स्वरगोष्ठी – 364 में आज
दस थाट, बीस राग और बीस गीत – 3 : खमाज थाट
राग खमाज की बन्दिश -‘कोयलिया कूक सुनावे...’ और तिलक कामोद का गीत -‘तुम्हारे बिन जी ना लगे...’
उस्ताद निसार हुसेन खाँ |
प्रीति सागर |
इन दिनों
हम भारतीय संगीत के दस थाटों पर चर्चा कर रहे हैं। पिछले अंकों में हम यह
चर्चा कर चुके हैं कि संगीत के रागों के वर्गीकरण के लिए थाट प्रणाली को
अपनाया गया। थाट और राग के विषय में कभी-कभी यह भ्रम हो जाता है कि पहले
थाट और फिर उससे राग की उत्पत्ति हुई होगी। दरअसल ऐसा नहीं है। रागों की
संरचना अत्यन्त प्राचीन है। रागों में प्रयुक्त स्वरों के अनुकूल मिलते
स्वर जिस थाट के स्वरों में मौजूद होते हैं, राग को उस थाट विशेष से
उत्पन्न माना गया है। मध्य काल में राग-रागिनी प्रणाली प्रचलन में थी। बाद
में इस प्रणाली की अवैज्ञानिकता सिद्ध हो जाने पर थाट-वर्गीकरण के अन्तर्गत
समस्त रागों को विभाजित किया गया। हमारे शास्त्रकारों ने थाट के नामकरण के
लिए ऐसे रागों का चयन किया, जिसके स्वर थाट के स्वरों से मेल खाते हों।
थाट के नामकरण के उपरान्त सम्बन्धित राग को उस थाट का आश्रय राग कहा गया।
आज का थाट खमाज है। खमाज थाट के स्वर होते हैं- सा, रे ग, म, प ध, नि॒।
अर्थात इस थाट में निषाद स्वर कोमल और शेष सभी स्वर शुद्ध होते हैं। इस
थाट का आश्रय राग ‘खमाज’ कहलाता है। ‘खमाज’ राग में थाट के अनुकूल निषाद
कोमल और शेष सभी स्वर शुद्ध होते हैं। यह षाड़व-सम्पूर्ण जाति का राग है।
अर्थात राग के आरोह में छः स्वर और अवरोह में सात स्वर प्रयोग किये जाते
हैं। खमाज के आरोह में सा, ग, म, प, ध, नि, सां और अवरोह में सां, नि, ध, प, म, ग, रे, सा
स्वरों का प्रयोग होता है। आरोह में ऋषभ स्वर नहीं लगता। राग में दोनों
निषाद का प्रयोग होता है। आरोह में शुद्ध निषाद और अवरोह में कोमल निषाद
लगाया जाता है। वादी स्वर गान्धार और संवादी स्वर निषाद होता है। इस राग के
गायन-वादन का समय रात्रि का दूसरा प्रहर होता है।
राग
खमाज का उदाहरण प्रस्तुत करने के लिए हमने रामपुर सहसवान घराने के प्रमुख
स्तम्भ उस्ताद निसार हुसेन खाँ (1909-1993) द्वारा प्रस्तुत एक दुर्लभ
बन्दिश का चुनाव किया है। राग खमाज की यह अनमोल रचना 1929 में रिकार्ड की
गई थी। उस्ताद निसार हुसेन खाँ को अपने पिता और गुरु उस्ताद फिदा हुसेन खाँ
से संगीत विरासत में प्राप्त हुआ था। बहुत छोटी आयु में उन्हें बड़ौदा के
महाराज सयाजी राव गायकवाड़ के दरबारी संगीतज्ञ होने का गौरव प्राप्त हुआ था।
आगे चलकर खाँ साहब ‘आकाशवाणी’ से भी जुड़े। 1977 में उन्हें आई.टी.सी.
