Skip to main content

चित्रकथा - 32: अभिनेता इन्दर कुमार को श्रद्धांजलि

अंक - 32

अभिनेता इन्दर कुमार को श्रद्धांजलि


"तुमको ना भूल पायेंगे.." 



इन्दर कुमार (26 अगस्त 1973 - 28 जुलाई 2017)




पिछले 28 जुलाई 2017 को अभिनेता इन्द्र कुमार की मात्र 43 वर्ष की आयु में असामयिक मृत्यु बेहद अफ़सोसजनक रही। इन्द्र कुमार उन अभिनेताओं में शामिल हैं जिन्होंने ना तो बहुत ज़्यादा फ़िल्में की और ना ही ज़्यादा कामयाब रहे, लेकिन जितना भी काम किया, अच्छा किया और उनके चाहने वालों ने उन गिने-चुने फ़िल्मों की वजह से उन्हें हमेशा याद किया। चोकोलेटी हीरो से लेकर खलनायक की भूमिका निभाने वाले इन्द्र कुमार अब हमारे बीच नहीं रहे, लेकिन उनकी वह प्यारी मुस्कान, उनका सुन्दर चेहरा और शारीरिक गठन, और उनकी सहज अदाकारी उनाकी फ़िल्मों के ज़रिए सदा हमारे साथ रहेगी। आइए आज ’चित्रकथा’ के माध्यम से श्रद्धांजलि अर्पित करें स्वर्गीय इन्द्र कुमार की पुण्य स्मृति को। आज का यह अंक उन्ही को समर्पित है।


कहते हैं कि एक इंसान मर सकता है पर कला और कलाकार कभी नहीं मरते। एक कलाकार अपनी कला से अमर हो जाता है। शरीर नश्वर है, लेकिन कला और कलाकृति की आभा युगों युगों तक रोशनी बिखेरती रहती है। मात्र 43 साल की उम्र में अभिनेता इन्दर कुमार इस फ़ानी दुनिया को छोड़ गए। पत्नी पल्लवी और मात्र तीन साल की नन्ही बेटी भावना को अकेला छोड़ इन्दर कुमार अपनी अनन्त यात्रा पर गत 28 जुलाई को निकल पड़े। अगले ही सप्ताह 26 अगस्त को इन्दर कुमार अपनी 44-वीं वर्षगांठ मनाने वाले थे, लेकिन किसे ख़बर थी कि काल के क्रूर हाथ इतनी जल्दी इस हँसमुख इंसान को इतनी दूर लेकर चला जाएगा। जयपुर के एक मारवाड़ी परिवार में जन्मे इन्दर कुमार सरफ़ की शिक्षा मुंबई के सेन्ट ज़ेवियर’स हाइ स्कूल और सरदार वल्लभ भाई पटेल विद्यालय में हुई। स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद केवल 23 वर्ष की उम्र में उन्हें उनकी पहली फ़िल्म में बतौर हीरो अभिनय करने का सौभाग्य मिल गया। ऐसा सुनहरा मौक़ा बहुत कम नवोदित कलाकारों को मिल पाता है। इस दिशा में इन्दर के मेन्टर रहे फ़िल्म पब्लिसिस्ट राजू करिया जिनकी मदद से इन्दर को कई फ़िल्म निर्माताओं से मिलने का मौका मिला। 1996 में उन्हे उनका पहला ब्रेक मिला फ़िल्म ’मासूम’ में। आयेशा जुल्का के साथ उनकी यह फ़िल्म तो बॉक्स ऑफ़िस पर ज़्यादा टिक नहीं सकी, लेकिन फ़िल्म के गीतों, ख़ास तौर से उन्हीं पर फ़िल्माया "ये जो तेरी पायलों की छम छम है" और आदित्य नारायण का मशहूर "छोटा बच्चा जान के हमको आँख न दिखाना रे", की वजह से इस फ़िल्म को लोगों ने पसन्द किया। इसी साल इन्दर कुमार ने अक्षय कुमार, रेखा, रवीना टंडन अभिनीत फ़िल्म ’खिलाड़ियों का खिलाड़ी’ में अक्षय कुमार के बड़े भाई अजय का किरदार निभाया जो फ़िल्म की कहानी का एक महत्वपूर्ण चरित्र था। फिर इसके अगले ही साल 1997 में बतौर नायक उनकी दूसरी फ़िल्म आई ’एक था दिल एक थी धड़कन’, जो नाकामयाब रही। लेकिन फिर एक बार फ़िल्म के गीतों ने धूम मचाई। ख़ास तौर से "रेशम जैसी हैं राहें, खोले हैं बाहें" और "एक था दिल एक थी धड़कन" को काफ़ी समय तक रेडियो पर सुनाई देते रहे। फ़िल्में नाकामयाब होने के बावजूद एक चोकोलेटी हीरो के रूप में इन्दर कुमार की दर्शकों में और ख़ास कर युवा वर्ग में काफ़ी लोकप्रिय होने लगे थे। काउन्ट-डाउन शोज़ में ’मासूम’ और ’एक था दिल...’ के गीत चार्टबस्टर्स रहे। 1997 में ’घुंघट’ के भी वो नायक रहे लेकिन बदक़िस्मती से उनकी यह फ़िल्म भी नहीं चली। हाँ, फिर एक बार गाने ज़रूर चले। 1998 की फ़िल्म ’दंडनायक’ भी फ़्लॉप ही रही। नायक की भूमिका में एक के बाद एक तीन लगातार फ़िल्मों के फ़्लॉप हो जाने की वजह से इन्दर कुमार को एकल नायक वाली फ़िल्में मिलना बन्द हो गया, लेकिन चरित्र अभिनेता के किरदार मिलते रहे। 1999 में ’तिरछी टोपीवाले’ में उन्होंने चरित्र भूमिका निभाई।


