स्वरगोष्ठी – 347 में आज
फिल्मी गीतों में ठुमरी के तत्व – 4 : ठुमरी भैरवी
“बाट चलत नई चुनरी रंग डारी श्याम...” – पछाही ठुमरी का एक उत्कृष्ट उदाहरण
गीता दत्त |
आज
हम आपके लिए राग भैरवी की एक मनमोहक ठुमरी भैरवी के साथ उपस्थित हैं।
उन्नीसवीं शताब्दी के अन्तिम दशक में जब "बनारसी ठुमरी" के विकास के
साथ-साथ लखनऊ से पूर्व की ओर, बनारस से लेकर बंगाल तक विस्तृत होती जा रही
थी, वहीं दूसरी ओर लखनऊ से पश्चिम दिशा में दिल्ली तक "पछाहीं अंग" की
"बोल-बाँट" और "बन्दिशी" ठुमरी का प्रचलन बढ़ता जा रहा था। 1857 के प्रथम
स्वतंत्रता संग्राम के बाद लखनऊ के सनदपिया रामपुर दरबार चले गए थे, जहाँ
कुछ समय रह कर उन्होंने ठुमरी का चलन शुरू किया। रामपुर दरबार के सेनिया
घराने के संगीतज्ञ बहादुर हुसेन खाँ और उस्ताद अमीर खाँ इस नई गायन शैली से
बहुत प्रभावित हुए और इसके विकास में अपना योगदान किया। इसी प्रकार ठुमरी
शैली का दिल्ली के संगीत जगत में न केवल स्वागत हुआ, बल्कि अपनाया भी गया।
उन्नीसवीं शताब्दी के अन्तिम दो दशकों में दिल्ली में ठुमरी के कई गायक और
रचनाकार हुए, जिन्होंने इस शैली को समृद्धि प्रदान की। इन्हीं में एक थे
गोस्वामी श्रीलाल, जिन्होंने "पछाहीं ठुमरी" को एक नई दिशा दी। इनका जन्म
1860 में दिल्ली के एक संगीतज्ञ परिवार में हुआ था। संगीत की शिक्षा इन्हें
अपने पिता गोस्वामी कीर्तिलाल से प्राप्त हुई थी। ये सितारवादन में भी
प्रवीण थे। "कुँवर श्याम" उपनाम से इन्होने अनेक ध्रुवपद, धमार, ख़याल,
ठुमरी आदि की रचनाएँ की। इनका संगीत व्यसन स्वान्तःसुखाय और अपने आराध्य
भगवान् श्रीकृष्ण को सुनाने के लिए ही था। जीवन भर इन्होने किशोरीरमण
मन्दिर से बाहर कहीं नहीं गाया-बजाया। इनकी ठुमरी रचनाएँ कृष्णलीला प्रधान
तथा स्वर, ताल और साहित्य की दृष्टि से अति उत्तम है। राग भैरवी की ठुमरी
-"बाट चलत नई चुनरी रंग डारी श्याम..." कुँवर श्याम की सुप्रसिद्ध रचना है।
उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में भी देवालय संगीत की परम्परा
कहीं-कहीं दीख पड़ती थी। संगीतज्ञ कुँवर श्याम इसी परम्परा के संवाहक और
पोषक थे।
आज
भैरवी की जो ठुमरी हम आपको सुनाने जा रहे हैं, वह इन्हीं कुँवर श्याम की
बहुचर्चित ठुमरी है। 1953 की फिल्म 'लड़की' में इस ठुमरी को शामिल किया गया
था। राग भैरवी की इस ठुमरी -"बाट चलत नई चुनरी रंग डारी श्याम..." में
श्रृंगार रस के साथ कृष्ण की मुग्धकारी लीला का अत्यन्त भावपूर्ण अन्दाज
में चित्रण किया गया है। रचना का साहित्य पक्ष ब्रज भाषा की मधुरता से
सराबोर है। राग भैरवी के स्वर-समूह अनेक रसों का सृजन करने में समर्थ होते
हैं। इनमें भक्ति और करुण रस प्रमुख हैं। स्वरों के माध्यम से प्रत्येक रस
का सृजन करने में राग भैरवी सर्वाधिक उपयुक्त राग है। संगीतज्ञ इसे ‘सदा
सुहागिन राग’ तथा ‘सदाबहार’ राग के विशेषण से अलंकृत करते हैं। सम्पूर्ण
जाति का यह राग भैरवी थाट का आश्रय राग माना जाता है। राग भैरवी में ऋषभ,
गान्धार, धैवत और निषाद सभी कोमल स्वरों का प्रयोग किया जाता है। इस राग का
वादी स्वर शुद्ध मध्यम और संवादी स्वर षडज होता है। राग भैरवी के आरोह
स्वर हैं, सा, रे॒ (कोमल), ग॒ (कोमल), म, प, ध॒ (कोमल), नि॒ (कोमल), सां
तथा अवरोह के स्वर, सां, नि॒ (कोमल), ध॒ (कोमल), प, म ग (कोमल), रे॒
(कोमल), सा होते हैं। यूँ तो इस राग के गायन-वादन का समय प्रातःकाल,
सन्धिप्रकाश बेला है, किन्तु आमतौर पर इसका गायन-वादन किसी संगीत सभा अथवा
समारोह के अन्त में किये जाने की परम्परा बन गई है। गायिका गीता दत्त ने इस
ठुमरी को बोल-बाँट के अन्दाज़ में गाया है। अन्त के सरगम से ठुमरी का
श्रृंगार पक्ष अधिक प्रबल हो जाता है। भारतीय संगीत जगत के अनेक संगीत
विद्वानों ने ठुमरी अंग में इस रचना को गाकर अलग-अलग रंग भरे हैं। जिन
उपशास्त्रीय गायकों ने इस ठुमरी को लोकप्रिय किया है उनमें उस्ताद मुनव्वर
अली खाँ, उस्ताद मुर्तजा खाँ, उस्ताद शफकत अली खाँ आदि प्रमुख हैं। तीन ताल
में निबद्ध फिल्म 'लड़की' में गीता दत्त की आवाज़ में गायी गई यह ठुमरी
अभिनेत्री अंजली देवी पर फिल्माया गया है। फिल्म के इस प्रसंग में अभिनेता
भारत भूषण भी शामिल है। यही ठुमरी 1957 की फिल्म 'रानी रूपमती' में भी
शामिल की गई थी, जिसे कृष्णराव चोनकर और मोहम्मद रफ़ी ने स्वर दिया था।
फिल्म ‘लड़की’ की इस ठुमरी को आर. सुदर्शनम् और धनीराम ने संगीत से सजाया
है। गीतकार राजेन्द्र कृष्ण ने मूल ठुमरी के अन्तरों में आंशिक शब्दान्तर
