’रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। 2017 में अब बस एक सप्ताह शेष बचा है। देखते देखते न जाने कितनी जल्दी बीत जाते हैं ये साल, और साल के अन्त में जब हम पीछे मुड़ कर देखते हैं तो न जाने कितनी यादें याद आ जाती हैं। फ़िल्म और फ़िल्म-संगीत की अगर बात करें तो हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी बहुत सी फ़िल्में बनी और इन फ़िल्मों के लिए बहुत सारे गाने भी बने। वर्ष के प्रथम आठ महीनों के फ़िल्म-संगीत की समीक्षा ’चित्रकथा’ में हम कर चुके हैं और आपने भी ज़रूर पढ़े होंगे। अब आज इस वर्ष के इस अन्तिम ’चित्रकथा’ में आइए आज जल्दी से नज़र दौड़ा लें सितंबर से लेकर दिसंबर तक के प्रदर्शित होने वाले महत्वपूर्ण फ़िल्मों के गीत-संगीत पर। ’चित्रकथा’ का यह स्वर्ण-जयन्ती अंक आज के दौर के प्रतिभाशाली युवा संगीत कलाकारों के नाम!
सितंबर के पहले सप्ताह, या यूं कहें कि पहली ही तारीख़ को दो महत्वपूर्ण फ़िल्में रिलीज़ हुईं - ’बादशाहो’ और ’शुभ मंगल सावधान’। मिलन लुथरिया की क्राइम थ्रिलर ’बादशाहो’ में आकर्षक आठ गाने हैं जिनमें शामिल हैं "सोचा है" के तीन संस्करण, "मेरे रश्क़-ए-क़मर" के तीन संस्करण तथा "पिया मोरे" और "होशियार रहना" जैसे गीत। यानी कि चार गीतों को आठ गीत बनाया गया है इस ऐल्बम में। उससे भी बड़ी बात यह कि इनमें केवल एक गीत ही ऑरिजिनल गीत है, बाकी सभी गीत पुराने गीतों के रीमेक हैं। "सोचा है" गीत 70 के दशक की फ़िल्म ’दीवार’ के मशहूर गीत "कह दूँ तुम्हें या चुप रहूँ" का रीमेक है। अभिजीत भगनानी ने इस गीत को नया जामा पहनाया है। गीतकार मनोज मुन्तशिर ने साहिर लुधियानवी के मूल बोलों के साथ छेड़-छाड ना करते हुए भी इस गीत को एक नया अंग प्रदान किया है। गीत के तीनो वऱ्ज़न जुबिन नौटियाल और नीति मोहन ने गाए हैं। कुल मिला कर अच्छा लगा सुन कर। दूसरा गीत "पिया मोरे" मीका सिंह और नीति मोहन की आवाज़ों में है जो अंकित तिवारी के ही पिछले कम्पोज़िशन "नशा सर पे चढ़ के बोले" जैसा प्रतीत होता है। नुसरत फ़तेह अली ख़ान साहब के मूल गीत "मेरे रश्क़-ए-क़मर" को तनिश्क बागची ने नया रूप देकर राहत फ़तेह अली ख़ान से गवाया है। मनोज मुन्तशिर ने एक बार फिर नए बोलों से सजाया है इस गीत को। इस गीत को काफ़ी सराहा जा रहा है। ऐल्बम का एकमात्र मूल गीत "होशियार रहना" लोक गायक नीरज आर्या की प्रस्तुति है जिनका एक पाँच सदस्यों वाला बैण्ड भी है ’नीरज आर्या’स कबीर काफ़े’ नाम से। यह बैण्ड कबीर के दोहों को नया रूप देने का काम कर रही है। ’शुभ मंगल सावधान’ एक तमिल फ़िल्म का रीमेक है। ऐल्बम का पहला गीत "लड्डू" मीका की आवाज़ में है जिसके हिंगलिश बोलों की वजह से आज की पीढ़ी ने इसे गले से लगाया। दूसरा गीत "कान्हा" एक कर्णप्रिय गीत है शाशा तिरुपति की आवाज़ में जो आपको ’बाहूबली 2’ के "कान्हा सोजा ज़रा" की याद दिला जाएगा। गीत का एक और संस्करण आयुष्मान खुराना की आवाज़ में है जिसमें तापस रॉय का गीटार है पार्श्व में। ये दोनों ही गीत संगीतकार-गीतकार जोड़ी तनिष्क-वायु की कृतियां हैं। फ़िल्म का अन्तिम गीत "रॉकेट सैयां" मज़ेदार गीत है ॠतु पाठक की आवाज़ में। गीतकार बृजेश शान्डिल्य और संगीतकार तनिष्क बागची इसे एक अलग ही मुकाम पर पहुँचा देते हैं।
सितंबर के दूसरे हफ़्ते रिलीज़ हुई ’पोस्टर बॉयज़’ और ’डैडी’। सनी देओल, बॉबी देओल और श्रेयस तलपडे अभिनीत ’पोस्टर बॉयज़’ के संगीत में पंजाबी रंघ का होना आश्चर्य की बात नहीं। और आजकल के ट्रेण्ड के मुताबिक सनी ने भी अपने एक पुराने गीत का रीमेक करवाया है इस फ़िल्म के लिए। ’अर्जुन पंडित’ का मशहूर गीत "कुड़ियाँ शहर दियाँ" को दलेर मेहन्दी की आवाज़ में ही वापस लाया गया है, लेकिन महिला कंठ में अलका याज्ञ्निक की आवाज़ को नेहा कक्कर से बदल दिया गया है। तनिष्क बागची इस विधा में महारथ हासिल करते चले जा रहे हैं। जावेद अख़्तर के मूल बोलों को इस बार शब्बीर अहमद ने नया जामा पहनाया है। कुल मिला कर गीत अच्छा बना है। लेकिन इससे भी बेहतर गीत है "केन्दी मैनु" जिसे ॠषि रिच ने कम्पोज़ किया है और कुमार ने लिखा है। यश नरवेकर, सुकृति कक्कर और इक्का के गाए इस गीत को बार बार सुनते रहने का मन करता है। फ़िल्म के अन्य गीत ख़ास छाप छोड़ पाने में असमर्थ हैं। सितंबर के तीसरे हफ़्ते में आई तीन फ़िल्में - ’सिमरन’, ’लखनऊ सेन्ट्रल’ और ’पटेल की पंजाबी शादी’। इनमें ’सिमरन’ के गीत-संगीत का उल्लेख ज़रूरी है। सचिन-जिगर के संगीत में प्रिया सरैया और वायु के बोलों से सजा है यह ऐल्बम। पहला गीत "लगदी है ठाइ" पंजाबी लोक गीत "लट्ठे दी चादर" की याद दिला जाता है। गुरु रंढवा और जोनिता गांधी की आवाज़ों में यह गीत थिरकने पर मजबूर कर देता है। सुनिधि चौहान की आवाज़ में "पिंजरा रोड़ के" एक काव्यात्मक शैली का गीत है जिसमें इंडि-पॉप फ़ील है जो फ़िल्म की कहानी के साथ चलता है। अरिजीत सिंह की आवाज़ में "मीत" भी सुनने लायक गीत है। शालमली खोलगडे और दिव्य कुमार की आवाज़ों में गुजराती-हिन्दी गीत "मजा नी लाइफ़" भी काफ़ी रोचक है और अन्तिम गीत "सिमरन" में एक यूरोपियन रंग है जिसे जिगर सरैया ने ख़ुद गाया है।
