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जब साजिद वाजिद जोड़ी को मिला गुलज़ार साहब का साथ, तो रचा गया एपिक "वीर" का संगीत

ताज़ा सुर ताल ०२/ २०१० सजीव - 'ताज़ा सुर ताल' की इस साल की दूसरी कड़ी में सभी का हम स्वागत करते हैं। पिछली बार ' दुल्हा मिल गया ' की गीतों की चर्चा हुई थी और गानें भी हमने सुनें थे, आज बारी है एक महत्वपूर्ण फ़िल्म की, जिसकी चर्चा शुरु हुए साल बीत चुका है। सुजॊय - चर्चा शुरु हुए साल बीत चुका है और अभी तक फ़िल्म बाहर नहीं आई, ऐसी तो मुझे बस एक ही फ़िल्म की याद आ रही है, सलमान ख़ान का 'वीर'। सजीव - बिल्कुल सही पहचाना तुमने! आख़िर अब इस फ़िल्म के गानें रिलीज़ हो चुके हैं, और फ़िल्म के प्रोमोज़ भी आने शुरु हो गए हैं। आज फ़िल्म 'वीर' की बातें और 'वीर' का संगीत 'ताज़ा सुर ताल' पर। सुजॊय - तो सजीव, जब 'वीर' की बात छिड़ ही गई है तो बात आगे बढ़ाने से पहले इस फ़िल्म का मशहूर गीत "सलाम आया" सुन लेते हैं और श्रोताओं को भी सुनवा देते हैं, उसके बाद इस गीत के बारे में चर्चा करेंगे और 'वीर' की बातों को आगे बढ़ाएँगे। सजीव - ज़रूर! बस इतना बता दें कि इस फ़िल्म के संगीतकार हैं साजिद-वाजिद और गीतकार हमारे गुलज़ार साहब। गीत - सल

महबूबा महबूबा....याद कीजिये पंचम का वो मदमस्त अंदाज़ जिस पर थिरका था कभी पूरा देश

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 310/2010/10 दो स्तों, 'पंचम के दस रंग' लघु शृंखला को सुनते हुए आज हम आ पहुँचे हैं दसवीं कड़ी, यानी इस शृंखला की अंतिम कड़ी पर। आज का रंग है 'आइटम सॊंग्‍'। आइटम सॊंग्स की परम्परा नई नहीं है। बहुत पहले से ही हमारी फ़िल्मों में आइटम सॊंग्स बनते आए हैं। हाँ, इतना ज़रूर बदलाव आया है कि पहले ऐसे गानें फ़िल्म की कहानी से जुड़े हुए लगते थे, शालीनता भी हुआ करती थी, लेकिन आज के दौर के आइटम सॊंग्स केवल सस्ती पब्लिसिटी और अंग प्रदर्शन के लिए ही इस्तेमाल में लाए जाते हैं। साहब, आइटम सॊंग किसे कहते हैं पंचम दा ने दुनिया को दिखाया था १९७५ की ब्लॊकबस्टर फ़िल्म 'शोले' में "महबूबा महबूबा" गीत को बना कर और ख़ुद उसे गा कर। जलाल आग़ा और हेलेन पर फ़िल्माया हुआ यह गीत उतना ही अमर है जितना कि फ़िल्म 'शोले'। आज के इस अंतिम कड़ी के लिए पंचम दा की आवाज़ में इस गीत से बेहतर भला और कौन सा गीत हो सकता था! फ़िल्म 'शोले' की हम और क्या बातें करें, इसके हर पहलु तो बच्चा बच्चा वाक़िफ़ है, इसलिए आइए आज इस गीत की थोड़ी चर्चा की जाए। "महबूबा मह

इस मोड़ से जाते हैं कुछ सुस्त कदम रस्ते...और उन्हीं रास्तों पर आज भी राह तकते हैं गुलज़ार पंचम का

