"यमला पगला दीवाना" का रंग चढाने में कामयाब हुए "चढा दे रंग" वाले अली परवेज़ मेहदी.. साथ है "टिंकू जिया" भी
Taaza Sur Taal 02/2011 - Yamla Pagla Deewana
"अपने तो अपने होते हैं" शायद यही सोच लेकर अपना चिर-परिचित देवल परिवार "अपने" के बाद अपनी तिकड़ी लेकर हम सब के सामने फिर से हाजिर हुआ है और इस बार उनका नारा है "यमला पगला दीवाना"। फिल्म पिछले शुक्रवार को रीलिज हो चुकी है और जनता को खूब पसंद भी आ रही है। यह तो होना हीं था, जबकि तीनों देवल अपना-अपना जान-पहचाना अंदाज़ लेकर परदे पर नज़र आ रहे हों। "गरम-धरम" , "जट सन्नी" और "सोल्ज़र बॉबी"... दर्शकों को इतना कुछ एक हीं पैकेट में मिले तो और किस चीज़ की चाह बची रहेगी... हाँ एक चीज़ तो है और वो है संगीत.. अगर संगीत मन का नहीं हुआ तो मज़े में थोड़ी-सी खलल पड़ सकती है। चूँकि यह एक पंजाबी फिल्म है, इसलिए इससे पंजाबी फ़्लेवर की उम्मीद तो की हीं जा सकती है। अब यह देखना रह जाता है कि फ़िल्म इस "फ़्रंट" पर कितनी सफ़ल हुई है। तो चलिए आज की "संगीत-समीक्षा" की शुरूआत करते हैं।
"यमला पगला दीवाना" में गीतकारों-संगीतकारों और गायक-गायिकाओं की एक भीड़-सी जमा है। पहले संगीतकारों की बात करते हैं। लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल (ओरिजनल "मैं जट यमला पगला दीवाना" .. फिल्म "प्रतिज्ञा" से), अनु मलिक, संदेश सांडिल्य, नौमान जावेद, आर०डी०बी० एवं राहुल बी० सेठ.. इन सारे संगीतकारों ने फिल्म के गानों की कमान संभाली है और इनके संगीत पर जिन्होंने बोल लिखे हैं वे हैं: आनंद बक्षी (ओरिजनल "मैं जट यमला पगला दीवाना"), धर्मेन्द्र (जी हाँ, अपने धरम पा जी भी अब गीतकार हो गए हैं, इन्होंने फिल्म में "कड्ड के बोतल" नाम का गाना लिखा है), इरशाद कामिल, नौमान जावेद, राहुल बी० सेठ एवं आर०डी०बी०।
इस बार से हमने निर्णय लिया है कि हम फिल्म के सारे गाने नहीं सुनवाएँगे, बस वही सुनवाएँगे एलबम का सर्वश्रेष्ठ गाना हो या कि जिसे जनता बहुत पसंद कर रही हो। इसी बात को ध्यान में रखते हुए, आईये हम और आप सुनते हैं "अली परवेज़ मेहदी" की आवाज़ों में "चढा दे रंग":
Chadha de rang
Chadha de rang (Sad version)
हमारा यह सौभाग्य है कि हमें "परवेज़ मेहदी" से कुछ सवाल-जवाब करने का मौका हासिल हुआ। हमारे अपने "सजीव जी" ने इनसे "ई-मेल" के द्वारा कुछ सवाल पूछे, जिनका बड़े हीं प्यार से परवेज़ भाई ने जवाब दिया। यह रही वो बातचीत:
फिल्म के सर्वश्रेष्ठ गानों के बाद आईये हम सुनते हैं "जनता की पसंद"। ललित पंडित द्वारा संगीतबद्ध और उन्हीं के लिखे हुए "मुन्नी बदनाम", इसी तरह "विशाल-शेखर" द्वारा संगीतबद्ध और विशाल की हीं लेखनी से उपजे "शीला की जवानी" के बाद शायद यह ट्रेंड निकल आया है कि एक ऐसा आईटम गाना तो ज़रूर हीं होना चाहिए जिसे संगीतकार हीं अपने शब्द दे। शायद इसी सोच ने इस फिल्म में "टिंकु जिया" को जन्म दिया है। इस गाने के कर्ता-धर्ता "अनु मलिक" हैं और "मुन्नी बदनाम" की सफ़लता को भुनाने के लिए इन्होंने "उसी" गायिका को माईक थमा दी है। जी हाँ, इस गाने में आवाज़ें हैं ममता शर्मा और जावेद अली की। यह गाना सुनने में उतना खास नहीं लगता, लेकिन परदे पर इसे देखकर सीटियाँ ज़रुर बज उठती हैं। अब चूँकि गाना मक़बूल हो चुका है, इसलिए हमने भी सोचा कि इसे आपके कानों तक पहुँचा दिया जाए।
Tinku Jiya
हमारी राय – फ़िल्म जनता को भले हीं बेहद पसंद आई हो, लेकिन संगीत के स्तर पर यह मात खा गई। दो-एक गानों को छोड़कर संगीत में खासा दम नहीं है। वैसे बॉलीवुड को "अली परवेज़ मेहदी" के रूप में एक बेहतरीन गायक हासिल हुआ है। उम्मीद और दुआ करते हैं कि ये हमें आगे भी सुनने को मिलेंगे। इन्हीं बातों के साथ आईये आज की समीक्षा पर विराम लगाते हैं। धन्यवाद!
"अपने तो अपने होते हैं" शायद यही सोच लेकर अपना चिर-परिचित देवल परिवार "अपने" के बाद अपनी तिकड़ी लेकर हम सब के सामने फिर से हाजिर हुआ है और इस बार उनका नारा है "यमला पगला दीवाना"। फिल्म पिछले शुक्रवार को रीलिज हो चुकी है और जनता को खूब पसंद भी आ रही है। यह तो होना हीं था, जबकि तीनों देवल अपना-अपना जान-पहचाना अंदाज़ लेकर परदे पर नज़र आ रहे हों। "गरम-धरम" , "जट सन्नी" और "सोल्ज़र बॉबी"... दर्शकों को इतना कुछ एक हीं पैकेट में मिले तो और किस चीज़ की चाह बची रहेगी... हाँ एक चीज़ तो है और वो है संगीत.. अगर संगीत मन का नहीं हुआ तो मज़े में थोड़ी-सी खलल पड़ सकती है। चूँकि यह एक पंजाबी फिल्म है, इसलिए इससे पंजाबी फ़्लेवर की उम्मीद तो की हीं जा सकती है। अब यह देखना रह जाता है कि फ़िल्म इस "फ़्रंट" पर कितनी सफ़ल हुई है। तो चलिए आज की "संगीत-समीक्षा" की शुरूआत करते हैं।
"यमला पगला दीवाना" में गीतकारों-संगीतकारों और गायक-गायिकाओं की एक भीड़-सी जमा है। पहले संगीतकारों की बात करते हैं। लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल (ओरिजनल "मैं जट यमला पगला दीवाना" .. फिल्म "प्रतिज्ञा" से), अनु मलिक, संदेश सांडिल्य, नौमान जावेद, आर०डी०बी० एवं राहुल बी० सेठ.. इन सारे संगीतकारों ने फिल्म के गानों की कमान संभाली है और इनके संगीत पर जिन्होंने बोल लिखे हैं वे हैं: आनंद बक्षी (ओरिजनल "मैं जट यमला पगला दीवाना"), धर्मेन्द्र (जी हाँ, अपने धरम पा जी भी अब गीतकार हो गए हैं, इन्होंने फिल्म में "कड्ड के बोतल" नाम का गाना लिखा है), इरशाद कामिल, नौमान जावेद, राहुल बी० सेठ एवं आर०डी०बी०।