22 सितंबर को कुल पाँच फ़िल्में प्रदर्शित हुईं - ’न्युटन’, ’भूमि’, ’दि फ़ाइनल एग्ज़िट’, ’जेडी’ और ’हसीना पारकर’। सचिन-जिगर के संगीत से ही सजी ’हसीना पारकर’ का पहला गीत अरिजीत सिंह की आवाज़ में है "तेरे बिना" जो प्रिया सरैया का लिखा हुआ है और उन्होंने अरिजीत के साथ गीत में अपनी आवाज़ भी मिलाई है। इस गीत को सुनते हुए ’बचना ऐ हसीनों’ फ़िल्म के "ख़ुदा जाने के" गीत की याद आ ही जाती है। गीतकार कीर्ति शेट्टी उर्फ़ स्लिम शेट्टी का लिखा "बनतई" शायद इस दौर का "गणपत, चल दारु ला" बनना चाहता हो, लेकिन मुंह के बल गिर पड़ा है। अन्तिम गीत "पिया आ" सुनिधि चौहान की आवाज़ में है जो 80 के दशक के आइटम नम्बर जैसा सुनाई देता है। सितंबर की अन्तिम और शायद सबसे कामयाब फ़िल्म रही ’जुड़वा 2’ जो 29 सितंबर को रिलीज़ हुई। मूल फ़िल्म ’जुड़वा’ के दो हिट गीत "टन टना टन... चलती है क्या नौ से बारह" और "ऊँची है बिल्डिंग्" का रीमेक किया गया है इसमें और बाक़ी की रचनाएँ मौलिक हैं। देव कोहली - अनु मलिक के मूल गीत "चलती है क्या नौ से बारह" को नया जामा पहनाया है संदीप शिरोडकर ने। देव नेगी और नेहा कक्कर ने अपनी आवाज़ें दी हैं। ऐल्बम का दूसरा गीत "सुनो गणपति बप्प मोरया" साजिद-वाजिद का ट्रेडमार्क गीत है दानिश साबरी का लिखा हुआ और अमित मिश्रा का गाया हुआ। "ऊँची है बिल्डिंग्" के रीमेक की अच्छी बात यह है कि अनु मलिक की आवाज़ को ही रखा गया है। और एक बार फिर नेहा कक्कर ने मूल गीत की गायिका (पूर्णिमा) का स्थान ले लिया है। ख़ास बात यह कि वह गीत भी सुपरहिट था, यह गीत भी सुपरहिट सिद्ध हुआ। अन्तिम गीत है "आ तो सही" जिसे मीत ब्रदर्स और नेहा कक्कर ने गाया है।सोनू सग्गू ने इसे लिखा है। कमाल की बात यह है कि मौलिक गीत हो कर भी उन दो सुपरहिट रीमेक गीतों के साथ क़दम से क़दम मिला कर चला है यह गीत।
अक्टुबर का महीना फ़िल्म जगत के लिए कुछ ख़ास नहीं रहा। पूरे महीने में केवल नौ फ़िल्में ही प्रदर्शित हुईं और उनमें से दो तीन फ़िल्मों ने ही दर्शकों पर छाप छोड़े। पहले सप्ताह आईं ’तू है मेरा संडे’, ’शेफ़’, ’बाबूजी एक टिकट बम्बई’, और ’मैं टेररिस्ट नहीं हूँ’ जैसी फ़िल्में। ’शेफ़’ को छोड़ कर बाकी फ़िल्में कब आईं कब गईं पता भी नहीं चला। सैफ़ अली ख़ान के होने की वजह से ’शेफ़’ फ़िल्म के गीत-संगीत से उम्मीदें लगाने का मन होता है। हालाँकि यह फ़िल्म हॉलीवूड की फ़िल्म पर आधारित है, इस वजह से उत्सुक्ता और भी बढ़ जाती है कि संगीतकार रघु दीक्षित और अमाल मलिक तथा गीतकार अंकुर तिवारी और रश्मी विराग किस तरह के गीतों का सृजन इसमें करेंगे। ऐल्बम का पहला गीत "शुगल लगा ले" लोक रंग आधारित है जिसे रघु ने स्वरबद्ध किया व गाया है। काफ़ी ऊर्जा से भरा हुआ गाना है यह। दूसरे गीत "दर्मियाँ" की शुरुआत गीटार के सुन्दर संगीत से होती है। इसमें भी रघु की ही आवाज़ है। अंकुर तिवारी के बोलों ने इस गीत में सही जज़्बात भर दिए हैं। तीसरा गीत है "टन टन" निकिता गांधी का गाया हुआ। गुज़रे ज़माने के "चा चा चा" की याद दिलाता "टन टन" में कोई ख़ास बात नज़र नहीं आई। शाहिद माल्या का गाया "खोया खोया" जैसे "दर्मियाँ" का ही एक्स्टेन्शन है जो किसी भी तरह से ध्यान आकर्षित करने में अक्षम है। लेकिन अगला ही गीत "बंजारा" ऐल्बम को पटरी पर वापस ले आता है। विशाल दादलानी की आवाज़ में यह गीत उनके अन्य हर गीत की तरह चमकदार है जो एक ही झटके में अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। फ़िल्म के अतिथि गीतकार-संगीतकार रश्मि विराग और अमाल मलिक एक साथ आते हैं "तेरे मेरे" गीत के लिए जिसे अरमान मलिक ने गाया है और जो सीधे दिल में उतर जाता है। अक्टुबर के दूसरे सप्ताह में एक ही फ़िल्म आई ’रांची डायरीज़’ जिसमें जिम्मी शेरगिल, ताहा शाह, हिमांश कोहली, सौन्दर्य शर्मा, अनुपम खेर, सतिश कौशिक जैसे जाने माने कलाकार थे, लेकिन ना तो फ़िल्म चली और ना ही इसके गीत-संगीत में कोई दम था। लेकिन तीसरे सप्ताह में दो महत्वपूर्ण फ़िल्में रिलीज़ हुईं - पहली ’आमिर ख़ान प्रोडक्शन्स’ की ’सीक्रेट सुपरस्टार’ और रोहित शेट्टी निर्देशित ’गोलमाल अगैन’। ’सीक्रेट सुपरस्टार’ में क्योंकि मुख्य नायक एक गायक है, इस वजह से इस फ़िल्म का गीत-संगीत पक्ष महत्वपूर्ण हो जाता है। इस वजह से आमिर ख़ान ने संगीतकार अमित त्रिवेदी और गीतकार कौसर मुनीर को ज़िमा दिया और बने कुल छह गीत। फ़िल्म की नायिका ज़ायरा वसीम की आवाज़ बनी गायिका मेघना मिश्रा जिनकी