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चित्रकथा - 47: इस दशक के नवोदित नायक (भाग - 8)

अंक - 47

इस दशक के नवोदित नायक (भाग - 8)


"ये हमारे हीरो हैं और हम इनके हैं फ़ैन..." 




हर रोज़ देश के कोने कोने से न जाने कितने युवक युवतियाँ आँखों में सपने लिए माया नगरी मुंबई के रेल्वे स्टेशन पर उतरते हैं। फ़िल्मी दुनिया की चमक-दमक से प्रभावित होकर स्टार बनने का सपना लिए छोटे बड़े शहरों, कसबों और गाँवों से मुंबई की धरती पर क़दम रखते हैं। और फिर शुरु होता है संघर्ष। मेहनत, बुद्धि, प्रतिभा और क़िस्मत, इन सभी के सही मेल-जोल से इन लाखों युवक युवतियों में से कुछ गिने चुने लोग ही ग्लैमर की इस दुनिया में मुकाम बना पाते हैं। और कुछ फ़िल्मी घरानों से ताल्लुख रखते हैं जिनके लिए फ़िल्मों में क़दम रखना तो कुछ आसान होता है लेकिन आगे वही बढ़ता है जिसमें कुछ बात होती है। हर दशक की तरह वर्तमान दशक में भी ऐसे कई युवक फ़िल्मी दुनिया में क़दम जमाए हैं जिनमें से कुछ बेहद कामयाब हुए तो कुछ कामयाबी की दिशा में अग्रसर हो रहे हैं। कुल मिला कर फ़िल्मी दुनिया में आने के बाद भी उनका संघर्ष जारी है यहाँ टिके रहने के लिए। ’चित्रकथा’ में आज से हम शुरु कर रहे हैं इस दशक के नवोदित नायकों पर केन्द्रित एक लघु श्रॄंखला जिसमें हम बातें करेंगे वर्तमान दशक में अपना करीअर शुरु करने वाले शताधिक नायकों की। प्रस्तुत है ’इस दशक के नवोदित नायक’ श्रॄंखला की आठवीं कड़ी।