संगीत रिसर्च अकादमी, कोलकाता में प्रधान गुरु नियुक्त किया गया। यहाँ रह
कर उन्होने उस्ताद राशिद खाँ सहित अनेक योग्य शिष्यो को तैयार किया। भारत
सरकार द्वारा 1970 में उन्हें ‘पद्मभूषण’ सम्मान से विभूषित किया गया। इसके
अलावा खाँ साहब को संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, तानसेन सम्मान सहित
गन्धर्व महाविद्यालय से डाक्टरेट की उपाधि से भी नवाजा गया था। आइए गायकी
के इस शिखर-पुरुष की आवाज़ में सुनते हैं, राग खमाज की यह बन्दिश।
राग खमाज : ‘कोयलिया कूक सुनावे...’ : उस्ताद निसार हुसेन खाँ
खमाज
थाट के अन्तर्गत आने वाले कुछ प्रमुख राग है- झिंझोटी, कलावती, दुर्गा,
देस, तिलंग, रागेश्वरी, गारा, देस, जैजैवन्ती, तिलक कामोद आदि। खमाज थाट का
ही एक प्रचलित और लोकप्रिय राग तिलक कामोद है। श्रृंगार रस की रचनाएँ इस
राग में खूब मुखर होती हैं। राग तिलक कामोद षाड़व-सम्पूर्ण जाति का राग है,
अर्थात इसके आरोह में छः स्वर और अवरोह में सात स्वर प्रयोग किये जाते हैं।
आरोह में धैवत स्वर वर्जित होता है। इस राग में सभी स्वर शुद्ध प्रयोग
किये जाते हैं। आरोह के स्वर हैं- सा, रे, ग, सा, रे, म, प, ध, म,प, नि, सां तथा अवरोह के स्वर
हैं- सां, प, ध, म, ग, सा, रे, ग, सा, नि। राग का वादी स्वर ऋषभ और संवादी स्वर पंचम होता है।
रात्रि के दूसरे प्रहर में इस राग का गायन-वादन खूब खिल उठता है। अब हम
आपको राग तिलककामोद के स्वरों में पिरोया एक फिल्मी गीत सुनवाते हैं। यह
गीत हमने 1977 में प्रदर्शित फिल्म ‘भूमिका’ से लिया है। फिल्म ‘भूमिका’
1940 के दशक में मराठी रंगमंच और फिल्मों की बहुचर्चित अभिनेत्री हंसा
वाडकर की आत्मकथा ‘सांगत्ये आइका’ पर आधारित थी, जिसका निर्देशन प्रख्यात
फ़िल्मकार श्याम बेनेगल ने किया था। फिल्म में अभिनय के प्रमुख कलाकार थे-
अमोल पालेकर, स्मिता पाटील, नासीरुद्दीन शाह, अमरीश पुरी आदि। फिल्म को दो
राष्ट्रीय पुरस्कार मिला, सर्वश्रेष्ठ पटकथा लेखन का और स्मिता पाटील को
सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का। इसके अलावा इसे सर्वश्रेष्ठ फिल्म का फिल्मफेयर
पुरस्कार भी प्राप्त हुआ था। फिल्म में कुल छः गीत हैं, जिनमे ‘तुम्हारे बिन जी ना लगे घर में...’ सहित पाँच गीत बसन्त देव ने और एक गीत (‘सावन के दिन आए...’) मजरूह सुल्तानपुरी ने लिखा है। बसन्त देव रचित गीत- ‘तुम्हारे बिन जी ना लगे...’
में संगीतकार वनराज भाटिया ने राग तिलककामोद के स्वरों का स्पर्श किया है।
सितारखानी अर्थात पंजाबी ताल के इस गीत को प्रीति सागर ने बेहद आकर्षक रूप
में गाया है। आप यह गीत सुनिए और मुझे आज के इस अंक को यहीं विराम देने की
अनुमति दीजिए।
राग तिलक कामोद : ‘तुम्हारे बिन जी ना लगे घर में...’ : प्रीति सागर : फिल्म – भूमिका
संगीत पहेली
‘स्वरगोष्ठी’
के 364वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको एक राग आधारित फिल्मी गीत का
अंश सुनवा रहे हैं। गीत के इस अंश को सुन कर आपको दो अंक अर्जित करने के
लिए निम्नलिखित तीन में से कम से कम दो प्रश्नों के उत्तर देने आवश्यक हैं।
यदि आपको तीन में से केवल एक अथवा तीनों प्रश्नों का उत्तर ज्ञात हो तो भी
आप प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। 370वें अंक की ‘स्वरगोष्ठी’ तक जिस
प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें वर्ष 2018 के दूसरे सत्र का
विजेता घोषित किया जाएगा। इसके साथ ही पूरे वर्ष के प्राप्तांकों की गणना
के बाद वर्ष के अन्त में महाविजेताओं की घोषणा की जाएगी और उन्हें सम्मानित
भी किया जाएगा।
1 – इस गीतांश को सुन कर बताइए कि इसमें किस राग की छाया है?
