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राग भैरव : SWARGOSHTHI – 435 : RAG BHAIRAV






स्वरगोष्ठी – 435 में आज

भैरव थाट के राग – 1 : राग भैरव

विदुषी डॉ. प्रभा अत्रे से राग भैरव में निबद्ध रचना और लता मंगेशकर से फिल्मी गीत सुनिए




डॉ. प्रभा अत्रे
लता  मंगेशकर
“रेडियो प्लेबैक इण्डिया” के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज से हमारी नई श्रृंखला “भैरव थाट के राग” की पहली कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। भारतीय संगीत के अन्तर्गत आने वाले रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट-व्यवस्था है। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट, रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया था। वर्तमान समय में रागों के वर्गीकरण के लिए यही पद्धति प्रचलित है। भातखण्डे जी द्वारा प्रचलित ये 10 थाट हैं- कल्याण, बिलावल, खमाज, भैरव, पूर्वी, मारवा, काफी, आसावरी, तोड़ी और भैरवी। इन्हीं 10 थाटों के अन्तर्गत प्रचलित-अप्रचलित सभी रागों को सम्मिलित किया गया है। भारतीय संगीत में थाट, स्वरों के उस समूह को कहते हैं जिससे रागों का वर्गीकरण किया जा सकता है। पन्द्रहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में 'राग तरंगिणी’ ग्रन्थ के लेखक लोचन कवि ने रागों के वर्गीकरण की परम्परागत 'ग्राम और मूर्छना प्रणाली’ का परिमार्जन कर मेल अथवा थाट प्रणाली की स्थापना की। लोचन कवि के अनुसार उस समय सोलह हज़ार राग प्रचलित थे। इनमें 36 मुख्य राग थे। सत्रहवीं शताब्दी में थाटों के अन्तर्गत रागों का वर्गीकरण प्रचलित हो चुका था। थाट प्रणाली का उल्लेख सत्रहवीं शताब्दी के ‘संगीत पारिजात’ और ‘राग विबोध’ नामक ग्रन्थों में भी किया गया है। लोचन कवि द्वारा प्रतिपादित थाट प्रणाली का प्रयोग लगभग 300 सौ वर्षों तक होता रहा। उन्नीसवीं शताब्दी के अन्तिम और बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भिक दशकों में पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे ने भारतीय संगीत के बिखरे सूत्रों को न केवल संकलित किया बल्कि संगीत के कई सिद्धान्तों का परिमार्जन भी किया। भातखण्डे जी द्वारा निर्धारित दस थाट में से चौथा थाट भैरव है। प्रत्येक थाट का एक आश्रय अथवा जनक राग होता है और शेष जन्य राग कहलाते हैं। इस श्रृंखला में हम भैरव थाट के जनक और जन्य रागों पर चर्चा करेंगे। आज के अंक में भैरव थाट के जनक राग “भैरव” पर चर्चा करेंगे। आज से आरम्भ हो रही श्रृंखला के पहले अंक में पहले हम आपको सुप्रसिद्ध संगीत-विदुषी डॉ. प्रभा अत्रे के स्वर में राग भैरव, द्रुत तीनताल में निबद्ध एक शिवस्तुति सुनवाएँगे और फिर इसी राग पर आधारित एक फिल्मी गीत लता मंगेशकर की आवाज़ में प्रस्तुत करेंगे। 1956 में प्रदर्शित फिल्म “जागते रहो” से शैलेंद्र का लिखा और सलिल चौधरी का स्वरबद्ध किया एक गीत – “जागो मोहन प्यारे...” का रसास्वादन आप करेंगे।