कुछ समय पहले एक रेडियो साक्षात्कार में अभिनेता पेंटल साहब ने कहा था कि फ़िल्म जगत में सफलता प्राप्त करने के लिए निस्संदेह प्रतिभा और संघर्ष करने का जुनून होना चाहिए, लेकिन उससे भी बड़ी ज़रूरत है एक अच्छे क़िस्मत की। अगर क़िस्मत ने साथ नहीं दिया तो बाक़ी सारे गुण बेकार हो जाते हैं। उनकी इस बात में बड़ी सच्चाई है क्योंकि इतिहास गवाह है सितारों के बनने और बनते-बनते बिखर जाने में। ’इस दशक के नवोदित नायक’ श्रॄंखला की पिछली सात कड़ियों में हमने ऐसे ही बहुत से नवान्तुक अभिनेताओं के बारे में जाना जिनमें से कुछ बहुत जल्द स्थापित हो गए, कुछ को स्थापित होने में वक़्त लगा, कुछ नवयुवकों की लड़ाई अभी भी जारी है, और कुछ के अभिनेता बनने का सपना पूरा होते होते रह गया। आज शुरुआत करते हैं अबरार ज़हूर से जो एक खलनायक की भूमिका में नज़र आए थे चर्चित फ़िल्म ’नीरजा’ में। 1989 में जन्में अबरार ज़हूर 15 वर्ष की आयु में 2004 में श्रीनगर से चेन्नई का रुख़ किया और मद्रास क्रिश्चन कॉलज के माध्यमिक विद्यालय में भर्ती हो गए और पढ़ाई जारी रखा। 16 साल की उम्र में अबरार ने कसरत कर के बहुत अच्छा अपना शारीरिक गठन कर लिया था। विद्यालय के सहपाठियों के सुझाव और अपनी निजी इच्छा के आधार पर उन्होंने मॉडलिंग् शुरू कर दी। साथ ही साथ फ़िल्म जगत में ऊँचा मुकाम हासिल करने के सपने देखने लगे। विज़ुअल कम्युनिकेशन में स्नातक की डिग्री प्राप्त करने के बाद अबरार ने 3D Animation & Moviemaking का एक डिप्लोमा कोर्स किया। चेन्नई के जाने-माने मॉडल के रूप में वो उभर रहे थे, और तभी (2010 में) उन्होंने चेन्नई से बैंगलोर स्थानान्तरित होने का फ़ैसला किया। बैंगलोर से फ़ोटोग्राफ़ी और मॉडलिंग् के अपने पैशन को और खंगालने के बाद 2014 में वो आख़िरकार मुंबई पहुँचे बॉलीवूड में अपनी क़िस्मत आज़माने। वहाँ Barry John's Acting Institute से अभिनय का डिप्लोमा किया और अपना पहला ऑडिशन दिया फ़िल्म ’नीरजा’ के लिए। वो आए थे नायक बनने लेकिन पहले ही ऑडिशन में उन्हें खलनायक की भूमिका के रूप में चुन लिया गया। 2016 की इस फ़िल्म में उन्होंने विमान हाइजैकर का किरदार निभाया और उन्होंने यह साबित किया कि मूलत: एक चॉकोलेटी हीरो दिखने वाली सूरत एक खूंखार उग्रवादी का चरित्र भी बख़ूबी निभा सकता है। अबरार मूलत: कश्मीर से ताल्लुख़ रखते हैं। शायद इसी वजह से ’नीरजा’ के बाद उन्हें ’पशमीना’ के लिए साइन करवाया गया था। यह फ़िल्म भी 2016 को बन कर तैयार होनी थी, पर अभी तक नहीं हो पायी है। अब बात करेंगे अजय सिंह राठौड़ की। ’ऐंग्री यंग मैन’ फ़िल्म में अभिनय करने वाले अजय ने अपनी इस पहली ही फ़िल्म में बेहतरीन अदाकारी की है। उनका मानना है कि इस फ़िल्म में उनके द्वारा निभाए गया चरित्र उनके असली चरित्र के साथ काफ़ी मिलता-जुलता है जिस वजह से उन्हें इसे निभाने में ज़रा सी भी परेशानी नहीं हुई। अमिताभ बच्चन के बहुत बड़े फ़ैन अजय सिंह राठौड़ ने जब अपनी पहली फ़िल्म का नाम सुना तो उन्हें लगा कि यह उनके लिए शुभ सिद्ध होगा क्योंकि इस नाम में भी अमिताभ बच्चन छुपे हुए हैं (जो ऐंग्री यंग मैन के नाम से जाने जाते हैं)। रमेश राउत द्वारा निर्देशित इस फ़िल्म का प्रदर्शन 2014 में हुआ। मूलत: एक रोमान्टिक ऐक्शन थ्रिलर फ़िल्म है यह जिसमें अजय ’अर्जुन’ नामक लड़के का किरदार निभाते हैं, जो एक 24 वर्षीय स्ट्रीट फ़ाइटर हैं और जो मुंबई अपराध जगत में एक जाना-माना नाम है। अबरार की तरह अजय का किरदार भी खलनायक तुल्य है, लेकिन आगे चल कर अजय के किरदार में बदलाव आता है। ना तो अजय सिंह राठौड़ की फ़िल्म चली और ना ही अबरार ज़हूर की तरफ़ किसी ने ध्यान दिया। हम उम्मीद करते हैं कि आने वाले समय में ये दोनों प्रतिभाशाली अभिनेता सफलता की बुलन्दी पर पहुँचे।

