स्वरगोष्ठी – 434 में आज
वर्षा ऋतु के राग – 8 : कजरी गीतों के विविध स्वरूप
वाद्य, लोक और फिल्म संगीत में कजरी; “कैसे खेले जइबू सावन में कजरिया...”
उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ |
गीता दत्त |
कजरी अथवा
कजली मूलतः लोक संगीत की विधा है। वर्षा ऋतु के परिवेश और इस मौसम में
उपजने वाली मानवीय संवेदनाओं की अभिव्यक्ति में कजरी गीत पूर्ण समर्थ
लोक-शैली है। शास्त्रीय और उपशास्त्रीय संगीत के कलासाधकों द्वारा इस
लोक-शैली को अपना लिये जाने से कजरी गीत आज राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय
मंचों पर सुशोभित है। कजरी गीतों के आकर्षण से शास्त्रीय, उपशास्त्रीय,
सुगम और लोक संगीत विधाओं के कलासाधक स्वयं को मुक्त नहीं कर सके। कजरी
गीतों के सौन्दर्य से केवल गायक ही नहीं, वादक कलाकार भी प्रभावित रहे हैं।
अनेक वादक कलाकार आज भी वर्षा ऋतु में अपनी रागदारी संगीत-प्रस्तुतियों का
समापन कजरी धुन से करते हैं। सुषिर वाद्यों पर तो कजरी की धुन इतनी
कर्णप्रिय होती है कि श्रोता मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। उस्ताद बिस्मिल्लाह
खाँ की शहनाई पर तो कजरी ऐसी बजती थी, मानो कजरी की उत्पत्ति ही शहनाई के
लिए हुई हो। लोक संगीत में कजरी के दो स्वरूप मिलते हैं, जिन्हें हम
मीरजापुरी और बनारसी कजरी के नाम में पहचानते हैं। भारतीय संगीत जगत में
उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ एक ऐसे अनूठे कलासाधक रहे हैं, जिनकी शहनाई पर
समूचा विश्व झूम चुका है। अब हम आपको उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ द्वारा शहनाई
पर एक बनारसी कजरी की धुन का रसास्वादन कराते हैं। यह मनमोहक कजरी आरम्भ
में दादरा और फिर कहरवा ताल में बँधी है।
कजरी : शहनाई पर दादरा और कहरवा ताल में निबद्ध कजरी : उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ और साथी
तृप्ति शाक्य |
पारम्परिक
कजरियों की धुनें और उनके टेक निर्धारित होते हैं। आमतौर पर कजरियाँ
जैतसार, ढुनमुनियाँ, खेमटा, बनारसी और मीरजापुरी धुनों के नाम से पहचानी
जाती हैं। कजरियों की पहचान उनके टेक के शब्दों से भी होती है। कजरी के टेक
होते हैं- 'रामा', 'रे हरि', 'बलमू', 'साँवर गोरिया', 'ललना', 'ननदी' आदि।
कजरी गीतों के विषय पारम्परिक भी होते हैं और अपने समकालीन लोकजीवन का
दर्शन कराने वाले भी। ब्रिटिश शासनकाल में अनेक लोकगीतकारों ने ऐसी
राष्ट्रवादी कजरियों की रचना की, जिनसे तत्कालीन ब्रिटिश सरकार भी भयभीत
हुई थी। इस प्रकार के अनेक लोकगीतों को प्रतिबन्धित कर दिया गया था। इन
लोकगीतों के रचनाकारों और गायकों को ब्रिटिश सरकार ने कठोर यातनाएँ भी दीं।
परन्तु प्रतिबन्ध के बावजूद लोक-परम्पराएँ जन-जन तक पहुँचती रहीं। इन
विषयों पर रची गईं अनेक कजरियों में बलिदानियों को नमन और महात्मा गाँधी के
सिद्धांतों को रेखांकित किया गया। ऐसी ही एक कजरी की पंक्तियाँ देखें-
"चरखा कातो, मानो गाँधी जी की बतियाँ, विपतिया कटि जइहें ननदी...”। कुछ
कजरियों में अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों पर प्रहार भी किया गया। ऐसी ही