वर्ष 2000 इन्दर कुमार के करीयर का सुनहरा वर्ष था। नायक के रूप में ना सही, लेकिन चरित्र भूमिकाओं में उन्हें कई बड़े कलाकारों के साथ स्क्रीन शेयर करने का मौका मिला। गोविन्दा अभिनीत ’कुंवारा’ और संजय दत्त अभिनीत ’बाग़ी’ तो थे ही, साथ ही एम. एफ़. हुसैन की चर्चित फ़िल्म ’गजगामिनी’ में कामदेव की भूमिका के लिए इन्दर कुमार को चुना गया। सुन्दर देव तुल्य मुखमंडल और सुदृढ़ शारीरिक गठन के धनी इन्दर कुमार ने कामदेव के इस चरित्र भूमिका को सुन्दर तरीके से निभाया। उनके इस रोल को देख कर ऐसा लगा जैसे पौराणिक चरित्रों, जैसे कि विष्णु, श्रीकृष्ण आदि, में वो ख़ूब जचेंगे। ख़ैर, वर्ष 2000 की इन्दर कुमार की सबसे बड़ी उपलब्धि रही सलमन ख़ान की बड़ी फ़िल्म ’कहीं प्यार ना हो जाए’ में राहुल का किरदार निभाना। एक अमीर घराने के बेटे राहुल का किरदार इन्दर ने इस क़दर निभाया कि ख़ुद सलमन ख़ान ही इन्दर के फ़ैन हो गए। इतना ही नहीं, सलमन ख़ान और इन्दर कुमार इस फ़िल्म से बहुत अच्छे दोस्त भी बन गए। केवल फ़िल्म मेकिंग् ही नहीं, बल्कि बॉडी बिल्डिंग् (शारीरिक गठन) भी एक ही ट्रेनर से करवाने लगे। सलमन ख़ान के पारिवारिक परिवेश के बारे में तो सभी जानते हैं। इन्दर कुमार का भी उनके परिवार में स्वागत हुआ और सलमन के साथ-साथ उनके परिवार के दूसरे सदस्यों के साथ भी इन्दर काफ़ी घुल-मिल गए। एक समय में इन्दर और सलमन की दोस्ती-यारी इतनी गहरी हो चुकी थी कि सलमन ने अपनी अगले कई फ़िल्मों में इन्दर को अच्छे किरदार ऑफ़र किए। 2002 की फ़िल्म ’तुमको ना भूल पायेंगे’ के लिए सलमन ख़ान ने इन्दर कुमार को एक चोकोलेटी हीरो से बना दिया एक ख़ूँख़ार खलनायक। इस फ़िल्म की कहानी के अनुसार सलमन और इन्दर, दोनों को एक मज़बूत माँस पेशियों वाले शारीरिक गठन की आवश्यक्ता थी। इसलिए सलमन ख़ान ने ख़ुद बीड़ा उठाते हुए ख़ुद की और इन्दर की बॉडी-बिल्डिंग् का ज़िम्मा अपने सर लिया। फ़िल्म के क्लाइमैक्स सीन में दोनों की खुले बदन में मारपीट होती है। इस अकेले सीन के लिए कहा जाता है कि सलमन और इन्दर ने साथ में कड़ी मेहनत की थी अपने बदन को पर्फ़ेक्ट शेप देने के लिए। इसमें कोई सन्देह नहीं कि यही सीन फ़िल्म का यादगार सीन बना। फ़िल्म तो ज़्यादा नहीं चली, लेकिन एक नए अवतार में इन्दर कुमार के अभिनय की काफ़ी चर्चा हुई। फ़िल्म के गाने सुपरहिट हुए। सलमन और इन्दर की दोस्ती और गहरी हुई।