इस बार से हमने निर्णय लिया है कि हम फिल्म के सारे गाने नहीं सुनवाएँगे, बस वही सुनवाएँगे एलबम का सर्वश्रेष्ठ गाना हो या कि जिसे जनता बहुत पसंद कर रही हो। इसी बात को ध्यान में रखते हुए, आईये हम और आप सुनते हैं "अली परवेज़ मेहदी" की आवाज़ों में "चढा दे रंग":
Chadha de rang
Chadha de rang (Sad version)
हमारा यह सौभाग्य है कि हमें "परवेज़ मेहदी" से कुछ सवाल-जवाब करने का मौका हासिल हुआ। हमारे अपने "सजीव जी" ने इनसे "ई-मेल" के द्वारा कुछ सवाल पूछे, जिनका बड़े हीं प्यार से परवेज़ भाई ने जवाब दिया। यह रही वो बातचीत:
आवाज़: परवेज़ भाई फिल्म "यमला पगला दीवाना" में हम आपका गाना सुनने जा रहे हैं, हमारे श्रोताओं को बताएँ कि कैसा रहा आपका अनुभव इस गीत का।
अली परवेज़: निर्माता-निर्देशक समीर कार्णिक और देवल परिवार के लिए काम करने में बड़ा मज़ा आया, बॉलीवुड के लिए यह मेरा पहला गाना है। मैंने इस गाने के लिए इतनी बड़ी सफ़लता की उम्मीद नहीं की थी, आम लोगों को गाना अच्छा लगा हीं है लेकिन गाने के समझदार लोगों से भी वाह-वाह मिली है..और वो मेरे लिए सबसे ज्यादा खुशी की बात है।
आवाज़: जी सही कहा आपने। अच्छा यह बताईये कि इस गीत को राहत साहब ने भी गाया है, लेकिन एलबम में आपकी आवाज़ को पहली तरजीह दी गई है, इससे बेहतर सम्मान की बात क्या हो सकती है.. आप इस बारे में क्या सोचते हैं।
अली परवेज़: राहत साहब के बारे में जो भी कहूँ वो कम होगा। उनको कौन नहीं जानता, उनको किसने नहीं सुना, ये तो मेरी खुश-नसीबी है कि मुझे भी वो हीं गाना गाने का मौका मिला जो उनसे गवाया गया था। अब मुझे क्यों पहली तरजीह दी गई है, इसे जनता से बेहतर भला कौन बता पाएगा?
आवाज़: अपने अब तक के संगीत-सफ़र के बारे में भी संक्षेप में कुछ कहें।
अली परवेज़: जनाब परवेज़ मेहदी साहब मेरे वालिद थे, और वो हीं मेरे सबसे बड़े गुरू थे और मेरे सबसे बड़े आलोचक भी.. वो हीं मेरे गुणों के पारखी थे। उनका अपना घराना था, अपनी गायकी थी... बस मैं उनकी बनाई हुई इस संगीत की राह पर कुछ सुरीला सफ़र तमाम करूँ, यही अल्लाह से दुआ करता हूँ।
आवाज़: यमला पगला दीवाना के गाने इन दिनों खूब लोकप्रिय हो रहे हैं। क्या आपको फिल्म के कलाकारों या क्रू से मिलने का मौका मिला है कभी?
अली परवेज़: नहीं, मुझे कास्ट से मिलने का मौका नहीं मिला, क्योंकि मैं यू०एस०ए० में सेटल्ड हूँ, और मैंने अपने स्टुडियो में गाना रिकार्ड किया था।
आवाज़: प्राईवेट एलबम्स के बारे में आपके क्या विचार हैं, क्या आप खुद किसी एलबम पर काम कर रहे हैं? आने वाले समय में किन फ़िल्मों में हम आपको सुन पाएँगे?