आवाज़ में ऐल्ब के चार गीत हैं। कहना ज़रूरी है कि मेघना की आवाज़ ज़ायरा पर ख़ूब जँची हैं। पहला गीत "मैं कौन हूँ" दरसल ख़ुद का आविष्कार करता गीत है जिसे कौसर मुनीर ने बहुत ख़ूब लिखा है। माँ को समर्पित है अगला गीत "मेरी प्यारी अम्मी" और इस गीत के बोल भी हमारा ध्यान आकर्षित करने में पूरी तरह से सक्षम है। कम से कम साज़ों के इस्तमाल की वजह से यह गीत दिल को और भी ज़्यादा छूता है जब भी इसे सुने। पहाड़ी छाप लिए "सपना रे" एक कर्णप्रिय रचना है जिसमें पुराने समय के संगीत की छाया मिलती है। पता नहीं कैसे पर इस गीत को सुनते हुए "मैंने कहा फूलों से" गीत की याद आ गई। अगले दो गीत "आइ विल मिस यू" और "नचदी फिरां" एक ही बार सुनने लायक हैं। और ऐल्बम का अन्तिम गीत "सेक्सी बलिए" मीका सिंह की आवाज़ में है जो आमिर ख़ान पर फ़िल्माया गया है। गीत का फ़िल्मांकन एक मोबाइल म्युज़िक विडियो के रूप में केवल दो-तीन कट में किया गया है।
उधर ’गोलमाल अगैन’ के गीत-संगीत से भी लोगों की काफ़ी उम्मीदें रहीं। इससे पहले की तीन "गोलमाल" फ़िल्मों के संगीत ने अपना छाप छोड़ा है, इसलिए इस बार रोहित शेट्टी पर और भी ज़्यादा दबाव था। शेट्टी की पुरानी टीम के तमाम संगीतकार और गीतकार कुमार ने इस फ़िल्म के लिए चार गीत बनाए। फ़िल्म के शीर्षक गीत में दक्षिण के संगीतकार तमन एस. ने दक्षिण का मसाला डाल कर एक तरो-ताज़े गीत की रचना की है और बाकी काम बृजेश शान्डिल्य और अदिति सिंह शर्मा ने अपनी आवाज़ों से कर दिया है। इन्स्टैन्ट हिट!! दूसरा गीत "नींद चुरायी मेरी" अमाल मलिक की आवाज़ में है जो अजय देवगन की ही पुरानी फ़िल्म ’इश्क़’ के गीत का रीमेक है। अमाल मलिक ने जिस तरह से "मैंने तुझको देखा" के रूप में इस पुराने गीत को पेश किया है, काबिल-ए-तारीफ़ है। नीरज श्रीधर और सुकृति कक्कर ने 20 साल पुराने गीत को फिर से ज़िन्दा कर दिया है। लिजो जॉर्ज-डीजे चेतस लेकर आते हैं "इतना सन्नाटा क्यों है भाई" जो अदिति सिंह शर्मा और अमित मिश्रा की आवाज़ें पाकर खिल उठा है। अमाल और अरमान भाइयों की जोड़ी फिर से साथ में आते हैं "हम नहीं सुधरेंगे" गीत में और इस गीत में इन भाइयों के जाने पहचाने अंदाज़ को महसूस किया जा सकता है जिसके लिए ये जाने जाते हैं। कुल मिला कर ’गोलमाल अगैन’ का ऐल्बम लाउड है और अच्छी बात यह है कि केवल चार गीतों में ही ऐल्बम को समेटा गया है ताकि फ़िल्म की कहानी के बहाव में ये रुकावट ना पैदा कर सके। अक्टुबर के अन्तिम सप्ताह में दो फ़िल्में आईं थीं - ’जिया और जिया’ और ’रुख़’ जो व्यावसायिक रूप से असफल रहीं।
नवंबर का महीना शुरु हुआ तीन फ़िल्मों के प्रदर्शन से - ’इत्तेफ़ाक़’, ’दि हाउस नेक्स्ट डोर’, और ’’रिबन’। आपको याद होगा 1969 की फ़िल्म ’इत्तेफ़ाक़’ में कोई भी गीत नहीं था। उसी कहानी पर बनी 2017 की ’इत्तेफ़ाक़’ में भी कोई गीत नहीं है सिवाय एक प्रोमोशनल ट्रैक के। यह गीत 1982 की फ़िल्म ’नमक हलाल’ का मशहूर गीत "रात बाकी" का रीमेक है। मूल गीत में आशा भोसले, बप्पी लाहिड़ी और शशि कपूर की आवाज़ें थीं। अनजान के लिखे इस गी्त को तनिष्क बागची और ग्रूत ने नया जामा पहनाया है। हूक लाइन "प्यार से" को "इत्तेफ़ाक़ से" से बदल दिया गया है। निकिता गांधी और जुबिन नौटियाल ने अच्छा निभाया है "रात बाकी" के 2017 संस्करण को। नवंबर के दूसरे सप्ताह भी तीन फ़िल्में आईं - ’शादी में ज़रूर आना’, ’क़रीब क़रीब सिंगल’ और ’दि विन्डो’। 17 नवंबर को रिलीज़ हुई ’अक्सर 2' जो मूल ’अक्सर’ हीए की तरह कामुक दृश्यों से सराबोर रही। गौतम रोडे, अभिनव शुक्ला और ज़रीन ख़ान अभिनीत इस फ़िल्म के गीत-संगीत से लोगों की उम्मीदें थीं क्योंकि मूल फ़िल्म में "झलक दिखला जा", "लगी लगी लगी" जैसे हिट गीत थे। अब की बार हिमेश रेशम्मिया की जगह हैं मिथुन, और गीतकारी का ज़िम्मा सयीद क़ादरी पर है। ऐल्बम का पहला गीत "आज ज़िद" अरिजीत सिंह की आवाज़ में है जो बिल्कुल इमरान हाशमी के किसी भी बेडरूम नंबर जैसा सुनाई देता है। गीत को सुन कर इस गीत के फ़िल्मांकन का अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है। दूसरा गीत "जाना वे" भी इसी श्रेणी का ही है और इस बार भी अरिजीत सिंह निराश नहीं करते। सेन्सुयल अंदाज़ में गाया और फ़िल्माया गया यह गीत अच्छा बना है। और ऐल्बम का अन्तिम गीत है "तन्हाइयाँ" जिसे अमित मिश्र ने गाया है। उदासी भरा यह गीत भले फ़िल्म के सिचुएशन पर बनाई गई हो लेकिन असल में यह फ़िल्म की कहानी को आगे बढ़ाने की बजाय उसे धीमा कर देता है। यह गीत ऐल्बम की कमज़ोर कड़ी साबित हुई है। कुल मिला कर यह कहा जा सकता है कि ’अक्सर’ के मुक़ाबले ’अक्सर 2' कुछ भी नहीं है। नवंबर में प्रदर्शित होने वाली अन्य फ़िल्में थीं - ’पंचलैट’, ’तुम्हारी सुलु’, ’दिल जो ना कह सका’, ’जुली 2’, ’अज्जी’, और ’कड़वी हवा’।