2002 में इन्दर कुमार टेलीविज़न पर उतरे उस समय के सर्वाधिक लोकप्रिय धारावाहिक ’सास भी कभी बहू थी’ में मिहिर विरानी का रोल अदा किया कुछ समय तक। 2002 में ही इन्दर कुमार तीन और फ़िल्मों में नज़र आए - ’माँ तुझे सलाम’, ’हथियार’ और ’मसीहा’। इसी ’मसीहा’ फ़िल्म की शूटिंग् के दौरान इन्दर कुमार उस वक़्त हेलिकॉप्टर से नीचे गिर गए जब वो एक स्टन्ट सीन ख़ुद ही कर रहे थे बिना किसी डबल का सहारा लेते हुए। यह निर्णय उनके करीयर के लिए काफ़ी महंगा सौदा साबित हुआ। रीढ़ की हड्डी टूट जाने की वजह से वो पूरे पाँच सालों तक बिस्तर पर पड़े रहे। एक तरह से उनका करीयर ख़त्म हो गया। अस्वस्थता के दौरान ही इन्दर ने 2003 में अपने मेन्टर राजू करिया की बेटी सोनल से विवाह कर ली। दोनों के शारीरिक मिलन से सोनल गर्भवती तो हो गईं लेकिन दोनों का मानसिक मिलन नहीं हो पाया, और विवाह के केवल पाँच माअह के भीतर ही दोनों एक दूसरे से अलग हो गए। तलाक़ के बाद सोनल ने इन्दर की बेटी खुशी को जन्म दिया। 2004 तक इन्दर काफ़ी मुश्किलों से गुज़रे, शारीरिक अक्षमता तो थी ही, आर्थिक समस्या भी आन पड़ी और वो मानसिक अवसाद और ड्रग्स तक के शिकार होने लगे। दोस्त सलमन ख़ान और डॉली बिन्द्रा ने उनका हौसला बढ़ाने की कोशिशें की और उनकी मदद भी की। 2005 में इन्दर कुमार ने दोबारा ज़िन्दगी की तरफ़ मुड़ कर देखा बांग्ला फ़िल्म ’अग्निपथ’ से। यह फ़िल्म तो ख़ास चली नहीं, लेकिन इन्दर कुमार का फ़िल्मी सफ़र फिर एक बार शुरु हुआ जो उस हादसे की वजह से ठहर गया था। ज़िन्दगी और प्रेम की तरफ़ रुख़ करते हुए इन्दर कुमार की घनिष्ठता बढ़ी अभिनेत्री इशा कोपीकर से और दोनों एक लम्बे समय तक डेटिंग् करते रहे। इसी दौरान 2006 में उनकी अगली हिन्दी फ़िल्म आई ’आर्यन’ जिसमें उन्होंने सुनील शेट्टी के साथ अभिनय किया। वर्ष 2009 में इशा कोपीकर से उनका ब्रेक-अप होने के बाद उन्होंने कमलजीत कौर से शादी की लेकिन यह विवाह भी दो महीने से ज़्यादा टिक नहीं सकी। ख़ैर, 2009 में उनके पुराने दोस्त सलमन ख़ान ने उन्हे फिर एक बार मौका दिया अपनी बड़ी फ़िल्म ’वान्टेड’ में अभिनय का। इस फ़िल्म में इन्दर बने सलमन के दोस्त। फ़िल्म ब्लॉकबस्टर सिद्ध हुई लेकिन यह फ़िल्म इन्दर कुमार के करीयर को पुनर्जीवित करने में कुछ ख़ास कारगर साबित नहीं हुई। इसी वर्ष निर्मित फ़िल्म ’पेयिंग् गेस्ट्स’ में भी इन्दर कुमार नज़र आए एक ताज़े किरदार में, लेकिन उनके बाक़ी फ़िल्मों की ही तरह यह फ़िल्म भी एक असफल फ़िल्म रही। नतीजा, इन्दर कुमार हिन्दी फ़िल्म जगत से दूर होते गए। वर्ष 2010 में इन्दर कुमार ने फिर से प्रादेशिक फ़िल्मों में क़िस्मत आज़माने के लिए तेलुगू फ़िल्म ’यागम’ में अभिनय किया। 2011 में हिन्दी फ़िल्म ’ये दूरियाँ’ में आदित्य के किरदार में उनका अभिनय क़ाबिल-ए-तारीफ़ रहा, लेकिन फ़िल्मों का दौर बदल चुका था और इतने सारे नए चेहरे इस इंडस्ट्री में आ चुके थे कि इन्दर कुमार के अभिनय का जादू कुछ ख़ास चल नहीं पाया।