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 309/2010/09 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' में 'पंचम के दस रंग' शृंखला में अब तक आप ने जिन ८ रंगों का आनंद उठाया वो रंग थे भारतीय शास्त्रीय संगीत, पाश्चात्य संगीत, लोक संगीत, भक्ति संगीत, हास्य रस, रोमांटिसिज़्म, क़व्वाली और कल का रंग कुछ दर्द भरा सा था जुदाई के रंग से रंगा हुआ। आज हम जिस जौनर की बात करेंगे उसके बारे में सिर्फ़ यही कह सकते हैं कि यह जौनर है गुलज़ार और पंचम की जोड़ी का जौनर। अब इस जौनर को और क्या नाम दें? गुलज़ार साहब, जिनके ग़ैर पारंपरिक बोल हमेशा गीत को एक अलग ही मुक़ाम पर ले जाया करती है, और उस पर अगर उनके चहेते दोस्त और संगीतकार पंचम के संगीत का रंग चढ़े तो फिर कहना ही क्या! इसलिए हमने सोचा कि इस जोड़ी के नाम एक गीत तो होना ही चाहिए और एक ऐसा गीत जिसमें गुलज़ार साहब के अनोखे शब्द हों, जो आम तौर पर फ़िल्मी गीतों में सुनाई नहीं देते हों। ऐसे तो उनके अनेकों गानें हैं, लेकिन हमने आज के लिए चुना है लता मंगेशकर और किशोर कुमार की आवाज़ों में फ़िल्म 'आंधी' का गीत "इस मोड़ से जाते हैं, कुछ सुस्त क़दम रस्ते, कुछ तेज़ क़दम राहें"।

सुनो कहानी:पंडित माधवराव सप्रे की "एक टोकरी भर मिट्टी"

आवाज़ के सभी श्रोताओं को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ! 'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने हरिशंकर परसाई लिखित व्यंग्य रचना " नया साल " का पॉडकास्ट अनुराग शर्मा की आवाज़ में सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं पंडित माधवराव सप्रे लिखित प्रेरणा-कथा " एक टोकरी भर मिट्टी ", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। "एक टोकरी भर मिट्टी" का कुल प्रसारण समय मात्र 4 मिनट 15 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। पं. माधवराव सप्रे (1878-1926) स्वाधीनता संग्राम के अग्रणी नायकों में से एक पंडित माधवराव सप्रे ने भारत में राजनैतिक चेतना जगाने के साथ-साथ साहित्य जगत में भी अपना योगदान दिया था. हिन्दी केसरी और छत्तीसगढ़ मित्र नामक पत्रिकाएं शुरू करने के अतिरिक्त उन्होंने सन १९०५ मे

सुहानी चांदनी रातें हमें सोने नहीं देती...जब मुकेश ने उंडेला दर्द पंचम के स्वरों में

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 308/2010/08 क ल एक गुदगुदाने वाला गीत आप ने सुना था 'पंचम के दस रंग' शृंखला के अंतर्गत। पंचम के संगीत की विविधता को बनाए रखते हुए आइए आज हम कल के गीत के ठीक विपरीत दिशा में जाते हुए एक ग़मगीन नग़मा सुनते हैं। अक्सर राहुल देव बर्मन के नाम के साथ हमें ख़ुशमिज़ाज गानें ही ज़्यादा याद आते हैं, लेकिन उन्होने कई गमज़दा गानें भी बनाए हैं जो बेहद मशहूर हुए हैं। आज के लिए हमने जिस गीत को चुना है वह बहुत ख़ास इसलिए भी है क्योंकि इस गीत के गायक को पंचम दा ने बहुत ज़्यादा गवाया नहीं है। जी हाँ, मुकेश और पंचम की जोड़ी बहुत ही रेयर जोड़ी रही है। 'धरम करम' में "इक दिन बिक जाएगा माटी के मोल" और 'कटी पतंग' फ़िल्म के गीत "जिस गली में तेरा घर ना हो बालमा" दो ऐसे गीत हैं जो सब से पहले ज़हन में आते हैं मुकेश और पंचम के एक साथ ज़िक्र से। लेकिन इस जोड़ी का एक और गीत है जो आज हमने चुना है फ़िल्म 'मुक्ति' से। "सुहानी चांदनी रातें हमें सोने नहीं देती, तुम्हारे प्यार की बातें हमें सोने नहीं देती"। आनंद बक्शी की गीत रचना है और