अब ज़िक्र तीन ऐसे नवोदित नायकों की जो चर्चा में आए अपनी वितर्कित फ़िल्मों की वजह से। अक्षय रंगशाही अभिनीत फ़िल्म ’इश्क़ जुनून’ का ज़िक्र हमने उस कड़ी में किया था जिस कड़ी में अभिनेता राजबीर सिंह का ज़िक्र आया था। इस फ़िल्म में दूसरे नायक के रूप में अक्षय रंगशाही ने अभिनय किया। यह फ़िल्म रिलीज़ से पहले ही चर्चा का विषय बन गई थी क्योंकि इसे बॉलीवूड का पहला थ्रीसम कह कर प्रोमोट किया जा रहा था। साथ ही कामुक दृश्यों से भरे प्रोमोज़ ने सनसनी पैदा कर दी थी। हालाँकि राजबीर और अक्षय का अभिनय इस फ़िल्म में सराहनीय था, लेकिन एक बहुत ही कमज़ोर कहानी और पटकथा की वजह से फ़िल्म बॉक्स ऑफ़िस पर मुंह के बल गिर गई। दिल्ली से ताल्लुख़ रखने वाले अक्षय रंगशाही अपने बचपन से ही फ़िल्मों में नायक बनना चाहते थे। इसलिए जवानी की दहलीज़ पर क़दम रखते ही उन्होंने अपने शरीर को तैयार करना शुरु कर दिया और कॉलेज के दिनों से ही छोटे-मोटे मॉडलिंग् के काम करने लगे। थिएटर से भी वो जुड़े जहाँ अच्छे अभिनेताओं के सम्पर्क में आ कर उन्होंने अभिनय की बारीक़ियाँ सीखी। दिल्ली में अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी होते ही वो मुंबई की तरफ़ रवाना हुए। ’इश्क़ जुनून’ में अभिनय का प्रस्ताव मिलने से पहले उन्होंने कई विज्ञापनों के लिए काम किया। ’इश्क़ जुनून’ के निर्देशक ने उन्हें एक विज्ञापन में देखा और उन्हें लगा कि उस रोल के लिए अक्षय फ़िट रहेंगे। अब देखना यह है कि अक्षय आगे चल कर कौन सा मुकाम हासिल करते हैं। अक्षय ही की तरह गौरव अजय कौरा ने भी अपना फ़िल्मी सफ़र एक ऐसी ही फ़िल्म से शुरू की। 2017 की फ़िल्म ’लव शव प्यार व्यार’ में गौरव अजय कौरा उर्फ़ GAK ने जैक की भूमिका निभाई, नवोदित नायिका डॉली चावला के साथ, जो 2016 में ’गांधीगिरि’ में नज़र आई थीं। 1989 में लुधियाना में जन्में गौरव ने अपनी स्कूल की पढ़ाई लुधियाना से ही पूरी की। फिर इंजिनीयरिंग् पढ़ने मुंबई चले आए। इंजिनीयरिंग् की डिग्री की बाद वो इन्टरनैशनल बिज़नेस में MBA करना चाहते थे। लेकिन क़िस्मत को कूच और ही मनज़ूर थी। उन्हें भी नहीं पता कि कैसे घूमते घूमते वो ऑडिशन्स की लाइन में जा खड़े हुए और दो-तीन सालों में उनके द्वारा अभिनीत विज्ञापनों को काफ़ी सराहा गया। तीन साल तक संघर्ष के बाद उन्हें ’लव शव प्यार व्यार’ में नायक का रोल मिला। यह फ़िल्म तो नहीं चली लेकिन इस फ़िल्म में उनके और डॉली के कामुक दृश्यों ने काफ़ी सनसनी पैदा कर दी थी, ठीक वैसे जैसे ’इश्क़ जुनून’ ने किया था। ख़ैर, GAK को अपनी अगली फ़िल्म का इन्तज़ार है जो शायद उनके लिए सफलता की पहली सीढ़ी साबित हो सके।