2011 के बाद इन्दर कुमार फ़िल्मों से जैसे ग़ायब ही हो गए। 2013 में उन्होंने तीसरी शादी की पल्लवी सरफ़ के साथ और 2014 में उनकी बेटी भावना का जन्म हुआ। इसी दौरान इन्दर कुमार ने टेलीविज़न शो ’फ़ीअर फ़ाइल्स’ में भी भाग लिया। टेलीविज़न में काम करते हुए इन्दर कुमार की मुलाक़ात एक नई संघर्षरत युवती से हुई जो मॉडलिंग् और अभिनय जगत में क़दम रखने के लिए इन्दर कुमार का सहारा चाहती थी। इस युवती ने इन्दर कुमार की पत्नी पल्लवी के ज़रिए इन्दर तक पहुँची। लेकिन उस युवती का इरादा कुछ और ही था। वह इन्दर को अपनी ओर शारीरिक रूप से आकर्षित करने में सफल हुई और इन्दर बहक गए। कुछ दिनों तक उस युवती के घर में रहने के बाद जब इन्दर कुमार का संभोग का नशा उतरा, तब उन्हें अपनी ग़लती का अहसास हुआ और उस युवती को छोड़ वो अपने घर लौट गए। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। बदला लेने के लिए युवती ने इन्दर कुमार के ख़िलाफ़ बलात्कार का मामला दर्ज कर दिया और 25 अप्रैल 2014 को इन्दर कुमार गिरफ़्तार हो गए। इन्दर कुमार ने यह स्वीकारा कि दोनों के बीच शारीरिक संबंध उस युवती की मर्ज़ी से ही हुआ और जब अदालत को यह मालूम हुआ कि उस युवती ने बलात्कार का झूठा केस दर्ज कराया है और उसके ख़िलाफ़ और भी एक केस चल रहा है, तब इन्दर कुमार को बाइज़्ज़त बरी कर दिया गया। लेकिन जो नुकसान होना था, वह हो चुका था। सामाजिक रूप से इन्दर कुमार शर्म की वजह से स्व-बहिष्कृत हो चुके थे। इंडस्ट्री के लोगों ने भी उनसे किनारा कर लिया और उन्हें काम मिलना बिल्कुल बन्द हो गया। यहाँ तक कि उनके चहेते यार सलमन ख़ान ने भी उन्हें अपनी फ़िल्मों में लेना उचित नहीं समझा। तीन साल तक कोई भी काम ना मिलने की वजह से इन्दर कुमार आर्थिक संकट से भी गुज़रे। 