मेरी जीवन नैय्या बीच भंवर में गुड़ गुड़ गोते खाए....कैसे रहेंगे मुस्कुराए बिना किशोर दा और पंचम दा के सदाबहार गीत को सुनकर

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 307/2010/07 'पं चम के दस रंग' शृंखला में आज है हमारी आपको गुदगुदाने की बारी। राहुल देव बर्मन ने बहुत सारी फ़िल्मों में हास्य रस के गानें बनाए हैं। इससे पहले कि हम आज के गीत पर आएँ, हम उन तमाम हिट व सुपरहिट गीतों का ज़िक्र करना चाहेंगे जिनमें पंचम ने हास्य रस के रंग भरे हैं। नीचे हम एक पूरी की पूरी फ़ेहरिस्त दे रहे हैं, ज़रा याद कीजिए इन गीतों को, इनमें से कुछ गीत आगे चलकर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में भी शामिल होंगे ऐसी हम उम्मीद करते हैं। १. कालीराम का फट गया ढोल (बरसात की एक रात) २. गोलमाल है भई सब गोलमाल है (गोलमाल) ३. एक दिन सपने में देखा सपना (गोलमाल) ४. मास्टर जी की आ गई चिट्ठी (किताब) ५. कायदा कायदा आख़िर फ़ायदा (ख़ूबसूरत) ६. सुन सुन सुन दीदी तेरे लिए (ख़ूबसूरत) ७. नरम नरम गरम गरम (नरम गरम) ८. एक बात सुनी है चाचाजी (नरम गरम) ९. ये लड़की ज़रा सी दीवानी लगती है (लव स्टोरी) १०. दुक्की पे दुक्की हो (सत्ते पे सत्ता) ११. जयपुर से निकली गाड़ी (गुरुदेव) और इन सबसे उपर, फ़िल्म 'पड़ोसन' के दो गानें - "एक चतुर नार" तथा "मेरे भोले बलम&q

परी हो आसमानी तुम मगर तुमको तो पाना है....लगभग १० मिनट लंबी इस कव्वाली का आनंद लीजिए पंचम के साथ

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 306/2010/06 रा हुल देव बर्मन के रचे दस अलग अलग रंगों के, दस अलग अलग जौनर के गीतों का सिलसिला जारी है इन दिनों 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर। आज इसमें सज रही है क़व्वाली की महफ़िल। पंचम के बनाए हुए जब मशहूर क़व्वालियों की बात चलती है तो झट से जो क़व्वालियाँ ज़हन में आती हैं, वो हैं फ़िल्म 'दीवार' में "कोई मर जाए किसी पे ये कहाँ देखा है", फ़िल्म 'कसमें वादे' में "प्यार के रंग से तू दिल को सजाए रखना", फ़िल्म 'आंधी' में "सलाम कीजिए आली जनाब आए हैं", फ़िल्म 'हम किसी से कम नहीं' की शीर्षक क़व्वाली, फ़िल्म 'दि बर्निंग् ट्रेन' में "पल दो पल का साथ हमारा", और 'ज़माने को दिखाना है' फ़िल्म की मशहूर क़व्वाली "परी हो आसमानी तुम मगर तुमको तो पाना है", जो इस फ़िल्म का शीर्षक ट्रैक भी है। तो इन तमाम सुपरहिट क़व्वालियों में से हम ने यही आख़िरी क़व्वाली चुनी है, आशा है आप सब इस क़व्वाली का लुत्फ़ उठाएँगे। बार बार इस शृंखला में नासिर हुसैन, मजरूह सुल्तानपुरी और राहुल देव बर्मन की तिकड़

