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित रोचक कहानी शिकारी राजकुमार जिसे स्वर दिया है माधवी चारुदत्ता ने। प्रस्तुत कहानी का गद्य " भारत डिस्कवरी " पर उपलब्ध है। " शिकारी राजकुमार " का कुल प्रसारण समय 23 मिनट 33 सेकंड है। सुनिए और बताइये कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। मैं एक निर्धन अध्यापक हूँ ... मेरे जीवन मैं ऐसा क्या ख़ास है जो मैं किसी से कहूं  ~ मुंशी प्रेमचंद (१८८०-१९३६) हर सप्ताह यहीं पर सुनें एक नयी हिन्दी कहानी "मृग पृथ्वी पर पड़ा तड़प रहा था और उस अश्वारो

‘प्रभु तेरो नाम जो ध्याये फल पाए...’

    स्वरगोष्ठी – 138 में आज रागों में भक्तिरस – 6 राग धानी का रंग : लता मंगेशकर और लक्ष्मी शंकर के संग ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर इन दिनों जारी लघु श्रृंखला ‘रागों में भक्तिरस’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, एक बार पुनः आप सब संगीत-रसिकों का स्वागत करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम आपके लिए भारतीय संगीत के कुछ भक्तिरस प्रधान राग और उनमें निबद्ध रचनाएँ प्रस्तुत कर रहे हैं। साथ ही उस राग पर आधारित फिल्म संगीत के उदाहरण भी आपको सुनवा रहे हैं। श्रृंखला के आज के अंक में हम आपसे संगीत के शास्त्रीय मंचों पर कम प्रचलित राग धानी पर चर्चा करेंगे। आज हम आपको इस राग में निबद्ध सुप्रसिद्ध गायिका लक्ष्मी शंकर के स्वरों में एक खयाल सुनवाएँगे। साथ ही इस राग पर आधारित, 1961 में प्रदर्शित फिल्म ‘हम दोनों’ से एक बेहद लोकप्रिय भक्तिगीत विख्यात पार्श्वगायिका लता मंगेशकर की आवाज़ में प्रस्तुत करेंगे। आपको याद ही होगा कि आगामी 28 सितम्बर को कोकिलकंठी गायिका लता मंगेशकर का जन्मदिवस है। इस अवसर के लिए हमने पिछले अंक में और आज के अंक

'सिने पहेली' में आज आप पर फेंक रहे हैं गीतों भरी गूगली

सिने पहेली – 81     'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी पाठकों और श्रोताओं को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, एक लम्बे अन्तराल के बाद मैं वापस 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के मंच पर उपस्थित हुआ हूँ, और 'सिने पहेली' में वापस आकर मुझे बेहद ख़ुशी हो रही है। सबसे पहले मैं अमित तिवारी जी का तहेदिल से शुक्रिया अदा करता हूँ कि उन्होंने मेरी अनुपस्थिति में 'सिने पहेली' के सफ़र को जारी तो रखा ही, इसके मिज़ाज को ज़रा सा भी ठंडा नहीं पड़ने दिया और इस मुकाबले की रोचकता को बनाये रखा। पिछले दिनों सरताज प्रतियोगी को एक अंक दिये जाने के सुझाव पर मतभेद सामने आया है। अत: हमारे सम्पादक मण्डल ने सर्वसम्मति से सरताज प्रतियोगी को एक अंक दिये जाने का प्रस्ताव रद्द कर दिया है। साथ ही यह निर्णय लिया है कि अब 'सिने पहेली' की समाप्ति तक इसके किसी भी नियम में न तो फेर-बदल किये जायेंगे और न ही कोई नया नियम लागू होगा। आशा है इस फ़ैसले का सभी प्रतियोगी समर्थन करेंगे। आइए सबसे पहले आपको बतायें पिछले सप्ताह पूछे गए सवालों के सही जवाब...