आज हमारी चर्चा का थाट है- ‘भैरव’। इस थाट में प्रयोग किये जाने वाले स्वर हैं- सा, रे॒(कोमल), ग, म, प, ध॒(कोमल), नि । अर्थात ऋषभ और धैवत स्वर कोमल और शेष स्वर शुद्ध प्रयोग होते हैं। थाट ‘भैरव’ का आश्रय राग ‘भैरव’ ही है। यह सम्पूर्ण-सम्पूर्ण जाति का राग है, अर्थात इसके आरोह और अवरोह में सात-सात स्वरों का प्रयोग किया जाता है। राग ‘भैरव’ में कोमल ऋषभ और कोमल धैवत का प्रयोग होता है। शेष सभी स्वर शुद्ध होते हैं। राग में आरोह के स्वर- सा, रे(कोमल), ग, म, प, ध(कोमल), नि, सां तथा अवरोह के स्वर- सां, नि, ध(कोमल), प, म, ग, रे(कोमल), सा होते हैं। इस राग का वादी स्वर धैवत और संवादी स्वर ऋषभ होता है। इस राग के गायन-वादन का समय प्रातःकाल होता है। राग भैरव के स्वर समूह भक्तिरस का सृजन करने में समर्थ हैं। इस राग का स्वरूप स्पष्ट करने के लिए अब हम आपको विदुषी (डॉ.) प्रभा अत्रे के स्वरों में राग भैरव का एक द्रुत खयाल प्रस्तुत करते हैं। संगीत के प्रदर्शन, शिक्षण-प्रशिक्षण और संगीत संस्थाओं के मार्गदर्शन में संलग्न प्रभा जी के स्वर में राग भैरव में निबद्ध खयाल अंग की एक रचना सुनते हैं। यह आदिदेव शिव की वन्दना करती एक मोहक रचना है, जो द्रुत तीनताल में निबद्ध है।

राग भैरव : ‘हे आदिदेव शिव शंकर, भोर भई जागो करुणाकर...’ : डॉ. प्रभा अत्रे


आज के प्रातःकालीन भैरव थाट का आश्रय राग भैरव है। इस राग का गायन-वादन सन्धिप्रकाश काल में भी किया जाता है। राग भैरव भी सम्पूर्ण जाति का राग है किन्तु इसमें ऋषभ और धैवत स्वर कोमल प्रयोग होता है। इसका वादी स्वर धैवत और संवादी स्वर ऋषभ होता है। राग ‘भैरव’ पर आधारित फिल्मी गीतों में से एक अत्यन्त मनमोहक गीत आज हमने चुना है। 1956 में विख्यात फ़िल्मकार राज कपूर ने महत्वाकांक्षी फिल्म ‘जागते रहो’ का निर्माण किया था। इस फिल्म के संगीतकार सलिल चौधरी का चुनाव स्वयं राज कपूर ने ही किया था, जबकि उस समय तक शंकर-जयकिशन उनकी फिल्मों के स्थायी संगीतकार बन चुके थे। फिल्म ‘जागते रहो’ बांग्ला फिल्म ‘एक दिन रात्रे’ का हिन्दी संस्करण था और बांग्ला संस्करण के संगीतकार सलिल चौधरी को ही हिन्दी संस्करण के संगीत निर्देशन का दायित्व दिया गया था। सलिल चौधरी ने इस फिल्म के गीतों में पर्याप्त विविधता रखी। इस फिल्म में उन्होने एक गीत ‘जागो मोहन प्यारे, जागो...’ की संगीत रचना ‘भैरव’ राग के स्वरों पर आधारित की थी। शैलेन्द्र के लिखे गीत जब लता मंगेशकर के स्वरों में ढले, तब यह गीत हिन्दी फिल्म संगीत का मीलस्तम्भ बन गया। आइए, आज हम राग ‘भैरव’ पर आधारित, फिल्म ‘जागते रहो’ का यह गीत सुनते हैं। आप इस गीत का रसास्वादन करें और हमें श्रृंखला की पहली कड़ी को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए।

राग भैरव : ‘जागो मोहन प्यारे...’ : लता मंगेशकर : फिल्म - जागते रहो




संगीत पहेली

‘स्वरगोष्ठी’ के 435वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको वर्ष 1963 में प्रदर्शित एक फिल्म के गीत का अंश सुनवा रहे हैं। गीत के इस अंश को सुन कर आपको दो अंक अर्जित करने के लिए निम्नलिखित तीन में से कम से कम दो प्रश्नों के सही उत्तर देना आवश्यक हैं। यदि आपको तीन में से केवल एक अथवा तीनों प्रश्नों का उत्तर ज्ञात हो तो भी आप प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। 440वें अंक की पहेली का उत्तर प्राप्त होने तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें वर्ष 2019 के चौथे सत्र का विजेता घोषित किया जाएगा। इसके साथ ही पूरे वर्ष के प्राप्तांकों की गणना के बाद वर्ष के अन्त में महाविजेताओं की घोषणा की जाएगी और उन्हें सम्मानित भी किया जाएगा।





1 – इस गीतांश को सुन कर बताइए कि इसमें किस राग की छाया है?