नहीं मेरे बस में उसे भूल जाना.. इसरार अंसारी के बोलों के सहारे प्यार की कसमें खा रहे हैं रूप कुमार और सोनाली

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #६५ ह मारी यह महफ़िल इस बात की गवाह रही है कि आज तक सैकड़ों ऐसे फ़नकार हुए हैं जिनके सहारे या यूँ कहिए जिनके दम पर दूसरे फ़नकार संगीत की चोटी पर पहुँच गए, लेकिन उन्हें वह सब कुछ हासिल न हुआ जिनपर उनका पहला हक़ बनता था। अब आज की गज़ल को हीं ले लीजिए। ऐसे कम हीं लोग होंगे (न के बराबर) जिन्होंने इस गज़ल को सुना न होगा, लेकिन शायर को जानने वाला कोई इक्का-दुक्का हीं मिलेगा और वह भी मिल गया तो गनीमत है। वहीं अगर हम इस बात का जिक्र करें कि इस गज़ल को गाया किसने है तब तो जवाबों की झड़ी लग जाएगी..आखिरकार जो दिखता है वही बिकता है। हम यहाँ पर इस बात की वकालत नहीं कर रहे कि गायकों को हद से ज्यादा रूतबा हासिल होता है, बल्कि समाज की कचहरी में यह अर्जी देना चाहते हैं कि शायरों को बराबर न सही तो आधा हीं महत्व मिल जाए..उनके लिए यह हीं काफी होगा। अगर हम आपको यह कहें कि इस शायर ने हीं "ज़िंदगी मौत न बन जाए संभालो यारों(सरफ़रोश)", "आँखें भी होती है दिल की जुबां(हासिल)", "क्या मेरे प्यार में दुनिया को भूला सकते हो(मनपसंद)", आखिरी निशानी(जब दिल करता है पीते हैं)&

देखो ओ दीवानों तुम ये काम न करो...धार्मिक उन्माद के नाम पर ईश्वर को शर्मिंदा करने वालों को सीख देता एक गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 305/2010/05 'पं चम के दस रंग' शृंखला का आज का रंग है भक्ति रस का। राहुल देव बर्मन ने जब जब कहानी में सिचुयशन आए हैं, उसके हिसाब से भक्ति मूलक गानें बनाए हैं। कुछ गानें गिनाएँ आपको? फ़िल्म 'अमर प्रेम' का "बड़ा नटखट है रे कृष्ण कन्हैया", फ़िल्म 'मेरे जीवन साथी' का "आओ कन्हाई मेरे धाम", फ़िल्म 'बुड्ढा मिल गया' का "आयो कहाँ से घनश्याम", फ़िल्म 'नरम गरम' का "मेरे अंगना आए रे घनश्याम आए रे", फ़िल्म 'दि बर्निंग् ट्रेन' का "तेरी है ज़मीं तेरा आसमाँ", आदि। लेकिन आज हमने जिस गीत को चुना है वह एक भक्ति गीत होने के साथ साथ उससे भी ज़्यादा उपदेशात्मक गीत है। यह गीत आज की पीढ़ी, जो क्षणिक भोग की ख़ातिर ग़लत राह पर चल पड़ते हैं, उस पीढ़ी को सही राह पर लाने की एक छोटी सी अर्थपूर्ण कोशिश है। 'फ़िल्म 'हरे रामा हरे कृष्णा' का यह गीत है "देखो ओ दीवानो तुम ये काम ना करो, राम का नाम बदनाम ना करो"। फ़िल्म की कहानी तो आपको मालूम ही है, और हमने इस फ़िल्म की चर्चा भी क