नवोदित नायक और कामोत्तेजक फ़िल्मों की बात चल रही हो और गौरव अरोड़ा का नाम ना आए, यह कैसे हो सकता है भला। 2006 में Gladrags Manhunt and Megamodel Contest में दूसरे रनर-अप रह चुके गौरव अरोड़ा ने अनगिनत विज्ञापनों में काम किया है और मॉडलिंग् की दुनिया में वो पहले से ही एक जाना-माना नाम बन चुके थे। उनका जन्म मध्यप्रदेश के अशोकनगर ज़िले के मुंगाओली में हुआ था। दो बहनों और माता-पिता के साथ पाँच सदस्यों वाले सुखी परिवार में वो हँसते खेलते बड़े हुए। इन्दौर में उन्होंने स्कूल की पढ़ाई पूरी की और बाद में BBA की डिग्री हासिल की। गौरव एक राष्ट्रीय स्तर के तैराक रह चुके हैं और ज़िला स्तर के हॉकी खिलाड़ी। इस वजह से उनका शारीरिक कदकाठी आकर्षक तो था ही; साथ ही उन्होंने रात दिन मेहनत कर के एक ऐसा शरीर का गठन किया कि देखते ही देखते वो मॉडलिंग् जगत का एक जाना-माना नाम बन गए। पढ़ाई पूरी होते ही वो मुंबई चले गए और ग्लैमर वर्ल्ड में क़दम जमा लिया। विक्रम भट्ट की फ़िल्मों में एक अंग कामुक दृश्यों का होता आया है जिसके लिए उनकी पहली पसन्द हुआ करते थे इमरान हाशमी। लेकिन 2016 की फ़िल्म ’लव गेम्स’ के लिए उन्हें एक नए युवक की ज़रूरत थी। गौरव अरोड़ा को उन्होंने विज्ञापनों और रैम्प शोज़ में देख रखा था और उन्हें लगा कि इस फ़िल्म के नायक के रूप में वो ही सबसे सही पात्र हैं। बस, दे बैठे उन्हें ऑफ़र और गौरव ने भी इसे हाथों-हाथ ग्रहण किया। फ़िल्म कुछ खास नहीं चली और समीक्षकों ने इसे विक्रम भट्ट के इस फ़िल्म को एक सस्ती सेक्स फ़िल्म करार दिया। हालाँकि फ़िल्म की कहानी बुरी नहीं थी, लेकिन अत्यधिक कामुक दृश्यों की वजह से यह एक सस्ती ऐडल्ट फ़िल्म बन कर रह गई। फ़िल्म में गौरव के चुम्बन दृश्यों के चलते उन्हें जुनियर इमरान हाश्मी भी कहा गया। जो भी हो विक्रम भट्ट को गौरव पसन्द आए और इसी साल अपनी अगली फ़िल्म ’राज़ रीबूट’ में फिर एक बार गौरव को कास्ट किया एक महत्वपूर्ण किरदार में। फ़िल्म में इमरान हाशमी और कृति खरबन्दा थे। इस फ़िल्म में गौरव के अभिनय की तरफ़ लोगों ने ध्यान दिया और समीक्षकों ने भी अच्छे राय दिए} मुम्बई मिरर ने लिखा - "Gaurav Arora perseveres to lend dignity to his character and has done a fine job." Deccan Chronicle ने कहा, "Just one - film old Gaurav Arora quite literally steals the show. It is commendable how he sweeps away all the attention despite having an established actor Emraan in the film." विशेष फ़िल्म्स ने समय समय पर नए कलाकारों को मौका दिया है। कंगना रनौत, बिपाशा बासु, जॉन एब्रहम, दिनो मोरेयो के बाद अब गौरव अरोड़ा को भी इस बैनर ने बड़ा ब्रेक दिया। तीन फ़िल्मों के कॉनट्रैक्ट के रूप में इस बैनर की अगली फ़िल्म में भी वो जल्द ही नज़र आएँगे। फ़िल्मों से पहले गौरव ने थिएटर भी किया है। देश भर में घूम घूम कर उन्होने कई नाटकों का मंचन किया है जिनमें "The Night of January 16th", "The Mousetrap" और "And Then There Were None" प्रमुख हैं। गौरव अरोड़ा ने प्रथम श्रेणी के फ़ैशन डिज़ाइनरों के साथ काम किया है जिनमें शामिल हैं मनीष मल्होत्रा, रोहित बाल, तरुण ताहिलियानी, राघवेन्द्र राठौड़ आदि। नामी ब्रैण्ड्स के लिए रैम्प शोज़ करने के अलावा गौरव ने अमरीका, कनाडा, दुबई और थाइलैण्ड में भारत को रिप्रेज़ेन्ट किया है एक मॉडल के रूप में। इसमें कोई संदेह नहीं कि गौरव अरोड़ा सही राह पर चल रहे हैं और आने वाले समय में वो सफलता की कई और सीढ़ियाँ चढ़ेंगे।

