शायद इसका सही जवाब होगा मीराबाई। एक तरफ़ जहाँ यह एक सुन्दर और मन को शान्ति प्रदान करने वाली बात है, वहीं दूसरी ओर यह एक दुर्भाग्यजनक बात भी है कि जिस देश में मीराबाई जैसी कवयित्री हुईं हैं, उस देश में महिला गीतकारों की इतनी कमी है। हिन्दी सिने संगीत जगत की पहली महिला जिन्होंने गीतकारिता के लिए कलम उठाया था, वो हैं जद्दनबाई, जो फ़िल्म निर्माण के पहले दौर की एक गायिका, संगीतकार, अदाकारा और फ़िल्मकार रही हैं। 1892 में जन्मीं जद्दनबाई को भारतीय सिनेमा के अग्रदूतों में गिना जाता है। वो अभिनेत्री नरगिस की माँ थीं। 1935 की फ़िल्म ’तलाश-ए-हक़’ में संगीत देकर वो फ़िल्म जगत की पहली महिला संगीतकार बनीं। लेकिन इस फ़िल्म के गीतों के रिकॉर्ड के उपलब्ध ना होने की वजह से सरस्वती देवी को प्रथम महिला संगीतकार होने का गौरव मिला। इसके अगले ही साल 1936 में फ़िल्म ’मैडम फ़ैशन’ में एक गीत लिख कर जद्दनबाई बन गईं फ़िल्म जगत की प्रथम महिला गीतकार। गायक जुगल-किशोर की आवाज़ में जद्दनबाई की लिखी व स्वरबद्ध की हुई यह ग़ज़ल थी "यही आरज़ू थी दिल की कि क़रीब यार होता, और हज़ार जाँ से क़ुरबाँ मैं हज़ार बार होता"। इस फ़िल्म का निर्माण व निर्देशन भी उन्होंने ही किया था। इसके बाद उनकी कुछ और फ़िल्में आईं जैसे कि ’हृदय मंथन’, ’मोती का हार’ और ’जीवन स्वप्न’, लेकिन उनका लिखा कोई गीत इनमें नहीं था।
सरोज मोहिनी नय्यर |
निरुपा रॉय |
प्रभा ठाकुर |
अमृता प्रीतम |
फ़िल्म ’कादम्बरी’ में अमृता प्रीतम के अलावा एक और महिला गीतकार का लिखा गीत शामिल था। ये हैं गीतांजलि सिंह। संगीतकार अजीत सिंह के संगीत में पत्नी गीतांजलि ने यह गीत लिखा जिसे अजीत सिंह ने ही गाया। "क्यों हम तुम रहें अकेले, क्यों ना बाहों में बाहें ले ले, देखो ज़िंदगी के मेले..."। यह एक नशे से भरा क्लब सॉंग् है, अमृता प्रीतम के लिखे "अंबर की एक पाक सुराही" से बिल्कुल विपरीत। अजीत सिंह ने इसके बाद कई फ़िल्मों में संगीत दिया है, लेकिन गीतांजलि सिंह के लिखे गीत इसके बाद सिर्फ़ एक ही फ़िल्म में सुनाई दी, और वह फ़िल्म है 1999 की ’होश’। दरसल फ़िल्म ’होश’ में दो गीतकार थे, दोनों महिलाएँ - एक तो गीतांजलि सिंह थीं ही, दूसरी थीं आशा रानी। संगीतकार अजीत सिंह के संगीत में इन दो गीतकारों ने मिला-जुला कर कुल आठ गीत लिखे जिन्हें अजीत सिंह और तान्या सिंह ने गाए। तान्या सिंह अजीत सिंह की बेटी हैं। गीतकार आशा रानी ने भी अजीत सिंह के संगीत में एक और फ़िल्म में गाने लिखीं। यह फ़िल्म है 1989 की ’पुरानी हवेली’। अनुराधा पौडवाल की आवाज़ में "कैसे मैं भुलाऊँ तेरा प्यार", सुरेश वाडकर की आवाज़ में "आता है मुझको याद तेरा प्यार" और "संगमर्मर सा था उसका बदन" आशा रानी की लिखी रचनाएँ हैं इस फ़िल्म की।
महिला संगीतकारों में एक नाम शारदा राजन का रहा है। उनके द्वारा संगीतबद्ध 1976 की फ़िल्म ’ज़माने से पूछो’ में एक गीत शबनम करवारी का लिखा हुआ था। रफ़ी साहब की आवाज़ में यह गीत है "कहीं चमन खिला दिया, कहीं धुंआ उड़ा दिया, दिल में जो आय अपने किया पाप किया या पुण्य किया, हमसे ना पूछो, ज़माने से पूछो..."। इस तरह से फ़िल्म के शीर्षक गीत के गीतकार के रूप में शुरु हुई थी पारी महिला गीतकार शबनम करवारी की। 1979 में एक फ़िल्म बनी थी ’अरब का सोना: अबु कालिया’। जतिन-श्याम के संगीत निर्देशन में इस फ़िल्म के गीत ऐश कंवल और शबनम ने लिखे थे। फ़िल्म के गीतों में आवाज़ें थीं मोहम्मद रफ़ी, दिलराज कौर और नितिन मुकेश की। शबनम करवारी का लिखा और नितिन मुकेश का गाया एक गीत है "नेकी और बदी सब की एक दिन तोली जाएगी, पाप और पुण्य के पुस्तक सबकी एक दिन खोली जाएगी..."। इस सुंदर दार्शनिक गीत की ही तरह न जाने कितने गीत लोगों तक पहुँचने से वंचित रह गए होंगे सिर्फ़ इस वजह से कि ये फ़िल्में या तो सही तरीके से बन नहीं सकीं या फिर इन्हें प्रोमोट करने के लिए अर्थ का अभाव था।
यहाँ आकर पूरी होती है ’हिन्दी फ़िल्मों के महिला गीतकार’ का पहला भाग जिसमें हमने बातें की जद्दन बाई, सरोज मोहिनी नय्यर, निरुपा रॉय, किरण कल्याणी, प्रभा ठाकुर, अमृता प्रीतम, गीतांजलि सिंह, आशा रानी और शबनम करवारी की। इस लेख के दूसरे भाग में हम कुछ और महिला गीतकारों और उनके लिखे गीतों की जानकारी लेकर उपस्थित होंगे। तब तक के लिए अपने दोस्त सुजॉय चटर्जी को अनुमति दीजिए, नमस्कार!
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शोध,आलेख व प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी
प्रस्तुति सहयोग : कृष्णमोहन मिश्र
रेडियो प्लेबैक इण्डिया
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