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संग मेरे निकले थे साजन....आज लीजिए नेपाली लोक धुन से प्रेरित ये गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 765/2011/205 न मस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में पूर्वी और उत्तर-पूर्वी भारत के लोक धुनों पर आधारित हिन्दी फ़िल्मी रचनाओं की चल रही शृंखला 'पुरवाई' में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। असम, सिक्किम और उत्तर बंगाल में एक बड़ा समुदाय नेपालियों का भी है। मूलत: नेपाल से ताल्लुख़ रखने वाले ये लोग बहुत समय पहले इन अंचलों में आ बसे थे और अब ये भारत के ही नागरिक हैं और भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग भी। नेपाली लोक-गीत इतने मधुर होते हैं कि तनाव भरी ज़िन्दगी जी रहे लोग अगर इन्हें सुनें तो जैसे मन-मस्तिष्क ताज़गी से भर जाता है। पहाड़ों की मन्द-मन्द शीतल बयार जैसे इन गीतों के साथ-साथ चलने लग जाती है। जितने भी भारत के पहाड़ी अंचल हैं, उनमें जो लोक-संगीत की परम्परा है, उनमें नेपाली लोक-संगीत एक बेहद महत्वपूर्ण स्थान रखती है। और शायद इसी वजह से हमारी हिन्दी फ़िल्मों में भी कई बार नेपाली लोक धुनों का गीतों में इस्तमाल किया गया है। सलिल चौधरी एक ऐसे संगीतकार हुए जिन्होंने असम और पहाड़ी संगीत का ख़ूब इस्तमाल किया जिनमें नेपाली लोक धुनें भी शामिल थीं। इसका सबसे महत्वपूर्ण उ

जाने क्या है जी डरता है...असम के चाय के बागानों से आती एक हौन्टिंग पुकार

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 764/2011/204 अ सम के लोक-संगीत की बात चल रही हो और चाय बागानों के संगीत की चर्चा न हो, यह सम्भव नहीं। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार, और स्वागत है शृंखला 'पुरवाई' में जिसमें इन दिनों आप पूर्व और उत्तर-पूर्व भारत के लोक धुनों पर आधारित हिन्दी फ़िल्मी गीत सुन रहे हैं। चाय बागानों की अपनी अलग संस्कृति होती है, अपना अलग रहन-सहन, गीत-संगीत होता है। दरअसल इन चाय बागानों में काम करने वाले मज़दूर असम, बंगाल, बिहार और नेपाल के रहने वाले हैं और इन सब की भाषाओं के मिश्रण से एक नई भाषा का विकास हुआ जिसे चाय बागान की भाषा कहा जाता है। यह न तो असमीया है, न ही बंगला, न नेपाली है और न ही हिन्दी। इन चारों भाषाओं की खिचड़ी लगती है सुनने में, पर इसका स्वाद जो है वह खिचड़ी जैसा ही स्वादिष्ट है। यहाँ का संगीत भी बेहद मधुर और कर्णप्रिय होता है। असम के चाय बागानों में झुमुर नृत्य का चलन है। यह नृत्य लड़कों और लड़कियों द्वारा एक साथ किया जाता है, और कभी-कभी केवल लड़कियाँ करती हैं झुमुर नृत्य। इस नृत्य में पाँव के स्टेप्स का बहुत महत्व होता है, एक क़दम ग़लत पड़ा और नृत्य बिग

जब से तूने बंसी बजाई रे....भूपेन हजारिका का स्वरबद्ध एक मधुर गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 763/2011/203 पू र्वी और पुर्वोत्तर राज्यों के लोक धुनों पर आधारित हिन्दी फ़िल्मी गीतों की लघु शृंखला 'पुरवाई' की तीसरी कड़ी में आप सभी का स्वागत है। जैसा कि पहली कड़ी में हमने कहा था कि हमारे देश के हर राज्य के अन्दर भी कई अलग अलग प्रकार के लोक गीत पाये जाते हैं; इसमे असम राज्य कोई व्यतिक्रम नहीं है। कल की कड़ी में हमने बिहु का आनद लिया था, आज प्रस्तुत है असम की भक्ति गीतों की शैली में कम्पोज़ किया एक गीत। असम के नामघरों में जिस तरह का धार्मिक संगीत गाया जाता है, यह गीत उसी शैली का है। संगीतकार भूपेन हज़ारिका नें पहली बार इसका प्रयोग अपनी असमीया फ़िल्म 'मणिराम दीवान' के "हे माई जोख़ुआ" गीत में किया था, बाद में ७० के दशक में जब उन्हे हिन्दी फ़िल्म 'आरोप' में संगीत देने का सुयोग मिला, और एक भक्ति रचना उन्हें फ़िल्म के लिए कम्पोज़ करना था, तो इसी धुन का उन्होंने दुबारा इस्तमाल किया और गायिका लक्ष्मी शंकर से यह गीत गवाया जिसके बोल थे "जब से तूने बंसी बजाई रे, बैरन निन्दिया चुराई, मेरे ओ कन्हाई, नटखट कान्हा ओ हरजाई रे काहे पकड़ी

फूले बन बगिया, खिली कली कली....बिहु रंग रंगा ये सुरीला गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 762/2011/202 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार, और बहुत बहुत स्वागत है आप सभी का इस सुरीली महफ़िल में। कल से हमने शुरु की है पूर्वी और पुर्वोत्तर भारत के लोक गीतों पर आधारित हिन्दी फ़िल्मी गीतों से सजी लघु शृंखला 'पुरवाई'। कल पहली कड़ी में आपनें सुनी अनिल बिस्वास के संगीत में मेघालय के खासी जनजाति के एक लोक धुन पर आधारित मीना कपूर की गाई फ़िल्म 'राही' की एक लोरी। आज जो गीत हम लेकर आये हैं उसके संगीतकार भी अनिल बिस्वास ही हैं और गायिका भी मीना कपूर ही हैं। पर साथ में मन्ना डे की आवाज़ भी शामिल है। पर यह गीत किसी खासी लोक धुन पर नहीं बल्कि असम की सबसे ज़्यादा लोकप्रिय लोक-गीत 'बिहु' पर आधारित है। बिहु में गीत, संगीत और नृत्य, तीनों की समान रूप से प्रधानता होती है। इनमें से कोई भी एक अगर कमज़ोर पड़ जाए, तो बात नहीं बनती। बिहु असम का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार भी है और बिहु गीत व बिहु नृत्य इस त्योहार का प्रतीक स्वरूप है। 'बिहु' शब्द 'दिमसा कछारी' जनजाति के भाषा से आया है। ये लोग मुख्यत: कृषि प्रधान होते हैं और ये ब्र

चाँद सो गया, तारे सो गए....मधुर लोरी में पुरवैया की महक लाये अनिल दा

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 761/2011/201 ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार, और बहुत बहुत स्वागत है आप सभी का इस सुरीले सफ़र में। और इस सुरीले सफ़र के हमसफ़र, मैं, सुजॉय चटर्जी, साथी सजीव सारथी के साथ और आप सभी को साथ लेकर फिर से चल पड़ा हूँ एक और नई शृंखला के साथ। दोस्तों, किसी भी देश में जितने भी प्रकार के संगीत पाये जाते हैं, उनमें से सबसे ज़्यादा लोकप्रिय संगीत होता है वहाँ का लोक-संगीत। जैसा कि नाम में ही "लोक" शब्द का प्रयोग है, यह है ही आम लोगों का संगीत, सर्वसाधारण का संगीत। लोक-संगीत एक ऐसी धारा है संगीत की जिसे गाने के लिए न तो किसी संगीत शिक्षा की ज़रूरत पड़ती है और न ही इसमें सुरों या तकनीकी बातों को ध्यान में रखना पड़ता है। यह तो दिल से निकलने वाला संगीत है जो सदियों से लोगों की ज़ुबाँ से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित होती चली आई है। हमारे देश में पाये जाने वाला लोक-संगीत यहाँ की अन्य सब चीज़ों की तरह ही विविध है, विस्तृत है, विशाल है। यहाँ न केवल हर राज्य का अपना अलग लोक-संगीत है, बल्कि एक राज्य के अन्दर भी कई कई अलग तरह के लोक-संगीत पाये जाते हैं। आज

मैं अकेला अपनी धुन में मगन - बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी अमित खन्ना से एक खास मुलाक़ात

ओल्ड इज़ गोल्ड - शनिवार विशेष - 62 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार! आज के इस शनिवार विशेषांक में हम आपकी भेंट करवाने जा रहे हैं एक ऐसे शख़्स से जो बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। एक गीतकार, फ़िल्म-निर्माता, निर्देशक, टी.वी प्रोग्राम प्रोड्युसर होने के साथ साथ इन दिनों वो रिलायन्स एन्टरटेनमेण्ट के चेयरमैन भी हैं। तो आइए मिलते हैं श्री अमित खन्ना से, दो अंकों की इस शृंखला में, जिसका नाम है 'मैं अकेला अपनी धुन में मगन'। आज प्रस्तुत है इसका पहला भाग। सुजॉय - अमित जी, बहुत बहुत स्वागत है आपका 'हिंद-युग्म' में। और बहुत बहुत शुक्रिया हमारे मंच पर पधारने के लिये, हमें अपना मूल्यवान समय देने के लिए। अमित जी - नमस्कार और धन्यवाद जो मुझे आपने याद किया! सुजॉय - सच पूछिये अमित जी तो मैं थोड़ा सा संशय में था कि आप मुझे कॉल करेंगे या नहीं, आपको याद रहेगा या नहीं। अमित जी - मैं कभी कुछ भूलता नहीं। सुजॉय - मैं अपने पाठकों को यह बताना चाहूँगा कि मेरी अमित जी से फ़ेसबूक पर मुलाकात होने पर जब मैंने उनसे साक्षात्कार के लिए आग्रह किया तो वो न

निंदिया से जागी बहार....और लता जी के पावन स्वरों से जागा संसार

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 760/2011/200 न मस्कार दोस्तों!! आज हम आ पहुंचे हैं लता जी पर आधारित श्रृंखला ‘मेरी आवाज ही पहचान है....’ की अंतिम कड़ी पर. लता जी ने हजारों गाने गाये और उनमें से १० गाने चुन कर प्रस्तुत करना बड़ा ही मुश्किल है. मजे की बात तो यह है कि हमने आपने ये सारे गाने कई बार सुने हैं पर हमेशा इन गानों में ताजगी झलकती है. आप इन गानों को सुन कर बोर नहीं हो सकते. बेमिसाल और सर्वदा शीर्ष पर रहने के बावजूद लता ने बेहतरीन गायन के लिए रियाज़ के नियम का हमेशा पालन किया, उनके साथ काम करने वाले हर संगीतकार ने यही कहा कि वे गाने में चार चाँद लगाने के लिए हमेशा कड़ी मेहनत करती रहीं. लता जी के लिए संगीत केवल व्यवसाय नहीं है. उनकी जीवन शैली में ही एक प्रकार का संगीत है. लता जी ने अपना संपूर्ण जीवन संगीत को समर्पित कर दिया. संगीत ही उनके जीवन की सबसे बडी़ पूंजी है. आज के युग में जब संगीत के नाम पर फूहड़ता और अश्लीलता परोसी जा रही है और लोकप्रियता के लिए गायक हर परिस्थिति से समझौता करने को तैयार है, हमारे लिए लता जी एक प्रेरणा-ज्योति की तरह हैं जो संगीत के अंधकारपूर्ण भविष्य को देदीप्यमान

मिला है किसी का झुमका....नटखट बोल शैलेन्द्र के और चहकती आवाज़ लता की

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 758/2011/198 ‘आ वाज’ के सभी पाठकों और श्रोताओं को अमित तिवारी का नमस्कार. लता जी का कायल हर संगीतकार था. मदन मोहन ने एक बार कहा था कि मैं इतनी मुश्किल धुनें बनाता हूँ कि लता के सिवा कोई और इन्हें नहीं गा सकता. एक बार फिल्म उद्योग के साजिंदों की हड़ताल हुई थी तब संगीतकारों की मीटिंग में सचिन देव बर्मन कई बार पूछ चुके थे कि "भाई लोता गायेगा न?" साथी संगीतकार कहते "हाँ दादा", तो दादा यह कह कर फिर चुप हो जाते, "तो फिर हम ‘सेफ’ हैं." लता जी की एक सबसे बड़ी खासियत है उनका दृढ निश्चय. कुछ लोग उन्हें इसके लिए अक्खड़ मानते हैं. उनके सिद्धांतों से उन्हें कोई नहीं डिगा सकता. उन्होंने पहले से ही तय कर रखा था कि फूहड़ व अश्लील शब्दों के प्रयोग वाले गीत वे नहीं गाएंगी. राजकपूर द्वारा निर्देशित फिल्म ‘संगम’ का गीत ‘मैं क्या करूं राम मुझे बुढ्ढा मिल गया’, जैसे गाने को वे आज भी अपनी भारी भूल मानती हैं. उन्होंने अपने कॅरियर में केवल तीन कैबरे गीत गाए. ये तीन कैबरे गीत थे ‘मेरा नाम रीटा क्रिस्टीना’ (फिल्म-अप्रैल फूल, 1964), ‘मेरा नाम है जमीला’-( फिल

रातों को जब नींद उड़ जाए....सलिल दा के संगीत की मासूमियत और लता

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 757/2011/197 न मस्कार साथियों, लता जी अपने आप में एक ऐसी किताब हैं जिसको जितना भी पढ़ो कम ही है. गाना चाहे कैसा भी हो अगर उनकी आवाज आ जाए तो क्या कहना? गाने में शक्कर अपने आप घुल जाती है. ओ.पी.नय्यर को छोड़कर लता मंगेशकर ने हर बड़े संगीतकार के साथ काम किया, मदनमोहन की ग़ज़लें और सी रामचंद्र के भजन लोगों के मन-मस्तिष्क पर अमिट छाप छोड़ चुके हैं. जितना भी आप सुनें आपका मन नही भरेगा. ओ.पी.नय्यर साहब के साथ लता जी ने कभी काम नहीं करा.एक बार लता जी ने हरीश भिमानी जी से कहा " आप शायद जानते होंगे, कि मैंने नय्यर साहब के लिए गीत क्यों नहीं गाये! ". हरीश जी ने कहा कि मैंने सुना है कि बहुत पहले, नय्यर साहब के शुरुआत के दिनों में, फिल्म सेन्टर में एक रिकॉर्डिंग करते समय आप "सिंगर्स बूथ" में गा रही थीं और वह 'मिक्सर' पर रिकॉर्डिस्ट और निर्देशक के साथ थे और आपने 'इन्टरकोम' पर उन्हें कुछ अपशब्द कहते हुए सुना और वहीँ के वहीं हेडफोन्स उतार कर स्टूडियो से सीधे घर चल दीं, किसी को बताये बगैर. बस फिर उनके लिए कभी गाया ही नहीं. " अच्छा...? &q

कान्हा आन पड़ी मैं तेरे द्वार.....निर्गुण भक्ति और लता

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 756/2011/196 न मस्कार दोस्तों. आज हम आ पहुंचे हैं लता जी को समर्पित ‘मेरी आवाज ही पहचान है....’ श्रृंखला की सातवीं कड़ी पर. सबसे पहले तो ऊँचाइयों पर पहुँचाना कठिन होता है और जब उसे हासिल कर लिया जाए तब वहाँ पर मजबूती के साथ टिके रहना उससे भी कठिन होता है. और वही लता जी के साथ हुआ. वो उस मुकाम पर पहुँची और उन पर कई आरोप लगाये गए. एक संगीन आरोप लगा ‘मोनोपोली’ का. आरोप लगा था कि लता जी के कहने पर म्यूजिक डायरेक्टर दूसरों को गाने का मौका ही नहीं देते. लता जी ही निर्णय करती हैं कि कौन म्यूजिक डायरेक्टर होगा, कितने गाने होंगे आदि आदि ... लता जी से जब पूछा गया था तो वो नाराज होकर बोलीं कि अगर मुझे ही तय करना होता कि म्यूजिक डायरेक्टर कौन होगा तो तब तो आधी से ज्यादा फिल्मों में मेरे भाई हृदयनाथ को म्यूजिक डायरेक्टर होना चाहिए था. इसके विपरीत कविता कृष्णमूर्ती ने एक साक्षात्कार में एक अनुभव शेअर किया था. १९८२ में कविता जी ने निर्माता राजकुमार कोहली की एक निर्माणाधीन फिल्म के लिए, बप्पी दा के संगीत निर्देशन में ‘डबिंग’ गायिका के तौर पर एक गाना गाया था, यह जानते हुए, कि बा

चंदा मामा आरे आवा...एक मधुर लोरी...अरे अरे सो मत जाईयेगा

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 756/2011/196 सु रों की मल्लिका लता मंगेशकर पर आधारित श्रंखला ‘मेरी आवाज ही पहचान है....' की छठी कड़ी में मैं अमित तिवारी आप सभी गुणी श्रोताओं और पाठकों का स्वागत करता हूँ. लता जी का पसन्दीदा वाद्य है ‘बाँसुरी'. पंडित पन्नालाल घोष की बाँसुरी के लिए उन्होंने कहा था कि 'उनकी बाँसुरी बजती ही नहीं थी, बल्कि गाती थी. फिल्म बसंत बहार के गाने ‘मैं पिया तेरी तू माने या न माने’ में दो गायिकाएं हैं, मैं और पन्नाबाबू की बाँसुरी.' शहनाई उन्हें उस्ताद बिस्मिल्लाह खान के अलावा किसी और की पसंद ही नहीं आयी. युसूफ भाई यानी कि दिलीप कुमार से लता जी की मुलाकात बड़े ही अजीब ढंग से हुई थी. एक बार अनिल बिस्वास और लता जी ‘फिल्मिस्तान स्टूडियो’ लोकल ट्रेन से जा रहे थे. यह वो समय था जब इन सितारों के पास गाड़ियां नहीं हुआ करती थीं और ट्रेनों में भीड़ भी नहीं हुआ करती थी. बांद्रा स्टेशन से दिलीप कुमार उसी डिब्बे में चढ़े. अनिल दा से दुआ सलाम हुआ. ये लोग आमने-सामने बैठे हुए थे तो अनिल दा ने कहा की युसूफ ये लता मंगेशकर है बहुत अच्छा गाती हैं. तो उन्होंने कहा कि कहाँ की है तो

आप यूँ फासलों से गुजरते रहे...रहस्य की वादियों में हुस्न की पुकार और लता

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 755/2011/195 ल ता जी के बारे में जितना लिखा जाये कम ही है. तो आज फिर से "मेरी आवाज ही पहचान है...." श्रृंखला में उनके बारे में कुछ और रोचक बातों को यहाँ पर प्रस्तुत करा जाए. एक बार एक रेडियो इंटरव्यू के दौरान हरीश जी ने लता जी से एक सवाल पूछा थे, " क्या आपको कभी ऐसा महसूस हुआ है, कि आपको अपनी योग्यता से ज्यादा मिला है, धन, ऐश्वर्य, ख्याति? इस विषय में कोई अपराध बोध? " लता जी बड़ी सरलता से बोलीं, " मैं इश्वर की आभारी हूँ कि उन्होंने मुझे जो कुछ दिया है बहुत ज्यादा दिया है. मेरे से अच्छे गाने वाले और समझने वाले बहुत सारे लोग हैं पर जो कुछ शोहरत मुझे मिली है वह बहुत कम लोगों को मिलती है. मेरे से अच्छा गाने वाले, जैसे बड़े गुलाम अली खान साहब, या फिर अमीर खान साहब. सहगल साहब जैसा तो मैं कभी नहीं गा सकती. " मधुबाला से लेकर माधुरी दीक्षित और काजोल तक हिंदी सिनेमा के स्क्रीन पर शायद ही ऐसी कोई बड़ी तारिका रही हो जिसे लता मंगेशकर ने अपनी आवाज़ उधार न दी हो. बीस से अधिक भारतीय भाषाओं में लता ने 30 हज़ार से अधिक गाने गए, 1991 में ही गिनीस बुक

ए दिले नादान, आरज़ू क्या है....इसके सिवा कि लता जी को मिले लंबी उम्र और उनकी आवाज़ का साया साथ चले हमेशा हमारे

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 754/2011/194 ‘ओ ल्ड इज गोल्ड’ के सभी पाठकों की तरफ से लता जी को जन्मदिवस की बहुत बहुत शुभकामनाएँ. आज लता जी ने अपने जीवन के ८२ साल पूरे कर लिए हैं. हम सभी की कामना है कि वो दीर्घायु हों और हमेशा स्वस्थ रहें. लता जी के लिए अभिनेता-निर्माता ओम प्रकाश जी ने एक बार कहा था, " हे ईश्वर, दुनिया में जितने लोग हैं, उनकी जिंदगी से तू सिर्फ़ एक सेकंड कम कर दे और वह लताजी की जिन्दगी में जोड़ दे. " ऐसी प्रतिभा के लिए एक सेकंड तो क्या १ घंटा भी कम है. लता जी के ८० वें जन्मदिन पर आईबीएन7 के लिए जावेद अख्तर ने उनका इंटरव्यू लिया था. जावेद जी ने कहा था – " सदियों में एकाध बार ऐसा होता है कि कोई इंसान इतना बड़ा होता है कि उसकी तारीफ नहीं की जाती। उसकी तारीफ इसलिए नहीं की जाती क्योंकि उसकी तारीफ की नहीं जा सकती। ऐसे शब्द ही नहीं होते। उसकी तारीफ की जरूरत भी नहीं होती। कोई नहीं कहता कि शेक्सपियर बहुत अच्छा राइटर था। कोई नहीं कहता कि माइकल एंजेलो बहुत अच्छे स्टेच्यू बनाता था। कोई नहीं कहता कि बीथोवन बहुत अच्छा म्यूजिक बनाता था। शेक्सपियर नाम अपने आप ही तारीफ है। उसी त

ए री मैं तो प्रेम दीवानी....भक्ति, प्रेम और समर्पण के भावों से ओत प्रेत ये गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 753/2011/193 न मस्कार! आप सभी संगीत रसिकों का स्वागत है ‘आवाज’ की महफ़िल में. आज मैं हाजिर हूँ ‘ओल्ड इज गोल्ड’ में लता जी के ऊपर आधारित श्रृंखला ‘मेरी आवाज ही पहचान है....’ की तीसरी कड़ी लेकर. लता जी का बचपन ही शुरू हुआ संगीत के आँचल से. सबसे पहले उन्होंने अपने पिताजी को गाते हुए सुना. के. एल. सहगल की तो भक्त हैं लता जी. छह साल की उम्र में के.एल. सहगल की जो पहली फिल्म देखी थी वो थी ‘चण्डीदास’. फिल्म देख कर घर आयीं तो एलान कर दिया कि मैं तो बड़े होकर सहगल से ही शादी करूंगी. लता जी के गुरु उनके पिता मास्टर दीनानाथ मंगेशकर थे. एक बार लता जी से पूछा गया कि पिता से संगीत की शिक्षा के अलावा कोई ऐसी सीख मिली, जो मन में हमेशा के लिए अंकित हो गयी हो? उन्हें जवाब सोचना नहीं पड़ा और तुरंत उत्तर आया “ हाँ, उन्होंने मुझसे कहा था कि ‘अगर एक बार तुम्हे विश्वास हो जाये कि जो तुम कर रही हो वह सत्य है, सही है, बस...तो फिर कभी किसी से डरना नहीं. ’”. पिता अपनी पुत्री से बहुत प्यार करते थे. लता की माई (माँ) ने बताया था, मास्टर दीनानाथ जी, ने जिन्हें माई ‘मालक’ कहा करती थीं, अपनी

उड़ के पवन के रंग चलूंगी....उन्मुक्त भावनाओं की उड़ान और लता

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 752/2011/192 "मे री आवाज ही पहचान है...." की दूसरी कड़ी में मैं अमित तिवारी आप सब लोगों का तहेदिल से स्वागत करता हूँ. लता जी एक ऐसा नाम है जिसे किसी पहचान की जरूरत नहीं है. लता नाम लेते ही आँखों में जो सूरत आती है वो लता दीदी की होती है. आज कुछ और बातें उनके बारे में. लता जी अपने छोटे भाई और बहनों को छोड़ कर किसी को कभी भी 'तुम' नहीं कहतीं - चाहे वो उम्र में कितना ही छोटा क्यों न हो. सबको सम्मान देना आता है. बात है भी सही, अगर आप दूसरों को सम्मान दोगे तो आपको भी मिलेगा. लता जी की एक और खासियत थी कि वो अपनी रिकॉर्डिंग केवल तभी कैंसिल करती थीं जब उन्हें लगता था कि उनका गला गाने के साथ न्याय नहीं कर पायेगा. सुबह उठ कर, रियाज़ करते वक्त,जहाँ उनको अपनी आवाज उन्नीस-बीस लगी, वहीं उनका फोन आ जाता था कि 'आज तो माफ ही करें'. देवानन्द ने एक बार कहा था कि 'ऐसा आज तक नहीं सुना गया कि लता जी किसी बड़े म्यूजिक डायरेक्टर या बैनर के लिए, किसी नए प्रोड्यूसर या कम्पोजर की रिकॉर्डिंग केंसिल करी हो." यानी अपनी गुणवत्ता पर रत्ती-भर भी संदेह हो तो रि

ये रातें ये मौसम, ये हँसना हँसाना...जब लता ने दी श्रद्धाजन्ली पंकज मालिक को

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 751/2011/191 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड’ के सभी श्रोता-पाठकों का मैं, सुजॉय चटर्जी, साथी सजीव सारथी के साथ हार्दिक स्वागत करता हूँ। श्री कृष्णमोहन मिश्र द्वारा प्रस्तुत पिछली शृंखला के बाद आज से हम अपनी १०००-वें अंक की यात्रा का अंतिम चौथाई भाग शुरु कर रहे हैं, यानी अंक-७५१। आज से शुरु होनेवाली नई शृंखला को प्रस्तुत करने के लिए हमने आमन्त्रित किया है ‘ओल्ड इज़ गोल्ड’ के नियमित श्रोता-पाठक व पहेली प्रतियोगिता के सबसे तेज़ खिलाड़ी श्री अमित तिवारी को। आगे का हाल अमित जी से सुनिए… ------------------------------------------------------------------------------- नमस्कार! "ओल्ड इज गोल्ड" पर आज से आरम्भ हो रही श्रृंखला कुछ विशेष है.बिलकुल सही पढ़ा आपने. यह श्रृंखला दुनिया की सबसे मधुर आवाज को समर्पित है. एक ऐसी आवाज जो न केवल भारत बल्कि दुनिया के कोने कोने में छाई हुई है. जिस आवाज को सुनकर आदमी एक अलग ही दुनिया में चला जाता है. ये श्रृंखला लता दीदी पर आधारित है.२८ सितम्बर लता जी का जन्मदिवस है ओर इससे बेहतर तरीका क्या हो सकता है उनका जन्मदिन मनाने का कि पूरी श्रृंखल