अब हम पहुँच जाते हैं वर्ष 2017 के अन्तिम माह दिसंबर पर। पहली तारीख़ को दो फ़िल्में प्रदर्शित हुईं - ’तेरा इन्तज़ार’ और ’फ़िरंगी’। दोनों ही फ़िल्में सुपर फ़्लॉप और ना ही इनके गीत-संगीत में कोई दम। इसलिए अगले फ़िल्म की तरफ़ बढ़ने में ही भलाई है। दूसरे सप्ताह रिलीज़ हुईं ’गेम ओवर’, ’सल्लु की शादी’ और ’फ़ुकरे रिटर्ण्स’। ’फ़ुकरे रिटर्ण्स’ के संगीत से आज की पीढ़ी को उम्मीदें रहीं क्योंकि इससे पहले ’फ़ुकरे’ में भी कुछ मज़ेदार गाने थे। ’फ़ुकरे रिटर्न्स’ में कई गीतकार व संगीतकार हैं और ऐल्बम में कुल आठ गाने हैं। पुराने गीतों के रीमेक का जो नशा चढ़ा है इस साल, वह जारी है और इस फ़िल्म में भी 1977 की फ़िल्म ’धरम वीर’ के गीत "ओ मेरी महबूबा" को नया जामा पहना कर पेश किया गया है। कमाल की बात यह है कि रफ़ी साहब की आवाज़ को भी रखा गया है और साथ में आज की आवाज़ें भी हैं जैसे कि नेहा कक्कर और यासेर देसाई की। इस गीत के रीमेक के पीछे हाथ है प्रेम हरदीप कौर और गीतकार कुमार का। संगीतकार जसलीन रॉयल लेकर आती हैं एक पंजाबी ट्रैक "पै गया खलारा" जिससे पंजाब की मिट्टी की सुगंध आती है और ढोल की आवाज़ें तो जैसे गीत का सही साथी है। आवाज़ों की अगर बात करें तो जसलीन तो हैं ही, उनके साथ हैं दिव्य कुमार, आकाश सिंह, आकांक्षा भण्डारी। गीत लिखा है आदित्य शर्मा ने। "लंदन ठुमकदा" शैली का होते हुए भी इसमें वैसा मज़ा नहीं आ सका है। मज़े और मस्तियाँ जारी हैं अगले गीत में भी। सुमीत बेल्लरी स्वरबद्ध और सत्य खरे का लिखा "तू मेरा भाई नहीं है" जिसे गम्ढर्व सवदेवा और रफ़्तार ने गाया है। अतिरिक्त बोल रोहित शर्मा और अर्सलान अखून ने लिखे हैं। फ़िल्म के बाहर इस गीत का कोई औचित्य नहीं है। शरीब-तोशी स्वरबद्ध व गाया "इश्क़ दे फ़न्नियर" का एक अन्य संस्करण भी है ज्योतिका टंगरी की आवाज़ में जो "अम्बरसरिया" की याद दिला जाता है। फ़िल्म का शीर्षक गीत गुलराज सिंह वारा स्वरबद्ध है और वो ख़ुद इसे गाते हैं सिद्धार्थ महादेवन और शैनन डोनाल्ड के साथ। कुमार के लिखे इस गीत में बोलॊं के लिहाज़ से तो कुछ ख़ास नहीं है, लेकिन फ़िल्म के मूड को बरकरार रखने में यह कामयाब ज़रूर है। संगीतकार, गीतकार और गायक श्री डी का "रैना" इश्क़ बेक्टर के साथ गाया हुआ है जो फ़िल्म के बाहर लोग याद नहीं किया जाएगा। अन्तिम गीत है "बुरा ना मानो भोली है" जो फ़िल्म के किरदार भोली पर लिखा गया है। सत्य खरे लिखित और सुमीत बेल्लरी स्वरबद्ध इस गीत को गाया है मृगदीप सिंह लाम्बा, विपुल विग, गंधर्व सचदेवा और शाहिद माल्या ने। कुल मिला अक्र ’फ़ुकरे रिटर्न्स’ का ऐल्बम मूलत: सिचुएशनल है जिसका अस्तित्व फ़िल्म तक ही सीमित है।
अभी कल ही प्रदर्शित हुई है बड़ी फ़िल्म ’टाइगर ज़िन्दा है’। 2012 में जब ’एक था टाइगर’ का म्युज़िक रिलीज़ हुआ था, तब वह फ़िल्म की कामयाबी का एक महत्वपूर्ण ज़रिया बन गया था। "लापता", "माशा अल्लाह", "बनजारा" और "सैंयारा" जैसे गीत लोगों के ज़ुबां पर चढ़ गए थे। इसलिए सीक्वील फ़िल्म ’टाइगर ज़िन्दा है’ के गीतों पर लोगों की नज़र रही। विशाल-शेखर और इरशाद कामिल ने कैसा काम किया है, आइए ज़ायज़ा लिया जाए। पहला गीत "स्वर्ग से स्वागत" विशाल दादलानी और नेहा भसीन की आवाज़ों में है जो एक चार्टबस्टर बन चुका है। गीत की ख़ास बात है कि जिस तरह से मुखड़े से अन्तरे पर आ जाते हैं और फिर शुरु होता है जुगलबन्दी, कमाल का काम किया है विशाल-शेखर ने। दूसरे गीत "दिल दियां गल्लां" में आतिफ़ असलम को काफ़ी समय बाद सुनने का मौका मिला। सूफ़ियाने अन्दाज़ के इस गीत के जैसे न जाने कितने गीत राहत फ़तेह अली ख़ान ने हिन्दी फ़िल्मों में गाए हैं पिछले कुछ सालों में। लेकिन आतिफ़ ने भी अच्छा निभाया है सलमान पर फ़िल्माया गया यह गीत। इस गीत का एक एन्हा भसीन संस्करण भी है। रफ़्तार के रैप के साथ तीसरा ट्रैक थीम ट्रैक है "ज़िन्दा है"। श्रेया घोषाल का गाया भक्ति गीत "दाता तू" भी सिचुएशनल ट्रैक है लेकिन एक कर्णप्रिय रचना है। नूरान सिस्टर्स की ज्योति नूरान का गाया "तेरा नूर" इस ऐल्बम का आख़िरी गीत है जो सूफ़ी-रॉक शैली में निबद्ध है। धीमी रफ़्तार से शुरु होकर धीरे धीरे तेज़ पकड़ता है यह गीत और सुनने वाले के दिल में जगह भी कर लेता है। कुल मिला कर कहा जा सकता है कि ’टाइगर ज़िन्दा है’ का ऐल्बम मूलत: सिचुएशनल है और क्योंकि फ़िल्म अभी प्रदर्शित हुई ही है, हो सकता है कि धीरे धीरे ये गाने लोगों की ज़ुबां पर चढ़ जाए। यह तो वक़्त ही बताएगा।
तो दोस्तों, यहाँ आकर सम्पन्न होती है वर्ष 2017 की फ़िल्म-संगीत समीक्षा जिसे हमने और आपने तय किया पाँच अंकों में। इसी उम्मीद के साथ कि वर्ष 2018 में और भी सुरीले गाने हमारी फ़िल्मों में सुनने को मिलेंगे, अब आपके इस दोस्त सुजॉय चटर्जी को अनुमति दीजिए, नमस्कार!
सितंबर के दूसरे हफ़्ते रिलीज़ हुई ’पोस्टर बॉयज़’ और ’डैडी’। सनी देओल, बॉबी देओल और श्रेयस तलपडे अभिनीत ’पोस्टर बॉयज़’ के संगीत में पंजाबी रंघ का होना आश्चर्य की बात नहीं। और आजकल के ट्रेण्ड के मुताबिक सनी ने भी अपने एक पुराने गीत का रीमेक करवाया है इस फ़िल्म के लिए। ’अर्जुन पंडित’ का मशहूर गीत "कुड़ियाँ शहर दियाँ" को दलेर मेहन्दी की आवाज़ में ही वापस लाया गया है, लेकिन महिला कंठ में अलका याज्ञ्निक की आवाज़ को नेहा कक्कर से बदल दिया गया है। तनिष्क बागची इस विधा में महारथ हासिल करते चले जा रहे हैं। जावेद अख़्तर के मूल बोलों को इस बार शब्बीर अहमद ने नया जामा पहनाया है। कुल मिला कर गीत अच्छा बना है। लेकिन इससे भी बेहतर गीत है "केन्दी मैनु" जिसे ॠषि रिच ने कम्पोज़ किया है और कुमार ने लिखा है। यश नरवेकर, सुकृति कक्कर और इक्का के गाए इस गीत को बार बार सुनते रहने का मन करता है। फ़िल्म के अन्य गीत ख़ास छाप छोड़ पाने में असमर्थ हैं। सितंबर के तीसरे हफ़्ते में आई तीन फ़िल्में - ’सिमरन’, ’लखनऊ सेन्ट्रल’ और ’पटेल की पंजाबी शादी’। इनमें ’सिमरन’ के गीत-संगीत का उल्लेख ज़रूरी है। सचिन-जिगर के संगीत में प्रिया सरैया और वायु के बोलों से सजा है यह ऐल्बम। पहला गीत "लगदी है ठाइ" पंजाबी लोक गीत "लट्ठे दी चादर" की याद दिला जाता है। गुरु रंढवा और जोनिता गांधी की आवाज़ों में यह गीत थिरकने पर मजबूर कर देता है। सुनिधि चौहान की आवाज़ में "पिंजरा रोड़ के" एक काव्यात्मक शैली का गीत है जिसमें इंडि-पॉप फ़ील है जो फ़िल्म की कहानी के साथ चलता है। अरिजीत सिंह की आवाज़ में "मीत" भी सुनने लायक गीत है। शालमली खोलगडे और दिव्य कुमार की आवाज़ों में गुजराती-हिन्दी गीत "मजा नी लाइफ़" भी काफ़ी रोचक है और अन्तिम गीत "सिमरन" में एक यूरोपियन रंग है जिसे जिगर सरैया ने ख़ुद गाया है।
22 सितंबर को कुल पाँच फ़िल्में प्रदर्शित हुईं - ’न्युटन’, ’भूमि’, ’दि फ़ाइनल एग्ज़िट’, ’जेडी’ और ’हसीना पारकर’। सचिन-जिगर के संगीत से ही सजी ’हसीना पारकर’ का पहला गीत अरिजीत सिंह की आवाज़ में है "तेरे बिना" जो प्रिया सरैया का लिखा हुआ है और उन्होंने अरिजीत के साथ गीत में अपनी आवाज़ भी मिलाई है। इस गीत को सुनते हुए ’बचना ऐ हसीनों’ फ़िल्म के "ख़ुदा जाने के" गीत की याद आ ही जाती है। गीतकार कीर्ति शेट्टी उर्फ़ स्लिम शेट्टी का लिखा "बनतई" शायद इस दौर का "गणपत, चल दारु ला" बनना चाहता हो, लेकिन मुंह के बल गिर पड़ा है। अन्तिम गीत "पिया आ" सुनिधि चौहान की आवाज़ में है जो 80 के दशक के आइटम नम्बर जैसा सुनाई देता है। सितंबर की अन्तिम और शायद सबसे कामयाब फ़िल्म रही ’जुड़वा 2’ जो 29 सितंबर को रिलीज़ हुई। मूल फ़िल्म ’जुड़वा’ के दो हिट गीत "टन टना टन... चलती है क्या नौ से बारह" और "ऊँची है बिल्डिंग्" का रीमेक किया गया है इसमें और बाक़ी की रचनाएँ मौलिक हैं। देव कोहली - अनु मलिक के मूल गीत "चलती है क्या नौ से बारह" को नया जामा पहनाया है संदीप शिरोडकर ने। देव नेगी और नेहा कक्कर ने अपनी आवाज़ें दी हैं। ऐल्बम का दूसरा गीत "सुनो गणपति बप्प मोरया" साजिद-वाजिद का ट्रेडमार्क गीत है दानिश साबरी का लिखा हुआ और अमित मिश्रा का गाया हुआ। "ऊँची है बिल्डिंग्" के रीमेक की अच्छी बात यह है कि अनु मलिक की आवाज़ को ही रखा गया है। और एक बार फिर नेहा कक्कर ने मूल गीत की गायिका (पूर्णिमा) का स्थान ले लिया है। ख़ास बात यह कि वह गीत भी सुपरहिट था, यह गीत भी सुपरहिट सिद्ध हुआ। अन्तिम गीत है "आ तो सही" जिसे मीत ब्रदर्स और नेहा कक्कर ने गाया है।सोनू सग्गू ने इसे लिखा है। कमाल की बात यह है कि मौलिक गीत हो कर भी उन दो सुपरहिट रीमेक गीतों के साथ क़दम से क़दम मिला कर चला है यह गीत।