लव की घंटी बजा रहे हैं ललित कुछ 'बेशरम' होकर

90 के दशक की सबसे बड़ी हिट फिल्मों में इस जोड़ी का संगीत था, दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे , कुछ कुछ होता है, जो जीता वही सिकंदर  जैसी फिल्मों के नाम जुबाँ पे आते ही याद आते हैं जतिन ललित. फना   के बाद दोनों भाईयों ने अलग अलग काम करने का फैसला लिया, और अब एक लंबे अरसे बाद ललित लौटे हैं रणबीर कपूर अभिनीत बेशरम   के साथ. देखें क्या ललित अकेले दम पर वही पुराना सुरीला जादू फिर से पैदा कर पाए हैं या नहीं.     जैसा कि हम बता चुके हैं कि ललित फिल्म के प्रमुख संगीतकार हैं पर यहाँ एक अतिथि संगीतकार के रूप में इश्क बेक्टर भी मौजूद हैं और इन्हीं का है शीर्षक गीत बेशरम . धुन कैची है, शब्द बेतरतीब हैं, ८० के दशक जैसा टेम्पो है गीत का, और फिल्म के शीर्षक गीत के रूप में एकदम सटीक है. रणबीर पर फिल्माए ताजा हिट गीत दिल्ली वाली गर्ल फ्रेंड   की तर्ज पर ही लगता है हम लुट गए रे पिया आके तेरे मोहल्ले   गीत भी. तेज रिदम पर ममता शर्म और एश्वर्या निगम की दिलफेंक गायकी गीत को एक चार्टबस्टर बनाने में पूरी तरह समर्थ है. किशोर कुमार के चुलबले गीतों का अंदाज़ झलकता है लव की घंटी    गीत में. सुजीत शेट्टी

कब तक न हँसेगी गुडिया...

रूठ जाए कभी जो नन्हीं गुडिया तो उसे मनाने से बड़ा कोई काम नहीं. वो हंसी जो नित होंठो पर खिली मिलती है कुछ पल को कभी पलकों के तले तो कभी आँखों के किनारे छुप सी जाती है, पर यकीन मानिये वो लौट भी आती है झट से अगर उसे इस तरह बुलाओगे तो....सुनिए लता के स्वरों में एल पी का रचा, मजरूह का लिखा ये नटखट सा गीत, प्रस्तुतकर्ता हैं अर्शिना सिंह   

मुंशी प्रेमचंद की मोटर की छींटें

इस लोकप्रिय स्तम्भ "बोलती कहानियाँ" के अंतर्गत हम हर सप्ताह आपको सुनवाते रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा के स्वर में रयुनासुके अकुतागावाकी जापानी कहानी " संतरे " का हिंदी अनुवाद सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित व्यंग्यात्मक कहानी मोटर की छींटें जिसे स्वर दिया है माधवी चारुदत्ता ने। प्रस्तुत व्यंग्य का गद्य " भारत डिस्कवरी " पर उपलब्ध है। " मोटर की छींटें " का कुल प्रसारण समय 11 मिनट 17 सेकंड है। सुनिए और बताइये कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। मैं एक निर्धन अध्यापक हूँ ... मेरे जीवन मैं ऐसा क्या ख़ास है जो मैं किसी से कहूं  ~ मुंशी प्रेमचंद (१८८०-१९३६) हर सप्ताह यहीं पर सुनें एक नयी हिन्दी कहानी "जजमान का दिल देखकर ही मैं उनका नि

स्वरगोष्ठी – 137 में आज : ‘मन रे हरि के गुण गा...’

  स्वरगोष्ठी – 137 में आज रागों में भक्तिरस – 5 ध्रुवपद अंग में राग भैरव का रंग ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी लघु श्रृंखला ‘रागों में भक्तिरस’ की पाँचवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, एक बार पुनः आप सब संगीत-रसिकों का स्वागत करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम आपके लिए संगीत के कुछ भक्तिरस प्रधान राग और उनमें निबद्ध रचनाएँ प्रस्तुत कर रहे हैं। साथ ही उस राग पर आधारित फिल्म संगीत के उदाहरण भी आपको सुनवा रहे हैं। श्रृंखला के आज के अंक में हम आपसे राग भैरव पर चर्चा करेंगे जो भक्तिरस की सृष्टि करने में सबसे उपयुक्त राग है। भारतीय संगीत के इस प्राचीनतम राग में आज हम आपको एक ध्रुवपद रचना सुनवाएँगे। साथ ही इस राग पर आधारित, 1957 में प्रदर्शित फिल्म ‘मुसाफिर’ से एक मधुर भक्तिगीत प्रस्तुत करेंगे।   इ स श्रृंखला के पिछले अंकों में हम यह चर्चा कर चुके हैं कि वर्तमान भारतीय संगीत की परम्परा वैदिक काल से जुड़ी है। उस काल के उपलब्ध प्रमाणों से यह स्पष्ट हो जाता है कि तत्कालीन संगीत का स्वरूप धर्म और आध्यात्म से प्रभावित था। वैदि