साल 2010 की पहली गीतों भरी कहानी

गुनगुनाते लम्हे- 4 आज जनवरी महीना का पहला मंगलवार है। पहला मंगलवार मतलब गुनगुनाते लम्हे का दिन। वैसे देखा जाये तो आज का दिन साल 2010 का भी पहला मंगलवार है। तो चलिए आज के दिन को गीतों भरी कहानी से रुमानी बनाते हैं। अपराजिता की दिकलश आवाज़ में गुनते हैं रश्मि प्रभा की कहानी। 'गुनगुनाते लम्हे' टीम आवाज़/एंकरिंग कहानी तकनीक अपराजिता कल्याणी रश्मि प्रभा खुश्बू आप भी चाहें तो भेज सकते हैं कहानी लिखकर गीतों के साथ, जिसे दूंगी मैं अपनी आवाज़! जिस कहानी पर मिलेगी शाबाशी (टिप्पणी) सबसे ज्यादा उनको मिलेगा पुरस्कार हर माह के अंत में 500 / नगद राशि। हाँ यदि आप चाहें खुद अपनी आवाज़ में कहानी सुनाना तो आपका स्वागत है.... 1) कहानी मौलिक हो। 2) कहानी के साथ अपना फोटो भी ईमेल करें। 3) कहानी के शब्द और गीत जोड़कर समय 35-40 मिनट से अधिक न हो, गीतों की संख्या 7 से अधिक न हो।। 4) आप गीतों की सूची और साथ में उनका mp3 भी भेजें। 5) ऊपर्युक्त सामग्री podcast.hindyugm@gmail.com पर ईमेल करें।

चुनरी संभाल गोरी उड़ी चली जाए रे...मन्ना डे और लता ने ऐसा समां बाँधा को होश उड़ जाए

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 304/2010/04 'हिं द युग्म' और 'आवाज़' की तरफ़ से, और हम अपनी तरफ़ से आज राहुल देव बर्मन यानी कि हमारे चहेते पंचम दा को उनकी पुण्यतिथि पर अर्पित कर रहे हैं अपनी श्रद्धांजली। जैसा कि इन दिनों आप 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर सुन रहे हैं उन्ही के स्वरब्द्ध किए अलग अलग रंग के, अलग अलग जौनर के गानें। पहली कड़ी में आप ने मन्ना डे और लता मंगेशकर का गाया हुआ एक बड़ा ही मीठा सा शास्त्रीय रंग वाला गाना सुना था फ़िल्म 'जुर्माना' का। आज बारी है लोक रंग की, लेकिन एक बार फिर से वही दो आवाज़ें, यानी कि लता जी और मन्ना दा के। लेकिन यह गाना बिल्कुल अलग है। जहाँ उस गाने में गायकी पर ज़ोर था क्योंकि एक संगीत शिक्षक और एक प्रतिभाशाली गायिका के चरित्रों को निभाना था, वहीं दूसरी तरफ़ आज के गाने में है भरपूर मस्ती, डांस, और छेड़-छाड़, जिसे सुनते हुए आप भी मचलने लग पड़ेंगे। संगीत, बोल और गायकी के द्वारा गाँव का पूरा का पूरा नज़ारा सामने आ जाता है इस गीत में। ग़ज़ब की मस्ती है इस गीत में। यह गीत है नासिर हुसैन की फ़िल्म 'बहारो के सपने' का "चुनरी संभाल

दूल्हा मिल गया...शाहरुख़ के कधों पर ललित पंडित के गीतों की डोली...