अली परवेज़: मेरे ख़्याल में हर फ़नकार को कम से कम एक मौका प्राईवेट एलबम बनाने का ज़रूर मिलना चाहिए, क्योंकि उसमें कलाकार को अपनी सोच (प्रतिभा) दिखाने का मौका मिलता है और उसकी गायकी के अलग-अलग रंग दिखते हैं। एलबम कोई फ़िल्म नहीं होता, इसमें कोई स्टोरी-लाईन नहीं होती, इसलिए फ़नकार अपने मन का करने के लिए आज़ाद होता है। इंशा-अल्लाह हम लोग कुछ प्रोजेट्स पर काम कर रहे हैं, जो आपके सामने बहुत हीं जल्द आएँगे।
आवाज़: परवेज़ भाई, आपने हमें समय दिया, इसके लिए आपका हम तह-ए-दिल से शुक्रिया अदा करते हैं।
अली परवेज़: आपका भी शुक्रिया!
फिल्म के सर्वश्रेष्ठ गानों के बाद आईये हम सुनते हैं "जनता की पसंद"। ललित पंडित द्वारा संगीतबद्ध और उन्हीं के लिखे हुए "मुन्नी बदनाम", इसी तरह "विशाल-शेखर" द्वारा संगीतबद्ध और विशाल की हीं लेखनी से उपजे "शीला की जवानी" के बाद शायद यह ट्रेंड निकल आया है कि एक ऐसा आईटम गाना तो ज़रूर हीं होना चाहिए जिसे संगीतकार हीं अपने शब्द दे। शायद इसी सोच ने इस फिल्म में "टिंकु जिया" को जन्म दिया है। इस गाने के कर्ता-धर्ता "अनु मलिक" हैं और "मुन्नी बदनाम" की सफ़लता को भुनाने के लिए इन्होंने "उसी" गायिका को माईक थमा दी है। जी हाँ, इस गाने में आवाज़ें हैं ममता शर्मा और जावेद अली की। यह गाना सुनने में उतना खास नहीं लगता, लेकिन परदे पर इसे देखकर सीटियाँ ज़रुर बज उठती हैं। अब चूँकि गाना मक़बूल हो चुका है, इसलिए हमने भी सोचा कि इसे आपके कानों तक पहुँचा दिया जाए।
Tinku Jiya
हमारी राय – फ़िल्म जनता को भले हीं बेहद पसंद आई हो, लेकिन संगीत के स्तर पर यह मात खा गई। दो-एक गानों को छोड़कर संगीत में खासा दम नहीं है। वैसे बॉलीवुड को "अली परवेज़ मेहदी" के रूप में एक बेहतरीन गायक हासिल हुआ है। उम्मीद और दुआ करते हैं कि ये हमें आगे भी सुनने को मिलेंगे। इन्हीं बातों के साथ आईये आज की समीक्षा पर विराम लगाते हैं। धन्यवाद!
अक्सर हम लोगों को कहते हुए सुनते हैं कि आजकल के गीतों में वो बात नहीं। "ताजा सुर ताल" शृंखला का उद्देश्य इसी भ्रम को तोड़ना है। आज भी बहुत बढ़िया और सार्थक संगीत बन रहा है, और ढेरों युवा संगीत योद्धा तमाम दबाबों में रहकर भी अच्छा संगीत रच रहे हैं, बस ज़रूरत है उन्हें ज़रा खंगालने की। हमारा दावा है कि हमारी इस शृंखला में प्रस्तुत गीतों को सुनकर पुराने संगीत के दीवाने श्रोता भी हमसे सहमत अवश्य होंगें, क्योंकि पुराना अगर "गोल्ड" है तो नए भी किसी कोहिनूर से कम नहीं।
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चढा दे रंग मुझे भी बेहद पसंद है और हाँ "मैं जट यमला पगला दीवाना" भी (लेकिन इसकी खूबसूरती की वज़ह आनंद बक्षी एवं लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल हैं, न कि आर०डी०बी०) ... टिंकू जिया आपको झूमने पर मजबूर करता है, लेकिन बाकी गाने मुझे उतने खास नहीं लगे। क्या करें.. अपनी-अपनी पसंद है, अपनी-अपनी राय है :) है ना?