अक्टुबर का महीना फ़िल्म जगत के लिए कुछ ख़ास नहीं रहा। पूरे महीने में केवल नौ फ़िल्में ही प्रदर्शित हुईं और उनमें से दो तीन फ़िल्मों ने ही दर्शकों पर छाप छोड़े। पहले सप्ताह आईं ’तू है मेरा संडे’, ’शेफ़’, ’बाबूजी एक टिकट बम्बई’, और ’मैं टेररिस्ट नहीं हूँ’ जैसी फ़िल्में। ’शेफ़’ को छोड़ कर बाकी फ़िल्में कब आईं कब गईं पता भी नहीं चला। सैफ़ अली ख़ान के होने की वजह से ’शेफ़’ फ़िल्म के गीत-संगीत से उम्मीदें लगाने का मन होता है। हालाँकि यह फ़िल्म हॉलीवूड की फ़िल्म पर आधारित है, इस वजह से उत्सुक्ता और भी बढ़ जाती है कि संगीतकार रघु दीक्षित और अमाल मलिक तथा गीतकार अंकुर तिवारी और रश्मी विराग किस तरह के गीतों का सृजन इसमें करेंगे। ऐल्बम का पहला गीत "शुगल लगा ले" लोक रंग आधारित है जिसे रघु ने स्वरबद्ध किया व गाया है। काफ़ी ऊर्जा से भरा हुआ गाना है यह। दूसरे गीत "दर्मियाँ" की शुरुआत गीटार के सुन्दर संगीत से होती है। इसमें भी रघु की ही आवाज़ है। अंकुर तिवारी के बोलों ने इस गीत में सही जज़्बात भर दिए हैं। तीसरा गीत है "टन टन" निकिता गांधी का गाया हुआ। गुज़रे ज़माने के "चा चा चा" की याद दिलाता "टन टन" में कोई ख़ास बात नज़र नहीं आई। शाहिद माल्या का गाया "खोया खोया" जैसे "दर्मियाँ" का ही एक्स्टेन्शन है जो किसी भी तरह से ध्यान आकर्षित करने में अक्षम है। लेकिन अगला ही गीत "बंजारा" ऐल्बम को पटरी पर वापस ले आता है। विशाल दादलानी की आवाज़ में यह गीत उनके अन्य हर गीत की तरह चमकदार है जो एक ही झटके में अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। फ़िल्म के अतिथि गीतकार-संगीतकार रश्मि विराग और अमाल मलिक एक साथ आते हैं "तेरे मेरे" गीत के लिए जिसे अरमान मलिक ने गाया है और जो सीधे दिल में उतर जाता है। अक्टुबर के दूसरे सप्ताह में एक ही फ़िल्म आई ’रांची डायरीज़’ जिसमें जिम्मी शेरगिल, ताहा शाह, हिमांश कोहली, सौन्दर्य शर्मा, अनुपम खेर, सतिश कौशिक जैसे जाने माने कलाकार थे, लेकिन ना तो फ़िल्म चली और ना ही इसके गीत-संगीत में कोई दम था। लेकिन तीसरे सप्ताह में दो महत्वपूर्ण फ़िल्में रिलीज़ हुईं - पहली ’आमिर ख़ान प्रोडक्शन्स’ की ’सीक्रेट सुपरस्टार’ और रोहित शेट्टी निर्देशित ’गोलमाल अगैन’। ’सीक्रेट सुपरस्टार’ में क्योंकि मुख्य नायक एक गायक है, इस वजह से इस फ़िल्म का गीत-संगीत पक्ष महत्वपूर्ण हो जाता है। इस वजह से आमिर ख़ान ने संगीतकार अमित त्रिवेदी और गीतकार कौसर मुनीर को ज़िमा दिया और बने कुल छह गीत। फ़िल्म की नायिका ज़ायरा वसीम की आवाज़ बनी गायिका मेघना मिश्रा जिनकी आवाज़ में ऐल्ब के चार गीत हैं। कहना ज़रूरी है कि मेघना की आवाज़ ज़ायरा पर ख़ूब जँची हैं। पहला गीत "मैं कौन हूँ" दरसल ख़ुद का आविष्कार करता गीत है जिसे कौसर मुनीर ने बहुत ख़ूब लिखा है। माँ को समर्पित है अगला गीत "मेरी प्यारी अम्मी" और इस गीत के बोल भी हमारा ध्यान आकर्षित करने में पूरी तरह से सक्षम है। कम से कम साज़ों के इस्तमाल की वजह से यह गीत दिल को और भी ज़्यादा छूता है जब भी इसे सुने। पहाड़ी छाप लिए "सपना रे" एक कर्णप्रिय रचना है जिसमें पुराने समय के संगीत की छाया मिलती है। पता नहीं कैसे पर इस गीत को सुनते हुए "मैंने कहा फूलों से" गीत की याद आ गई। अगले दो गीत "आइ विल मिस यू" और "नचदी फिरां" एक ही बार सुनने लायक हैं। और ऐल्बम का अन्तिम गीत "सेक्सी बलिए" मीका सिंह की आवाज़ में है जो आमिर ख़ान पर फ़िल्माया गया है। गीत का फ़िल्मांकन एक मोबाइल म्युज़िक विडियो के रूप में केवल दो-तीन कट में किया गया है।
उधर ’गोलमाल अगैन’ के गीत-संगीत से भी लोगों की काफ़ी उम्मीदें रहीं। इससे पहले की तीन "गोलमाल" फ़िल्मों के संगीत ने अपना छाप छोड़ा है, इसलिए इस बार रोहित शेट्टी पर और भी ज़्यादा दबाव था। शेट्टी की पुरानी टीम के तमाम संगीतकार और गीतकार कुमार ने इस फ़िल्म के लिए चार गीत बनाए। फ़िल्म के शीर्षक गीत में दक्षिण के संगीतकार तमन एस. ने दक्षिण का मसाला डाल कर एक तरो-ताज़े गीत की रचना की है और बाकी काम बृजेश शान्डिल्य और अदिति सिंह शर्मा ने अपनी आवाज़ों से कर दिया है। इन्स्टैन्ट हिट!! दूसरा गीत "नींद चुरायी मेरी" अमाल मलिक की आवाज़ में है जो अजय देवगन की ही पुरानी फ़िल्म ’इश्क़’ के गीत का रीमेक है। अमाल मलिक ने जिस तरह से "मैंने तुझको देखा" के रूप में इस पुराने गीत को पेश किया है, काबिल-ए-तारीफ़ है। नीरज श्रीधर और सुकृति कक्कर ने 20 साल पुराने गीत को फिर से ज़िन्दा कर दिया है। लिजो जॉर्ज-डीजे चेतस लेकर आते हैं "इतना सन्नाटा क्यों है भाई" जो अदिति सिंह शर्मा और अमित मिश्रा की आवाज़ें पाकर खिल उठा है। अमाल और अरमान भाइयों की जोड़ी फिर से साथ में आते हैं "हम नहीं सुधरेंगे" गीत में और इस गीत में इन भाइयों के जाने पहचाने अंदाज़ को महसूस किया जा सकता है जिसके लिए ये जाने जाते हैं। कुल मिला कर ’गोलमाल अगैन’ का ऐल्बम लाउड है और अच्छी बात यह है कि केवल चार गीतों में ही ऐल्बम को समेटा गया है ताकि फ़िल्म की कहानी के बहाव में ये रुकावट ना पैदा कर सके। अक्टुबर के अन्तिम सप्ताह में दो फ़िल्में आईं थीं - ’जिया और जिया’ और ’रुख़’ जो व्यावसायिक रूप से असफल रहीं।