एक पारम्परिक कजरी की स्थायी की पंक्तियाँ हैं- “कैसे खेले जइबू सावन में
कजरिया, बदरिया घेरि आइल ननदी...”। इन पंक्तियों में काले बादलों का घिरना,
गुलामी के प्रतीक रूप में चित्रित हुआ है। इसके एक अन्तरे की पंक्तियाँ
हैं- “केतनो लाठी गोली खइलें, केतनो डामन (अण्डमान का अपभ्रंस) फाँसी
चढ़िले, केतनों पीसत होइहें जेहल (जेल) में चकरिया, बदरिया घेरि आइल
ननदी...”। आजादी के बाद कजरी-गायकों ने इस अन्तरे को परिवर्तित कर दिया। अब
हम आपको परिवर्तित अन्तरे के साथ वही कजरी सुनवाते हैं। इस गीत को तृप्ति
शाक्य और साथियों ने स्वर दिया है।
कजरी : ‘कैसे खेले जइबू सावन में कजरिया...’ : तृप्ति शाक्य और साथी
भारतीय
फिल्मों का संगीत आंशिक रूप से ही सही, अपने समकालीन संगीत से प्रभावित
रहा है। हिन्दी फिल्मों में कजरी गीतों का प्रयोग लगभग नगण्य ही हुआ है,
किन्तु कजरी की धुन को आधार बना कर कुछ गीत अवश्य रचे गए हैं। परन्तु ऐसे
गीतों में वर्षाकालीन परिवेश का अभाव है। हाँ, कुछ भोजपुरी फिल्मों में
पारम्परिक कजरी गीतों का अच्छा प्रयोग हुआ है। 1963 में प्रदर्शित भोजपुरी
फिल्म 'बिदेशिया' में कजरी शैली का अत्यन्त मौलिक रूप प्रस्तुत किया गया
है। कजरी के जिस परम्परागत रूप का इस फिल्म में प्रयोग किया गया है वह लोक
शैली में ‘ढुनमुनिया कजरी’ के नाम से जानी जाती है। इस प्रकार की कजरी
प्रस्तुति में महिलाएँ समूह में अर्धवृत्त बना कर गाती हैं। अब जो गीत हम
प्रस्तुत कर रहे हैं, “हिन्दी सिने राग इन्साइक्लोपीडिया, भाग 3” में
शोधकर्त्ता के.एल. पाण्डेय ने इस गीत को राग भैरवी पर आधारित बताया है।
फिल्म 'बिदेशिया' के इस कजरी गीत की रचना अपने समय के सुप्रसिद्ध लोकगीतकार
राममूर्ति चतुर्वेदी ने की थी और इसे संगीतबद्ध किया था एस.एन. त्रिपाठी
ने। इस गीत को गायिका गीता दत्त और कौमुदी मजुमदार ने अपने स्वरों से
फिल्मों में कजरी गायन को मौलिक स्वरूप दिया है। आप यह मनभावन कजरी सुनिए
और मुझे इस अंक से यहीं विराम लेने की अनुमति दीजिए। अगले अंक में हम एक नई
श्रृंखला के साथ उपस्थित होंगे।
कजरी : फिल्म बिदेशिया : ‘नीक सइयाँ बिन भवनवा...’ : गीता दत्त और कौमुदी मजुमदार
संगीत पहेली
‘स्वरगोष्ठी’
के 434वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको वर्ष 1956 में प्रदर्शित एक
फिल्म के गीत का अंश सुनवा रहे हैं। गीत के इस अंश को सुन कर आपको दो अंक
अर्जित करने के लिए निम्नलिखित तीन में से कम से कम दो प्रश्नों के सही
उत्तर देना आवश्यक हैं। यदि आपको तीन में से केवल एक अथवा तीनों प्रश्नों
का उत्तर ज्ञात हो तो भी आप प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। 440वें अंक
की पहेली का उत्तर प्राप्त होने तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे,
उन्हें वर्ष 2019 के चौथे सत्र का विजेता घोषित किया जाएगा। इसके साथ ही
पूरे वर्ष के प्राप्तांकों की गणना के बाद वर्ष के अन्त में महाविजेताओं की
घोषणा की जाएगी और उन्हें सम्मानित भी किया जाएगा।
1 – इस गीतांश को सुन कर बताइए कि इसमें किस राग का स्पर्श है?
