स्वरगोष्ठी – 508: "चलो झूमते सर से बांधे कफ़न ..." : राग - कोमल ऋषभ आसावरी :: SWARGOSHTHI – 508 : RAG - KOMAL RISHABH ASAVARI
स्वरगोष्ठी – 508 में आज
देशभक्ति गीतों में शास्त्रीय राग – 12
"चलो झूमते सर से बांधे कफ़न...", कोमल ऋषभ आसावरी के सुरों के द्वारा सैनिकों का उत्साहवर्धन
संगीतकार चित्रगुप्त ने प्रस्तुत गीत में एक अनोखा प्रयोग किया है। गीत के सुरों में राग कोमल ऋषभ आसावरी की छाया है, पर जो ताल है, वह पश्चिमी वाल्ट्ज़ रिदम की शैली का है। यानी कि सुरों में भारतीय शास्त्रीय संगीत की छाया और ताल में पाश्चात्य रिदम। वैसे वाल्ट्ज़ रिदम का प्रयोग चित्रगुप्त ने कई बार किया है। 1952 की फ़िल्म ’Sindbad The Sailor' में मोहम्मद रफ़ी और शमशाद बेगम का गाया गीत "अदा से झूमते हुए, दिलों को चूमते हुए" और 1968 की फ़िल्म ’वासना’ के प्रसिद्ध गीत "ये पर्बतों के दाएरे, ये शाम का धुआं" में वाल्टज़ का सुन्दर प्रयोग उन्होंने किया था। फ़िल्म ’ऊँचे लोग’ के मशहूर गीत "जाग दिल-ए-दीवाना, रुत जागी वस्ल-ए-यार की" में भी वायलिन पर वाल्ट्ज़ क़िस्म का रिदम उन्होंने डाला था। 1962 की फ़िल्म ’बेज़ुबान’ के "दीवाने तुम दीवाने हम" में तबला और वाल्ट्ज़ का बारी-बारी से कमाल का प्रयोग चित्रगुप्त ने किया। 1959 की फ़िल्म ’डाका’ में रफ़ी साहब और गीता दत्त के गाये हास्य गीत "दिल फाँसे, दे के झाँसे" में भी वाल्ट्ज़ का अद्भुत प्रयोग सुनने को मिलता है। चर्चा कोमल ऋषभ आसावरी राग की करने से पहले आइए फ़िल्म ’काबली ख़ान’ के इस सुन्दर देशभक्ति गीत को सुन लिया जाए।
गीत : “चलो झूमते सर से बांधे कफ़न...” , फ़िल्म : काबली ख़ान, गायक: लता मंगेशकर, साथी
आसावरी थाट का जनक अथवा आश्रय राग आसावरी ही कहलाता है। राग आसावरी के आरोह में पाँच स्वर और अवरोह में सात स्वरों का उपयोग किया जाता है। अर्थात यह औडव-सम्पूर्ण जाति का राग है। इस राग के आरोह में सा, रे, म, प, ध(कोमल), सां तथा अवरोह में; सां,नि(कोमल),ध(कोमल),म, प, ध(कोमल), म, प, ग(कोमल), रे, सा, स्वरों का प्रयोग किया जाता है। जब कोई संगीतज्ञ इस राग में शुद्ध ऋषभ के स्थान पर कोमल ऋषभ प्रयोग करते हैं तो इसे राग कोमल ऋषभ आसावरी कहा जाता है। कोमल ऋषभ आसावरी के आरोह में ग और नि वर्जित होता है, और आरोह और अवरोह में केवल कोमल रे का प्रयोग किया जाता है। मुख्य स्वरों को गाते समय हम जिन अन्य स्वरों को छूते हुए गुज़रते हैं, या जिनको बहुत हल्के से छू कर आगे बढ़ जाते हैं, यानी जब हम आगे अथवा पीछे के स्वर को स्पर्श मात्र करें तो स्पर्श किए गए स्वर को कण स्वर कहते हैं। कोमल ऋषभ आसावरी में कण-स्वर (स्पर्श स्वर) के रूप में आरोह में ’ध’ का कण ’नि’ से एवं अवरोह में ’ग’ का ’रे’ से और ’रे’ का ’ग’ से होता है। इस राग को गाने का उचित समय दिन का प्रथम प्रहर है। इस राग को शुद्ध रूप में अनुभव करने के लिए हम यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं पंडित वेंकटेश कुमार का गायन। उनके साथ गायन और तानपुरे पर संगत किया है शिवराज पाटिल और रमेश कोलकुण्डा ने। तबले पर संगति की है भरत कामत ने, और हारमोनियम पर हैं अजय जोगलेकर।
ख़याल : प्रभु मेरो... सकल जगत को...”, राग : कोमल ऋषभ आसावरी, गायक : पंडित वेंकटेश कुमार
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कृष्णमोहन मिश्र जी की पुण्य स्मृति को समर्पित
विशेष सलाहकार : डॉ. हरिणा माधवी और शिलाद चटर्जी
प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी
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