ताज़ा सुर ताल ०१/ २०१० सजीव - गुड्‍ मॊर्निंग् सुजॊय! और बताओ न्यू ईयर कैसा रहा? ख़ूब जम के मस्ती की होगी तुमने? सुजॊय - गुड्‍ मॊर्निंग् सजीव! न्यू ईयर तो अच्छा रहा और इन दिनों कड़ाके की ठंड जो पड़ रही है उत्तर भारत में, तो मैं भी उसी की चपेट में हूँ, इसलिए घर में ही रहा और रेडियो व टेलीविज़न के तमाम कार्यक्रमों, जिनमें २००९ के फ़िल्मों और उनके संगीत की समीक्षात्मक तरीके से प्रस्तुतिकरण हुआ, उन्ही का मज़ा ले रहा था। सजीव - ठीक कहा, पिछले कुछ दिनों में हमने २००९ की काफ़ी आलोचना, समालोचना कर ली, अब आओ कमर कस लें २०१० के फ़िल्म संगीत को सुनने और उनके बारे में चर्चा करने के लिए। सुजॊय - मैं समझ रहा हूँ सजीव कि आपका इशारा किस तरफ़ है। 'ताज़ा सुर ताल', यानी कि TST की आज इस साल की पहली कड़ी है, और इस साल के शुरु से ही हम इस सीरीज़ में इस साल रिलीज़ होने वाले संगीत को रप्त करते जाएँगे। सजीव - हाँ, और हमारी अपने पाठकों और श्रोताओं से यह ख़ास ग़ुज़ारिश है कि अब की बार आप इसमें सक्रीय भूमिका निभाएँ। केवल यह कहकर नए संगीत से मुंह ना मोड़ लें कि आपको नया संगीत पसंद नहीं। बल्कि एक विश्लेषण

ओ मेरे दिल के चैन....किशोर का अद्भुत रूमानी अंदाज़ और मजरूह-पंचम का कमाल

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 303/2010/03 शा स्त्रीय और पाश्चात्य रंगों के बाद 'पंचम के दस रंग' शृंखला की तीसरी कड़ी में आज बारी है रुमानीयत की। यानी कि रोमांटिक गाने की। युं तो आर. डी. बर्मन के संगीत में एक से एक रोमांटिक गानें बने हैं समय समय पर, लेकिन जिस गीत को हमने चुना है वह एक अलग ही मुकाम रखती है इस जौनर में। और वह गीत है १९७२ की फ़िल्म 'मेरे जीवन साथी' का, "ओ मेरे दिल के चैन, चैन आए मेरे दिल को दुआ कीजिए"। ७० का दशक वह दशक था जब पंचम ज़्यादातर तेज़ रफ़्तार वाले और जोशिले गानें लेकर आ रहे थे। लेकिन जब भी सिचुयशन ने डिमाण्ड की किसी सॊफ़्ट एण्ड सेन्सिटिव गाने की, उसमें भी पंचम अपना जादू दिखा गए। फ़िल्म 'मेरे जीवन साथी' में राजेश खन्ना के लिए एक से एक सुपर डुपर हिट गानें बनें जो किशोर दा की आवाज़ पा कर अमर हो गए। वैसे भी राजेश खन्ना की फ़िल्मों की यही खासियत हुआ करती थी कि फ़िल्म चाहे चले ना चले, उनके गानें ज़रूर कामयाब हो जाते थे। इसी फ़िल्म को अगर लें तो प्रस्तुत गीत के अलावा किशोर दा ने जो गानें इसमें गाए वो हैं "दीवाना लेके आया दिल का तराना&qu