2 – इस गीत में प्रयोग किये गए ताल को पहचानिए और उसका नाम बताइए।
3 – इस गीत में किस पार्श्वगायिका की आवाज़ है।
आप उपरोक्त तीन मे से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com
पर ही शनिवार, 14 सितम्बर, 2019 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। आपको
यदि उपरोक्त तीन में से केवल एक प्रश्न का सही उत्तर ज्ञात हो तो भी आप
पहेली प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। COMMENTS
में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते हैं, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर
देने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। “फेसबुक” पर पहेली का उत्तर
स्वीकार नहीं किया जाएगा। विजेता का नाम हम उनके शहर, प्रदेश और देश के नाम
के साथ ‘स्वरगोष्ठी’ के अंक संख्या 436 में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में
प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या
अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी
में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के सही उत्तर और विजेता
“स्वरगोष्ठी”
के 432वें अंक की पहेली में हमने आपसे एक लोक संगीत शैली उपशास्त्रीय
स्वरूप में प्रस्तुत एक गीत का एक अंश सुनवा कर तीन प्रश्नों में से पूर्ण
अंक प्राप्त करने के लिए कम से कम दो प्रश्नों के सही उत्तर की अपेक्षा की
थी। पहेली के पहले प्रश्न का सही उत्तर है; शैली – उपशास्त्रीय कजरी, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है; ताल – दादरा और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है; स्वर – विदुषी गिरिजा देवी।
‘स्वरगोष्ठी’ की इस पहेली का सही उत्तर देने वाले हमारे विजेता हैं; खण्डवा, मध्यप्रदेश से रविचन्द्र जोशी, जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी, चेरीहिल न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल और हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी।
उपरोक्त सभी प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक
बधाई। सभी प्रतिभागियों से अनुरोध है कि अपने पते के साथ कृपया अपना उत्तर
ई-मेल से ही भेजा करें। इस पहेली प्रतियोगिता में हमारे नये प्रतिभागी भी
हिस्सा ले सकते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि आपको पहेली के तीनों प्रश्नों के
सही उत्तर ज्ञात हो। यदि आपको पहेली का कोई एक भी उत्तर ज्ञात हो तो भी आप
इसमें भाग ले सकते हैं।
अपनी बात
मित्रों,
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी हमारी
श्रृंखला “वर्षा ऋतु के राग” की आठवीं कड़ी में आज आपने वर्षा ऋतु में गाये
जाने वाली संगीत शैली “कजरी” के लीक-स्वरूप का परिचय प्राप्त किया। साथ ही
इस शैली के वाद्यसंगीत पर प्रचलन को समझने के लिए आपको सुविख्यात शहनाई
वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ और साथियों द्वारा प्रस्तुत एक कजरी रचना
सुनवा रहे हैं। साथ ही चर्चित लोक-गायिका तृप्ति शाक्य के स्वर में कजरी के
लोक-स्वरूप का उदाहरण और कजरी के फिल्मी रूप का अनुभव कराने के लिए
पार्श्वगायिका गीता दत्त और कौमुदी मजुमदार के स्वर में फिल्म “बिदेशिया”
के एक गीत का रसास्वादन किया। अगले अंक से हम एक नई श्रृंखला शुरू करेंगे।
कुछ तकनीकी समस्या के कारण “स्वरगोष्ठी” की पिछली कुछ कड़ियाँ हम “फेसबुक” पर
अपने कुछ मित्र समूह पर साझा नहीं कर पा रहे हैं। संगीत-प्रेमियों से
अनुरोध है कि हमारी वेबसाइट radioplaybackindia.com
पर क्लिक करके हमारे साप्ताहिक स्तम्भों का अवलोकन करें। “स्वरगोष्ठी” पर
हमारी पिछली कड़ियों के बारे में हमें अनेक पाठकों की प्रतिक्रिया लगातार
मिल रही है। हमें विश्वास है कि हमारे अन्य पाठक भी “स्वरगोष्ठी” के
प्रत्येक अंक का अवलोकन करते रहेंगे और अपनी प्रतिक्रिया हमें भेजते रहेगे।
आज के अंक और श्रृंखला के बारे में यदि आपको कुछ कहना हो तो हमें अवश्य
लिखें। हमारी वर्तमान अथवा अगली श्रृंखला के लिए यदि आपका कोई सुझाव या
अनुरोध हो तो हमें swargoshthi@gmail.com
पर अवश्य लिखिए। अगले अंक में रविवार को प्रातः 7 बजे हम ‘स्वरगोष्ठी’ के
इसी मंच पर एक बार फिर सभी संगीत-प्रेमियों का स्वागत करेंगे।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
कजरी गीत : SWARGOSHTHI – 434 : KAJARI SONGS : 8 सितम्बर, 2019
Comments
compelled me to try and do it! Your writing style has been surprised me.
Thanks, quite nice article.