स्वरगोष्ठी – 510 में आज
देशभक्ति गीतों में शास्त्रीय राग – 14
"बार-बार हाँ, बोलो यार हाँ...", जीत के लिए उत्साहवर्धन ,राग जोग के सुरों में ढल कर
"बार-बार हाँ..." गीत में देशभक्ति का जस्बा और जीत हासिल करने की तीव्र इच्छा, और साथ ही अपने दल के सदस्यों का उत्साहवर्धन, ये सारे भाव कूट-कूट कर भरा हुआ है। एक कविता की शैली में लिखे इस गीत को संगीतबद्ध करते समय ए. आर. रहमान ने राग जोग के सुरों का आधार लिया। यह कमाल की बात है कि हिन्दी फ़िल्मी गीतों में राग जोग का प्रयोग शायद ही कभी सुनने को मिला हो। आशा भोसले की गायी ग़ैर-फ़िल्मी ग़ज़ल "दिल धड़कने का सबब याद आया, वो तेरी याद थी अब याद आया" में इस राग का प्रयोग मिलता है। हिन्दुस्तानी शैली का राग होने के बावजूद दक्षिण के संगीतकारों ने अपने गीतों में इस राग का प्रयोग किया है। इलैयाराजा और ए. आर. रहमान ने सर्वाधिक इस राग का प्रयोग अपने तमिल गीतों में किया। रहमान के संगीत में आशा भोसले का गाया "वेन्निला वेन्निला", बॉम्बे जयश्री और पी. उन्नीकृष्णन् की आवाज़ों में "नरुमुगइये नरुमुगइये", कुणाल गांजावाला और साधना सरगम का गाया "स्पाइडरमैन" और ए. आर. रहमान की आवाज़ में "संदोशा कन्निरे" जैसे तमिल फ़िल्मी गीत राग जोग पर ही आधारित हैं। पर हिन्दी फ़िल्मों में ’लगान’ के इस गीत के अलावा रहमान या अन्य किसी संगीतकार का शायद ही कोई और गीत इस राग पर आधारित हो। राग जोग की विशेषताओं पर बात करने से पहले लीजिए इस गीत का आनन्द लीजिए जिसे ए. आर. रहमान, श्रीनिवास और साथियों ने गाया है।
गीत : “बार-बार हाँ...” , फ़िल्म : लगान, गायक: ए. आर. रहमान, श्रीनिवास, साथी
राग जोग को काफ़ी थाट के अन्तर्गत माना जाता है। इस राग में ऋषभ और धैवत स्वर वर्जित होते हैं। राग की जाति औड़व-औड़व है। अर्थात इसके आरोह और अवरोह में पाँच-पाँच स्वर प्रयोग किये जाते हैं। शुद्ध निशाद की जगह कोमल निशाद का प्रयोग किया जाता है। अवरोह में कोमल गांधार का भी प्रयोग किया जाता है। राग का वादी स्वर मध्यम और संवादी स्वर षड़ज होता है। राग जोग के गायन-वादन का उपयुक्त समय रात्रि का दूसरा प्रहर माना गया है। उत्तरांग में निषाद लगाते समय कभी कभी षड़ज को कण स्वर के रूप में प्रयोग करते हैं जैसे - ग म प (सां) कोमल नि सां। यह एक मींड प्रधान राग है जिसे तीनों सप्तकों में उन्मुक्त रूप से गाया जा सकता है। यह एक गम्भीर प्रकृति का राग है। कन्नड़ नाट में राग जोग और तिलक कामोद का प्रयोग बहुतायत में मिलता है। जोग सम्पूर्ण पुर्वांग प्रधान राग है जो राग तिलंग के समीप है। राग जोग को शुद्ध रूप से अनुभव करने के लिए आइए अब हम सरोद और वायलिन की एक जुगलबन्दी सुनते हैं दो महान कलाकारों से। सरोद पर हैं उस्ताद अली अक्बर ख़ाँ और वायलिन पर डॉ. एल. सुब्रह्मण्यम। इस जुगलबन्दी को ’संगीत संगम’ ऐल्बम के छठे वॉल्युम में शामिल किया गया है।
ठुमरी : तुम काहे को नेहा लगाये...”, राग : तिलंग, गायक : इन्दुबाला देवी
अपनी बात
कुछ तकनीकी समस्या के कारण हम अपने फेसबुक के मित्र समूह के साथ “स्वरगोष्ठी” का लिंक साझा नहीं कर पा रहे हैं। सभी संगीत अनुरागियों से अनुरोध है कि हमारी वेबसाइट http://radioplaybackindia.com अथवा http://radioplaybackindia.blogspot.com पर क्लिक करके हमारे सभी साप्ताहिक स्तम्भों का अवलोकन करते रहें। “स्वरगोष्ठी” के वेब पेज के दाहिनी ओर निर्धारित स्थान पर अपना ई-मेल आईडी अंकित कर आप हमारे सभी पोस्ट के लिंक को नियमित रूप से अपने ई-मेल पर प्राप्त कर सकते है। “स्वरगोष्ठी” की पिछली कड़ियों के बारे में हमें अनेक पाठकों की प्रतिक्रिया लगातार मिल रही है। हमें विश्वास है कि हमारे अन्य पाठक भी “स्वरगोष्ठी” के प्रत्येक अंक का अवलोकन करते रहेंगे और अपनी प्रतिक्रिया हमें भेजते रहेंगे। आज के इस अंक अथवा श्रृंखला के बारे में यदि आपको कुछ कहना हो तो हमें अवश्य लिखें। यदि आपका कोई सुझाव या अनुरोध हो तो हमें soojoi_india@yahoo.co.in अथवा sajeevsarathie@gmail.com पर अवश्य लिखिए। अगले अंक में रविवार को प्रातः सात बजे “स्वरगोष्ठी” के इसी मंच पर हम एक बार फिर संगीत के सभी अनुरागियों का स्वागत करेंगे।
कृष्णमोहन मिश्र जी की पुण्य स्मृति को समर्पित
विशेष सलाहकार : शिलाद चटर्जी
प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी
स्वरगोष्ठी – 510: "बार-बार हाँ, बोलो यार हाँ ..." : राग जोग :: SWARGOSHTHI – 510 : RAG JOG
Comments