स्वरगोष्ठी – 396 में आज
पूर्वांग और उत्तरांग राग – 11 : राग देश
आशा भोसले और मोहम्मद रफी से फिल्म का एक गीत और विदुषी शुभा मुद्गल से राग देश सुनिए
शुभा मुद्गल |
आशा भोसले और मोहम्मद रफी |
राग देश
अथवा देस खमाज थाट का राग माना जाता है। इस राग में दोनों निषाद का प्रयोग
किया जाता है। इसके आरोह में शुद्ध निषाद और अवरोह में कोमल निषाद का
प्रयोग किया जाता है। आरोह में गान्धार और धैवत स्वर वर्जित होता है और
अवरोह में सभी सात स्वरों का प्रयोग होता है। राग का वादी स्वर ऋषभ और
संवादी स्वर पंचम होता है। रात्रि के दूसरे प्रहर में इस राग का गायन-वादन
सर्वाधिक उपयुक्त माना जाता है। राग-विवरण में यह बताया गया है कि आरोह में
गान्धार और धैवत स्वर वर्जित होता है, किन्तु राग के सौन्दर्य के लिए
कभी-कभी इस नियम का उल्लंघन किया जाता है, अर्थात आरोह में भी उन्हें
प्रयोग किया जाता है। आरोह में गान्धार अथवा धैवत स्वर प्रयोग करते समय
मींड़ और द्रुत स्वरों का प्रयोग किया जाता है। यह चंचल प्रकृति का राग है,
अतः इसमें अधिकतर द्रुत खयाल और ठुमरी का गायन-वादन किया जाता है। कुछ
विद्वान राग देश का वादी-संवादी स्वर क्रमशः पंचम और ऋषभ मानते हैं। किन्तु
“राग परिचय” पुस्तक के लेखक हरिश्चन्द्र श्रीवास्तव इसे उचित नहीं मानते।
श्री श्रीवास्तव के अनुसार राग देश पूर्वांग प्रधान राग है, अतः इसका चलन
सप्तक के पूर्वांग में अधिक होता है। साथ ही इसके गायन-वादन का समय रात्रि
का दूसरा प्रहर होता है, अर्थात यह समय दिन के पूर्व अंग में आता है, इसलिए
इसका वादी स्वर सप्तक के पूर्वांग में और संवादी स्वर स्वर उत्तरांग में
मानना राग-नियम के अनुकूल है। इस राग के अवरोह में अधिकतर ऋषभ स्वर का वक्र
प्रयोग होता है। राग के शास्त्रीय स्वरूप को समझने के लिए अब हम राग देश,
तीनताल में निबद्ध एक बन्दिश सुविख्यात गायिका विदुषी शुभा मुद्गल के स्वर
में प्रस्तुत कर रहे हैं।
राग देश : “बाजत नगाड़े घन...” : विदुषी शुभा मुद्गल
राग देश का प्रयोग सुगम और फिल्म संगीत में भी बहुत हुआ है। 1964 में अजीत और माला सिन्हा अभिनीत फिल्म ‘मैं सुहागन हूँ’ प्रदर्शित हुई थी। इस फिल्म का संगीत फिल्मों के एक कम चर्चित संगीतकार लच्छीराम तँवर ने तैयार किया था। लच्छीराम की स्वतंत्र रूप से प्रथम संगीत निर्देशित 1947 की फिल्म थी ‘आरसी’। इस पहली फिल्म के संगीत ने तत्कालीन संगीत-प्रेमियों और समीक्षकों का ध्यान आकर्षित किया था। फिल्म का संगीत लोकप्रिय भी हुआ था, किन्तु 1947 से 1964 के बीच उन्हें साधारण स्तर की फिल्मों के प्रस्ताव ही मिले। इसके बावजूद उनकी प्रत्येक फिल्मों के एक-दो गीतों ने लोकप्रियता के मानक गढ़े। 1964 की फिल्म ‘मैं सुहागन हूँ’ उनकी अन्तिम फिल्म थी। इस फिल्म में लच्छीराम ने एक परम्परागत ठुमरी को आशा भोसले और मोहम्मद रफ़ी के स्वरों में प्रस्तुत किया था। फिल्मों में प्रयोग की गई ठुमरियों में सम्भवतः पहली बार युगल स्वरों में किसी ठुमरी को शामिल किया गया था। फिल्म में नायक-नायिका अजीत और माला सिन्हा हैं, परन्तु इस ठुमरी को फिल्म के सह-कलाकारों, सम्भवतः केवल कुमार और निशी पर फिल्माया गया है। ठुमरी के अन्त में अभिनेत्री द्वारा तीनताल में कथक के तत्कार और टुकड़े भी प्रस्तुत किये गए हैं। मूलतः यह ठुमरी राग पीलू की है। परन्तु लच्छीराम ने इसे राग देस के स्वरों में बाँधा है। आशा भोसले और मोहम्मद रफ़ी ने गायन में राग देश के स्वरों को बड़े आकर्षक ढंग से निखारा है। रफ़ी ने इस गीत को सहज-सपाट स्वरों में गाया है किन्तु आशा भोसले ने स्वरों में मुरकियाँ देकर और बोलों में भाव उत्पन्न कर ठुमरी को आकर्षक रूप दे दिया है। आइए सुनते हैं, श्रृंगार रस से ओतप्रोत राग देश में यह फिल्मी ठुमरी। आप यह गीत सुनिए और मुझे आज के इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए।
राग देश : “गोरी तोरे नैन काजर बिन कारे...” : आशा भोसले और मोहम्मद रफी : फिल्म - मैं सुहागन हूँ
संगीत पहेली
“स्वरगोष्ठी”
के 396वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको वर्ष 1966 में प्रदर्शित एक
फिल्म से रागबद्ध गीत का अंश सुनवा रहे हैं। गीत के इस अंश को सुन कर आपको
दो अंक अर्जित करने के लिए निम्नलिखित तीन में से कम से कम दो प्रश्नों के
उत्तर देने आवश्यक हैं। यदि आपको तीन में से केवल एक अथवा तीनों प्रश्नों
का उत्तर ज्ञात हो तो भी आप प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। इस वर्ष की
अन्तिम पहेली तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें वर्ष 2018 के
पाँचवें सत्र का विजेता घोषित किया जाएगा। इसके साथ ही पूरे वर्ष के
प्राप्तांकों की गणना के बाद वर्ष के अन्त में महाविजेताओं की घोषणा की
जाएगी और उन्हें सम्मानित भी किया जाएगा।
1 – इस गीतांश को सुन कर बताइए कि इसमें किस राग का आधार है?