अब बातें अंशुमन झा की। अंशुमन जाने जाते हैं फ़िल्म ’लव, सेक्स और धोखा’ के लिए। 2010 के टॉप टेन बॉलीवूड ऐक्टर्स में उनका नाम आया था। नई दिल्ली के मानव भारती इंडिया इन्टरनैशनल स्कूल से उत्तीर्ण होने के बाद उन्होंने मुंबई के सेन्ट ज़ेविअर्स कॉलेज से अर्थशास्त्र में स्नातक की उपाधि प्राप्त की और साथ ही साथ Barry John's Imago School of Acting से अभिनय का डिप्लोमा भी। CNBC-TV18's Storyboard द्वारा अंशुमन को "Advertising Face of the Year 2011" घोषित किया गया था। मात्र 13 वर्ष की आयु में उन्होंने अपना थिएटर सफ़र शुरु किया जब वो अपनी गरमी की छुट्टियों में दिल्ली से मुंबई आ कर पृथ्वी थिएटर्स में थिएटर ऐक्टिंग् के वर्क्शॉप्स किया करते थे। जल्दी ही वो ’पृथ्वी थिएटर्स’ में व्यावसायिक तौर पर स्टेज ऐक्टर बन गए और 15 वर्ष की आयु में उन्होंने ’झगड़ापुर’ और ’लालची’ जैसे बाल-नाटकों में अभिनय किया। बैरी जॉन के स्कूल से डिप्लोमा करने के बाद बैरी ने उन्हें अपनी नाटक "Its All About Money Honey" में कास्ट किया। मुंबई में स्नातक की पढ़ाई के साथ-साथ अंशुमन ने केसर पदमसी, जॉय फ़रनन्डेज़ और जामिनी पाठक जैसे निर्देशकों के नाटकों में अभिनय किया। इन्हीं दिनों अंशुमन सुभाष घई को भी ऐसिस्ट कर रहे थे और ’कांची’ व ’ब्लैक ऐण्ड व्हाइट’ जैसी फ़िल्मों में सहायक निर्देशक की भूमिका निभाई। अंशुमन के लिखे नाटक ’Dirty Talk' को नयनतारा रॉय ने निर्देशित किया था और यह नाटक भारत की तरफ़ से 2010 के मैनचेस्टर में आयोजित Contact-World Theatre Festival में भेजा गया था। फ़िल्मों में अंशुमन का पदार्पण 2010 में ही उस समय हुआ जब एकता कपूर और दिबाकर बनर्जी की फ़िल्म ’लव, सेक्स ऐण्ड धोखा’ के लिए उन्हें न्योता दिया गया। इस फ़िल्म में उनके अभिनय की काफ़ी चर्चा हुई। इसके दो साल बाद 2012 में उनके अभिनय से सजी दूसरी फ़िल्म आई ’क़िस्मत लव पैसा दिल्ली’, जो KLPD के नाम से भी जाना गया। फ़िल्म तो बुरी तरह से पिट गई लेकिन अंशुमन के अभिनय पर किसी ने उंगली उठाने की हिम्मत नहीं की। 2013 में उनकी तीसरी फ़िल्म आई ’बॉयज़ तो बॉयज़ हैं’ जिसमें वो राजकुमार और मनु ॠषी के साथ एक सरदार की भूमिका निभाई। 2014 की फ़िल्म ’ये है बकरापुर’ में उनके अभिनय को फ़िल्म समीक्षकों की भूरी भूरी प्रशंसा मिली। अंशुमन झा के अभिनय से सजी कुछ और फ़िल्में हैं ’फ़गली चीनी’, ’X: Past Is Present', 'चौरंगा’, ’पगला घोड़ा’ और ’मोना डारलिंग्’। कहना ज़रूरी है कि 2017 की फ़िल्म ’मोना डारलिंग्’ उन्हीं के बैनर ’First Ray Films' की पहली फ़िल्म है, अर्थात् अंशुमन अब निर्माता भी बन चुके हैं। इस फ़िल्म में भी उन्होंने काबिल-ए-तारीफ़ अदाकारी की। अंशुमन झा की अगले साल ’अंग्रेज़ी में कहते हैं’ फ़िल्म आने जा रही है। इतने कम समय में अपनी प्रतिभा और मेहनत से अंशुमन झा ने कई कीर्तिमान स्थापित किए हैं, इसमें कोई संदेह नहीं कि वो एक लम्बी रेस का घोड़ा हैं। अंशुमन झा की ही तरह एक और अभिनेता हैं जो एक निर्माता भी हैं; इनका नाम है अर्जुन गुप्ता। इन दोनों में फ़र्क बस इतना सा है कि अंशुमन भारत में हैं और अर्जुन अमरीका में। 