किया है। आप गीता दत्त की आवाज़ में भैरवी की यह आकर्षक ठुमरी सुनिए और
मुझे आज के इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए।
ठुमरी भैरवी : "बाट चलत नई चुनरी रंग डारी श्याम..." : गीता दत्त : फिल्म – लड़की
संगीत पहेली
‘स्वरगोष्ठी’
के 347वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको 1958 में प्रदर्शित एक फिल्म
से एक ठुमरी गीत का एक अंश सुनवा रहे हैं। गीत के इस अंश को सुन कर आपको
निम्नलिखित तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। यदि आपको
तीन में से केवल एक ही प्रश्न का उत्तर ज्ञात हो तो भी आप प्रतियोगिता में
भाग ले सकते हैं। इस वर्ष के अन्तिम अंक की ‘स्वरगोष्ठी’ तक जिस प्रतिभागी
के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस वर्ष के पाँचवें सत्र का विजेता घोषित
किया जाएगा। इसके साथ ही पूरे वर्ष के प्राप्तांकों की गणना के बाद
महाविजेताओं की घोषणा भी की जाएगी।
1 – इस गीतांश को सुन कर बताइए कि इसमें किस राग का स्पर्श है?
2 – इस गीत में प्रयोग किये गए ताल का नाम बताइए।
3 – इस गीत में किस सुप्रसिद्ध पार्श्वगायिका की आवाज़ है?
आप उपरोक्त तीन मे से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर ही शनिवार, 16 दिसम्बर, 2017 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। आपको यदि उपरोक्त तीन में से केवल एक प्रश्न का सही उत्तर ज्ञात हो तो भी आप पहेली प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। COMMENTS
में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते हैं, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर
देने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। विजेता का नाम हम उनके शहर,
प्रदेश और देश के नाम के साथ ‘स्वरगोष्ठी’ के 349वें अंक में
प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के
बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना
चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे
दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’
की 345वीं कड़ी की पहेली में हमने आपको 1949 में प्रदर्शित फिल्म “बेकसूर”
से एक ठुमरीनुमा गीत का अंश सुनवा कर आपसे तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों
का उत्तर पूछा था। पहले प्रश्न का सही उत्तर है, राग पीलू, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है, ताल – दादरा और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है, स्वर – राजकुमारी।
इस अंक की पहेली प्रतियोगिता में प्रश्नों के सही उत्तर देने वाले हमारे प्रतिभागी हैं – जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी, पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया, वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया और हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी। इन सभी प्रतिभागियों को 2-2 अंक मिलते हैं, जब कि चेरीहिल न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल को एक अंक मिलेगा। आशा
है कि हमारे अन्य पाठक / श्रोता भी नियमित रूप से साप्ताहिक स्तम्भ
‘स्वरगोष्ठी’ का अवलोकन करते रहेंगे और पहेली प्रतियोगिता में भाग लेंगे।
उपरोक्त सभी प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक
बधाई।
अपनी बात
मित्रों,
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी हमारी
नई श्रृंखला “फिल्मी गीतों में ठुमरी के तत्व” की आज की कड़ी में आपने 1953
में प्रदर्शित फिल्म “लड़की” के ठुमरी गीत का रसास्वादन किया। इस श्रृंखला
में हम आपसे कुछ ऐसे फिल्मी गीतों पर चर्चा करेंगे जिसमें आपको ठुमरी शैली
के दर्शन होंगे। आज आपने जो गीत सुना, उसमें राग पीलू का स्पर्श है। इस
श्रृंखला में भी हम आपसे फिल्मी ठुमरियों पर चर्चा कर रहे हैं और शास्त्रीय
और उपशास्त्रीय संगीत और रागों पर चर्चा भी करेंगे। हमारी वर्तमान और
आगामी श्रृंखलाओं के लिए विषय, राग, रचना और कलाकार के बारे में यदि आपकी
कोई फरमाइश हो तो हमें swargoshthi@gmail.com पर अवश्य लिखिए। अगले अंक में रविवार को प्रातः 7 बजे हम ‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर सभी संगीत-प्रेमियों का स्वागत करेंगे।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
रेडियो प्लेबैक इण्डिया
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