ओ हसीना जुल्फों वाली....जब पंचम ने रचा इतिहास तो थिरके कदम खुद-ब-खुद

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 302/2010/02 'पं चम के दस रंग' शृंखला की दूसरी कड़ी के साथ हम हाज़िर हैं दोस्तों। कल आपने पहली कड़ी में सुनें थे पंचम के गीत में भारतीय शास्त्रीय संगीत की मधुरता। आज इसके बिल्कुल विपरीत दिशा में जाते हुए आप के लिए हम लेकर आए हैं एक धमाकेदार पाश्चात्य धुनों पर आधारित गीत। फ़िल्म 'तीसरी मंज़िल' राहुल देव बर्मन की पहली सुपरहिट फ़िल्म मानी जाती है, जिसमें कोई संशय नहीं है। इसी फ़िल्म में वो अपने नए अंदाज़ में नज़र आए और जिसकी वजह से उन्हे पाँच क्रांतिकारी संगीतकारों में जगह मिली। (बाक़ी के चार संगीतकार हैं मास्टर ग़ुलाम हैदर, सी. रामचंद्र, ओ. पी. नय्यर, और ए. आर. रहमान)। इन नामों को पढ़कर आप ने यह ज़रूर अंदाज़ा लगा लिया होगा कि इन्हे क्रांतिकारी क्यों कहा गया है। तो फ़िल्म 'तीसरी मंज़िल' पंचम की कामयाबी की पहली मंज़िल थी। इस फ़िल्म से फ़िल्म संगीत जगत में उन्होने जो हंगामा शुरु किया था, वह हंगामा जारी रखा अपने अंतिम समय तक। रफ़ी साहब पर केन्द्रित शृंखला के अन्तर्गत इस फ़िल्म से " दीवाना मुझसा नहीं " गीत हमने सुनवाया था और फ़िल्म की

हरिशंकर परसाई की कहानी "नया साल"

आवाज़ के सभी श्रोताओं को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ! 'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने पंडित सुदर्शन की कालजयी रचना " हार की जीत " का पॉडकास्ट शरद तैलंग की आवाज़ में सुना था। नववर्ष के शुभागमन पर आवाज़ की ओर से आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं हरिशंकर परसाई लिखित व्यंग्य " नया साल ", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। "नया साल" का कुल प्रसारण समय मात्र 4 मिनट 40 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। मेरी जन्म-तारीख 22 अगस्त 1924 छपती है। यह भूल है। तारीख ठीक है। सन् गलत है। सही सन् 1922 है। । ~ हरिशंकर परसाई (1922-1995) हर शनिवार को आवाज़ पर सुनें एक नयी कहानी साधो, मेरी कामना अक्सर उल्टी हो जाती है। ( हरिशंकर परसाई के व्यंग्य "नया साल" से

ए सखी राधिके बावरी हो गई...बर्मन दा के शास्त्रीय अंदाज़ को सलाम के साथ करें नव वर्ष का आगाज़

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 301/2010/01 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के सभी चाहनेवालों को हमारी तरफ़ से नववर्ष की एक बार फिर से हार्दिक शुभकामनाएँ! नया साल २०१० आप सब के लिए मंगलमय हो यही ईश्वर से कामना करते हैं। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला ३०० कड़ियाँ पूरी कर चुका हैं, ७ दिनों के अंतराल के बाद, आज से हम फिर एक बार हाज़िर हैं इस शूंखला के साथ और फिर उसी तरह से हर रोज़ लेकर आएँगे गुज़रे ज़माने का एक अनमोल नग़मा ख़ास आपके लिए। पहेली प्रतियोगिता का स्वरूप भी बदल रहा है आज से, तो जल्द जवाब देने से पहले शर्तों को ठीक तरह से समझ लीजिएगा! तो दोस्तों, नए साल में 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की शुरुआत एक धमाकेदार तरीके से होनी चाहिए, क्यों है न? तो फिर हो जाइए तैयार क्योंकि आज से हम शुरु कर रहे हैं क्रांतिकारी संगीतकार राहुल देव बर्मन के स्वरबद्ध किए दस अलग अलग रंगों के गीतों की एक ख़ास लघु शृंखला - पंचम के दस रंग । युं तो पंचम के दस नहीं बल्कि बेशुमार रंग हैं, लेकिन हम ने उनमें से चुन लिए लिए हैं दस रंगों को और इन दस रंगों से आपको अगले दस दिनों तक हम सराबोर करने जा रहे हैं। तो आइए आज इस नए साल की श