2 – इस गीत में प्रयोग किये गए ताल को पहचानिए और उसका नाम बताइए।
3 – इस गीत में किन युगल गायक और गायिका के स्वर हैं?
आप उपरोक्त तीन मे से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com
पर ही शनिवार, 8 दिसम्बर, 2018 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। आपको यदि
उपरोक्त तीन में से केवल एक प्रश्न का सही उत्तर ज्ञात हो तो भी आप पहेली
प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। COMMENTS
में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते हैं, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर
देने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। “फेसबुक” पर पहेली का उत्तर
स्वीकार नहीं किया जाएगा। विजेता का नाम हम उनके शहर, प्रदेश और देश के नाम
के साथ ‘स्वरगोष्ठी’ के 397वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में
प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या
अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी
में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’
की 394वें अंक की संगीत पहेली में हमने आपको वर्ष 1965 में प्रदर्शित
फिल्म “काजल” के एक रागबद्ध गीत का अंश सुनवा कर आपसे तीन में से किसी दो
प्रश्न के उत्तर पूछा था। पहले प्रश्न का सही उत्तर है; राग – दरबारी कान्हड़ा, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है; ताल – कहरवा और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है; स्वर – आशा भोसले।
“स्वरगोष्ठी”
की इस पहेली प्रतियोगिता में तीनों अथवा तीन में से दो प्रश्नो के सही
उत्तर देकर विजेता बने हैं; वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया, कल्याण, महाराष्ट्र से शुभा खाण्डेकर, मेरिलैण्ड, अमेरिका से विजया राजकोटिया, चेरीहिल न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल, जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी, फीनिक्स, अमेरिका से मुकेश लाडिया और हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी।
उपरोक्त सभी प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक
बधाई। सभी प्रतिभागियों से अनुरोध है कि अपने पते के साथ कृपया अपना उत्तर
ई-मेल से ही भेजा करें। इस पहेली प्रतियोगिता में हमारे नये प्रतिभागी भी
हिस्सा ले सकते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि आपको पहेली के तीनों प्रश्नों के
सही उत्तर ज्ञात हो। यदि आपको पहेली का कोई एक भी उत्तर ज्ञात हो तो भी आप
इसमें भाग ले सकते हैं।
अपनी बात
मित्रों,
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी हमारी
श्रृंखला “पूर्वांग और उत्तरांग राग” की ग्यारहवीं कड़ी में आपने राग देश
अथवा देस का परिचय प्राप्त किया। इस राग में आपने सुविख्यात गायिका विदुषी
शुभा मुद्गल के स्वर में एक बन्दिश का रसास्वादन किया। साथ ही आपने इस राग
पर आधारित संगीतकार लच्छीराम द्वारा संगीतबद्ध फिल्म “मैं सुहागन हूँ” का
एक गीत आशा भोसले और मोहम्मद रफी के युगल स्वर में सुना। हमें विश्वास है
कि हमारे अन्य पाठक भी “स्वरगोष्ठी” के प्रत्येक अंक का अवलोकन करते रहेंगे
और अपनी प्रतिक्रिया हमें भेजते रहेगे। आज के अंक और श्रृंखला के बारे में
यदि आपको कुछ कहना हो तो हमें अवश्य लिखें। हमारी वर्तमान अथवा अगली
श्रृंखला के लिए यदि आपका कोई सुझाव या अनुरोध हो तो हमें swargoshthi@gmail.com
पर अवश्य लिखिए। अगले अंक में रविवार को प्रातः 7 बजे हम ‘स्वरगोष्ठी’ के
इसी मंच पर एक बार फिर सभी संगीत-प्रेमियों का स्वागत करेंगे।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
Comments
which gives these data in quality?