2 – इस गीत में प्रयोग किये गए ताल को पहचानिए और उसका नाम बताइए।
3 – इस गीत में मुख्य स्वर किस पार्श्वगायिका के है?
आप उपरोक्त तीन मे से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर ही शनिवार, 14 अप्रैल 2018 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। आपको यदि उपरोक्त तीन में से केवल एक प्रश्न का सही उत्तर ज्ञात हो तो भी आप पहेली प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। COMMENTS
में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते हैं, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर
देने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। विजेता का नाम हम उनके शहर,
प्रदेश और देश के नाम के साथ ‘स्वरगोष्ठी’ के 366वें अंक में
प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के
बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना
चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे
दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’
की 362वीं कड़ी में हमने आपको वर्ष 1959 में प्रदर्शित फिल्म “गूँज उठी
शहनाई” के एक रागबद्ध फिल्मी गीत का अंश सुनवा कर आपसे तीन में से कम से कम
दो सही उत्तर की अपेक्षा की थी। पहेली के पहले प्रश्न का सही उत्तर है;
राग – बिहाग, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है; ताल – दादरा और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है; स्वर – लता मंगेशकर।
“स्वरगोष्ठी” की पहेली प्रतियोगिता में तीनों अथवा तीन में से दो प्रश्नो के सही उत्तर देकर विजेता बने हैं; वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया, चेरीहिल न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल, पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया, जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी और हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी। हमारी एक नई प्रतिभागी श्वेता शुक्ला
ने अपना उत्तर फेसबुक पर भेजा है। हम उनका भी उत्तर शामिल करते हुए अनुरोध
करते हैं कि कृपया अपना उत्तर ई-मेल से ही भेजा करें। उपरोक्त सभी छः
प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई। इस पहेली
प्रतियोगिता में हमारे नये प्रतिभागी भी हिस्सा ले सकते हैं। यह आवश्यक
नहीं है कि आपको पहेली के तीनों प्रश्नों के सही उत्तर ज्ञात हो। यदि आपको
पहेली का कोई एक उत्तर भी ज्ञात हो तो भी आप इसमें भाग ले सकते हैं।
अपनी बात
मित्रों,
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर हमारी
श्रृंखला “दस थाट, बीस राग और बीस गीत” की तीसरी कड़ी में आपने खमाज थाट का
परिचय प्राप्त किया और इस थाट के आश्रय राग खमाज में पिरोया एक खयाल
सुविख्यात गायक उस्ताद निसार हुसेन खाँ के स्वर में रसास्वादन किया। इसके
साथ ही खमाज थाट के जन्य राग तिलक कामोद पर आधारित एक फिल्मी गीत
पार्श्वगायिका प्रीति सागर की आवाज़ में सुना। हमें विश्वास है कि हमारे
अन्य पाठक भी “स्वरगोष्ठी” के प्रत्येक अंक का अवलोकन करते रहेंगे और अपनी
प्रतिक्रिया हमें भेजते रहेगे। आज के अंक के बारे में यदि आपको कुछ कहना हो
तो हमें अवश्य लिखें। अगले अंक से हम इस श्रृंखला का अगला अंक प्रस्तुत
करेंगे। इस नई श्रृंखला अथवा आगामी श्रृंखलाओं के लिए यदि आपका कोई सुझाव
या फरमाइश हो तो हमें swargoshthi@gmail.com
पर अवश्य लिखिए। अगले अंक में रविवार को प्रातः 7 बजे हम ‘स्वरगोष्ठी’ के
इसी मंच पर एक बार फिर सभी संगीत-प्रेमियों का स्वागत करेंगे।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
रेडियो प्लेबैक इण्डिया
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