2 – इस गीत में प्रयोग किये गए ताल को पहचानिए और उसका नाम बताइए।

3 – इस गीत में किस पार्श्वगायिका की आवाज़ है।

आप उपरोक्त तीन मे से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर ही शनिवार, 28 सितम्बर, 2019 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। आपको यदि उपरोक्त तीन में से केवल एक प्रश्न का सही उत्तर ज्ञात हो तो भी आप पहेली प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। COMMENTS में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते हैं, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर देने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। “फेसबुक” पर पहेली का उत्तर स्वीकार नहीं किया जाएगा। विजेता का नाम हम उनके शहर, प्रदेश और देश के नाम के साथ ‘स्वरगोष्ठी’ के अंक संख्या 437 में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।


पिछली पहेली के सही उत्तर और विजेता

“स्वरगोष्ठी” के 433वें अंक की पहेली में हमने आपके लिए शहनाई पर लोक संगीत शैली कजरी की धुन का एक अंश सुनवा कर तीन प्रश्नों में से पूर्ण अंक प्राप्त करने के लिए कम से कम दो प्रश्नों के सही उत्तर की अपेक्षा आपसे की थी। पहेली के पहले प्रश्न का सही उत्तर है; वाद्य का नाम – शहनाई, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है; ताल – दादरा और कहरवा तथा तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है; वादक – उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ और साथी

‘स्वरगोष्ठी’ की इस पहेली का सही उत्तर देने वाले हमारे विजेता हैं; वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया, जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी, चेरीहिल न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल, खण्डवा, मध्यप्रदेश से रविचन्द्र जोशी, अहमदाबाद, गुजरात से मुकेश लाडिया और हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी। उपरोक्त सभी प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई। सभी प्रतिभागियों से अनुरोध है कि अपने पते के साथ कृपया अपना उत्तर ई-मेल से ही भेजा करें। इस पहेली प्रतियोगिता में हमारे नये प्रतिभागी भी हिस्सा ले सकते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि आपको पहेली के तीनों प्रश्नों के सही उत्तर ज्ञात हो। यदि आपको पहेली का कोई एक भी उत्तर ज्ञात हो तो भी आप इसमें भाग ले सकते हैं।


अपनी बात

मित्रों, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर आज से आरम्भ हमारी नई श्रृंखला “भैरव थाट के राग” की पहली कड़ी में आज आपने थाट और राग भैरव का परिचय प्राप्त किया। साथ ही इस शैली के शास्त्रीय स्वरूप को समझने के लिए आपको सुविख्यात शास्त्रीय गायिका विदुषी प्रभा अत्रे द्वारा प्रस्तुत राग भैरव की एक फिल्मों में राग भैरव का प्रयोग काफी हुआ है। भैरव आधार के फिल्मी उदाहरण का अनुभव कराने के लिए हमने पार्श्वगायिका लता मंगेशकर के स्वर में फिल्म “जागते रहो” के एक गीत का रसास्वादन किया। अगले अंक में हम भैरव थाट के एक जन्य राग का परिचय प्रस्तुत करेंगे। कुछ तकनीकी समस्या के कारण “स्वरगोष्ठी” की पिछली कुछ कड़ियाँ हम “फेसबुक” पर अपने कुछ मित्र समूह पर साझा नहीं कर पा रहे हैं। अपने सभी नियमित सदस्यों और संगीत-प्रेमियों से अनुरोध है कि हमारी वेबसाइट http://radioplaybackindia.com अथवा http://radioplaybackindia.blogspot.com पर क्लिक करके हमारे साप्ताहिक स्तम्भों का अवलोकन करें। “स्वरगोष्ठी” पर हमारी पिछली कड़ियों के बारे में हमें अनेक पाठकों की प्रतिक्रिया लगातार मिल रही है। हमें विश्वास है कि हमारे अन्य पाठक भी “स्वरगोष्ठी” के प्रत्येक अंक का अवलोकन करते रहेंगे और अपनी प्रतिक्रिया हमें भेजते रहेगे। आज के अंक और श्रृंखला के बारे में यदि आपको कुछ कहना हो तो हमें अवश्य लिखें। हमारी वर्तमान अथवा अगली श्रृंखला के लिए यदि आपका कोई सुझाव या अनुरोध हो तो हमें swargoshthi@gmail.com पर अवश्य लिखिए। अगले अंक में रविवार को प्रातः 7 बजे हम ‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर एक बार फिर सभी संगीत-प्रेमियों का स्वागत करेंगे।


प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र  
रेडियो प्लेबैक इण्डिया  
राग भैरव : SWARGOSHTHI – 435 : RAG BHAIRAV : 22 सितम्बर, 2019 

Comments

Anonymous said…
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