1987 में अमरीका के फ़्लोरिडा में जन्में अर्जुन गुप्ता ने 2007 में New York University's Tisch School of the Arts से स्नातक की पढ़ाई पूरी की और 2009 में ही उनकी पहली बड़ी फ़िल्म ’मदरहूड’ रिलीज़ हुई। भारतीय मूल के अर्जुन भले अमरीकी नागरिक हों और भले वो अमरीकी फ़िल्मों में अभिनय करते हों, लेकिन अपनी भारतीय चेहरे की वजह से उनके द्वारा निभाए गए किरदार अक्सर भारतीय ही होते हैं। उदाहरण के तौर पर ’मदरहूड’ में उन्होंने मिकेश नामक लड़के का रोल निभाया तो 2012 की फ़िल्म ’लव, लाइज़ ऐन्ड सीता’ में उनका किरदार राहुल मेहरा का था। अर्जुन के अभिनय से सजी कुछ और फ़िल्में हैं ’Stand Up Guys', 'Bridge and Tunnel', 'The Diabolical', 'French Dirty' आदि। फ़िल्मों में अभिनय करने और एक निर्माता होने के अलावा अर्जुन गुप्ता ने दक्षिण कैलिफ़ोर्णिया में एक थिएटर ग्रूप का भी निर्माण किया जिसमें वो कमचर्चित थिएटर ग्रूप्स को मौका देते हैं उनकी मौलिक कहानियों के नाट्यरूपान्तरण के लिए। उनके उच्चस्तरीय अभिनय के लिए अर्जुन को 2012 Screen Actors Guild Awards में नामांकन मिला था। हास्य कलाकार आकाश सिंह के साथ अर्जुन गुप्ता "American Desis" पॉडकास्ट में मेज़बानी कर रहे हैं। 2014 में 'Bridge and Tunnel' फ़िल्म में उनके शानदार अभिनय के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ सह-अभिनेता का Maverick Movie Awards पुरस्कार प्रदान किया गया था। आशिष बिश्ट अपनी पहली फ़िल्म ’शब’ के लिए हाल ही में चर्चा में आए थे। फ़िल्म जगत में कास्टिंग् काउच के बारे में सभी ने सुन रखा है। केवल अभिनेत्रियों को ही नहीं बल्कि अभिनेताओं को भी कास्टिंग् काउच से हो कर गुज़रना पड़ता है। आशिष बिश्ट साहसी हैं, इसी वजह से एक साक्षात्कार में निडरतापूर्वक कहा कि जब वो इस इन्डस्ट्री में पहली बार आए थे, तब अनगिनत फ़िल्म निर्माताओं के दफ़्तरों के चक्कर काटने पड़े थे। और कई निर्माताओं ने उनसे सीधे सवाल किया कि क्या आप बिस्तर पर कम्फ़ोर्टेबल हैं? अगर वो "ना" में जवाब देते तो उनका करीयर शुरु होने से पहले ही ख़त्म हो जाता, इसलिए उन्हें इस तरह के तमाम निवेदनों को बड़ी चतुराई के साथ हैन्डल करना पड़ा। आख़िर में जाने-माने फ़िल्मकार ओनिर ने उनका ऑडिशन लिया और अपनी फ़िल्म ’शब’ में कास्ट किया। आशिष इससे पहले एक मॉडल के रूप में उभर रहे थे। ओनिर की फ़िल्म में मौका पाने के बाद इन्डस्ट्री के लोग आशिष का मज़ाक उड़ाने लगे यह कह कर कि समलैंगिक ओनिर को ज़रूर उन्होंने ख़ुश किया होगा। इतनी कम उम्र में इस तरह के हादसों से गुज़रते हुए आशिष की पहली फ़िल्म ’शब’ रिलीज़ हुई जिसमें उन्होंने रवीना टंडन और संजय सूरी जैसे सीनियर अभिनेताओं के साथ अभिनय किया। आशिष इसे अपना सौभाग्य मानते हैं कि इतने बड़े निर्देशक और अभिनेताओं के साथ पहली ही फ़िल्म में काम करने का मौका मिला और जिनसे उन्होंने बहुत कुछ सीखा। इस फ़िल्म में आशिष के अभिनय की ख़ूब सराहना हुई है और उन्हें कई फ़िल्मों के ऑफ़र्स आने लगे हैं। ऐसी उम्मीद की जा रही है कि अगले साल आशिष की कई फ़िल्में फ़्लोर पर जाएंगी। 