दीये के बुझने से पहले उसकी लौ जगमगा उठती है, यह कहावत इन्दर कुमार के जीवन पर फ़िट बैठती है। इसी वर्ष, 2017 में उन्हें तीन फ़िल्मों में काम करने का मौका मिला। ये फ़िल्में हैं ’Who is the First Wife of My Father?', ’छोटी सी गुज़ारिश’ और ’फ़टी पड़ी है यार’। मौत एक ऐसी चीज़ है जिसका अंदेशा शायद आदमी को कई बार हो जाता है कि उसका अन्त क़रीब है। इन्दर कुमार के साथ भी शायद ऐसा ही हुआ था। पिछले तीन साल से वो अपनी पहली पत्नी से हुई उनकी बेटी खुशी से मिलने की कोशिशें कर रहे थे पर उन्हें सफलता नहीं मिली। जिस पत्नी को उन्होंने गर्भावस्था में ही छोड़ दिया, वो कैसे इतने सालों बाद अपनी बेटी को उनसे मिलने देती। इन्दर के लगातार प्रयासों के बावजूद वो अन्त तक अपनी बड़ी बेटी से मिल नहीं सके और क़िस्मत का मज़ाक देखिए कि जिस दिन इन्दर कुमार इस दुनिया को छोड गए, उसके अगले ही दिन खुशी की तेरहवीं सालगिरह थी। इन्दर चले गए केवल 43 वर्ष की आयु में। पारिवारिक, सामाजिक और कार्य-क्षेत्र में जिस मानसिक स्थिति से वो गुज़र रहे थे, उनके दिल-ओ-दिमाग़ पर अत्यधिक दबाव होना लाज़मी था। और इस दबाव की वजह से ही शायद उन्हें वह भयानक दिल का दौरा पड़ा और नींद में ही वो बहुत दूर निकल गए। सलमन ख़ान, माधुरी दीक्षित, वैजयन्तीमाला, करीना कपूर और मैडोना के फ़ैन इन्दर कुमार को भले फ़िल्म जगत में बहुत अधिक सफलता नहीं मिली, लेकिन उन्होंने जिस जिस फ़िल्म में भी अभिनय किया, उनके अभिनय पर कभी कोई प्रश्न-चिन्ह नहीं उठा। यह ज़रूरी नहीं कि हर कलाकार सुपरस्टार बन सके, लेकिन उस कलाकार की कला अमर रहती है। इन्दर कुमार भी हमारे दिलों पर राज करेंगे। उनकी मीठी मुस्कुराहट और सरल-सहज अभिनय हमेशा हमें सुकून देती रहेगी।




आख़िरी बात

’चित्रकथा’ स्तंभ का आज का अंक आपको कैसा लगा, हमें ज़रूर बताएँ नीचे टिप्पणी में या soojoi_india@yahoo.co.in के ईमेल पते पर पत्र लिख कर। इस स्तंभ में आप किस तरह के लेख पढ़ना चाहते हैं, यह हम आपसे जानना चाहेंगे। आप अपने विचार, सुझाव और शिकायतें हमें निस्संकोच लिख भेज सकते हैं। साथ ही अगर आप अपना लेख इस स्तंभ में प्रकाशित करवाना चाहें तो इसी ईमेल पते पर हमसे सम्पर्क कर सकते हैं। सिनेमा और सिनेमा-संगीत से जुड़े किसी भी विषय पर लेख हम प्रकाशित करेंगे। आज बस इतना ही, अगले सप्ताह एक नए अंक के साथ इसी मंच पर आपकी और मेरी मुलाक़ात होगी। तब तक के लिए अपने इस दोस्त सुजॉय चटर्जी को अनुमति दीजिए, नमस्कार, आपका आज का दिन और आने वाला सप्ताह शुभ हो!





शोध,आलेख व प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी 
प्रस्तुति सहयोग : कृष्णमोहन मिश्र  



रेडियो प्लेबैक इण्डिया 

Comments

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे...

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु...

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन...