इंडियन राग सीरीज की पहली कड़ी में सुनिए राग" राग काफी में ठुमरी होरी" से जुड़ी जानकारियाँ
राग, रेडियो प्लेबैक इंडिया की एक कोशिश है भारतीय शास्त्रीय संगीत की बारीकियों को सरल भाषा में समझने समझाने की, प्रोग्राम हेड संज्ञा टंडन द्वारा संचालित इस कार्यक्रम हर सप्ताह बात होगी सुर, ताल, स्वर, लय और और वाध्य की। अगर आप भी शास्त्रीय संगीत में रुचि रखते हैं या फिर किसी न किसी रूप में शास्त्रीय संगीत परंपरा से जुड़े हुए हों तो संपर्क करें।
आलेख: श्री कृष्णमोहन मिश्र
वाचन: संज्ञा टंडन
फाल्गुन मास में शीत ऋतु का क्रमशः अवसान और ग्रीष्म ऋतु की आगमन होता है। यह परिवेश उल्लास और श्रृंगार भाव से परिपूर्ण होता है। प्रकृति में भी परिवर्तन परिलक्षित होने लगता है। रस-रंग से परिपूर्ण फाल्गुनी परिवेश का एक प्रमुख राग काफी होता है। स्वरों के माध्यम से फाल्गुनी परिवेश, विशेष रूप से श्रृंगार रस की अभिव्यक्ति के लिए राग काफी सबसे उपयुक्त राग है। इस राग में ठुमरी, टप्पा, खयाल, तराना और भजन सभी विधायें उपलब्ध हैं। आज के अंक में हम आपसे राग काफी की कुछ होरी की चर्चा करेंगे, साथ ही गायिका अच्छन बाई, विदुषी गिरिजा देवी और पण्डित भीमसेन जोशी के बारे में कुछ जानकारियां भी देने की कोशिश करेंगे।
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