टेलीविज़न के कई पौराणिक धारावाहिकों और ऐक्शन सीरीज़ में अभिनय करने वाले दिनेश मेहता ने हाल ही में फ़िल्मों में क़दम रखा है। हरियाणा के भिवानी में जन्में दिनेश हिसार में पले-बढ़े। 6 फ़ीट से भी अधिक कद और एक आकर्षक शारीरिक गठन की वजह से दिनेश को मॉडेलिंग् की दुनिया में पाँव जमाने में ज़्यादा जद्दोजहद करने की ज़रूरत नहीं पड़ी। कई जाने माने कंपनियों के ब्रैण्ड्स के लिए विज्ञापन कर चुके दिनेश टेलीविज़न में क़दम रखे और बहुत से शोज़ में नज़र आए और अब वो दक्षिण व हिन्दी फ़िल्मों में भी नज़र आने लगे हैं। तमिल फ़िल्म ’10 एन्द्रादुकला’ और हिन्दी फ़िल्म ’1920 London’ में हमने दिनेश को देखा है। लेकिन दोनों ही फ़िल्मों में उनके छोटे से रोल की वजह से शायद दर्शकों ने उन्हें गम्भीरता से नहीं लिया। उनकी अगली फ़िल्म है ’निर्भया’ जो 2012 के दिल्ली के उस भायनक हादसे पर बनी फ़िल्म है। हाल ही में उनकी गुजराती फ़िल्म ’म्हारी लड़की’ रिलीज़ हुई है जिसे फ़िल्म समालोचकों की प्रशंसा मिली है। अमिताभ बच्चन और दीपिका पडुकोण के फ़ैन दिनेश मेहता की शक्ल हृतिक रोशन से मिलती जुलती है, जिसका प्रमाण उनके फ़ेसबूक पर लगे तस्वीरों से साफ़ झलकती है। दिनेश की तरह गौतम गुलाटी भी टेलीविज़न का एक जानामाना नाम हैं। दिनेश और गौतम में समानता यह रही कि दोनों ने ’दीया और बाती हम’ धारावाहिक में अभिनय किया है। ’बिग बॉस’ में गौतम गुलाटी विजेता रहे हैं जिसके बाद वो काफ़ी चर्चा में आ गए थे। राकेश मेहता की लघु फ़िल्म ’डरपोक’ में गौतम ने अभिनय किया जिसे 67th Annual Cannes Film Festival में दिखाया गया था। इस फ़िल्म में उन्होंने एक 28-वर्षीय युवक का किरदार निभाया जो अपनी आँखों के सामने अपनी माँ का बलात्कार होते हुए देखता है लेकिन कुछ नहीं कर पाता। मोहम्मद अज़हरुद्दीन पर बनी फ़िल्म ’अज़हर’ में गौतम गुलाटी नज़र आए थे रवि शास्त्री की भूमिका में। ’अज़हर’ के अलावा गौतम गुलाटी के अभिनय से सजी दो और फ़िल्में हैं ’सिद्धार्थ - द बुद्धा’, जिसमें उन्होंने देवदत्त की भूमिका निभाई और हाल ही में 2017 की फ़िल्म ’बहन होगी तेरी’ में भी वो नज़र आए थे। ’बा बहू और बेबी’, ’लकी’, ’सरस्वतीचन्द्र’, ’महाकुंभ’ और ’एक कहानी’ जैसी धारावाहिकों में नज़र आने वाले गौतम रोडे आज टेलीविज़न का एक जाना पहचाना नाम है। केवल धारावाहिकों में ही नहीं बल्कि रियलिटी शोज़ में मेज़बानी के लिए भी गौतम काफ़ी प्रसिद्ध हैं। हालाँकि गौतम ने पिछले दशक की फ़िल्म ’अनर्थ’ में भी अभिनय किया था, लेकिन सही मायने में उनका फ़िल्मी पदार्पण हुआ 2017 की फ़िल्म ’अक्सर 2’ में जिसमें वो ज़रीन ख़ान के विपरीत नज़र आए। फ़िल्म ’अनर्थ’ में उनके अभिनय को काफ़ी सराहना मिली थी जिसमें उन्होंने एक पुलिस इन्स्पेक्टर की भूमिका निभाई थी। इस फ़िल्म के बाद दो चार छोटी-मोटी फ़िल्मी किरदारों के बाद टीवी पर क़दम रखा और वहाँ वो लोकप्रिय हो गए। 2013 में संजय लीला भंसाली ने उन्हें ’सरस्वतीचन्द्र’ में अभिनय का मौका दिया जो उनके लिए एक बहुत बड़ा ब्रेक सिद्ध हुआ। इस धारावाहिक के लोकप्रिय होने की वजह से उन्हें करण वाही के साथ ’नच बलिए 6’ होस्ट करने का मौका मिला और वो एक बार फिर से घर घर नज़र आने लगे। गौतम रोडे का फ़िल्मी सफ़र अभी शुरु हुआ ही है। ’अक्सर 2’ एक कामुक फ़िल्म होने की वजह से हो सकता है कि गौतम के अभिनय क्षमता की ज़्यादा चर्चा ना हो, लेकिन अगर भविष्य में गौतम ने सही फ़िल्मों का चुनाव किया तो टीवी की तरह इस क्षेत्र में भी उन्हें सफलता मिलने की उम्मीद कर सकते हैं। और अब आज के अन्तिम नवोदित नायक - गिरिश कुमार तौरानी, जिन्होंने 2013 की प्रभु देवा की फ़िल्म ’रमैया वस्तावैया’ से अपना अभिनय सफ़र शुरु किया था। उनके पिता कुमार एस. तौरानी Tips Industries Limited के मैनेजिंग् डिरेक्टर हैं। कहा जाता है कि प्रभु देवा ने गिरिश को तीन साल तक इस फ़िल्म के लिए प्रशिक्षण दिया और तब जा कर उन्हें साइन किया। ऑडिशन में गिरिश के अभिनय और नृत्य को देख कर प्रभु देवा ने उनका चयन किया था। लेकिन उस पर और निखार लाने के लिए तीन सालों तक उन्हें ट्रेनिंग् दिलवाई। गिरिश के ’रमैया वस्तावैया’ के अभिनय पर फ़िल्म समीक्षक तरन आदर्श ने लिखा था - "Girish being a first-timer, there are some rough edges, but the fact is, he's photogenic and goes through the rigmarole with confidence." हालाँकि यह फ़िल्म पिट गई लेकिन गिरिश को दर्शकों ने पसन्द किया। इसके तीन साल बाद गिरिश नज़र आए ’लवशुदा’ में जिसमें उनका नवनीत कौर ढिल्लों के विपरीत कास्ट किया गया। Best Male Debut पुरस्कार के लिए उनका नामांकन हुआ था Screen Awards और BIG Star Awards में। अभी तक गिरिश तौरानी के केवल दो ही फ़िल्में आई हैं, लेकिन उनके लुक्स और ऐक्टिंग् स्किल्स को देख कर अनुमान लगाया जा सकता है कि आने वाले समय में वो फ़िल्मों में नज़र आते रहेंगे।