नवंबर का महीना शुरु हुआ तीन फ़िल्मों के प्रदर्शन से - ’इत्तेफ़ाक़’, ’दि हाउस नेक्स्ट डोर’, और ’’रिबन’। आपको याद होगा 1969 की फ़िल्म ’इत्तेफ़ाक़’ में कोई भी गीत नहीं था। उसी कहानी पर बनी 2017 की ’इत्तेफ़ाक़’ में भी कोई गीत नहीं है सिवाय एक प्रोमोशनल ट्रैक के। यह गीत 1982 की फ़िल्म ’नमक हलाल’ का मशहूर गीत "रात बाकी" का रीमेक है। मूल गीत में आशा भोसले, बप्पी लाहिड़ी और शशि कपूर की आवाज़ें थीं। अनजान के लिखे इस गी्त को तनिष्क बागची और ग्रूत ने नया जामा पहनाया है। हूक लाइन "प्यार से" को "इत्तेफ़ाक़ से" से बदल दिया गया है। निकिता गांधी और जुबिन नौटियाल ने अच्छा निभाया है "रात बाकी" के 2017 संस्करण को। नवंबर के दूसरे सप्ताह भी तीन फ़िल्में आईं - ’शादी में ज़रूर आना’, ’क़रीब क़रीब सिंगल’ और ’दि विन्डो’। 17 नवंबर को रिलीज़ हुई ’अक्सर 2' जो मूल ’अक्सर’ हीए की तरह कामुक दृश्यों से सराबोर रही। गौतम रोडे, अभिनव शुक्ला और ज़रीन ख़ान अभिनीत इस फ़िल्म के गीत-संगीत से लोगों की उम्मीदें थीं क्योंकि मूल फ़िल्म में "झलक दिखला जा", "लगी लगी लगी" जैसे हिट गीत थे। अब की बार हिमेश रेशम्मिया की जगह हैं मिथुन, और गीतकारी का ज़िम्मा सयीद क़ादरी पर है। ऐल्बम का पहला गीत "आज ज़िद" अरिजीत सिंह की आवाज़ में है जो बिल्कुल इमरान हाशमी के किसी भी बेडरूम नंबर जैसा सुनाई देता है। गीत को सुन कर इस गीत के फ़िल्मांकन का अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है। दूसरा गीत "जाना वे" भी इसी श्रेणी का ही है और इस बार भी अरिजीत सिंह निराश नहीं करते। सेन्सुयल अंदाज़ में गाया और फ़िल्माया गया यह गीत अच्छा बना है। और ऐल्बम का अन्तिम गीत है "तन्हाइयाँ" जिसे अमित मिश्र ने गाया है। उदासी भरा यह गीत भले फ़िल्म के सिचुएशन पर बनाई गई हो लेकिन असल में यह फ़िल्म की कहानी को आगे बढ़ाने की बजाय उसे धीमा कर देता है। यह गीत ऐल्बम की कमज़ोर कड़ी साबित हुई है। कुल मिला कर यह कहा जा सकता है कि ’अक्सर’ के मुक़ाबले ’अक्सर 2' कुछ भी नहीं है। नवंबर में प्रदर्शित होने वाली अन्य फ़िल्में थीं - ’पंचलैट’, ’तुम्हारी सुलु’, ’दिल जो ना कह सका’, ’जुली 2’, ’अज्जी’, और ’कड़वी हवा’।
अब हम पहुँच जाते हैं वर्ष 2017 के अन्तिम माह दिसंबर पर। पहली तारीख़ को दो फ़िल्में प्रदर्शित हुईं - ’तेरा इन्तज़ार’ और ’फ़िरंगी’। दोनों ही फ़िल्में सुपर फ़्लॉप और ना ही इनके गीत-संगीत में कोई दम। इसलिए अगले फ़िल्म की तरफ़ बढ़ने में ही भलाई है। दूसरे सप्ताह रिलीज़ हुईं ’गेम ओवर’, ’सल्लु की शादी’ और ’फ़ुकरे रिटर्ण्स’। ’फ़ुकरे रिटर्ण्स’ के संगीत से आज की पीढ़ी को उम्मीदें रहीं क्योंकि इससे पहले ’फ़ुकरे’ में भी कुछ मज़ेदार गाने थे। ’फ़ुकरे रिटर्न्स’ में कई गीतकार व संगीतकार हैं और ऐल्बम में कुल आठ गाने हैं। पुराने गीतों के रीमेक का जो नशा चढ़ा है इस साल, वह जारी है और इस फ़िल्म में भी 1977 की फ़िल्म ’धरम वीर’ के गीत "ओ मेरी महबूबा" को नया जामा पहना कर पेश किया गया है। कमाल की बात यह है कि रफ़ी साहब की आवाज़ को भी रखा गया है और साथ में आज की आवाज़ें भी हैं जैसे कि नेहा कक्कर और यासेर देसाई की। इस गीत के रीमेक के पीछे हाथ है प्रेम हरदीप कौर और गीतकार कुमार का। संगीतकार जसलीन रॉयल लेकर आती हैं एक पंजाबी ट्रैक "पै गया खलारा" जिससे पंजाब की मिट्टी की सुगंध आती है और ढोल की आवाज़ें तो जैसे गीत का सही साथी है। आवाज़ों की अगर बात करें तो जसलीन तो हैं ही, उनके साथ हैं दिव्य कुमार, आकाश सिंह, आकांक्षा भण्डारी। गीत लिखा है आदित्य शर्मा ने। "लंदन ठुमकदा" शैली का होते हुए भी इसमें वैसा मज़ा नहीं आ सका है। मज़े और मस्तियाँ जारी हैं अगले गीत में भी। सुमीत बेल्लरी स्वरबद्ध और सत्य खरे का लिखा "तू मेरा भाई नहीं है" जिसे गम्ढर्व सवदेवा और रफ़्तार ने गाया है। अतिरिक्त बोल रोहित शर्मा और अर्सलान अखून ने लिखे हैं। फ़िल्म के बाहर इस गीत का कोई औचित्य नहीं है। शरीब-तोशी स्वरबद्ध व गाया "इश्क़ दे फ़न्नियर" का एक अन्य संस्करण भी है ज्योतिका टंगरी की आवाज़ में जो "अम्बरसरिया" की याद दिला जाता है। फ़िल्म का शीर्षक गीत गुलराज सिंह वारा स्वरबद्ध है और वो ख़ुद इसे गाते हैं सिद्धार्थ महादेवन और शैनन डोनाल्ड के साथ। कुमार के लिखे इस गीत में बोलॊं के लिहाज़ से तो कुछ ख़ास नहीं है, लेकिन फ़िल्म के मूड को बरकरार रखने में यह कामयाब ज़रूर है। संगीतकार, गीतकार और गायक श्री डी का "रैना" इश्क़ बेक्टर के साथ गाया हुआ है जो फ़िल्म के बाहर लोग याद नहीं किया जाएगा। अन्तिम गीत है "बुरा ना मानो भोली है" जो फ़िल्म के किरदार भोली पर लिखा गया है। सत्य खरे लिखित और सुमीत बेल्लरी स्वरबद्ध इस गीत को गाया है मृगदीप सिंह लाम्बा, विपुल विग, गंधर्व सचदेवा और शाहिद माल्या ने। कुल मिला अक्र ’फ़ुकरे रिटर्न्स’ का ऐल्बम मूलत: सिचुएशनल है जिसका अस्तित्व फ़िल्म तक ही सीमित है।
अभी कल ही प्रदर्शित हुई है बड़ी फ़िल्म ’टाइगर ज़िन्दा है’। 2012 में जब ’एक था टाइगर’ का म्युज़िक रिलीज़ हुआ था, तब वह फ़िल्म की कामयाबी का एक महत्वपूर्ण ज़रिया बन गया था। "लापता", "माशा अल्लाह", "बनजारा" और "सैंयारा" जैसे गीत लोगों के ज़ुबां पर चढ़ गए थे। इसलिए सीक्वील फ़िल्म ’टाइगर ज़िन्दा है’ के गीतों पर लोगों की नज़र रही। विशाल-शेखर और इरशाद कामिल ने कैसा काम किया है, आइए ज़ायज़ा लिया जाए। पहला गीत "स्वर्ग से स्वागत" विशाल दादलानी और नेहा भसीन की आवाज़ों में है जो एक चार्टबस्टर बन चुका है। गीत की ख़ास बात है कि जिस तरह से मुखड़े से अन्तरे पर आ जाते हैं और फिर शुरु होता है जुगलबन्दी, कमाल का काम किया है विशाल-शेखर ने। दूसरे गीत "दिल दियां गल्लां" में आतिफ़ असलम को काफ़ी समय बाद सुनने का मौका मिला। सूफ़ियाने अन्दाज़ के इस गीत के जैसे न जाने कितने गीत राहत फ़तेह अली ख़ान ने हिन्दी फ़िल्मों में गाए हैं पिछले कुछ सालों में। लेकिन आतिफ़ ने भी अच्छा निभाया है सलमान पर फ़िल्माया गया यह गीत। इस गीत का एक एन्हा भसीन संस्करण भी है। रफ़्तार के रैप के साथ तीसरा ट्रैक थीम ट्रैक है "ज़िन्दा है"। श्रेया घोषाल का गाया भक्ति गीत "दाता तू" भी सिचुएशनल ट्रैक है लेकिन एक कर्णप्रिय रचना है। नूरान सिस्टर्स की ज्योति नूरान का गाया "तेरा नूर" इस ऐल्बम का आख़िरी गीत है जो सूफ़ी-रॉक शैली में निबद्ध है। धीमी रफ़्तार से शुरु होकर धीरे धीरे तेज़ पकड़ता है यह गीत और सुनने वाले के दिल में जगह भी कर लेता है। कुल मिला कर कहा जा सकता है कि ’टाइगर ज़िन्दा है’ का ऐल्बम मूलत: सिचुएशनल है और क्योंकि फ़िल्म अभी प्रदर्शित हुई ही है, हो सकता है कि धीरे धीरे ये गाने लोगों की ज़ुबां पर चढ़ जाए। यह तो वक़्त ही बताएगा।
तो दोस्तों, यहाँ आकर सम्पन्न होती है वर्ष 2017 की फ़िल्म-संगीत समीक्षा जिसे हमने और आपने तय किया पाँच अंकों में। इसी उम्मीद के साथ कि वर्ष 2018 में और भी सुरीले गाने हमारी फ़िल्मों में सुनने को मिलेंगे, अब आपके इस दोस्त सुजॉय चटर्जी को अनुमति दीजिए, नमस्कार!
आख़िरी बात
’चित्रकथा’ स्तंभ का आज का अंक आपको कैसा लगा, हमें ज़रूर बताएँ नीचे टिप्पणी में या soojoi_india@yahoo.co.in के ईमेल पते पर पत्र लिख कर। इस स्तंभ में आप किस तरह के लेख पढ़ना चाहते हैं, यह हम आपसे जानना चाहेंगे। आप अपने विचार, सुझाव और शिकायतें हमें निस्संकोच लिख भेज सकते हैं। साथ ही अगर आप अपना लेख इस स्तंभ में प्रकाशित करवाना चाहें तो इसी ईमेल पते पर हमसे सम्पर्क कर सकते हैं। सिनेमा और सिनेमा-संगीत से जुड़े किसी भी विषय पर लेख हम प्रकाशित करेंगे। आज बस इतना ही, अगले सप्ताह एक नए अंक के साथ इसी मंच पर आपकी और मेरी मुलाक़ात होगी। तब तक के लिए अपने इस दोस्त सुजॉय चटर्जी को अनुमति दीजिए, नमस्कार, आपका आज का दिन और आने वाला सप्ताह शुभ हो!
शोध,आलेख व प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी
प्रस्तुति सहयोग : कृष्णमोहन मिश्र
रेडियो प्लेबैक इण्डिया
Comments