आख़िरी बात

’चित्रकथा’ स्तंभ का आज का अंक आपको कैसा लगा, हमें ज़रूर बताएँ नीचे टिप्पणी में या soojoi_india@yahoo.co.in के ईमेल पते पर पत्र लिख कर। इस स्तंभ में आप किस तरह के लेख पढ़ना चाहते हैं, यह हम आपसे जानना चाहेंगे। आप अपने विचार, सुझाव और शिकायतें हमें निस्संकोच लिख भेज सकते हैं। साथ ही अगर आप अपना लेख इस स्तंभ में प्रकाशित करवाना चाहें तो इसी ईमेल पते पर हमसे सम्पर्क कर सकते हैं। सिनेमा और सिनेमा-संगीत से जुड़े किसी भी विषय पर लेख हम प्रकाशित करेंगे। आज बस इतना ही, अगले सप्ताह एक नए अंक के साथ इसी मंच पर आपकी और मेरी मुलाक़ात होगी। तब तक के लिए अपने इस दोस्त सुजॉय चटर्जी को अनुमति दीजिए, नमस्कार, आपका आज का दिन और आने वाला सप्ताह शुभ हो!




शोध,आलेख व प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी 
प्रस्तुति सहयोग : कृष्णमोहन मिश्र  



रेडियो प्लेबैक इण्डिया 

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सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे...

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु...

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन...